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IIMC विवाद : “संस्थान नियमों से नहीं चल रहा, यहां एजेंडा चल रहा है”

IIMC में 12 जनवरी से हिंदी पत्रकारिता विभाग में शुरू हुआ विवाद इतना बढ़ गया कि धरने पर बैठे चार छात्रों में से दो का नामांकन रद्द कर दिया गया जबकि एक को हॉस्टल ख़ाली करने का आदेश दिया गया है।
IIMC Vivaad

IIMC में 12 जनवरी को हिंदी पत्रकारिता विभाग में लैब जर्नल में एक स्टोरी (ये स्टोरी IIMC के उन गार्ड्स पर की गई थी जिन्हें एक जनवरी को बिना वेतन दिए निकालने का आरोप है) के पब्लिश ना होने पर शुरू हुआ विवाद इतना बढ़ गया कि दो छात्रों का नामांकन रद्द (संस्थान से बाहर निकाल दिया गया) कर दिया गया है।

पूरे विवाद की अधिक जानकारी के लिए इसे पढ़ें : IIMC के हिंदी पत्रकारिता विभाग में कुछ तो ज़रूर 'पक' रहा है!

क्या हैं ताज़ा अपडेट?

IIMC के हिंदी पत्रकारिता विभाग में 12 जनवरी को जो विवाद शुरू हुआ था वो 16 फरवरी आते-आते इतना बढ़ गया कि धरने पर बैठे चार छात्रों में से दो को IIMC से बाहर निकाल दिया गया। छात्रों की मानें तो ये कुछ ऐसा था कि 'जिसका डर था वही हो गया', छात्र लगातार इस कार्रवाई का अंदेशा जता रहे थे लेकिन जिस तरह से ये कार्रवाई की गई है ये कुछ सवाल खड़े करती है।

सबसे पहले चारों छात्रों में से किस पर क्या कार्रवाई हुई है ये जानिए-

  • आशुतोष कुमार-नामांकन तत्काल प्रभाव से रद्द
  • भावना-नामांकन तत्काल प्रभाव से रद्द
  • चेतना-छात्रावास की पात्रता के लिए अयोग्य ठहराया गया (हॉस्टल से निकाल दिया)
  • मुकेश-चेतावनी दी गई कि भविष्य में आप अनुशासन के मामले में समुचित आचरण रखें।

कुछ सवाल

  • चार छात्र एक साथ धरने पर बैठे तो ये कैसे तय किया गया कि किस को संस्थान से निकालना है और किसे हॉस्टल से?
  • छात्रों का आरोप है कि जिस तरह से ये पूरी कार्रवाई की गई है वो सरासर बदले की भावना से की गई लगती है, इसकी हकीक़त क्या है?
  • क्या संस्थान में सवाल पूछने पर ये कार्रवाई की गई है?

IIMC से निकाले गए छात्रों को मिले आदेश और उसके लहज़े पर भी गौर करते हैं :

निकाले गए छात्रों को मिले आदेश का कुछ हिस्सा :

“अनुशासन समिति ने दिनांक 3 फरवरी 2023 से 12 फरवरी तक संस्थान परिसर में घटित विविध घटनाओं को भी संज्ञान में लिया है और इनमें आपकी संलिप्तता पर विचार किया है। समिति की सभी सुनवाइयों में आपको दोषी पाया गया है।

संस्थान की ओर से दिनांक 8, 10 और 12 फरवरी 2023 को आपको तीन अलग-अलग कारण पृच्छा नोटिस भेजे गए, जिन पर आपका समुचित उत्तर नहीं मिला है। अपने उत्तर में आप तथ्यों पर बात करने के बजाय आरोप-प्रत्यारोप में उलझे हुए दिखाई देते हैं।

उपरोक्त के आलोक में अनुशासन समिति के अनुसार संस्थान में आपका नामांकन तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाता है। साथ ही, समिति ने यह निर्णय भी दिया है कि भविष्य में आप भारतीय जनसंचार संस्थान के किसी भी परिसर व किसी भी पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए पात्र नहीं होंगे।”

इन आरोपों पर निकाले गए छात्र ने क्या कहा?

“अभी (3 फ़रवरी) जब हम प्रोटेस्ट पर बैठे थे तो हमें तीन शो-कॉज नोटिस भेजे गए, शुरू के चार दिनों में तीन नोटिस, जिन तीनों में एक ही बात थी-कर्मचारियों से अभद्र रवैया। हमने सभी शो-कॉज नोटिस के जवाब दिए, फिर जबरन हमें डरा-धमका कर प्रोटेस्ट की जगह से हटाया गया और हमें कहा गया कि आपके ऊपर जो आरोप लगे हैं उनका जवाब देने के लिए आपको पेश होना है, तो हमने लिखित में कहा कि हमारे ऊपर क्या आरोप लगे हैं हमें पता नहीं है और प्रशासन, हमारे ख़िलाफ़ जो शिकायत मिली है उसकी प्रतिलिपि (कॉपी) हमें दे दे ताकि हम कुछ सबूतों के साथ जवाब दे सकें। जब हमने आरोपों की प्रतिलिपि की मांग की तो उन्होंने पहले वाले सेम नोटिस (जिस पर हमने ये मांग की थी) उसी को दूसरे नोटिस के तौर पर भेज दिया। हमने दोबारा अपनी मांग दोहराई तो हमें पता चलता है कि मुझे और भावना को निकाल दिया गया है, चेतना को हॉस्टल से निकाल दिया गया है और मुकेश को बनाए रखा गया है जबकि चारों पर आरोप एक था।”

इन्हीं आरोपों पर निकाली गई दूसरी छात्रा का कहना है :

“किन आरोपों पर हमारे ऊपर कार्रवाई की गई है मुझे तो ये तक नहीं पता। सब आरोप एकतरफा हैं, कब सुनवाई हुई मुझे तो इसके बारे में बताया तक नहीं गया है, हम चार लोग धरने पर बैठे लेकिन प्रशासन ने चारों के ख़िलाफ़ अलग-अलग कार्रवाई की है। प्रशासन को लगता है कि मुझे और आशुतोष को अगर बाहर निकाल दिया जाएगा तो बाकी के दोनों छात्र कुछ नहीं करेंगे, शांत हो जाएंगे, क्योंकि लगातार प्रशासन हम दोनों को बाकी के दोनों छात्रों को भड़काने का आरोप लगा रहा था। ये हम चारों को अलग करने के लिए किया गया है। रही बात कि हमने नोटिस के जवाब नहीं दिए तो ये बिल्कुल ग़लत और झूठा आरोप है। हम कैंपस में ही धरना दे रहे थे और हमें जो भी नोटिस मिल रहे थे हम साथ के साथ मेल के ज़रिए जवाब दे रहे थे और हार्ड कॉपी ऑफिस में जमा करवा रहे थे।

संस्थान में ये कैसा लोकतंत्र चल रहा है कि हम सवाल नहीं पूछ सकते, 12 जनवरी के मामले में जांच चल रही थी उसका कुछ पता नहीं चला उसके बाद हमारे ऊपर आरोप लगाकर तीन दिन में सुनवाई करके हम को Rusticateकर दिया गया। 12 जनवरी के मामले की रिपोर्ट के बारे में कुछ नहीं पता और हम लोगों के ख़िलाफ़ अलग से कमेटी बिठा कर तुगलकी फरमान सुना दिया गया है। ऐसा लग रहा है कि संस्थान नियमों से नहीं चल रहा बल्कि अपनी भड़ास निकाली जा रही है। सवाल करने, अतार्किक बातों को खारिज कर देने की सज़ा मिली है हमें, बाहर निकाल कर ये उदाहरण सेट किया जा रहा है कि आगे से अगर किसी ने सवाल किया तो उसके साथ भी इसी तरह ही पेश आया जाएगा।”

आगे छात्र क्या करेंगे?

एग्ज़ाम से क़रीब एक महीना पहले छात्रों को निकाल दिया गया है ऐसे में छात्रों ने क़ानून का दरवाज़ा खटखटाने का मन बना लिया है। वो कहते हैं कि, “संस्थान ने हमारे पास कोई और चारा नहीं छोड़ा है, हम यहां पढ़ने आए थे, हमने कभी सोचा भी नहीं था कि हमें आंदोलन और कोर्ट-कचहरी का सामना करना पड़ेगा लेकिन अब हमारे पास कोई और विकल्प ही नहीं छोड़ा गया है।”

जिस छात्रा को हॉस्टल से निकाला गया उन्हें मिले नोटिस/आदेश का कुछ हिस्सा :

“छात्रावास संरक्षक की ओर से समर्पित रिपोर्ट के अनुसार आप छात्रावास समय सीमा का पालन बिल्कुल नहीं करती हैं। आपने कथनानुसार, समय का अनुपालन आप को घुटन देता है। सुरक्षा गार्ड द्वारा मना करने के बाद भी आपको छात्रावास की चल संपत्ति बाहर ले जाते देखा गया है।

उपरोक्त बातों के मद्देनज़र अनुशासन समिति की संस्तुति के अनुसार आपको संस्थान में छात्रावास की पात्रता के लिए अयोग्य ठहराया गया है। अत: आप को निर्देशित किया जाता है कि आप दिनांक 20 फरवरी 2023 (रविवार) तक छात्रावास खाली करें।

साथ ही आपको चेतावनी दी जाती है कि भविष्य में आप अनुशासन के मामले में समुचित आचरण रखें। सत्र के शेष हिस्से में आपकी गतिविधियों पर निगरानी रखी जाएगी और यदि भविष्य में अनुशासनहीनता पायी जाती है तो कड़ी अनुशासनिक कार्रवाई की जाएगी।”

इस कार्रवाई पर छात्रा का कहना है कि :

“जिस वक़्त हमें प्रोटेस्ट की जगह को ख़ाली करने का आदेश दिया गया तो हमने ये सोच कर जगह खाली कर दी कि शायद अब हमसे बात की जाएगी लेकिन बातचीत ना करके हमें नोटिस पर नोटिस भेजे गए कि 'आपके ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए कमेटी गठित की गई है उसमें आपको पेश होना है।' दो घंटे चली कमेटी की मीटिंग के दौरान मुझ पर दबाव डालकर वो बुलवाने की कोशिश की गई जो वो चाहते थे लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा।”

इस पूरे प्रकरण पर हमनें उनसे कुछ सवाल भी किए :

सवाल : हॉस्टल से निकाल दिया गया है अब कहां जाएंगी?

जवाब : मैं वहीं सड़क पर रहने वाली हूं। मैं संस्थान छोड़कर बिल्कुल नहीं जाने वाली, मैंने मुश्किल से तो फीस भरी है। अब मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि मैं बाहर कमरा लेकर रहूं, इसलिए मैं यहीं (संस्थान में) रहने वाली हूं।

सवाल : हमारे माध्यम से संस्थान को कुछ कहना चाहती हैं?

जवाब : संस्थान हमारे ख़िलाफ़ विद्वेषपूर्ण कार्रवाई बंद करे और हमारे ख़िलाफ़ जो झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं, संस्थान उससे बाज़ आए। हमारा करियर बर्बाद करने की जो कोशिश की जा रही है ये उनके अंदर सत्ता और पावर का ही नशा दिखा रहा है, साफ़ दिख रहा है कि यहां कोई नियम नहीं बल्कि संस्थान में एक एजेंडा चल रहा है।

सवाल : चारों छात्रों पर जो अलग-अलग कार्रवाई की गई है उसे आप कैसे देखती हैं ?

जवाब : मुझे कुछ नहीं पता कि किस तरह से ये कार्रवाई की गई है, पर ऐसा लगता है कि उन्होंने हम चारों को अलग करने की कोशिश की है।

वहीं इस पूरे मामले में जिस 'छात्र को चेतावनी देकर छोड़ा' गया है उनका कहना है :

“ये कार्रवाई बदले की कार्रवाई ज़्यादा दिखती है, लेकिन हम चारों साथ हैं।”

इनसे हमारे कुछ सवाल :

सवाल : आप पर जो आरोप लगे हैं उनके बारे में आपका क्या कहना है?

जवाब : मुझ पर जो आरोप लगाए गए हैं-“संस्थान की छात्राओं और महिला कर्मचारियों ने आपके ख़िलाफ़ शिकायत की है।”, मैं इस आरोप का जवाब दूंगा और साथ ही मैं संस्थान से वो सबूत चाहता हूं जिनके आधार पर मुझ पर ये आरोप लगाए गए हैं।

सवाल : एग्ज़ाम के क़रीब एक महीने पहले इस कार्रवाई को आप कैसे देखते हैं?

जवाब : बहुत परेशान हो गए हैं। मैं तो मानसिक तौर पर एक दम टूट गया था। वहां रहना मुश्किल हो रहा था, मेरी तबीयत भी ख़राब हो गई थी इसलिए मैं घर चला आया हूं। हमारे लिए अटेंडेंस एक बड़ा मसला बनने वाला है क्योंकि पिछला पूरा एक महीना हम इतने परेशान रहे, धरने पर बैठे थे, मान लें कि जिन दो साथियों को निकाला है अगर वो कोर्ट से कोई नोटिस ले भी आते हैं तो अटेंडेंस शॉर्ट दिखाकर उन्हें एग्ज़ाम में नहीं बैठने दिया जाएगा। रही बात मेरी तो मैं भी अगर क्लास में नहीं पहुंचा तो मुझे भी अटेंडेंस शॉर्ट के आधार पर बाहर किया जा सकता है। और जिस तरह से कार्रवाई की गई है वो साफतौर पर 'डिवाइड एंड रूल' दिखता है।

जिस तरह से कार्रवाई की गई वो बहुत ही अजीब था। हमारे ऊपर क्या आरोप लगे हैं वो तक ठीक से नहीं बताया गया। हमें एक मेल आया जिसमें कहा गया कि आप कोई भी मोबाइल या दूसरे डिवाइस लेकर मीटिंग में नहीं आएंगे और कार्रवाई कॉन्फिडेंशियल है। ये पूरी कार्रवाई डराने के मकसद से की गई है। मेरे घर वालों को कुछ नहीं पता कि मेरे संस्थान में मेरे साथ क्या चल रहा है, हो सकता है उन्हें पता चले तो वो परेशान हो जाएं ऐसे में हम क्या करें समझ नहीं आ रहा है। जिस वक़्त मैं धरने पर बैठा था और मेरी तबीयत ख़राब हो गई थी उसे लेकर कुछ लोगों ने कुछ ट्वीट किए (या करवाए गए) वो बेहद परेशान करने वाले हैं।

छात्रों का आरोप है कि जिस वक़्त वो धरने पर बैठे थे (3 फरवरी) उस वक़्त संस्थान ने तो कोई बात नहीं की उल्टा उनके ख़िलाफ़ नोटिस पर नोटिस जारी करते रहे लेकिन कुछ-एक लोग (IIMC के पूर्व छात्र) सोशल मीडिया के माध्यम से संस्थान पर लग रहे आरोपों पर सफ़ाई दे रहे थे और उल्टा इन छात्रों पर गंभीर आरोप लगा रहे थे।

इसे भी पढ़ें : IIMC भूख हड़ताल: ''हम संस्थान के ख़िलाफ़ नहीं, बस असहमति को भी जगह मिले''

इन छात्रों का आरोप है कि ये पूर्व छात्र कुछ ऐसे ट्वीट कर रहे थे जिससे लगता है कि उन्हें संस्थान में होने वाली कार्रवाई पहले से ही पता हो। इस आरोप के साथ ये छात्र हमें कुछ ट्वीट दिखाते हैं। साथ ही सवाल करते हैं कि संस्थान के CCTV की फुटेज कोई बाहर का शख़्स कैसे ट्वीट कर रहा है? आख़िर उसे ये CCTV फुटेज कहां से मिली?

इसके अलावा इसी ट्विटर हैंडल का एक और ट्वीट दिखाते हुए ये छात्र आरोप लगाते हैं, “पहले से ही इस ट्वीट में निष्कासन की बात कही गई है तो क्या इन्हें पहले से ही ये पता था कि हम पर कार्रवाई होने वाली है?”

इसके अलावा हिंदी पत्रकारिता विभाग के कोर्स डायरेक्टर राकेश कुमार उपाध्याय पर छात्रों ने आरोप लगाया है कि वो पहले से ही कैसे कह रहे थे कि “कमेटी का फैसला आपके ख़िलाफ़ आया तो”

ऐसे में छात्रों का कहना है कि क्या छात्रों पर जो कार्रवाई की गई है उसमें कमेटी की जांच महज़ एक दिखावा था, क्या कार्रवाई का मन उसी वक़्त बना लिया गया था जब छात्रों ने क्लास में सवाल पूछने को लेकर धरने पर बैठने का फैसला किया था?

डीजी की प्रतिक्रिया

इस पूरे मामले पर प्रतिक्रिया जानने के लिए हमने IIMC के DG (Director General) संजय द्विवेदी को फ़ोन किया। अपना परिचय देने के बाद हमने दो छात्रों को IIMC से बाहर निकालने का सवाल अभी पूरा भी नहीं किया था कि उधर से आवाज़ आई-“अभी हम इंदौर जा रहे हैं बाद में बात करेंगे” और फोन काट दिया गया। इससे पहले भी हमने कई बार DG से फोन पर बात करने की कोशिश की तो उन्होंने या तो फोन नहीं उठाया या उनका जवाब यही था कि “हम शहर में नहीं हैं, हम एयरपोर्ट पर हैं।”

किसकी ग़लती है इससे कहीं बड़ा सवाल इस वक़्त ये है कि जिन चार छात्रों को सज़ा मिली है क्या वो सही है? सत्र ख़त्म होने के महज़ कुछ महीने पहले किसी छात्र पर इतनी बड़ी कार्रवाई क्या आख़िरी विकल्प था?

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