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स्वामी सहजानंद के किसान आंदोलन में हिंदी साहित्यकारों ने सीधे भाग लिया 

'स्वामी सहजानंद सरस्वती के किसान आंदोलन में हिंदी साहित्यकारों की भूमिका' विषय पर  विमर्श 
bihar

पटना: क्रांतिकारी किसान नेता स्वाधीनता सेनानी स्वामी सहजानंद सरस्वती की 74वीं पुण्यतिथि के मौके पर 26 जून को राघवपुर (बिहटा) स्थित 'श्री सीताराम आश्रम'  में ' स्वामी सहजानंद सरस्वती के किसान आंदोलन में हिंदी साहित्यकारों की भूमिका' विषय पर  विमर्श का आयोजन किया गया। इस मौके पर पटना, मसौढ़ी, बिक्रम,  आरा , नौबतपुर, सहित कई जगहों के किसान और सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे।

सबसे पहले श्री सीताराम आश्रम परिसर में किसान सभा का लाल झंडा फहराया गया। उपस्थित जनसमूह ने स्वामी सहजानंद की समाधि पर पुष्पगुच्छ अर्पित किए। उसके बाद सभा की कार्यवाही शुरू की गई। 

सभा में स्वागत वक्तव्य करते हुए स्वामी सहजानंद द्वारा  1927 में स्थापित  'श्री सीताराम आश्रम ट्रस्ट' के  वर्तमान सचिव डॉ सत्यजीत सिंह ने बताया "  स्वामी जी भगवान की खोज में निकले, इस भगवान  के दर्शन उन्हें गरीब किसानों के मध्य मिले फिर उन्होंने किसानों के संघर्ष का नेतृत्व किया। जो कोई भी किसान आंदोलन को जानना  चाहता है उसे स्वामी जी के पास जाना होगा। हम स्वामी जी को किसी जाति की डिबिया में न बांधे।  हमलोग उन्हें स्वाधीनता  सेनानी के रूप में जाने। कुछ साल पूर्व जब मैं इंग्लैंड में था तो वहां  एक क्विज कार्यक्रम में पूछा गया था कि कौन हैं वह संन्यासी जिसे भारत में  समाजवाद के प्रणेता के रूप में जाना गया। सही जवाब था स्वामी सहजानंद सरस्वती। यह जानकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई थी। " 

स्वामी सहजानंद के अध्येता कैलाश चंद्र झा ने कई दस्तावेजों को आधार पर शिवपूजन सहाय, नागार्जुन, राहुल सांकृत्यायन जैसे हिंदी के साहित्यकारों का उदाहरण देते हुए बताया " किसान आंदोलन के प्रभाव में वैद्यनाथ यात्री भिक्षु नागार्जुन हो गए थे। नागार्जुन ने बौद्ध धर्म छोड़ने के बाद अपना चिंवर इसी सीताराम आश्रम में त्यागा था।  यह बहुत महत्वपूर्ण बात है। चिंवर  की पहचान उसके रंग और लम्बाई से  हुई। नागार्जुन इस सीताराम आश्रम में रहा भी करते थे। नागार्जुन ने स्वामी सहजानंद लिखित गीता हृदय पर भी काम किया था। मैं इस सभा में  तीन चार चिट्ठियां आज पहली बार आप लोगों के समक्ष पढ़कर सुना रहा हूं।  एक चिट्ठी में नागार्जुन जी  ने स्वामी जी को लिखा है कि वे राहुल सांकृत्यान और कौसलायान की बातों के मध्य उलझन में फंसे हैं। उन्हें क्या करना चाहिए ? "

बहस को आगे बढ़ाते हुए खगौल महिला कालेज में हिंदी के प्रोफेसर उदय कुमार जी ने कहा " आज से 25-26 साल पहले अपने पिता के साथ इस आश्रम में आया था। तब मैं किसान आंदोलन का इतिहास के बारे में जानने की कोशिश कर रहा था।  स्वामी जी ने जमींदारों के खिलाफ किसानों के बारे में सोचा। यह धरती उनकी कर्मभूमि थी। 1929 में बिहार प्रांतीय किसान सभा की स्थापना हुई थी। गणेश शंकर विद्यार्थी, राहुल संकृत्यान, रामवृक्ष बेनीपुरी जैसे साहित्यकारों ने  किसान आंदोलन में प्रत्यक्ष भाग लिया। परोक्ष रूप से भाग लेने वालों में थे  फणीश्वर नाथ रेणु, सुमित्रानांद पंत, रामधारी सिंह दिनकर आदि थे। प्रेमचंद के  'गोदान' और नागार्जुन का 'बलचनमा' जैसे उपन्यासों को किसान आंदोलन के संदर्भ में कैसे भूला जा सकता है !  जिस किस्म की बात स्वामी जी कर रहे थे उसे साहित्यकारों द्वारा होरी, बावनदास, कालीचरण, बलचनमा  जैसे पात्रों के माध्यम से  हिंदी के साहित्यकार हमारे बीच प्रस्तुत कर रहे थे।  रामधारी सिंह दिनकर स्वामी जी को ' दलितों का संन्यासी 'कहा करते थे।  जो बात स्वामी जी ' किसान क्या करें ' किताब  में  लिखते हैं वही बात दिनकर अपनी इस कविता में अभिव्यक्त करते हैं जिसमें वे कहते हैं " दूध, दूध वो वत्स/तुम्हारा दूध ढूंढने हम आते हैं।" सुभाष चंद्र बोस ने कहा  था कि साबरमती के आश्रम में पूंजीपतियों के संन्यासी को देखा जबकि पटना के आश्रम में सच्चा संन्यासी मिला। सुभाष चंद्र बोस की नजर में वह सच्चा  संन्यासी स्वामी सहजानंद सरस्वती थे। "

पालीगंज के चर्चित चिकित्सक और किसान आंदोलनों में सक्रिय रहे श्यामनंदन शर्मा ने अपने संबोधन के दौरान किसान आंदोलन के कई गीतों को सुनाते हुए  कहा " स्वामी जी मेरे द्लान में आया करते थे। ग्रामीण क्षेत्रों के स्वामी जी की सभाओं में लोकगायक पूरी भावना और जज्बे के साथ गाया करते थे। उन लोकगायकों का  इतिहास में जिक्र नहीं मिलता। 1975 में किशोरी प्रसन्न सिंह से  मुझे कई संस्मरणों को सुनने का मौका मिला था। स्वामी जी समझौता विहीन संघर्ष चलाते थे । हमारे क्षेत्र के किसान नेता कन्हाई सिंह स्वामी जी सहयोगी थे। स्वामी जी की बहुत बातें अब तक दर्ज नहीं है। उन्होंने संस्मरण में बताया था कि स्वामी जी बोलते-बोलते  यहां तक बोल गए की जमींदार न माने तो उसके पेट में  भाला मार दो ! तत्कालीन अंग्रेज डी.एस.पी  ने कन्हाई सिंह को कहा  स्वामी  को रोको ! वह हिंसा फैलाने की बातें कर रहा है।  कन्हाई सिंह ने कहा कि स्वामी जी भगवान  से भी नहीं डरते  उनको कौन रोकेगा ? आज अफसोस है बिहटा की जिस धरती ने स्वामी जी को नेता बनाया लेकिन दुख है कि बिहार के किसान नेताओं ने जगह को मृत बना डाला ।  जैसा कि भारत में होता आया है और बुद्ध जैसे महात्माओं के साथ किया गया कि आज स्वामी जी की मूर्ति बनाकर उनके क्रांतिकारी विचारों को खत्म कर दिया गया। 

बिहार के नौ जिला का किसान पानी बिना चुप है। सोन नहर में पानी नहीं है। लेकिन किसान संगठन चुप है। आज छोटे जगह को केंद्रित करके काम करने की जरूरत है तब यह मॉडल बन सकेगा जिससे  बाकी जगह के लोगों को प्रेरणा मिल सकेगी। स्वामी जी को जिंदा रखना है तो किसान सभा को जिंदा रखना होगा। " 

'सार्थक संवाद' से जुड़े आधुनिक इतिहास के अध्येता  रौशन कुमार ने कहा " भारत के इतिहास में तीन संन्यासी की भूमिका प्रमुख है। दयानंद, विवेकानंद और सहजानंद । इसमें सहजानंद सरस्वती बेहद प्रमुख हैं। भारत में आधुनिक काल के किसान आंदोलन के प्रणेता के रूप में स्वामी सहजानंद सरस्वती को जाना जाता है। पहले के किसान आंदोलनों को धार्मिक आंदोलन के रूप में देखा जाता है। लेकिन स्वामी जी अपनी किताब 'किसान सभा के संस्मरण' में कहते हैं कि वह धार्मिक नहीं बल्कि किसान आंदोलन था और वर्गीय आंदोलन था। गांधी जी के चंपारण किसान आंदोलन की रिपोर्टिंग बिहार से नहीं  बल्कि कानपुर से हुआ करती था क्योंकि जमींदार उसकी खबर ही  नहीं होने देते थे। किसान वर्ग  के रूप में गठित हुआ। साहित्यकारों  के रूप में देखें तो फणीश्वर नाथ रेणु ने पूर्णिया से लेकर पटना तक के किसानों के मार्च का नेतृत्व किया। आजकल जैसे ही किसान आन्दोलन की बात होती है तो उसे खालिस्तानी बता दिया जाता है। ऐसे ही केरल में  मोपला किसानों का विद्रोह आर्थिक संघर्ष था लेकिन उसे हिंदू-मुसलमानों के संघर्ष का रूप देकर सांप्रदायिक रंग प्रदान कर दिया गया। साहित्यकारों का दायित्व बनता है की लोगों के समस्याओं को आगे लाया जाए। "

पेशे से पटना हाईकोर्ट में अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता गोपाल कृष्ण ने बताया " जमींदारी उन्मूलन का प्रस्ताव काफी पहले लिया गया था  तब किसान सभा कांग्रेस का ही हिस्सा था। लेकिन उसे बिहार में 1950 में पारित किया गया।  स्वामी सहजानंद सरस्वती के किसान आंदोलन का यह देशव्यापी  प्रभाव था 1951 में जमींदारी उन्मूलन विधेयक को खुद जवाहर लाल नेहरू ने पेश किया था। इसी साल पहला संविधान संशोधन पेश किया जाता है।  जब मंडी कानून को 2006 में बिहार विधान सभा में निरस्त किया गया वह दरअसल स्वामी जी के उस आंदोलन की भावना को निरस्त किया गया था।  आज देश के लिए कितने दुर्भाग्य की बात है कि मध्यप्रदेश के  मंदसौर में किसानों पर गोली चलवाने वाले को आज भारत का कृषि मंत्री बनाया गया है। " 

पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो नवल किशोर चौधरी ने कहा " इतिहास से हमें प्रेरणा लेनी है साथ ही वर्तमान को शेप करने की जरूरत है। उनके योगदान को और समृद्ध करने की जरूरत है। स्वामी जी किसान आंदोलन का नेतृत्व जरूर करते थे पर किसान समस्या और अर्थव्यवस्था के बारे में उनकी खास समझ थी। वे संस्थागत परिवर्तन में विश्वास करते हैं। जमींदारी उन्मूलन जरूर हुआ पर वह अधूरा रह गया। मेरी भूमि सुधार को लेकर  नीतीश कुमार, लालू प्रसाद सबसे मुठभेड़ हुई है।  ये लोग कभी भी इस समस्या का समाधान नहीं करेंगे। आज तक विधानसभा में चर्चा तक नहीं हुई है। जिन किसान संघों को उठाना चाहिए वे भी अब बहुत आगे बढ़ गए हैं। " 

अखिल भारतीय  किसान सभा के प्रांतीय महासचिव अशोक प्रसाद सिंह ने बहस में हस्तक्षेप करते हुए कहा " स्वामी जी से जुड़ी सामग्रियों को छोटी छोटी पुस्तिकाओं के रूप में प्रकाशित करवा कर उसे प्रसारित करने की कोशिश करेंगे।   उनकी मृत्यु के पिचहत्तर साल होने वाले हैं। आज हमलोग पूरे बिहार में कार्यक्रम कर रहे हैं। किसान आंदोलन में स्फूरिंग  हो रहा है। बक्सर जिले चौसा के आंदोलन में नब्बे साल की बूढ़ी से  लेकर दो साल की बच्ची तक को  निर्ममता से मारा-पीटा गया। किसानों के दरवाजे पर खड़े गाय, बकरी, कुत्तों तक को पीटा गया। यह सब कुछ बक्सर के डी एम द्वारा संचालित किया गया था। 1052 एकड़ की जमीन के अधिग्रहण को लेकर मुआवजे की लड़ाई के कारण किसानों को सबक सिखाने के लिए प्रशासन ने यह काम किया।  किसान सभा शुरू से ही इस लड़ाई  लड़ने की कोशिश कर रही है। चौसा के कारण ही इस लोकसभा चुनाव में बक्सर लोकसभा में भाजपा की हार हुई है । उपजाऊ जमीन को बर्बाद करने के लिए बत्तीस किमी तक घुमा कर सड़क को  ले जाया जा रहा है। " 

प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े जयप्रकाश ने बताया "  स्वामी जी ने किसानों पर सबसे अच्छा लिखा है। स्वामी जी पर राहुल जी ने लिखा। 'नए भारत के नए नेता ' किताब में राहुल जी ने स्वामी सहजानंद सरस्वती पर लिखा है। लेकिन स्वामी जी पर भारत में जितना लिखा जाना चाहिए था नहीं लिखा गया है।  कहानी, कविता लिखी गई लेकिन जितनी चर्चा होनी चाहिए नहीं है। अभी मैं लालगंज गया था। वहां एक लाइब्रेरी है शारदा सदन पुस्तकालय। वहां मैंने स्वामी जी की एक चिट्ठी देखी। 1934 के बाद एक- एक साल में स्वामी जी  सात-सात सौ सभाओं को संबोधित किया करते थे।  इसी किसान आंदोलन के दौरान छपरा के अमवारी में राहुल  सांकृत्यान  का माथा फटा। फिर  उनकी जगह वहां नागार्जुन गए। हिंदी के ये सभी साहित्यकार इन सबमें सीधे शामिल  हुआ करते थे। किसान घरों की महिलाएं शामिल होकर गीत गाती थीं। गीत में जेल जाने की बात किया करते थे। 1938 में बहुत महत्वपूर्ण आयोजन  'समर स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स'  सोनपुर में आयोजित हुआ था स्वामी जी के नेतृत्व में। सहयोगी की भूमिका में थे किशोरी प्रसन्न सिंह, और शिवपूजन सिंह। जयप्रकाश नारायण एक महीने तक चले उस स्कूल के प्राचार्य  थे।  उस कैंप में ढाई सौ किसान कार्यकर्ता शामिल थे। इन सबों की 1942 के आंदोलन में बड़ी भूमिका थी। 'भारत छोड़ो आंदोलन ' के दौरान समस्तीपुर से लेकर छपरा तक जल रहा था। नागार्जुन के कविताओं में उसका जिक्र मिलता है। 'बलचनमा'  उपन्यास में नायक  'बलचनमा' की हत्या कर दी जाती है। नागार्जुन कहा करते थे कि मेरे राजनीतिक गुरु थे स्वामी जी। बिहार के मुख्यमंत्री रहे श्री कृष्ण सिंह और सबलपुर दियारा के रामवृक्ष ब्रह्मचारी  जैसे लोग स्वामी के साथ  थे।  जब 1939 में पटना के गांधी मैदान में सुभाष चंद्र बोस की सभा को डिस्टर्ब किया गया, सभा नहीं  होने दी गई तब  रामवृक्ष ब्रह्मचारी जैसे किसान नेता  ने लोगों को किसानों को जुटाकर उस सभा को अगले दिन संपन्न किया। इस इतिहास को हमें लोगों के बीच ले जाने की जरूरत है। पूरी दुनिया में किसानों के जमीन छीनी जा रही है। एक साल तक चले आंदोलन के कारण कृषि कानूनों को पलटा गया। " 

सामाजिक कार्यकर्ता गालिब खान ने कहा " इस आश्रम में आने का मौका पहली बार मिला। साथियों से सुनने का मौका मिला करता था।  यदि स्वामी जी आज होते तो क्या करते। आज का संकट है वह और बहुत बड़े तेवर के साथ आंदोलन होता। लेखकों की बड़ी जमात उनके साथ जुड़ी।" 

समारोह की अध्यक्षता श्री सीताराम आश्रम ट्रस्ट के वयोवृद्ध अध्यक्ष योगेंद्र प्रसाद सिंह ने जबकि संचालन पटना जिला किसान सभा के संयोजक गोपाल शर्मा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन सुधांशु कुमार ने किया।

इस विमर्श में भाग लेने वाले अन्य लोगों में थे  बिक्रम से  श्रीकांत, फुलवारी से राजकुमार, मसौढ़ी से ब्रजभूषण शर्मा, मधेशर कुमार, गोरखरी से लवकुश शर्मा,  पी एम सी एच में हड्डी रोग के चिकित्सक डॉ अंकित, राजीव जादौन, बिट्टू भारद्वाज, दुर्गेश, अभिषेक विद्रोही, प्रशांत, सोनू कुमार, अभिषेक कुमार, अंगिरा शर्मा, शैलेश कुमार, वशिष्ठ कुमार, लवकुश कुमार, आनंद कुमार, नेहा कुमारी, बिनेश,  अनीश अंकुर, मूर्तिकार मुकेश कुमार, रामाकांत भगत, अधिवक्ता   चिन्मय कुमार, पवन कुमार,  दारा आदि प्रमुख थे। 

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