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फ़ेक न्यूज़ आपको कैसे काबू कर लेती है?

ग़लत सूचना, मतलब ग़लत निर्णय और ग़लत प्रतिक्रिया। ग़लत सूचना मात्र आपके लिए और आपके परिवार के लिए ही नहीं बल्कि देश और लोकतंत्र के लिए भी ख़तरा है।
फ़ेक न्यूज़ आपको कैसे काबू कर लेती है?

फ़ेक न्यूज़ और ग़लत सूचनाएं किस प्रकार आपके व्यवहार को नियंत्रित कर लेती हैं? आप सूचनाओं को कैसे प्रोसेस करते हैं और ये सूचनाएं आपके साथ क्या करती हैं? इस लेख में हम इसे समझने की कोशिश करेंगे। इसे समझने के लिए हमें पहले सूचना को समझना पड़ेगा कि आख़िर सूचना क्या होती है और क्यों ज़रूरी है?

सूचना क्या है?

परस्पर अपने विचार और भावनाएं ज़ाहिर करना मनुष्य की बुनियादी फितरत है। हमारा जीवन परस्पर जुड़ा हुआ है। हमारा जीवन मात्र अपने परिवार से ही नहीं बल्कि, पड़ोसी, रिश्तेदार, समाज और विभिन्न संस्थाओं से भी सीधे तौर पर जुड़ा है। हम अपने दैनिक जीवन में ना जाने कितने अंजान लोगों से विभिन्न प्रकार की दैनिक ज़रूरतों के लिए संवाद करते हैं। इंसानों ने सामूहिक तौर पर रहने का एक सिस्टम बनाया है। स्कूल है, दफ्तर हैं, इंकम टैक्स है, ऑटो वाले हैं, सब्ज़ी बेचने वाले हैं, बढ़ई हैं, फोटोस्टेट वाला है, इंटरनेट वाला है, पुलिस है, डॉक्टर है मतलब असंख्य ऐसे विभाग हैं जहां अनेक लोगों से हमें संवाद करना होता है। ये वो संवाद है जो हमारी दिनचर्या के लिए ज़रूरी है।

स्मरण रहे कि हम संवाद में सूचनाओं का ही आदान-प्रदान कर रहे होते हैं। हम कोई सूचना सामने वाले को देते हैं और वो हमें जवाब में कोई सूचना देता है। इस प्रकार ये क्रम चलता रहता है और पूरा होता है। ये संप्रेषण ही हमें दुनिया और समाज से जोड़ता है और दैनिक जीवन को चलायमान बनाए रखता है। हालांकि संप्रेषण महज सूचना और ख़बर तक ही सीमित नहीं है। संप्रेषण और अभिव्यक्ति का स्वरूप काफी परिष्कृत है। हम संकेत, भाव-भंगिमाओं, गीत, संगीत, ध्वनि, मुद्रा, दृश्यों आदि के ज़रिये भी संप्रेषण करते हैं। लेकिन यहां हम इसका इस्तेमाल सिर्फ़ मीडिया के संदर्भ में कर रहे हैं।

मनुष्य की ये संप्रेषण की काबिलियत ही उसे जानवरों से अलग करती है। क्योंकि मनुष्य महज़ सरल संप्रेषण ही नहीं बल्कि काफी जटिल संप्रेषण करता है। उसने भाषा का अविष्कार किया है, कलाओं का अविष्कार किया है, प्रिंटिंग प्रेस का अविष्कार किया, संप्रेषण करने के हज़ारों तौर-तरीके और विधाएं विकसित हैं। मात्र इतना ही नहीं बल्कि संप्रेषण के काफी जटिल और प्रभावी माध्यमों की भी खोज की है। संप्रेषण के बड़े-बड़े विभाग हैं जैसे सूचना और प्रसारण मंत्रालय, जनसम्पर्क विभाग, डाकखाना, टेलीकॉम आदि आदि। मंत्री और मंत्रालय हैं, कानून हैं, गाइडलाइन हैं, अख़बार हैं, न्यूज़ चैनल हैं, रेडियो हैं, इंटरनेट है, सोशल मीडिया है मास कम्यनूकिशेन के और भी अनेक माध्यम हैं। संविधान है, सूचना का अधिकार है, सरकार है, फ्रीडम ऑफ स्पीच का अधिकार भी है और उसे कुचलने का इंतज़ाम भी।

मतलब समझ लीजिये कि कम्यूनिकेशन का एक जटिल सिस्टम हमारे चारों तरफ है। ये सब बातें बताती हैं कि संप्रेषण और सूचना हमारे लिए कितने ज़रूरी है। मनुष्य बिना कम्यूनिकेट किये रह ही नहीं सकता। उसे कहना भी है और सुनना भी है।

इस संप्रेषण की प्रक्रिया में सूचना सबसे महत्वपूर्ण है। जब एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से संवाद करता है तो इन दोनों के बीच जो लेन-देन होता है वो सूचनाओं का ही लेन-देन हो रहा होता है। जिसे संदेश भी कहते है। संदेश के अंदर भी सूचना ही छिपी होती है। तो समझ लीजिये कि ये सूचना हमारे लिये बहुत ही ज़रूरी है और उससे भी ज़रूरी है सही सूचना। ग़लत सूचना अर्थ का अनर्थ कर सकती है। अर्थ का अनर्थ कैसे कर सकती हैं? इसे समझने के लिए आपको पहले ये समझना होगा कि आप जो सूचनाएं ग्रहण करते हैं वो आपके साथ क्या करती हैं?

सूचना आपके व्यवहार को कैसे नियंत्रित कर लेती है?

हमारा व्यवहार हमें मिलने वाली सूचनाओं से ही निर्देशित होता है। अगर हमें सही सूचना मिलेगी तो हमारा व्यवहार, निर्णय और प्रतिक्रिया सही होगी। अगर सूचना ग़लत होगी तो हमारे निर्णय, प्रतिक्रिया और व्यवहार भी ग़लत होंगे। जिससे हमें नुकसान उठाना पड़ सकता है। हमें निर्णय करने के लिए कोई आधार चाहिये होता है अर्थात हम आधार के बिना निर्णय नहीं कर सकते। इस आधार का निर्माण हम अपने पास एकत्र जानाकरियों के जरिये करते हैं। और हमारे पास जानकारियों का संग्रह हमें मिली सूचनाओं के द्वारा होता है। सूचना और जानकारी में फर्क होता है। सूचना क्रम में पहले आती है उसके बाद जानकारी आती है। यानी अगर आपको सूचना नहीं मिलेगी तो आपको जानकारी भी नहीं होगी। आपके निर्णयों और प्रतिक्रियाओं की नींव सूचना होती है। हमारे निर्णय हमें मिली सूचनाओं से ही संचालित होते है और इन निर्णयों से ही हमारा व्यवहार नियंत्रित होता है।

उदाहरण के तौर पर मान लीजिये आपको कोलकाता जाना है तो आपके पास ये जानकारी होनी चाहिये कि आपकी ट्रेन प्लेटफार्म नंबर कितने पर आएगी। ये सूचना मिलने के बाद ही आप अपना सामान समेटकर उस प्लेटफार्म पर जाएंगे। अगर आपको ये सूचना नहीं मिल रही हैं कि आपकी ट्रेन किस प्लेटफार्म पर आएगी तो आप बेचैन हो जाएंगे और कोई निर्णय नहीं कर पाएंगे कि किस तरफ जाएं। आपको ये सूचना भी होनी चाहिये कि कितने बजे आएगी? उसी हिसाब से आप ये तय करेंगे कि आपको स्टेशन कितने बजे पहुंचना है। स्पष्ट है कि हमारे निर्णय, प्रतिक्रिया और व्यवहार सूचनाओं से निर्देशित होते हैं। अब मान लीजिये अगर आपको ग़लत सूचना मिल गई तो? मसलन आपको किसी ने कह दिया कि ट्रेन शाम को 5 बजे आएगी और ट्रेन सुबह दस बजे की हुई तो? तो, आपकी ट्रेन छूट जाएगी। इससे स्पष्ट होता है कि अगर हमारे पास सही सूचनाएं हैं तो हमारे निर्णय और प्रतिक्रियाएं सही होंगी अगर ग़लत सूचनाएं हैं तो हमारे निर्णय और प्रतिक्रियाएं ग़लत होंगी। जिससे हमें नुकसान उठाना पड़ेगा।

अब मान लीजिये कि आपके इलाके में वाट्सऐप पर बच्चा चोर गिरोह की अफवाह वायरल है। अगर आप इसे सही मान लेते हैं तो बेचैन हो जाएंगे और डर जाएंगे। अपने बच्चे को लेकर असुरक्षित महसूस करेंगे। आपकी कॉलोनी के बाकि लोग भी ऐसा महसूस करेंगे। फिर मिलकर कुछ करने की योजनाओं पर बात होगी ताकि बच्चों की रक्षा की जा सके। फिर मीटिंगें होगीं, लोग आपस में बात करेंगे। कोई रास्ता निकालेंगे, योजना बनाएंगे और रात को पहरा बिठा दिया जाएगा। और किसी अंजान व्यक्ति की लिंचिंग तक हो सकती है। बच्चा चोरी की ये अफवाह एक सूचना ही है जिसने बड़े पैमाने पर लोगों के निर्णय और व्यवहार को सामूहिक तौर पर निर्देशित कर दिया। उपरोक्त उदाहरण सत्य घटना पर आधारित है।

ग़लत सूचना, मतलब ग़लत निर्णय और ग़लत प्रतिक्रिया। ग़लत सूचना मात्र आपके लिए और आपके परिवार के लिए ही नहीं बल्कि देश और लोकतंत्र के लिए भी ख़तरा है। क्योंकि अगर आपको आपकी सरकार, उसके कार्यकलाप, नीतियों और नेताओं के बारे सही सूचनाएं नहीं हैं और आप प्रोपेगेंडा और झूठी ख़बरों की गिरफ्त में हैं तो आपका वोट का निर्णय ग़लत हो सकता है। याद रखिये, आपके निर्णय आपकी जानकारी और सूचनाओं के आधार पर ही होते हैं। इसलिये आपके पास सही सूचना होना देश के लोकतंत्र के लिए भी बहुत ज़रूरी है।

इस बात को भी याद रखिये कि ग़लत सूचनाओं के सहारे कभी सही निर्णय नहीं लिये जा सकते। तो सुनिश्चित करें कि आपको फ़ेक न्यूज़ और प्रोपेगेंडा की बजाय सही सूचनाएं मिलें। इस दौर में इस बात पर अतिरिक्त तौर पर ध्यान देना इसलिये भी ज़रूरी है क्योंकि, जिस मीडिया का काम आपको सही सूचनाएं देना था वो खुद सरकारी प्रोपेगेंडा का मुख्य स्रोत बन चुका है और टीवी स्क्रीन पर वीडियो गेम की फुटेज़ चल रही है। दूसरी तरफ सोशल मीडिया में ग़लत सूचनाएं बड़े पैमाने पर बेलगाम घूम रही हैं। हिंदू-मुस्लिम की सूचनाएं आपको कहां लेकर जाएंगी आपको गंभीरता से सोचना चाहिये। ये ग़लत सूचनाएं आपकी भावनाओं का कैसे दोहन करती हैं और आपकी धारणाओं को कैसे गढ़ती है? इस बारे फिर कभी।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। वे सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

इसे भी देखें: https://www.youtube.com/watch?v=UwrmzoUFW-0

https://www.youtube.com/watch?v=rNc3_YmJzN0

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