Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव: क्या BJP हर पांच साल में सत्ता बदलने की परंपरा बदल पाएगी?

12 नवंबर को होने वाली वोटिंग से पहले पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की 50 जनसभाएं होनी हैं। दूसरी ओर, कांग्रेस के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है, फिर भी मुकाबला कांटे का है।
Himachal Pradesh
फाइल फ़ोटो। साभार : पीटीआई

हिमाचल प्रदेश में चुनाव में 12 नवंबर को वोटिंग होगी। 8 दिसंबर को परिणाम आएंगे लेकिन क्या हर पांच साल में सत्ता बदलने की परंपरा बदलेगी? भाजपा हिमाचल में हर पांच साल में सत्ता बदलने की इस परंपरा को ही बदल डालना चाहती है। इसके लिए वह तमाम तरह के उपाय और मेहनत कर रही है। लेकिन इस सब के बावजूद उत्तराखंड की तरह, हिमाचल में राह उतनी आसान होती नहीं दिख रहीं। सोचें, भारतीय जनता पार्टी ने एंटी इन्कंबैंसी कम करने को क्या क्या उपाय किए हैं। पहली बार ऐसा हुआ कि प्रत्याशी के नाम तय करने के लिए गुप्त वोटिंग कराई गई और पार्टी में बगावत रोकने को भी दिग्गज लगाए गए हैं। 12 नवंबर को होने वाली वोटिंग से पहले पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की 50 जनसभाएं होनी हैं। दूसरी ओर, कांग्रेस के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है, फिर भी मुकाबला कांटे का है।

हिमाचल के चुनावी समर में भाजपा व कांग्रेस दोनों ने जातीय समीकरण साधने का भी भरसक प्रयास किया है। राजपूत बाहुल्य हिमाचल में कांग्रेस व भाजपा ने 68 विधान सभा सीटों में 28-28 राजपूत नेताओं को उम्मीदवार बनाया है। अलबत्ता ब्राह्मणों को टिकट देने के मामले में कांग्रेस, भाजपा से थोड़ी आगे है। कांग्रेस ने 12 व भाजपा ने 9 ब्राह्मण नेताओं को उम्मीदवार बनाया है। महिलाएं भाजपा का बड़ा वोट बैंक मानी जाती हैं। इसी को केंद्र में रखते हुए भाजपा ने 5 व कांग्रेस ने 3 महिला नेत्रियों को चुनाव मैदान में उतारा है। खास यह भी है कि प्रदेश की 68 विधानसभा सीटों में से 17 अनुसूचित जाति व 3 जनजाति के लिए आरक्षित हैं।
 
हिमाचल कांग्रेस प्रत्याशियों की सूची खंगाली जाए तो उसने 12 ब्राह्मण नेताओं पर भरोसा जताया है। इनमें हरोली से मुकेश अग्निहोत्री, धर्मशाला से सुधीर शर्मा, बंजार से खीमीराम शर्मा, ज्वालामुखी से संजय रत्न, बड़सर से इंद्रदत्त लखनपाल, गगरेट से चैतन्य शर्मा, देहरा से डॉ राजेश शर्मा, घुमारवीं से राजेश धर्माणी, अर्की से संजय अवस्थी, मनाली से भुवनेश्वर गौड़, नगरोटा से रघुवीर सिंह बाली का नाम शामिल है। 

राजपूत प्रत्याशियों में डलहौजी से आशा कुमारी, भटियात से कुलदीप सिंह पठानिया, फतेहपुर से भवानी सिंह पठानिया, शाहपुर से केवल सिंह पठानिया, जसवां से सुरेंद्र सिंह मनकोटिया, कुल्लू से सुंदर सिंह ठाकुर, सुंदरनगर से सोहनलाल ठाकुर, सिराज से चेतराम ठाकुर, द्रंग से कौल सिंह ठाकुर, मंडी से चंपा ठाकुर, जोगेंद्र नगर से सुरेंद्र पाल ठाकुर, सरकाघाट से पवन कुमार, धर्मपुर से चंद्रशेखर, सुजानपुर से राजेंद्र राणा, नादौन से सुखविंद्र सिंह सुक्खू, ऊना से सतपाल सिंह रायजादा, श्रीनैनादेवी से रामलाल ठाकुर, बिलासपुर से बंबर ठाकुर, नाहन से अजय सोलंकी, पांवटा से किरनेश जंग, शिलाई से हर्षवर्धन सिंह चौहान, शिमला ग्रामीण से विक्रमादित्य सिंह, ठियोग से कुलदीप सिंह राठौर, जुब्बल कोटखाई से रोहित ठाकुर, शिमला से हरीश जनार्था, चौपाल से रजनीश किम्टा का नाम शामिल है। वैसे भरमौर व लाहौल स्पीति सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। लेकिन यहां से कांग्रेस के प्रत्याशी क्रमश: ठाकुर सिंह भरमौरी व रवि ठाकुर राजपूत वर्ग से संबंधित हैं।

भाजपा की सूची में सुरेश भारद्वाज, डॉ राम लाल मारकंडा, राजेंद्र गर्ग, अनिल शर्मा, गोविंद शर्मा, राम कुमार, रणधीर शर्मा तथा विजय अग्निहोत्री ब्राह्मण भाजपा की सूची में है जबकि सरवीण चौधरी, रीता धीमान, शशि बाला, रीना कश्यप व नीलम नैय्यर महिला उम्मीदवार हैं। कांग्रेस की सूची में आशा कुमारी, चंपा ठाकुर व दयाल प्यारी महिला चेहरे हैं।

एंटी इन्कंबैंसी के साथ बागी भी पेश कर कड़ी चुनौती

देखा जाए तो हिमाचल में कांटे का मुकाबला होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि जयराम ठाकुर सरकार के खिलाफ एंटी इन्कंबैंसी बहुत है। 5 साल के उनके कामकाज को लेकर बड़े सवाल उठे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उनकी सरकार का हाल क्या रहा है यह इस एक तथ्य से जाहिर होता है कि राज्य में 5 साल में 6 मुख्य सचिव नियुक्त हुए। सरकार के कामकाज के अलावा पार्टी में असंतुष्टों की संख्या बहुत बढ़ गई है। टिकट बंटवारे के बाद मुख्यमंत्री के अपने जिले मंडी में बगावत हो गई है। उनके अपने जिले में तीन बड़े नेताओं ने निर्दलीय परचा भरा है। हालांकि पार्टी उनको मनाने की कोशिश कर रही है लेकिन अभी कामयाबी नहीं मिली है। धर्मशाला में भी कई नेताओं ने बागी होकर परचा दाखिल किया है।

पार्टी के बड़े नेता प्रवीण शर्मा, विशाल नहारिया, वंदना गुलेरिया आदि ने बागी होकर परचा भरा है। पार्टी ने एंटी इन्कंबैसी कम करने के लिए 11 विधायकों की टिकट काटी है और दो मंत्रियों की सीट बदली है। लेकिन इसका सकारात्मक असर नहीं हुआ है। उलटे कई जगह पार्टी विधायकों की टिकट काट कर उनके परिजनों को टिकट दिए गए हैं, जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं में नाराजगी बढ़ गई। एक मंत्री, जिनकी सीट बदली गई है उन्होंने तो सार्वजनिक रूप से कहा कि उनको जहां से टिकट मिली है वे तो वहां के वोटर भी नहीं हैं, अब सब कुछ जनता के हवाले है।

भाजपा के सामने एक और मुश्किल यह है कि जिन लोगों पर चुनाव लड़ाने का जिम्मा है उनमें से कई बड़े लोग खुद चुनाव लड़ने लगे हैं। पार्टी के तीन महामंत्रियों को टिकट मिली है। इसके अलावा मुख्य मीडिया प्रभारी और पार्टी के कोषाध्यक्ष भी चुनाव लड़ रहे हैं। कम से कम छह नेताओं के बेटे या पत्नी को भाजपा ने टिकट दिया है। सो, वंशवाद के आरोपों को लेकर भी पार्टी खुद ही घिर गई है। दूसरी ओर वीरभद्र सिंह के निधन के बाद कांग्रेस के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं होने के बावजूद कांग्रेस कांटे की टक्कर दे रही है।

कांग्रेस ने अपने आखिरी उम्मीदवार की लिस्ट नामांकन से महज ढाई घंटे पहले जारी की है लेकिन इस सब के बावजूद कांग्रेस के एक और नेता रिटायर्ड मेजर विजय सिंह मनकोटिया ने पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था। उनके बीजेपी में शामिल होने पर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि वह उनके फैसले का सम्मान करते हुए बीजेपी में उनका स्वागत करते है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के घर विजयपुर में हर्ष महाजन की अगुवाई में मनकोटिया बीजेपी में शामिल हुए थे। बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मनकोटिया को बीजेपी का पटका पहनाकर पार्टी में शामिल किया था। 

यही नहीं, भाजपा भी तमाम कोशिशों के बाबजूद बगावत को थामने में नाकाम रही है। नामांकन के अंतिम दिन बीजेपी के चार बड़े नेताओं ने बागी रूख अपना लिया है। जो पार्टी के लिए एक झटका माना जा सकता है। राज्य की कुल्लू विधानसभा सीट से नामांकन से ठीक कुछ घंटे पहले बीजेपी ने अपना प्रत्याशी बदल दिया है। बीजेपी ने यहां से महेश्‍वर सिंह का टिकट काट उनकी जगह नरोत्तम ठाकुर को प्रत्‍याशी बनाया है। वहीं, महेश्वर सिंह ने इस फैसले पर नाखुशी जताते हुए अब निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया है। उन्होंने नामांकन भी दाखिल कर दिया है। बताया जा रहा है कि महेश्वर सिंह के बेटे हितेश्वर सिंह ने बंजार विधानसभा चुनाव से निर्दलीय लड़ने का ऐलान किया है। महेश्वर सिंह अपने बेटे को मना नहीं पाए, ऐसे में अब भाजपा ने उनका टिकट भी काट दिया है।

इससे पहले चंबा से भाजपा ने अपने चुनावी प्रत्याशी को बदलने का एक बड़ा फैसला लिया था। भाजपा ने पहली सूची में चंबा के लिए घोषित इंदिरा कपूर के स्थान पर नीलम नैयर को प्रत्याशी बनाने का फैसला लिया था। इसके लिए पार्टी ने तर्क दिया था कि इंदिरा कपूर के खिलाफ आपराधिक मामले के चलते उनका टिकट काटा गया है।

BJP ने प्रेम सिंह को किया निलंबित

हिमाचल चुनाव से पहले बीजेपी ने बड़ा कदम उठाते हुए प्रेम सिंह द्रैक को 6 साल के लिए पार्टी से सस्पेंड कर दिया है। प्रेम पर आरोप है कि वे लंबे समय से पार्टी के खिलाफ काम कर रहे थे। ऐसे में प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष सुरेश कश्यप ने उन्हें 6 साल के लिए सस्पेंड कर दिया है। असल में प्रेम सिंह पर आरोप है कि वे बीजेपी प्रत्याशी का जमीन पर लगातार विरोध कर रहे हैं। इस बार पार्टी ने रामपुर सीट से कौल सिंह को उम्मीदवार बनाया है लेकिन प्रेम सिंह जोर देकर कह रहे हैं कि ये सीट अनुसूचित जाति वर्ग के प्रत्याशी के लिए आरक्षित है, ऐसे में किसी दूसरे प्रत्याशी को यहां से टिकट देना दूसरे समुदाय के अधिकारों का हनन है। इसी वजह से कई कार्यक्रम कर प्रेम सिंह बीजेपी प्रत्याशी के खिलाफ ही जमीन पर माहौल बनाने का काम कर रहे हैं।

BJP के लिए 29 अक्टूबर का दिन सबसे अहम

हिमाचल में चुनाव की दृष्टि से सबसे अहम दिन 12 नवंबर का है, जिस दिन वोट पड़ना है मगर भाजपा के लिए सबसे अहम दिन 29 अक्टूबर का है, जिस दिन नाम वापस लेने का आखिरी दिन है। उस दिन ये स्पष्ट हो जायेगा कि बागी उम्मीदवार को समझाने की भाजपा की नीति कितनी कामयाब हो पाती है। भाजपा की संभावित जीत का सूचकांक 29 अक्टूबर को स्पष्ट हो जायेगा की वो उछाल मारेगा या नीचे गिरेगा।

इन्हें मिली मनाने की जिम्मेदारी

असंतुष्टों को मानाने की जिम्मेदारी मुख्य रूप से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, मुख्य मंत्री जय राम ठाकुर, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और इंचार्ज अविनाश राय खन्ना को मिली है, लेकिन जिस तरह असंतुष्टों ने तेवर अख्तियार कर रखे हैं उससे ये साफ़ है कि अभी तक इन्हे कोई ख़ास सफलता नहीं मिली है। ये चुनाव भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए भी अहम है क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि जनवरी 2023 को उन्हें अगले दो साल के लिए फिर से अध्यक्ष मनोनीत किया जाना है ऐसे में यदि भाजपा हिमाचल हारता है तो वो नड्डा के राजनैतिक करियर के लिए अच्छा नहीं रहेगा।

बागियों को मनाना क्यों है जरूरी?

बागी विधायकों को मनाना क्यूं जरूरी है। इसके लिए अगर हम 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजों की समीक्षा करें तो करीब 20 सीट ऐसी हैं जिसमें हार और जीत का फासला महज 3 हजार का था और इन 20 सीट्स में से 6 सीट ऐसी हैं जिसमें हार-जीत का फासला 1 हज़ार या उससे कम है। इसके अलावा 34 ऐसी सीट हैं जहां हार और जीत का अंतर सिर्फ 5 हज़ार का था। दूसरा, केवल बागी विधायक ही नहीं, आम आदमी पार्टी व बसपा भी एक बड़े सरदर्द के तौर पर उभरी है। सूत्रों की मानें तो यहां हार और जीत का अंतर इतना कम है वहां पर ये पार्टियां, वोट कटुआ पार्टी साबित हो सकती है और इनकी अच्छे परफॉरमेंस से भाजपा के लिए स्थिति और विकट हो सकती है। इसलिए बागियों को मनाना जरूरी है। अन्यथा की स्थिति में, हिमाचल में हर पांच साल पर सत्ता बदलने की परंपरा का जारी रहना तय माना जा रहा है।

साभार : सबरंग 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest