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ह्यूमन राइट्स वॉच की मांग- संशोधित नागरिकता कानून रद्द करे भारत

मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने शुक्रवार को जारी की अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘भारत के प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) ने कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में एकजुट होने की अपील की है लेकिन भेदभाव तथा मुस्लिम-विरोधी हिंसा के खिलाफ लड़ाई के लिए एकजुटता का अब तक आह्वान नहीं किया है।’
ह्यूमन राइट्स वॉच

मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने शुक्रवार को कहा कि भारत को संशोधित नागरिकता कानून (CAA) तुरंत रद्द करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भारत की शरण संबंधी या शरणार्थी नीति धर्म अथवा किसी भी आधार पर भेदभाव करने वाली नहीं हो तथा अंतरराष्ट्रीय कानून के मानकों के अनुरूप हो।

मानवाधिकार संस्था के दक्षिण एशिया क्षेत्र की निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने 82 पन्नों की रिपोर्ट ‘शूट दी ट्रेटर्स: डिस्क्रिमिनेशन अगेंस्ट मुस्लिम्स अंडर इंडियाज न्यू सिटिजनशिप पॉलिसी’ जारी करते हुए कहा कि नया संशोधित नागरिकता कानून भारत के अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का उल्लंघन करता है जिनके मुताबिक नस्ल, रंग, वंश, राष्ट्र आदि के आधार पर नागरिकता देने से इनकार नहीं किया जा सकता।

उन्होंने कहा, ‘भारत के प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) ने कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में एकजुट होने की अपील की है लेकिन भेदभाव तथा मुस्लिम-विरोधी हिंसा के खिलाफ लड़ाई के लिए एकजुटता का अब तक आह्वान नहीं किया है।’

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि सरकार की नीतियों ने भीड़ हिंसा और पुलिस की निष्क्रियता के लिए दरवाजे खोले जिससे देशभर में मुस्लिमों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के बीच डर पैदा हुआ है।

यह रिपोर्ट बताती है कि पुलिस और अन्य अधिकारी नई नागरिकता नीतियों का विरोध करने वालों पर सरकार समर्थकों के हमलों के मामले में हस्तक्षेप करने में बार-बार विफल साबित हुए हैं। हालांकि, पुलिस ने सरकार की नीतियों की मुखालफ़त करने वालों को गिरफ्तार करने और उनके शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को तितर-बितर करने में काफी तेज़ी दिखाई और अत्यधिक एवं घातक बल का इस्तेमाल किया।

यह रिपोर्ट 100 से अधिक साक्षात्कारों पर आधारित है। इसमें दिल्ली, असम और उत्तर प्रदेश में उत्पीड़न का शिकार हुए लोगों और उनके परिवारों, साथ ही कानूनी विशेषज्ञों, शिक्षाविदों, कार्यकर्ताओं और पुलिस अधिकारियों के साक्षात्कार शामिल हैं।

रिपोर्ट की अन्य प्रमुख बातें

-संशोधित नागरिकता कानून पड़ोसी मुस्लिम बहुल देशों - अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अनियमित आप्रवासियों के आश्रय संबंधी दावों का तेजी से निपटारा करता है, लेकिन मुसलमानों को ऐसे दावों से वंचित कर देता है। यह कानून भाजपा सरकार द्वारा राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के जरिए राष्ट्रव्यापी नागरिकता सत्यापन प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के बीच लागू किया गया, जिसका उद्देश्य “अवैध प्रवासियों” की पहचान करना है। हालांकि, कोविड-19 संक्रमण की रोकथाम के लिए जनसंख्या रजिस्टर का काम टाल दिया गया है, लेकिन गृह मंत्री और अन्य भाजपा नेताओं के बयानों से यह आशंका पैदा हुई है कि लाखों भारतीय मुसलमानों, जिनमें अनेक परिवार कई पीढ़ियों से देश में रहते आ रहे हैं, से उनके मताधिकार और नागरिकता अधिकार छीने जा सकते हैं।

- संयुक्त राष्ट्र और कई देशों की सरकारों ने नागरिकता कानून को धर्म के आधार पर भेदभावपूर्ण बताते हुए सार्वजनिक रूप से इसकी आलोचना की है। लेकिन जहां भाजपा नेताओं ने प्रदर्शनकारियों का मज़ाक उड़ाया और उन्हें धमकियां दी, वहीं उनके कुछ समर्थक सरकार का विरोध कर रहे लोगों और प्रदर्शनकारियों पर भीड़ के हमलों में संलिप्त रहे। भाजपा के कुछ नेताओं ने प्रदर्शनकारियों को “गद्दार” घोषित करते हुए गोली मारने का खुलेआम नारा लगाया।

- दिल्ली में फरवरी 2020 में, सांप्रदायिक झड़पों और मुसलमानों पर हिंदुओं की भीड़ के हमलों में 50 से अधिक मौतें हुईं। प्रत्यक्षदर्शियों के विवरण और वीडियो सबूत हिंसा में पुलिस की संलिप्तता को दर्शाते हैं। एक घटना में, पुलिस अधिकारियों ने भीड़ के हमलों में घायल पांच मुसलमानों के एक समूह को पीटा, उनकी हंसी उड़ाई और अपमानित करने के लिए उनसे राष्ट्रगान गाने को कहा। इनमें एक शख्स की बाद में मौत हो गई।

- भाजपा शासित राज्यों, विशेषकर उत्तर प्रदेश में विरोध प्रदर्शनों के दौरान कम-से-कम 30 लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर मुसलमान थे। छात्रों के विरोध प्रदर्शनों सहित अन्य प्रदर्शनों के दौरान, प्रदर्शनकारियों पर सरकार समर्थकों के हमलों के दौरान पुलिस मूकदर्शक बनी रही। प्रदर्शनकारी छात्रों पर भाजपा समर्थक समूह के हमले में घायल दिल्ली स्थित एक विश्वविद्यालय के एक छात्र ने कहा, “हिंसा भड़कने के दौरान पुलिस कैंपस में मौजूद थी। हमने उनसे मदद मांगी और फिर हम हमलावरों से बचने के लिए भागे, लेकिन पुलिस हमारी मदद के लिए कभी नहीं आई।”

 - राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर ने भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में पहले से ही लगभग बीस लाख लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिए जाने और राज्यविहीनता के जोखिम में डाल दिया है। अगस्त 2019 में, असम राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर पूरा करने वाला पहला राज्य था।

 -ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी पड़ताल में पाया कि असम की प्रक्रिया में मानकीकरण का अभाव था, जिसके कारण अधिकारियों द्वारा मनमाने और भेदभावपूर्ण निर्णय लिए गए और इसने उन गरीब निवासियों के समक्ष बेज़ा परेशानियां पैदा की जिनकी नागरिकता दावे से जुड़े दशकों पुराने पहचान दस्तावेज़ों तक पहुंच नहीं है। आम तौर पुरुषों की तुलना में महिलाओं की दस्तावेज़ों तक कम पहुंच होती है, लिहाजा इस प्रक्रिया में वे बड़ी तादाद में प्रभावित हुईं हैं। असम की इस प्रक्रिया ने राष्ट्रव्यापी नागरिकता रजिस्टर संबंधी अंदेशों को बढ़ा दिया है।

 - ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि असम में नागरिकता को तय करने वाले विदेशी ट्रिब्यूनल्स में पारदर्शिता और एकीकृत प्रक्रियाओं का अभाव है। अधिकार समूहों और मीडिया ने बताया कि राजनीतिक दबाव के कारण हिंदुओं के मुकाबले काफी अधिक संख्या में मुस्लिमों की जांच की गई और उन्हें ज्यादा अनुपात में विदेशी घोषित किया गया। यहां तक कि कुछ सरकारी अधिकारियों और सैन्य कर्मियों को अनियमित आप्रवासी घोषित कर दिया गया।

 - विदेशी ट्रिब्यूनल में अपने नागरिकता संबंधी दावों को स्थापित करने का कानूनी और दस्तावेज़ संबंधी शुल्क वहन नहीं करने वाले परिवार की एक महिला ने बताया, “हमने दो गायें, मुर्गियां और बकरियां बेच दी। अब हमारे पास बेचने के लिए कुछ भी नहीं है।”

  - नागरिकता संशोधन कानून नस्ल, रंग, वंश या राष्ट्रीय या नृजातीय मूल के आधार पर नागरिकता से वंचित करने से रोकने के भारत के अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का उल्लंघन करता है। भारत सरकार को यह संशोधन निरस्त कर देना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में किसी भी राष्ट्रीय आश्रय और शरणार्थी नीति में धर्म सहित किसी भी आधार पर भेदभाव न हो और यह अंतरराष्ट्रीय कानूनी मानकों के अनुरूप हो।

 - ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि भारत सरकार को राष्ट्रव्यापी नागरिकता सत्यापन परियोजना की किसी भी योजना को त्याग देना चाहिए जब तक कि मानक कार्यप्रणाली और उचित प्रक्रियागत सुरक्षा स्थापित करने के लिए सार्वजनिक परामर्श नहीं हो जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह परियोजना गरीब, अल्पसंख्यक समुदायों, प्रवासी या आंतरिक रूप से विस्थापित आबादी और महिलाओं के लिए बेजा परेशानियां नहीं पैदा करे।

रिपोर्ट के कुछ चुनिन्दा मामले

असलम (बदला हुआ नाम), असम

बंगाली मुस्लिम असलम गुवाहाटी में ड्राइवर का काम करते हैं। उनका नाम असम के राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में नहीं है जबकि उनके माता-पिता, पत्नी और बच्चों के नाम हैं। बहुत मुमकिन है कि जैसा कि पूरे देश में आम तौर पर होता है, विभिन्न दस्तावेजों में उनका नाम अलग-अलग तरीके से लिखे जाने के कारण रजिस्टर में शामिल नहीं किया गया हो। उन्होंने बताया कि उनके मतदाता पहचान पत्र और आयकर पहचान पत्र यानी परमानेंट अकाउंट नंबर (पैन) पर उनके नाम की वर्तनी अलग-अलग है। उन्होंने कहा, "पैन कार्ड का फॉर्म अंग्रेजी में होता है, लेकिन मतदाता पहचान पत्र फॉर्म हम असमिया में भरते हैं। फिर जब वे इसे अंग्रेजी में लिखते हैं, तो नाम की वर्तनी अक्सर बदल जाती है।”

 सलीमा (बदला हुआ नाम), असम

बारपेटा जिले की बंगाली मुस्लिम 45 वर्षीय सलीमा को फरवरी 2019 में अनियमित विदेशी घोषित किया गया। हालांकि, सलीमा के पास जैसे दस्तावेज थे, वैसे ही दस्तावेज के आधार पर उनके रिश्तेदारों को भारतीय नागरिक प्रमाणित किया गया। उनके वकील ने कहा कि ऐसा इस वजह से हुआ कि सलीमा विदेशी ट्रिब्यूनल में गवाही देते वक़्त अपना मामला ठीक से प्रस्तुत नहीं कर पाई, जैसा कि अक्सर ग्रामीण समुदायों में होता है जहां लोग उम्र और अन्य विवरणों के बारे में अनिश्चित हो सकते हैं। उनके वकील ने कहा, “वादी गरीब लोग होते हैं, वे नतीजों का अनुमान नहीं लगा पाते हैं। सलीमा अदालत को यह नहीं बता पाई कि उनकी एक सौतेली मां है, और यह भी कि उसके कितने भाई-बहन हैं और उनकी सही-सही उम्र क्या है।”

असद रज़ा, मौलवी, उत्तर प्रदेश

मुजफ्फरनगर जिले में पुलिस ने 20 दिसंबर को एक मदरसे में कथित तौर पर घुसकर तोड़फोड़ की और उसके मौलवी एवं 35 छात्रों को हिरासत में ले लिया, जिनमें 15 छात्र 18 वर्ष से कम उम्र के थे। मौलवी असद रज़ा ने बाताया कि दोपहर की नमाज के बाद कई पुलिसकर्मी आ धमके। कहने को तो वे प्रदर्शनकारियों की तलाश में आए थे, लेकिन इसके बजाय उन्होंने उपद्रव मचाया, लोगों की पिटाई की और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया।

उन्होंने बताया, जब मैंने मुख्य दरवाज़ा खोला, तो पुलिस ने मुझे पीटना शुरू कर दिया। उन्होंने छात्रों की तलाश में हर दरवाज़े को तोड़ दिया। हमें हिरासत में लेने की वजह उन्होंने कभी नहीं बताई। उन्होंने यूं ही हमारी पिटाई शुरू कर दी। हमारे मोबाइल फोन ले लिए और वापस नहीं किया। उन्होंने ऑफिस से कुछ पैसे भी उठा लिए। यहां ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था।

एस आर दारापुरी, सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी, उत्तर प्रदेश

सेवानिवृत्त वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता एस आर दारापुरी को दिसंबर में घर में नजरबंद कर दिया गया ताकि उन्हें नागरिकता कानून के खिलाफ आयोजित  प्रदर्शन में भाग लेने से रोका जा सके। पुलिस ने फिर भी उन्हें झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया, शायद दूसरों को डराने हेतु उनकी गिरफ़्तारी को एक मिसाल के रूप में पेश करने के लिए। उन्होंने कहा, 'अगर वे एक सेवानिवृत्त पुलिस महानिरीक्षक के साथ ऐसा कर सकते हैं, तो मुझे यह सोचने में भी डर लगता है कि आम आदमी के साथ क्या करते होंगे।'

दारापुरी ने बताया कि उत्तर प्रदेश में पुलिस खुलेआम भेदभावपूर्ण व्यवहार कर रही है: “वे अपने पूर्वाग्रह छिपाने की ज़हमत नहीं उठाते क्योंकि जानते हैं कि वे पूरी तरह से सुरक्षित हैं।” 

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