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गोरखपुर विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव की माँग को लेकर भूख हड़ताल

गोरखपुर विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव की माँग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे छात्र, विश्वविद्यालय प्रशासन ने 12 छात्र नेताओं का परिसर में प्रवेश किया प्रतिबंधित
student union

पंडित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव की माँग को लेकर 10 अक्टूबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल कर रहे छात्र 18 अक्टूबर से भूख हड़ताल पर चले गये थे। छात्रों के हड़ताल को समर्थन मिलते कुलपति ने गुरुवार को छात्रों को जूस पिलाकर भूख हड़ताल को समाप्त करवाया। लेकिन छात्रों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी माँग नहीं मानी जाएगी तो वह फिर हड़ताल करने पर मजबूर होंगे। गोरखपुर विश्वविद्यालय में आख़री बार 2016 को छात्रसंघ चुनाव हुए थे। 2017 और 2018 में चुनाव घोषित करने के बाद स्थगित कर दिया गया था। चुनाव की माँग को लेकर छात्र लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं।

छात्रों ने छात्रसंघ चुनाव की माँग को लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन को कई बार ज्ञापन दिया। 10 अक्टूबर से वह प्रदर्शन पर थे। 17 अक्टूबर को छात्र नेताओं ने कुलपति कार्यालय का घेराव किया और 18 अक्टूबर से भूख हड़ताल करने की घोषणा की। नाराज़ विश्वविद्यालय प्रशासन ने कुलपति कार्यालय में बलपूर्वक घुसने की कोशिश करने का आरोप लगाकर 12 छात्रों के ख़िलाफ़ कैंट थाने में तहरीर दे दी।

साथ ही नेतृत्व कर रहे उक्त छात्र नेताओं योगेश प्रताप सिंह, अंकित पांडेय, सत्यम चतुर्वेदी, प्रशांत कुमार, प्रिंस यादव, उज्जवल सिंह, सुशांत वर्मा, प्रशांत गुप्ता, रितु राज निषाद, विपिन जायसवाल, शिवानन्द यादव और अभिषेक यादव का कक्षाओं और विश्वविद्यालय परिसर में 6 सप्ताह के लिए प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया। प्रदर्शनकारी छात्र नेता आंदोलन करने के साथ ही छात्रों के बीच “छात्रसंघ ज़रूरी क्यों?” पर्चा बाँट कर समर्थन जुटा रहे हैं।

छात्रसंघ नहीं होने के कारण छात्राओं की परेशानियों की सूची गिनाते हुए नित्या पांडेय कहती हैं “विश्वविद्यालय में पीने के पानी और शौचालय की भी सही व्यवस्था नहीं है। लड़कियों की शिकायत सुनने के लिए कोई कमेटी तक नहीं है। कुलपति हमसे मिलते नहीं हैं। शिक्षक और कर्मचारी हमारी बात नहीं सुनते। छात्रसंघ छात्रों के प्रति जवाबदेह होता है। यदि छात्रसंघ होता तो हम अपनी बात कह सकते थे।”

गोरखपुर विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव होने का एक दूसरा पक्ष भी है। परिसर में छात्र हितों के मुद्दों को केन्द्र में रखकर चुनाव नहीं होते हैं। जीत हासिल करने के लिए वर्चस्व स्थापित करने की प्रतिस्पर्धा में छात्रनेता पानी की तरह से पैसा बहाते हैं। छात्र नेताओं के आपसी गुटों में मारपीट की घटनाएँ आम हो जाती हैं। छात्रों की पढ़ाई भी बाधित होती है। इस वजह से छात्रों का एक तबका छात्रसंघ चुनाव को लेकर सशंकित रहता है।

बी.एड. द्वितीय वर्ष की छात्रा अमृता कहती हैं “2018 में छात्रसंघ के चुनाव के दौरान भारी संख्या में बाहरी लड़के परिसर में आकर हल्ला-हंगामा करते थे। छात्र नेताओं के प्रचार-प्रसार से उत्पन्न शोरगुल से नियमित कक्षाएँ भी नहीं चलती थीं। यदि छात्रसंघ चुनाव हों तो इन सब पर प्रतिबंध लगना चाहिए। नहीं तो हमें फिर से यह सब झेलना पड़ेगा।”

विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रों से नहीं करता बातचीत

विश्वविद्यालय प्रशासन के ज़िम्मेदारों को छात्र कई बार ज्ञापन दिया। फिर भी प्रशासन की तरफ़ से छात्रों से बातचीत नहीं की गई है। भूख हड़ताल कर रहे छात्र नेता राहुल ने बताया ‘छात्रसंघ चुनाव की माँग को लेकर हम लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन हमारी उपेक्षा करता है। प्रदर्शन के दौरान जब चीफ़ प्रॉक्टर हमसे मिलने आये उन्होंने हमें फ़र्ज़ी मुक़दमों में फँसाने की धमकी दी।’

छात्रों के इस आरोप पर चीफ़ प्रॉक्टर का पक्ष जानने के लिए उन्हें फ़ोन किया गया तो उन्होंने सवाल सुनने के बाद फ़ोन काट दिया। दोबारा कॉल करने पर फ़ोन रिसीव नहीं हुआ। उनका जवाब मिलते ही रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा।

प्रदर्शन के दौरान भूख हड़ताल करने वाले छात्रनेता प्रशासनिक भवन के अंदर रहे। समर्थन में छात्र नेताओं का एक समूह प्रशासनिक भवन के गेट को बंद कर प्रदर्शन कर रहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्रशासनिक भवन के मुख्य गेट, जो कि विश्वविद्यालय के मुख्य गेट के नज़दीक है उसे स्वयं ही बंद करवा दिया। छात्रों को इससे काफ़ी परेशानी हुई। क्योंकि अधिकांश छात्र इसी गेट का इस्तेमाल करते हैं।

विश्वविद्यालय प्रशासन प्रशासनिक भवन के अंदर छात्र-छात्राओं, छात्रों के अभिभावकों, पूर्व छात्रसंघ पदाधिकारियों और पत्रकारों को भी अंदर नहीं जाने दिया गया। ग़ौरतलब है कुलपति, रजिस्ट्रार, परीक्षा नियंत्रक यहीं बैठते हैं। दस्तावेज संबंधी मुख्य कार्य भी प्रशासनिक भवन में ही होते हैं।

भूख हड़ताल का नेतृत्व कर रहे छात्र नेताओं में से एक सतीश कहते हैं ‘कुलपति मनमाने तरीक़े से वित्तीय अनियमितताओं को अंजाम दे रहे हैं। छात्रसंघ के सक्रिय रहने की स्थिति में वह ऐसा नहीं कर पायेंगे इसी डर से वह चुनाव नहीं होने देना चाहते हैं।'

2017-2018 में अचानक स्थगित किये गये थे चुनाव

2017 में भी चुनाव की माँग को लेकर छात्र सामूहिक भूख हड़ताल किया था दबाव में चुनाव करवाने की घोषणा कर दी गई। हालाँकि बाद में चुनाव को स्थगित कर दिया गया था। विरोध में प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर लाठीचार्ज कर नेतृत्व कर रहे छात्र नेताओं पर मुक़दमा भी दर्ज कर दिया गया। 2018 में तो 13 सितंबर को मतदान होना था और 11 सितंबर को आनन-फ़ानन में चुनाव स्थगित कर दिया गया था।

2017 और 2018 में छात्रसंघ चुनाव स्थगित होने का कारण विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रत्याशी के संभावित हार को बताया जाता है। 2016 के चुनाव में मिले हार से सबक़ लेकर भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश के महत्वपूर्ण नेताओं को छात्रसंघ चुनाव में जीत हासिल करने के लिए रणनीति तैयार करने की ज़िम्मेदारी सौंप दी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गृह जनपद होने के कारण यदि भाजपा को चुनाव में हार मिलती तो पूरे देश में भाजपा की किरकिरी होती।

भाजपा ने शहर के पार्षदों को भी चुनाव प्रचार में उतार दिया। इसके बावजूद सपा समर्थित प्रत्याशी मज़बूत स्थिति में थीं। 13 सितंबर को मतदान से दो दिन पहले अभाविप प्रत्याशी और अभाविप के बाग़ी प्रत्याशी के समर्थकों के बीच जमकर मारपीट हुई। शिक्षक संघ ने छात्रसंघ चुनाव के बहिष्कार की घोषणा कर दी, कर्मचारी संघ ने समर्थन दे दिया और चुनाव सलाहकार समिति ने बैठक कर 13 सितंबर तक छुट्टी की घोषणा कर दी। यह सबकुछ महज़ 2 घंटे के अंदर हो गया था।

दोषियों पर कार्रवाई करने की बजाये चुनाव स्थगित करने की तत्परता से विश्वविद्यालय प्रशासन सवालों के घेरे में आ गया। यह चर्चा आम हो गई कि अभाविप की हार को टालने के लिए चुनाव को स्थगित किया गया है।

गोरखपुर विश्वविद्यालय में आख़री बार 2016 को छात्रसंघ के चुनाव हुए थे। छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर अरविंद कुमार उर्फ़ अमन यादव ने जीत हासिल की थी। चुनाव के नतीजों की चर्चा गोरखुपर के आसपास के ज़िलों में भी लंबे समय तक गर्म रही। गोरखपुर विश्वविद्यालय में पहली बार कोई ग़ैर सवर्ण छात्र अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुआ था।

विश्वविद्यालय में छात्र हितों के लिए बेहतर होगा कि लिंगदोह कमेटी की सिफ़ारिशों को लागू करते हुए पारदर्शी तरीक़े से छात्रसंघ चुनाव करवाये जाएँ। समाज के सभी तबके को छात्रसंघ में प्रतिनिधित्व मिले। हालाँकि कुलपति राजेश सिंह का अब तक रवैया देखकर फ़िलहाल यह मुश्किल लग रहा है। हालाँकि छात्रों के जुझारू आंदोलन ने विश्वविद्यालय प्रशासन को चिंता में डाल दिया है।

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