पुलवामा : तुमने मिला दिया आदमख़ोर बारूद, लाल-लाल गुलाबों की खुशबू में...

आदमख़ोर समय में
(पुलवामा आत्मघाती आतंकी से संबोधित होकर)
दिन वेलेन्टाइन का था
और माहौल प्यार ओ मुहब्बत का
प्रेमी और प्रेमिकाएं सरशार थीं
एक कोमल सनातन भावना से
पूरे विश्व पर बिखरी थी
लाल-लाल गुलाबों की खुशबू
विश्व का एक पूरा वर्ग
प्रेम वचन को दोहरा रहा था
तुम नफ़रत की घृणा से लिप्त
मानवता का चराग़ बुझाने पर तुले थे
तुम तुले थे कलंकित करने
मुहब्बत की सारी प्रज्वलित इबारतों को
तुमने मिला दिया आदमख़ोर बारूद
लाल-लाल गुलाबों की खुशबू में
तुमने मिटा दिए सारे प्रेम वचन
बेसहारा कर दिया
लगभग पचास परिवारों को
बुझा दीं उनकी उम्मीदें
मार डाले उनके सपने
एक धमाके के साथ धकेल दिए
अंधेरों में पचास ऐसे घर
जो गरीबी से लड़ रहे थे
बुनियादी ज़रूरतों को जुटाने के लिए
उन्हें कुछ नहीं लेना था
तुम्हारी उस पार की संकीर्ण सियासत से
कुछ नहीं लेना था
तुम्हारी बोई हुई नफ़रतों की फ़सलों से
उन्हें कुछ नहीं लेना था
इस पार की किसी राजनीति से,
सियासत के किसी षड्यंत्र से
एक सुरक्षाकर्मी का भला
इन बातों से क्या सरोकार होता है
कि हमारे संसद में बैठे
नेताओं की नीतियां क्या हैं
हमारे नेताओं का कॉरपोरेट से क्या रिश्ता है
और इन दोनों की
मीडिया हाउसों से कोन सी सांठ गाँठ
उसे सरोकार होता है
तो अपनी ड्यूटी से,अपनी तनख़्वाह से
जिसको वह गिनता रहता है दिन रात
अपने ख़यालों में,अपने ही आप से बातें करते
और गिनता रहता है दवाइयां
अपने बूढ़े बीमार माता पिता की
गिनता रहता है अपने ख्यालों में
अपने नन्हे बच्चों की किताबें
उनकी वर्दी
और ट्यूशन फ़ीस जुटाने के तरीके
वह गिनता रहता है अपनी सभी ज़रूरतें
जिनकी संख्या हमेशा ज़्यादा होती है
उसकी तनख़्वाह के आंकड़ों से
वह बेचारा कहाँ जानता है
कि उसके शहीद होने के तुरन्त बाद
नीलाम की जाती है उसकी प्रतिष्ठा
उसका बलिदान,उसकी शहादत
सियासत के फ़ासीवादी गलियारों में
उसके शव पर की जाती है राजनीति
लड़े जाते हैं इलेक्शन
उसके ख़ून की एक-एक बून्द से
बटोरे जातें हैं वोट,भरी जाती हैं तिजोरियाँ
ड्रामें रचे जाते हैं बिकी मीडिया के डिबेटों में
इस आदमख़ोर समय में,आदमख़ोर सियासत में
तुम केवल एक प्यादे थे ओ आत्मघाती आतंकी
उस पार के एक और सियासी षड्यंत्र के
और वे शहीद सुरक्षाकर्मी
इस पार की सियासत के निशाने पर हैं सदैव
कब हमारा महाराजा युद्ध की घोषणा करे
कौन जाने, कौन अनुमान लगाए
हमारी यह गन्दी और आदमख़ोर सियासत
किसी ग़रीब को मारती है आत्मघाती आतंकी बनाकर
तो किसी ग़रीब सुरक्षाकर्मी से बलिदान दिलाकर
और इन सबकी मौत
सियासत और कॉरपोरेट के गलियारों में
इस्तेमाल की जीती है,सेलिब्रेट की जाती है
हर आने वाले इलेक्शन से कुछ समय पहले।
(कविता संग्रह "अँधेरे की पाज़ेब-2019" से साभार)
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