भारत के ‘सतत विकास लक्ष्य’ को हासिल करने में बाधा बन सकती है हीटवेव!

कोलकाता: भारत में हीट वेव (तेज़ गर्म लहरें) की आवृत्ति और तीव्रता लगातार बढ़ रही है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि और अन्य सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्थाओं पर बोझ पड़ रहा है। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, कैम्ब्रिज, यूनाइटेड किंगडम में रमित देबनाथ द्वारा PLOS क्लाइमेट में प्रकाशित एक नए अध्ययन ने सुझाव दिया, कि जलवायु परिवर्तन के कारण तेज़ हीटवेव भारत के सतत विकास लक्ष्यों (SDG) की दिशा में प्रगति को बाधित कर सकती हैं।
भारत, 17 संयुक्त राष्ट्र SDG हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें गरीबी का न होना, अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण, अच्छा काम और आर्थिक विकास शामिल है। शोध के निष्कर्षों के मुताबिक, भारत में हीटवेव ने SDG की प्रगति को पहले के अनुमान से कहीं ज़्यादा कमज़ोर कर दिया है। संभव है कि मौजूदा आकलन मेट्रिक्स जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति भारत की कमज़ोरियों की बारीकियों को पर्याप्त रूप से पकड़ न पाए हों।
उदाहरण के लिए, हीट इंडेक्स (HI) के आकलन में, अध्ययन से पता चलता है कि देश का लगभग 90% हिस्सा हीटवेव के प्रभाव से ख़तरे के क्षेत्र में है। क्लाइमेट वल्नरेबिलिटी इंडेक्स (CVI) के अनुसार, देश का लगभग 20% भाग जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। इसी तरह के प्रभाव राष्ट्रीय राजधानी के लिए देखे गए थे, जहां हीट इंडेक्स (HI) के अनुमान बताते हैं कि लगभग पूरी दिल्ली तेज़ हीटवेव के प्रभावों से ख़तरे में है, जो कि जलवायु परिवर्तन के लिए इसकी हालिया राज्य कार्य योजना में परिलक्षित नहीं होता है। हालांकि, इस अध्ययन की कई सीमाएं थीं, उदाहरण के लिए, CVI डेटा (2019-2020) और हीट इंडेक्स डेटा (2022) के लिए अप्रासंगिक समय सीमा।
न्यूज़क्लिक ने डॉ. गुफ़रान बेग, फाउंडर प्रोजेक्ट डायरेक्टर-सफर (पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार) और सर आशुतोष मुखर्जी, चेयर प्रोफेसर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज़ (एनआईएएस) इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस कैंपस (आईआईएससी) के साथ बात की। इनका कहना है, “अब हम ला-नीना (La Nina) की स्थिति का अवलोकन कर रहे हैं और बहुत जल्द हम ईएल-नीनो (EL Nino) की स्थिति का अवलोकन करने जा रहे हैं जो वर्षा की कमी से जुड़ी हैं। ऊपरी हवाएं अत्यधिक विक्षुब्ध हो रही हैं, और अपरंपरागत हवा के पैटर्न देखे जा रहे हैं। इससे भारत में अत्यधिक ठंड या अत्यधिक गर्मी जैसी बहुत-सी घटनाएं होती हैं। गर्मियां बहुत पहले आ चुकी हैं और अब भारत के कई हिस्सों में अप्रैल में भी तापमान 40 डिग्री सेल्सियस और उससे ऊपर जा रहा है, जो बहुत ही असामान्य और अभूतपूर्व है। यह निश्चित रूप से SDG को प्रभावित करने वाला है। जलवायु परिवर्तन को धीमा करने के लिए उत्सर्जन का प्रमुख स्रोत वायु प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार है। इसे नियंत्रित करने की आवश्यकता है।”
रिकॉर्ड से मुताबिक भारत में साल 2022 का अप्रैल महीना 122 वर्षों में सबसे गर्म महीने के रूप में दर्ज हुआ इसके बाद मार्च का महीना था, इस दौरान कथित तौर पर कम से कम 25 लोगों ने अपनी जान गंवाई। 1992 के बाद से भारत में संचयी हीटवेव से संबंधित मृत्यु दर 24,000 से अधिक है। इसके अलावा, भारतीय उपमहाद्वीप में निर्मित पर्यावरण की परस्पर जुड़ी प्रणालियों की एक विस्तृत श्रृंखला पर हीटवेव का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, जिसमें लगातार और अधिक विस्तारित बिजली आउटेज़ समेत स्वास्थ्य, धूल और ओज़ोन के स्तर में वृद्धि के कारण उत्तरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी हुई है और ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं। साथ ही, कोविड-19 महामारी से इकॉनमिक रिकवरी के कारण घातक गर्मी की प्रतिक्रिया में और बाधा आ रही है।
इस प्रकार, इस तरह की हीटवेव का सार्वजनिक स्वास्थ्य और आर्थिक बोझ बेहद ज़्यादा है। लंबी अवधि के अनुमानों से संकेत मिलता है कि 2050 तक इंडियन हीटवेव, छाया में आराम करने वाले एक स्वस्थ इंसान के जीवित रहने की सीमा को पार कर सकती हैं। इसके अलावा, वे लगभग 310-480 मिलियन लोगों की श्रम उत्पादकता, आर्थिक विकास और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करेंगे।
अनुमान बताते हैं कि 2050 तक अत्यधिक गर्मी के कारण दिन में बाहरी कार्य क्षमता (यानी, उच्च तापमान में बाहर काम करना, जैसे निर्माण श्रमिक) में 15% की कमी देखने को मिलेगी।
2022 में जनवरी से अक्टूबर तक, भारत ने 273 दिनों में से 242 दिनों की 'एक्सट्रीम' मौसम की घटनाएं दर्ज कीं, इस वजह से यह प्रतिदिन लगभग एक एक्सट्रीम घटना बन गई। इनमें उत्तर और पश्चिमी भागों में अत्यधिक गर्मी की लहरें और शीत लहरें, मध्य भारत में सूखा, तटीय मैदानों में उच्च बाढ़ और पूर्वोत्तर क्षेत्र में भूस्खलन आदि शामिल हैं। साल 2100 तक भारत में बार-बार वर्षा होगी और परिणामस्वरूप बाढ़, चक्रवाती तूफान, गर्मी की लहरें और समुद्र के स्तर में एक साथ वृद्धि होगी।
भारत की जलवायु भेद्यता को व्यापक रूप से समझने के लिए, एक संचयी प्रतिनिधि सूचकांक को जलवायु घटनाओं की सह-घटना और टकराव के लिए अवश्य ही ध्यान में रखना चाहिए। भारत, वर्तमान में जलवायु परिवर्तन पर आधारित अंतर सरकारी पैनल (IPCC) के SREX ढांचे के आधार पर केंद्र सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा डिज़ाइन किए गए एक राष्ट्रीय जलवायु भेद्यता सूचकांक (CVI) के माध्यम से अपनी जलवायु भेद्यता का आकलन करता है।
इसके अलावा, लैंसेट रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि इन बेसलाइन अनुमानों से हीटवेव तेज़ हो जाएगी, जिससे साल 2100 तक लगभग 600 मिलियन भारतीय प्रभावित होंगे। बढ़ी हुई गर्मी से भारत को 2050 और 2100 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का क्रमशः 2.8% और 8.7% खर्च करने और जीवन स्तर को कम करने की उम्मीद है। इसके अलावा, विश्व मौसम विज्ञान संगठन की एक हालिया रिपोर्ट ने घातक हीटवेव और SDG के बीच के अंतर्संबंधों को प्रदर्शित किया, जिसका अर्थ है कि वैश्विक औसत सतह के तापमान में बढ़ोतरी, सभी 17 SDG को प्रभावित करेगी। स्थिरता संक्रमण पर हीटवेव का प्रभाव विशेष रूप से भारत के लिए चिंता का विषय है क्योंकि देश ने खुद से किए गए रिपोर्ट - SDG इंडिया इंडेक्स (2020-21) में हालिया प्रगति के बावजूद अभी तक अपने विकास लक्ष्यों को हासिल नहीं किया है।
शोधकर्ताओं ने गंभीर श्रेणियों को वर्गीकृत करने के लिए भारत सरकार के राष्ट्रीय डेटा और एनालिटिक्स प्लेटफॉर्म से राज्य-स्तरीय जलवायु भेद्यता इंडीकेटर्स पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटासेट का उपयोग किया। शोधकर्ताओं ने तब 20 वर्षों (2001-2021) में SDG में भारत की प्रगति की तुलना 2001-2021 से एक्सट्रीम मौसम से संबंधित मृत्यु दर के साथ की थी।
लेखकों के अनुसार, “इस अध्ययन से पता चलता है कि हीटवेव CVI के पहले के अनुमान की तुलना में अधिक भारतीय राज्यों को जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील बनाती हैं। भारत और भारतीय उपमहाद्वीप में गर्म हवाएं बार-बार आने वाली और लंबे समय तक चलने वाली हो गईं हैं। अब समय आ गया है कि जलवायु विशेषज्ञ और नीति निर्माता देश की जलवायु भेद्यता का आकलन करने के लिए मैट्रिक्स का दोबारा मूल्यांकन करें। यह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और साझेदारी के माध्यम से एक समग्र भेद्यता उपाय विकसित करने की गुंजाइश प्रदान करता है।”
लेखक आगे कहते हैं, "भारत में हीटवेव ज़्यादा तेज़ हो रही हैं, जो देश के 80% लोगों को ख़तरे में डाल रही हैं, जो कि इसके वर्तमान जलवायु भेद्यता आकलन में बेहिसाब बनी हुई है। यदि इस प्रभाव को तत्काल दूर नहीं किया गया तो भारत SDG की दिशा में अपनी प्रगति को धीमा कर सकता है।
मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :
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