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वर्ष 2019 में कैसी रही महिलाओं की दुनिया?

'सतत विकास लक्ष्य-2019' हासिल करने में हम कहां पहुंचे, नीति आयोग ने सोमवार 30 दिसंबर को इस पर अपनी रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट के मुताबिक दो मामलों में देश की स्थिति बेहद चिंतनीय है, वो है लैंगिक समानता और कुपोषण।
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सुकून की बात है कि छोटी बच्चियां अब भी गुड़िया बनाना पसंद करती हैं। वे उनके कपड़े डिजायन करती हैं। उनके बाल बनाती हैं। सितारे-मोती से अपनी गुड़िया की दुनिया सजाती हैं। लाल-पीले जैसे चटकीले रंगों से उनका घर सजाती हैं। यही छोटी बच्चियां फिर सेल्फ सिक्योरिटी के लिए त्वाइक्वांडो सीखने जाती हैं। बच्चियों को ज़रा सी दूरी पर अकेला छोड़ने में कुछ मांएं बहुत घबराती हैं। मांओं के मन में डर जम गया है कि उनकी गुड़िया की दुनिया के चटकीले रंग कोई छीन न ले। लेकिन बेटियां वहां दंगल काटती हैं। सामनेवाले को परास्त करने के लिए सारे दावपेंच आज़माती हैं।

ऐसी ही बेटियां जब दिल्ली के जंतर-मंतर पर अपने हक़ की आवाज़ बुलंद करती हैं, तथ्यों-आंकड़ों और राजनीति के पुराने उदाहरणों से बताती हैं कि क्यों सीएए-एनआरसी लागू नहीं होना चाहिए, तो वे बड़े-बड़े बुद्धिजीवियों को अचरज में डालती हैं। इन्हीं में से कोई लड़की हैदराबाद की एक सुनसान सड़क पर जला दी जाती है। उन्नाव की भीड़ भरी सड़क पर जलती हुई अकेली दौड़ती है, अपने दोषियों को सजा दिलाने की भरसक कोशिश करती हुई। इंसाफ...अंधेरे में दूर जलती हुई मशाल के जितनी उम्मीद जैसा दिखाई पड़ता है।
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लैंगिक समानता और कुपोषण का खात्मा होना चाहिए मिशन 2020

अब इसी स्थिति को आंकड़ों से समझते हैं। सतत विकास लक्ष्य-2019 हासिल करने में हम कहां पहुंचे, नीति आयोग ने सोमवार 30 दिसंबर को इस पर अपनी रिपोर्ट जारी की। सतत विकास को लेकर संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित 17 में से 16 मानकों पर ये रिपोर्ट जारी की गई। खुद नीति आयोग की रिपोर्ट की नज़र से देखें तो जिन दो मामलों में देश की स्थिति बेहद चिंतनीय है, वो है लैंगिक समानता और कुपोषण। यानी ये दो जरूरी मुद्दे होने चाहिए, जिन पर वर्ष 2020 में केंद्र और राज्य की सरकारों को सबसे अधिक ध्यान देना चाहिए। सबसे अधिक बजट और संसाधन खर्च करने चाहिए।

लैंगिक समानता में पिछड़ा देश

लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तिकरण के मामले में देश में सिर्फ चार राज्य हैं जिन्हें 50 से ऊपर अंक मिले हैं। 50 अंक यानी लैंगिक समानता की दिशा में हम 50 फीसदी कार्य कर पा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में महिलाओं की स्थिति सबसे अच्छी है। इन्हें 100 में 53 अंक मिले हैं। हिमाचल प्रदेश को 52 अंक और केरल को 51 अंक मिले हैं। तेलंगाना (26 अंक) और दिल्ली (27 अंक) के साथ निचले पायदान पर हैं।

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नीति आयोग की रिपोर्ट में लैंगिक समानता पर बनाया गया मानचित्र।

लैंगिक समानता को लेकर राज्यों की स्थिति- नीति आयोग

हिमाचल (52), केरल (51), सिक्किम (49), गोवा (46), पंजाब (46), मध्यप्रदेश (45), छत्तीसगढ़ (43),कर्नाटक (42), नागालैंड (42), महाराष्ट्र (41), उत्तरप्रदेश (41), बिहार (40), तमिलनाडु (40), राजस्थान (39), उत्तराखंड (38), पश्चिम बंगाल (38), आंध्र प्रदेश (37), मिज़ोरम (37), गुजरात (36), हरियाणा (36), ओडीशा (35), झारखंड (34), मणिपुर (34), मेघालया (34), अरुणाचल प्रदेश (33), असम (33), त्रिपुरा (32), तेलंगाना (26)।

केंद्रशासित राज्यों की स्थिति

जम्मू-कश्मीर (53), लद्दाख (53), अंडमान-निकोबार (48), चंडीगढ़ (47), दादरा और नागर हवेली (44), दमन और दिव (39), लक्षद्वीप (37), पुड्डुचेरी (35) और दिल्ली(27)।

महिलाओं की ये स्थिति लिंग अनुपात, समान वेतन, महिलाओं-बच्चियों से यौन हिंसा, घरेलू हिंसा, विधानसभा में महिलाओं की स्थिति, महिलाओं से जबरन श्रम कराना, भू-स्वामित्व जैसे मानकों के आधार पर तय की गई है।

समाज में महिलाओं की मौजूदा स्थिति

नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि लैंगिक समानता के लिए जेंडर सेंसेटिव डाटा व्यवस्था को ठीक करना हमारी पहली चुनौती है। इसमें ट्रांस जेंडर भी शामिल हैं। क्योंकि वो तो कहीं पीछे छूटे हुए हैं। कृषि क्षेत्र में सबसे अधिक महिला श्रमिक हैं। असंगठित क्षेत्र में महिला श्रमिकों की बड़ी संख्या हैं। जबकि वेतन के मामले में वे घोर असमानता झेल रही हैं। ग्रामीण भारत में 75 फीसदी महिलाएं कृषि कार्यों में जुड़ी हैं, उनके पास भू-स्वामित्व मात्र 13.96 प्रतिशत है। इसकी वजह से कृषि ऋण लेने जैसे कई मामलों में उन्हें मुश्किलें आती हैं। राज्य की विधानसभाओं में महिलाओं की मौजूदगी मात्र 8.32 प्रतिशत है। लिंगानुपात के मामले में देश की स्थिति प्रति 1000 लड़कों पर 896 लड़कियों की है। प्रति एक लाख महिलाओं में से 58 अपराध की शिकार हैं। बच्चों के साथ अपराध के 59.97 प्रतिशत यौन हिंसा से जुड़े हुए हैं। हर तीन में से एक महिला अपने पति द्वारा हिंसा की शिकार है।

जब हम 21वीं सदी के पहले दशक की ओर मुंह मोड़ कर देखेंगे तो 2019 की महिला हैदराबाद, उन्नाव की रेप पीड़िता के साथ हजारों-लाखों बच्चियों-महिलाओं के नाम है, जो पुलिस की एफआईआर में दर्ज हैं, बहुत से ऐसे भी हैं, जिनका नाम कहीं दर्ज नहीं हुआ, जो मारी गईं और पता नहीं चला। 2018 का कठुआ रेप केस, 2013 का निर्भया केस, 2015 में बदायूं में पेड़ पर लटके मिले दो बहनों के शव...। ये लिस्ट बहुत लंबी है। लैंगिक समानता के मामले में देश का अधिकांश नक्शा लाल नज़र आता है।

इतने निराशाजनक मोड़ पर लड़कियों को छोड़ने का मन नहीं करता। तो जब आप पीछे पलटे तो देखें कि 33 फीसदी आरक्षण और दस फीसदी उम्मीदवारी न मिलने के बावजूद लोकसभा में कोई 14 प्रतिशत महिलाएं इस वर्ष पहुंच गई हैं। खेल के मैदान तो आपके दिल को सोने-चांदी के मेडल से भर देंगे। असम के छोटे से गांव की हिमा दास पूरा दम लगाकर दौड़ती नज़र आती है। जब सब क्रिकेट-क्रिकेट चिल्लाते हैं, ऐतिहासिक जीत के साथ बैडमिंटन कोर्ट पर पीवी सिंधू सोना चूमती नज़र आती है।

रेस के मैदान में हारकर जीतती हुई दुती चंद दिखाई पड़ती है। दो बच्चों की मां और देहरादून में आईटीबीपी की डीआईजी पद पर तैनात अपर्णा कुमार विश्व की सात ऊंची चोटियों (सेवन समिट्स) और दक्षिणी ध्रुव को फतह कर, तिरंगा फहरा रही है। उत्तरकाशी की एक सादा सी लड़की दक्षिण अफ्रीका की किलमिंजारो चोटी को फतह कर लौटी है। टिकटॉक पर उनके तीखे तेवर हैं। इंस्टाग्राम पर उनकी मुस्कानें बिखरी हुई हैं। फेसबुक पर अपने लिखे से वे कितनों को आहत कर रही हैं। सर्दी की छुट्टियों में एक छोटी बच्ची रंग-बिरंगे स्केच लेकर फिर से अपनी गुड़िया के संसार को सुंदर बनाने में जुट गई है।

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