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अफगानियों के साथ खड़े हुए मानवाधिकार संगठन, दिल्ली सहित देश के कई राज्यों में प्रदर्शन 

ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आईसा), क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस), ऑल इंडिया महिला सांस्कृतिक संगठन (एआईएमएसएस) और मुस्लिम वुमन्स फॉरम समेत कई अन्य संगठनों ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया।
अफगानियों के साथ खड़े हुए मानवाधिकार संगठन, दिल्ली सहित देश के कई राज्यों में प्रदर्शन 

देश की राजधानी दिल्ली, मुंबई , जयपुर और बिहार सहित कई राज्यों में युद्धग्रस्त अफगानिस्तान के लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त करने और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से उनके अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने का आग्रह करने के लिए यहां विभिन्न संगठन सोमवार को एक साथ आए। जबकि दिल्ली में यूएनएचसीआर कार्यालय के सामने अफगान शरणार्थियों ने विरोध प्रदर्शन किया।  

दिल्ली के मंडी हाऊस के पास भारतीय महिला फेडरेशन (एनएफआईडब्ल्यू) सहित कई संगठनों ने स्वतंत्रता, लोकतंत्र और मानवाधिकारों के संघर्ष में अफगान नागरिकों के साथ एकजुटता का आह्वान किया। तालिबान विरोधी नारे लगाते हुए आयोजकों ने कहा, ‘‘तालिबान महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अत्याचार को बंद करे। हम लड़ेंगे, हम जीतेंगे। हम संघर्ष के समय में अफगानिस्तान के लोगों के साथ हैं।’’

अफगान नागरिकों के अधिकारों को लेकर दबाव बनाने के लिए विभिन्न संगठनों के 50 से अधिक प्रतिनिधि यहां मंडी हाउस, बाराखंभा रोड पर नेपाल दूतावास के पास एकत्र हुए। प्रदर्शन में हिस्सा लेने वालों ने अपने हाथों में पोस्टर थामे हुए थे, जिनमें लिखा था, ‘साम्राज्यवाद को, ना-तालिबान को, ना -फासीवाद को’, ‘हम अफगानिस्तान के शासक के रूप में तालिबान को स्वीकार नहीं करते, ‘स्वतंत्रता समानता और न्याय के लिए अफगान महिलाओं के संघर्ष के साथ हैं’ और ‘भारत सरकार को भारत में रहने वाले सभी अफगान नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।’

एनएफआईडब्ल्यू की महासचिव एनी राजा ने कहा, ‘‘हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से यह सुनिश्चित करने की अपील कर रहे हैं कि अफगानिस्तान के लोगों के उनके राष्ट्र में मानवाधिकारों के साथ-साथ अन्य अधिकारों की रक्षा की जाए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘अफगान महिलाओं और उनके बच्चों में यह विश्वास पैदा करना चाहिए कि उनकी रक्षा की जाएगी।’’ उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से लैंगिक समानता और लैंगिक न्याय सुनिश्चित करने और अफगानिस्तान के लोगों के जीवन और आजीविका को बचाने का आग्रह किया।

ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आईसा), क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस), ऑल इंडिया महिला सांस्कृतिक संगठन (एआईएमएसएस) और मुस्लिम वुमन्स फॉरम समेत अन्य ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया।

सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने भारत सरकार से सभी शरणार्थियों को भारत लौटने की अनुमति देने की अपील की, भले ही उनकी जाति एवं धर्म कुछ भी हो। हाशमी ने कहा, ‘‘हम यहां उन अफगान छात्रों के लिए भी ‘सिंगल विंडो’ चाहते हैं जो अपने मकान मालिकों से परेशानी का सामना कर रहे हैं, उनका वीजा बढ़ाया जाना चाहिए और उन्हें फेलोशिप भी दी जानी चाहिए।’’

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान (अंतरराष्ट्रीय संबंध) में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रही एक अफगान नागरिक दीवा सफी ने कहा कि लोग तालिबान पर कभी भरोसा नहीं कर पाएंगे। उन्होंने कहा,‘‘ तालिबान के बारे में कहा जा रहा है वह बदल गया है लेकिन हम उन पर कैसे भरोसा करें? हम उन्हें कभी स्वीकार नहीं कर पाएंगे। उनके लिए शरिया कानून का मतलब महिलाओं को अपने घरों के अंदर होना चाहिए। क्या यह उनका शरीयत कानून है कि हमें अपनी पसंद के कपड़े भी पहनने की इजाजत नहीं होगी?’’

अफगानिस्तान के साथ मुंबई

प्रसिद्ध नारीवादी, मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता, अफगानिस्तान के नागरिकों के साथ एकजुटता से खड़े होने के लिए राष्ट्रव्यापी आह्वान में शामिल हुए, क्योंकि वे स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए लड़ते रहे हैं। मुंबई में, नागरिक समाज को एक साथ आने और अफगानिस्तान के लोगों के न्याय की मांग करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी आह्वान के जवाब में, मानवाधिकार और नारीवादी संगठन, जैसे कि आवाज-ए-निस्वान, बेबाक कलेक्टिव, Communalism Combat, महिलाओं के उत्पीड़न के खिलाफ फोरम, और सबरंग इंडिया ने 23 अगस्त को आजाद मैदान के प्रेस क्लब में एक एकजुटता बैठक का आयोजन किया। बैठक, कोविड -19 नियमों के अनुसार आयोजित की गई थी, जिसे कई कार्यकर्ताओं, सामाजिक समूहों और नागरिक समूहों द्वारा समर्थित किया गया था।

सबरंग इंडिया की सह-संस्थापक और संपादक, तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा, "भू-राजनीति को छोड़कर, अफगान महिलाओं, बच्चों और नागरिकों की स्थिति से ध्यान नहीं हटना चाहिए।" उन्होंने बताया कि अफगानिस्तान पर दशकों से कब्जा चल रहा था, और इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा, अमेरिका ने तालिबान और मुजाहिदीन को आगे बढ़ाया था और अमेरिका ने तब "गैर-जिम्मेदाराना तरीके से, सत्ता के वैध हस्तांतरण या सभी हितधारकों के साथ बातचीत के बिना" यह कहते हुए छोड़ दिया कि स्थानीय समूहों द्वारा तालिबान से नियंत्रण वापस लेने की कुछ रिपोर्टें थीं, लोकतंत्र में स्वतंत्रता और विशेष रूप से अफगान महिलाओं के अधिकारों की चिंता बनी रही। उन्होंने महाराष्ट्र सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार से भारत में रहने वाले अफगान नागरिकों के समर्थन में खड़े होने का आह्वान किया। सीतलवाड़ ने कहा, “जहां शरणार्थियों का संबंध है, हमें धर्म के आधार पर भेदभाव के खिलाफ बोलना चाहिए। भारतीय संविधान भेदभाव नहीं करता है।”

नारीवादी और क्वीर अधिकार कार्यकर्ता, चयनिका शाह ने पूछा कि दुनिया तालिबान से बात क्यों कर रही है और "यह नहीं पूछ रही है कि अफगान लोग क्या चाहते हैं और क्या चाहिए?" उन्होंने चेतावनी दी कि "तालिबान को अफगानिस्तान की आवाज के रूप में समझना" गलत था। उन्होंने भारत में बढ़ते इस्लामोफोबिया और मुस्लिम विरोधी पोल प्रोपोगेंडा पर कहा कि नागरिकों को ही आगे आना होगा और इसका मुकाबला करना होगा।

जयपुर: तालिबान दमन के खिलाफ एव अफगानी महिलाओं के समर्थन में जनसंगठनों ने किया प्रदर्शन

लोकतांत्रिक जनपक्षीय जनसंगठनों की ओर से सोमवार को शहीद स्मारक, जयपुर पर, अफगानिस्तान पर तालिबान कब्जे के खिलाफ और महिलाओं की सुरक्षा के मद्देनजर प्रदर्शन किया गया।

राजस्थान नागरिक मंच के सचिव अनिल गोस्वामी ने बताया कि सभी जन संगठनों के नेताओं ने भारत सरकार से आग्रह किया कि वह अफगानिस्तान के मामले में तालिबान को लेकर चुप्पी तोड़े और जो लोग पीड़ित हो रहे हैं उनके दमन से उनकी रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वार्ता करके उनको सुरक्षा प्रदान करना सुनिश्चित किया जाए। इसके अलावा अफगानिस्तान में भारतीय एवं ऐसे लोग जो मानवतावादी हैं उन्हें भारत में शरण दी जाए।

दिल्ली : यूएनएचसीआर कार्यालय के सामने अफगान शरणार्थियों ने किया विरोध प्रदर्शन

अफगानिस्तान में गहराते संकट के बीच भारत में बड़ी संख्या में अफगान शरणार्थियों ने सोमवार को यहां यूएनएचसीआर कार्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन किया और संयुक्त राष्ट्र एजेंसी से बेहतर अवसरों के वास्ते दूसरे देशों में प्रवास करने के लिए ‘‘समर्थन पत्र’’ जारी करने की मांग की।

दिल्ली और आस-पास के शहरों से आए सैकड़ों प्रदर्शनकारी सुबह से ही वसंत विहार में शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) कार्यालय के सामने एकत्रित होने लगे। प्रदर्शनकारियों में महिलाएं भी थीं।

प्रदर्शनकारियों ने 'हमें भविष्य चाहिए', 'हमें न्याय चाहिए', 'अब और खामोशी नहीं' जैसे नारे लगाए और ताली बजाकर एक-दूसरे का उत्साह बढ़ाया। कुछ लोग ‘यूएन जिनेवा हेल्प अफगान रिफ्यूजी’ और ‘सभी अफगान शरणार्थियों के लिए रेजिडेंट वीजा जारी करें’ जैसे संदेश वाले बैनर लिए हुए थे।

अफगान सॉलिडेरिटी कमेटी (एएससी) द्वारा प्रदर्शन आयोजित किया गया और प्रदर्शनकारी दोपहर तक नारे लगा रहे थे। प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति ने कहा कि विरोध प्रदर्शन कम से कम दो-तीन दिनों तक जारी रहेगा। प्रदर्शनकारी दिल्ली के लाजपत नगर, भोगल, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, फरीदाबाद सहित अन्य जगहों से आए।

कमेटी के प्रमुख अहमद जिया गनी ने कहा कि भारत में लगभग 21,000 अफगान शरणार्थी हैं, जिनमें से केवल 7,000 के पास वैध दस्तावेज (ब्लू पेपर) या कार्ड है। उन्होंने कहा, ‘‘भारत में अफगानों का जीवन बहुत अच्छा नहीं है, और शायद ही कोई अवसर है। हमें किसी तीसरे देश में जाने तथा अपने और अपने बच्चों के लिए बेहतर भविष्य की तलाश करने का अवसर क्यों नहीं मिलना चाहिए। यूएनएचसीआर को हमारी अपील पर विचार करना चाहिए, समर्थन पत्र जारी करना चाहिए और यहां तक कि पुराने मामलों पर फिर से गौर करना चाहिए।’’

एएससी के प्रदर्शनकारियों ने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए नीले रंग की पट्टी पहनी हुई थी, जबकि महिलाओं और बच्चों ने देश के गीत गाये।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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