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IIMC : कोर्ट के आदेश के बाद छात्रों का नामांकन रद्द करने का फ़ैसला वापस

''ये फासिज़्म का चरम रूप है, जो शिक्षा के संस्थानों तक पहुंच चुका है।''
IIMC

भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) में 16 फरवरी को दो छात्रों का नामांकन रद्द कर उन्हें संस्थान से निकाल दिया था लेकिन ये दोनों छात्र दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचे जहां कोर्ट ने IIMC को फैसला वापस लेने का आदेश दिया।

अक्सर कोर्ट में किसी केस को जीतने पर ख़ुशी होती है, लेकिन हम जिससे फोन पर बात कर रहे थे वह बहुत ही उदास और मायूस था। एक सवाल के जवाब में उसने कहा कि ''मैं कुछ बोल नहीं पा रहा हूं, यह ऐसा नुकसान है जिसकी कोई मरम्मत नहीं हो सकती, उसे रिवर्स नहीं किया जा सकता, क़रीब तीन महीने से ज़्यादा का वक्त हम लोगों ने गंवाया है, वह भी बिना किसी वजह के हमें सिर्फ इसकी सज़ा मिली कि जो भी क्लास में चल रहा था उसके खिलाफ हम प्रोटेस्ट पर बैठे।'' बातचीत के दौरान रह-रह कर खामोश हो रहे आशुतोष ने कहा कि '' आइडली हम लोगों ने जो किया वही किया जाना चाहिए था हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचा था, लेकिन ज़ेहन में ये बात भी आती है कि क्या हम लोगों ने जो किया वह करना चाहिए था कि नहीं? ये फेज़ हमारे लिए बहुत ही ट्रॉमा से भरा रहा - हर तरह से मानसिक और भावनात्मक हर लेवल पर।''

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क्या है मामला?

ये भारतीय जनसंचार संस्थान IIMC (Indian Institute of Mass Communication) के हिंदी पत्रकारिता विभाग के छात्र आशुतोष कुमार थे जिनका इसी साल 16 फरवरी को संस्थान से नामांकन रद्द कर उन्हें बाहर निकाल दिया गया था। आशुतोष कुमार के साथ ही एक और छात्रा भावना को भी संस्थान ने बाहर निकाल दिया था लेकिन दोनों ने कोर्ट का रुख किया और दिल्ली हाईकोर्ट में एक रिट पिटीशन दायर की, क़रीब चार से पांच सुनवाई के दौरान कोर्ट से मिली फटकार के बाद IIMC को अपने 16 फरवरी के आदेश को वापस लेना पड़ा।

image30 मई के आदेश की कॉपी

पढ़ाई के नुक़सान की भरपाई कैसे होगी?

फैसला भले ही दोनों छात्रों के हक में आया है लेकिन दोनों छात्रों को समझ नहीं आ रहा कि नौ महीने के कोर्स में क़रीब तीन से चार महीने जो उनकी पढ़ाई का नुक़सान हुआ है उसकी भरपाई कैसे होगी? संस्थान से निकाले जाने से लेकर कोर्ट की कार्रवाई और दोबारा संस्थान में आने के दौरान ये छात्र जिस मानसिक तनाव से गुजरे उसका जिम्मेदार कौन है, या फिर उसकी भरपाई कैसे होगी?

दोनों छात्र आरोप लगाते हैं कि ''वे जानते थे कि उनका कोई क़सूर नहीं है'' लेकिन फिर भी उन्हें इस सबसे गुजरना पड़ा, आख़िर उनका 'गुनाह' क्‍या था? संस्थान में आंदोलन करना? धरने पर बैठना? संस्थान के बाहर गेट पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करना? क्या वाकई ये ऐसा मसला था जिसे संस्थान अपने लेवल पर नहीं सुलझा सकता था? चार छात्रों के धरने से शुरू हुआ मामला दो छात्रों के नामांकन रद्द ( संस्थान से बाहर निकाल दिया गया ) करने और एक छात्रा को हॉस्टल से बाहर करने पर जाकर ख़त्म हुआ, और संस्थान के इस फैसले के खिलाफ जिन दो छात्रों को बाहर किया गया था वे कोर्ट पहुंचे और कोर्ट ने IIMC को ही कह दिया कि ये ''Violation of principles of natural justice'' है। इसके अलावा 26 मई के आदेश में कहा गया कि -

- याचिका करने वालों ( छात्रों) को परीक्षा में शामिल होने दिया जाए।

- संस्थान छात्रों के नतीजे जारी करें। (फर्स्ट सेमेस्टर की बात की जा रही है)

- और याचिका करने वालों (छात्रों) को भी दूसरे छात्रों के साथ पढ़ाई करने दी जाए।

image26 मई को दिया गया कोर्ट का आदेश

छात्रों को न्याय के लिए कोर्ट का रुख़ करना पड़ रहा है

क़ानूनी प्रक्रिया के तहत कोर्ट को जो करना चाहिए था वो किया गया, लेकिन संस्थान ने जो किया उसे क्या कहा जाए? जिन छात्रों को लाइब्रेरी के चक्कर लगाने चाहिए थे वे कोर्ट-कचहरी के दरवाजे खटखटा रहे थे, घर से दूर दिल्ली में पढ़ने आए छात्रों को धरना-प्रदर्शन के लिए क्या संस्थान से बाहर निकाल देना, उन्हें पढ़ाई से दूर कर देना उचित है? क्या छात्रों को अब अपनी मांग DG ऑफिस के बाहर खड़े होकर मांगने की बजाए कोर्ट जाना होगा? शिक्षा के संस्थानों का ये 'नया रवैया' कहां तक जायज है? इस पर छात्र आशुतोष कुमार कहते हैं कि ''ये फासिज्म का चरम रूप है, जो शिक्षा के संस्थानों तक पहुंच चुका है, सिस्टम कैसे वर्क करता है उसका ये एक सेट पैटर्न है, जो भी आवाज़ उठाएं उसे तुरंत कुचलने की कोशिश की जाती है और संस्थान मनमाने तरीके से उन पर कार्रवाई करते हैं।''

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मानसिक तनाव से गुज़रे छात्र

वहीं इस मामले पर हमने दूसरी छात्र भावना से भी बात की, भावना कहती हैं कि '' हम लोग 16 फरवरी से लेकर मई के आख़िर तक क्लास से बाहर रहे हैं, तो हमारा पहला सेमेस्टर तो छूट गया, पेपर देने में दिक्कत आई, सेकंड सेमेस्टर का भी हमारा आधा कोर्स निकल चुका है, IIMC एक ट्रेनिंग संस्थान है लेकिन देखिए हमें सबसे वंचित कर दिया गया, इस दौरान हम बहुत मानसिक तनाव में रहे, हम जानते थे कि ग़लती हमारी नहीं है लेकिन फिर भी एक डर था कि कोर्ट क्या फैसला देगा? हम लगातार सोच रहे थे कि IIMC से हमें क्यों निकाला गया, आख़िर कौन सी इतनी बड़ी गलती कर दी थी हमने, मैंने इस बारे में अपने घर पर नहीं बताया था, बार-बार सोच रही थी कि अगर फैसला हमारे हक में नहीं आया तो घर पर क्या बताऊंगी? भविष्य अंधेरे में दिखाई दे रहा था, मेंटल पीस पूरी तरह से डिस्टर्ब हो चुकी थी।''

कोर्ट पहुंचे मामले के दौरान जिस तरह से IIMC पेश आया उसने भी छात्रों को बहुत निराश किया।भावना कहती हैं कि '' IIMC ने काउंटर एफिडेविट देने में 41 दिन का समय लिया ( जिसकी वजह से छात्रों ने नुकसान के और बढ़ने का आरोप लगाया) अगर ये एफिडेविट पहले जमा कर देते तो शायद सब कुछ जल्दी हो जाता और हम कुछ पहले क्लास ज्वाइन कर पाते, वहीं दूसरी सुनवाई के बाद कोर्ट ने हमें एग्ज़ाम देने की इजाजत दे दी लेकिन इन्होंने एग्ज़ाम तो देने दिए लेकिन हमारा रिज़ल्ट रोक दिया और ये जानबूझकर किया गया, अब 17 जुलाई से हमारे फाइलन एग्ज़ाम है लेकिन हमारी क्लास छूट चुकी हैं, हमारे प्रैक्टिकल रह गए हैं ऐसे में क्या करें?

दोबारा क्लास में पहुंचे छात्र

कोर्ट के आदेश के बाद छात्र भले ही क्लास रूम तक पहुंच गए लेकिन दोनों ही छात्रों का आरोप है कि उन्हें पहले दिन क्लास में जाने से रोका गया, जानबूझकर परेशान करने की कोशिश की गई। जबकि छात्र आशुतोष कुमार ने एक बार फिर प्रो. राकेश कुमार उपाध्याय पर उन्हें परेशान करने और जातिसूचक टिप्पणी करने का आरोप लगाया है।

कहां से शुरू हुआ था पूरा मसला?

दरअसल ये मामला 12 जनवरी 2023 से शुरू हुआ था, IIMC में 12 जनवरी को हिंदी पत्रकारिता विभाग में लैब जर्नल में एक स्टोरी (ये स्टोरी IIMC के उन गार्ड्स पर की गई थी जिन्हें एक जनवरी को बिना वेतन दिए निकालने का आरोप है) के पब्लिश न होने पर। आरोप लगा कि प्रो. राकेश कुमार उपाध्याय की मौजूदगी में क्लास में कहा सुनी हुई, अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया और हाथापाई की नौबत आ गई, जिसके विरोध में चार छात्र धरने पर बैठ गए, उसी दिन शाम को IIMC के Director General(DG) संजय द्विवेदी ने छात्रों को निष्पक्ष जांच और डिसिप्लिनरी कमेटी के गठन की बात कह कर धरना ख़त्म करने के लिए मना लिया। लेकिन छात्रों का आरोप है कि कोई कार्रवाई करने की बजाए प्रशासन (संस्थान) उन्हीं के खिलाफ़ खड़ा दिखा, विवाद बढ़ते-बढ़ते इतना बढ़ गया कि आख़िरकार 16 फरवरी को संस्थान ने चारों छात्रों पर कार्रवाई की जो कुछ इस प्रकार थी।

- आशुतोष कुमार -नामांकन तत्काल प्रभाव से रद्द

- भावना- नामांकन तत्काल प्रभाव से रद्द

- चेतना- छात्रावास की पात्रता के लिए अयोग्य ठहराया गया ( हॉस्टल से निकाल दिया)

- मुकेश - चेतावनी दी गई कि भविष्य में आप अनुशासन के मामले में समुचित आचरण रखें।

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जिसके बाद आशुतोष कुमार और भावना ने कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और केस जीतकर दोबारा संस्थान पहुंचे। छात्र तो दोबारा संस्थान में पहुंच गए लेकिन उनकी पढ़ाई का जो नुकसान हुआ है क्या प्रशासन को इसका एहसास है? ये जानने के लिए हमने एक बार फिर IIMC के DGसंजय द्विवेदी को फोन किया लेकिन उन्होंने हमारा फोन नहीं उठाया।

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