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कर्नाटक के बाद अब यूपी पहुंचा हिजाब-विवाद, चुनाव से पहले ध्रुवीकरण की कोशिश?

यूपी के जौनपुर स्थित तिलकधारी सिंह डिग्री कॉलेज की एक मुस्लिम छात्रा ने आरोप लगाते हुए कहा है कि राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर ने उसे हिजाब पहनने को लेकर फटकार लगाई है। 
Hijab
Image courtesy : Hindustan Times

कर्नाटक से शुरू हुआ हिजाब विवाद अब चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश में पहुंच गया है जहां पहले चरण का चुनाव आज संपन्न हो गया है। लेकिन इस तरह के विवाद का फायदा आने वाले चुनावों में बीजेपी को मिल सकता है क्योंकि सांप्रदायिक विवाद बढ़ने से चुनावों में बीजेपी को लाभ मिलने की संभावना अधिक होती है। ऐसा पिछले चुनावों में देखा गया है कि जब भी चुनाव का समय आया है तब हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद, शमशान-कब्रिस्तान और पाकिस्तान और जिन्ना जैसे विवादित मुद्दों के लेकर बयानबाजी शुरू हुई और इससे हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण हुआ और इसका फायदा सीधे बीजेपी को मिला है। 

प्रोफेसर ने हिजाब पहनने को लेकर फटकारा

अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक यूपी के जौनपुर स्थित तिलकधारी सिंह डिग्री कॉलेज की एक मुस्लिम छात्रा ने आरोप लगाते हुए कहा कि राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर ने उसे हिजाब पहनने को लेकर फटकार लगाई है और उन्होंने कहा कि यह सब काम पागल लोग करते हैं। छात्रा का आरोप है कि प्रोफेसर ने हिजाब को लेकर उसे क्लास से बाहर निकाल दिया। 

जरीना बीए फाइनल ईयर की छात्रा है जिसने ये आरोप लगाया है। छात्रा के अनुसार बुधवार के दिन वह क्लास में हिजाब पहन कर पहुंची। वह सीट पर बैठने जा रही थी तभी क्लास में मौजूद प्रोफेसर प्रशांत त्रिवेदी ने उसे बैठने से रोक दिया। आरोप है कि प्रोफेसर उसे हिजाब पहनने से मना करते थे। उन्होंने छात्रा से कहा कि बार-बार मना करने पर भी इस तरह की ड्रेस क्यों पहनकर आती हो?

छात्रा ने इस पर कहा कि वह सिर ढकने के लिए हिजाब लगाती है। प्रोफेसर द्वारा छात्रा को क्लास से बाहर निकालने के बाद छात्रा कॉलेज प्रशासन से बिना शिकायत करे ही रोते हुए घर चली गई। घर पहुंचकर उसने परिजनों को इस मामले के बारे में बताया। 

परिजनों ने मीडिया से कहा कि इस मामले की शिकायत थाना और कॉलेज में करेंगे। इस पूरे प्रकरण पर शिक्षक प्रशांत त्रिवेदी का कहना है कि कक्षा में राजनीतिक विषय पर चर्चा होते हुए हिजाब पर पहुंच गई। ऐसे में वह छात्रा उठकर जोर से चिल्लाकर अपनी बात रखने लगी, मैंने उसे कहा कि शांत होकर बैठ जाओ। वह किस ड्रेस में आ रही है, इसको रोकने का काम उनका नहीं है, यह कॉलेज प्रबंधन व प्रिंसिपल का निर्णय है।

जांच के बाद कार्रवाई

मामला सामने आने के बाद कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आलोक सिंह का कहना है कि मुझे केवल कॉलेज की ड्रेस से मतलब है ताकि यह साफ हो सके कि वह मेरे कॉलेज का है। इसके बाद कोई क्या पहनता यह उसकी धार्मिक स्वतंत्रता है, मुझे कोई आपत्ति नहीं है। तथ्यों की जांच करने के बाद उचित कार्रवाई की जाएगी।

कर्नाटक से विवाद शुरु

ज्ञात हो कि कुछ दिनों पहले कर्नाटक के उडुप्पी जुनियर कॉलेज में मुस्लिम छात्रा द्वारा हिजाब पहनने को लेकर विवाद शुरू हुआ था जो राज्य कुछ अन्य कॉलेजों में पहुंच गया था। सामने आई रिपोर्ट के मुताबिक 27 दिसंबर, 2021 को उडुपी के एक सरकारी इंटर कॉलेज में 6 छात्राओं को हिजाब पहनने के कारण क्लास में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई थी। करीब एक महीना से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद भी इन छात्राओं को हिजाब पहनने के कारण क्लास में आने की नहीं दी जा रही है। अब यह विवाद हाई कोर्ट में पहुंच गया है। अब अदालत के फैसले पर सबकी नजर टिकी है। 

बता दें कि दो दिन पहले एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें देखा गया कि बुर्का पहने एक छात्रा कॉलेज परिसर में स्कूटी से प्रवेश करती है और उसे पार्क करने के बाद क्लास की तरफ जाती है। इस बीच कुछ लड़कों का समूह जिनके कंधों पर भगवा रंग का पट्टा है, उस छात्रा की तरफ 'जय श्रीराम' के नारे लगाता हुआ बढ़ता है। इसके विरोध में लड़की 'अल्लाहु अकबर' के नारे लगाती हुई दिखाई देती है। इस दौरान कॉलेज के कुछ स्टाफ छात्रा को भीड़ से बचाकर दूसरी तरफ ले जाते हुए वीडियो में दिखाई दे रहे हैं। 

हर धर्म को आज़ादी

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार छात्रा का कहना है कि "देश में हर धर्म को हर कास्ट को लेकर आजादी दी गई है, फिर हिजाब पहनने पर इतना विरोध क्यों किया जा रहा है।" छात्रा का कहना है कि मैं एसाइन्मेंट के लिए कॉलेज गई थी लेकिन कुछ लोगों ने मुझे नहीं जाने दिया क्योंकि मैंने बुर्का पहने हुए थी। उनका कहना था कि पहले इसे हटाओ फिर अंदर जाने दिया जाएगा। आगे छात्रा ने कहा कि जब मैं आगे बढ़ी तब उन्होंने जय श्री राम का नारा लगाना शुरू कर दिया।"

किसान आंदोलन से बीजेपी की ज़मीन हुई कमजोर

किसान आंदोलन के चलते बीजेपी की जमीन कमजोर हुई है। तीन कृषि कानून को लेकर ये आंदोलन एक साल लंबा चला जो ऐतिहासिक था। इस आंदोलन के चलते केंद्र की बीजेपी सरकार को कृषि कानून वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस आंदोलन के दौरान करीब 700 से अधिक किसान शहीद हुए। इन सबको लेकर देश भर के किसान बेहद नाराज हैं। चुनावी राज्य यूपी के पश्चिमी क्षेत्र के किसान प्रदेश के राजनीतिक दलों के भाग्य का फैसला करते हैं। इन किसानों की नाराजगी बीजेपी को भारी पड़ सकती है। राकेश टिकैत ने कहा था कि, "वे बांटने की बात करते हैं", "हम एकजुट होने की बात करते हैं। बीजेपी की राजनीति की पहचान नफ़रत है। "पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर में आयोजित किसान महापंचायत में राकेश टिकैत ने जब अल्लाहु अकबर का नारा लगाया था तो वहां मौजूद सभी लोगों ने हर-हर महादेव का नारा लगाया था। किसान आंदोलन ने मुजफ्फरनगर दंगे के बाद इस क्षेत्र के जाट समाज और मुस्लिम समाज के बीच बढ़ी हुई खाई को पूरी तरह समाप्त कर दिया है। ऐसे में इस बार बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती है। 

पश्चिमी यूपी बीजेपी के लिए अहम

पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों की बात करें तो पश्चिमी यूपी का क्षेत्र बीजेपी के लिए वरदान साबित हुआ है। वर्ष 2017 में विधानसभा चुनावों के दौरान बीजेपी को पूरे यूपी में करीब 41 प्रतिशत वोट मिला था। इस चुनाव में पश्चिमी यूपी में पार्टी का वोट शेयर 44.14 प्रतिशत था। माना जाता है कि ये वोट शेयर उस दौरान कैराना पलायन को प्रचारित किए गए परिणाम में मिला था। वर्ष 2019 के आम चुनाव में भी पूरे उत्तर प्रदेश में बीजेपी का वोट शेयर 50 प्रतिशत था। वहीं, पश्चिमी यूपी में पार्टी का वोट शेयर 52 प्रतिशत था। ऐसे में बीजेपी के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश का क्षेत्र काफी अहम हो जाता है

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