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निरंकुश शासकों को डराती है न्यायपालिका की आज़ादी 

इजराएल के नेतनयाहू और उनके ‘बेस्ट फ्रेंड’ की दास्तां यही कहती है।
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Photo : PTI

 यहां लोकतंत्र को तोड़ने का एक और तरीका है। यह कम नाटकीय है लेकिन समान रूप से विनाशकारी है। लोकतंत्र जनरलों के हाथों नहीं बल्कि निर्वाचित नेताओं-राष्ट्रपतियों या प्रधानमंत्रियों के हाथों मर सकता है जो उसी प्रक्रिया को नष्ट कर देते हैं जो उन्हें सत्ता में लाती है। इनमें से कुछ नेता लोकतंत्र को तेजी से खत्म कर देते हैं, जैसा कि हिटलर ने 1933 में जर्मनी में रीचस्टैग आग के बाद किया था। हालाँकि, अक्सर, लोकतंत्र धीरे-धीरे, बमुश्किल दिखाई देने वाले चरणों में नष्ट हो जाता है। (लोकतंत्र कैसे मरते हैं - स्टीवन लेवित्स्की और डैनियल ज़िब्लाट)

तानाशाह द्वारा पैदा किया जाने वाला सबसे बड़ा खतरा हमें उसके विकल्पों की सीमा तक सीमित करना है, न केवल "कैसे जीना है, बल्कि हमारे विकल्पों का उपयोग कैसे करना है" के लिए भी( हिशाम मटर(अमेरिकी मूल के ब्रिटिश-लीबियाई लेखक)
स्वेच्छाचारी लोग - सत्ता की बागडोर संभालने पर - अक्सर एक ऐसी कवायद में जुट जाते हैं, जो उनके उलट पड़ती है। 

विधायिका द्वारा बहुमत के आधार पर न्यायपालिका को कमजोर करने की कवायद 

नेतनयाहू, जिन्हें ‘बीबी’ कह कर सम्बोधित किया जाता है, वह इस सबक को बेहद कठिन समय में सीख रहे हैं जबकि उन्होंने फिलिस्तीनी अवाम के खिलाफ एक जनसंहारात्मक युद्ध छेड़ रखा है - एक ऐसी जंग जिसमें अभी तक बत्तीस हजार से अधिक लोग - जिनका बहुलांश स्त्रियों और बच्चों का है, मारे गए हैं।

वे दिन बीत गए जब वह शोहरत की बुलंदी पर थे जब हमास के अतिवादियों द्वारा इजराएल के अंदर किए गए हमले का बहाना बना कर, उन्होंने गाज़ा पर चढ़ाई की थी और आम नागरिकों के खिलाफ जनसंहार शुरू किया था। आज की तारीख में स्थितियां बदल गयी है, छह माह से अनवरत जारी इस युद्ध ने इजराएल के अवाम में बीबी विरोध की लहर उठी है और पूरे मुल्क के बड़े शहरों में नेतनयाहू के इस्तीफे और ‘इजराएल को बचाने की ’ मांग को लेकर जबरदस्त प्रदर्शन हुए हैं। /1/
इजराएल की आला अदालत द्वारा इस सिलसिले में  दिए गए चंद हालिया फैसलों ने उनकी मुश्किलों को और बढ़ा दिया है।

मालूम हो कि इजराएल की सर्वोच्च अदालत ने न केवल न्यायिक उठापटक की नेतन्याहू की कोशिशों को सिरेसे खारिज कर दिया है /2/
यह बीबी नेतन्याहू का एक ऐसा एजेंडा रहा है जिसके तहत न्यायपालिका को विधायिका के मातहत करने की उन्होंने पुरजोर कोशिश की थी। लोकतंत्र के लिए अहम इन तीनों संस्थानों - संसद, कार्यपालिका और न्यायपालिका, जिनकी अपनी अपनी स्वायत्तता होती है- उस संतुलन को समाप्त करके न्यायपालिका के फैसलों को संसद में बहुमत के आधार पर पलट देने की योजना बनायी थी। और यह कदम उठाते हुए उन्होंने इसके खिलाफ इजराएल की अवाम के बीच उठे व्यापक जन आंदोलन की भी पूरी अनदेखी की थी।
 
आला अदालत ने नेतन्याहू की सरकार को एक दूसरा झटका दिया है वह है अति रूढ़िवादी यहूदी संप्रदाय हारेदिम की सेना में भर्ती को लेकर। /3/

याद रहे इजराएल के निर्माण के समय से ही इस संप्रदाय को सैनिक भरती से बाहर रखा गया है। अपने आप को पूजा पाठ और धार्मिक कार्य तक सीमित  रखने वाले इस समुदाय को सरकार की तरफ से आर्थिक सहायता भी प्रदान की जाती रही है। फिलवक्त समूची इजराएल की आबादी में उनकी तादाद 13 फीसद तक है और उनकी राजनीतिक पार्टियां बीबी की अगुआई वाले दक्षिणपंथी गठबंधन का हिस्सा भी है। इस संप्रदाय को मिली इस विशेष छूट को लेकर शेष इजराएली समाज में जहां युवाओं को अनिवार्य सैनिक भरती का सामना करना पड़ता है - हमेशा ही विरोध की आवाजे़ें बुलंद होती रही है। गाज़ा के बहाने जिस जनसंहारात्मक युद्ध का नेतनयाहू ने आगाज़ किया है, जिसके चलते विगत कुछ समय से अनिवार्य सैनिक सेवा की योजना मे तमाम युवाओ को शामिल होना पड़ रहा है।

जाहिर है आला अदालत के आदेश पर अधिक हीलाहवाली न करते हुए अगर नेतनयाहू की सरकार इस समुदाय के अनिवार्य सैनिक सेवा की कोई योजना बनाती है, तो अल्प बहुमत पर टिकी नेतन्याहू की गठबंधन सरकार अस्थिर भी हो सकती है। इस समुदाय की तरफ से इस बारे में प्रदर्शन भी शुरू हो चुके हैं।

न्यायिक उठापटक की योजना के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खारिज किए जाने के बाद इस बात की संभावना भी बनी है कि आला अदालत उन राजनेताओं के खिलाफ - जिनके नाम पर पहले से ही मुकदमे कायम हुए है - अपनी कार्रवाई शुरू करेगा और फिर उन्हें सज़ा से बचना मुश्किल होगा। याद रखें कि नेतनयाहू को खुद को भी घुसखोरी, विश्वासघात, फरेब / धोखाधड़ी जैसे मुकदमों का सामना करना पड़ सकता है, जो उनके खिलाफ पहले से ही दर्ज हैं । (https://www.nytimes.com/2022/11/03/world/middleeast/netanyahu-corruption-charges-israel.html).

यहा इस बात को भी रेखांकित करना आवश्यक है कि नेतनयाहू ही नही गठबंधन के उनके कुछ साथियों पर अदालतों में मुकदमे चल रहे है और अदालती उठापटक की जिस योजना को नेतनयाहू बनाया था और आगे बढ़ाया था, उसके पीछे यह निजी स्वार्थ भी था कि भले ही अदालत उन्हे सज़ा सुना दे, वह इस कानून के आधार पर अपने आप को बेदाग साबित कर देंगे।

इसमें कोई दो राय नही कि बीबी के लिए यह एक चुनौैतीपूर्ण घड़ी है और इससे वह किस तरह उबर सकेगे, इसकी भविष्यवाणी करना मुश्किल है।

यह एक दिलचस्प संयोग है कि नेतनयाहू को जिस वक्त़ अदालती कार्रवाइयों के चलते बचावात्मक पैंतरा अख्तियार करना पड़ रहा है, वह वही कालखंड है जबकि नेतनयाहू के ‘बेस्ट फ्रेंड' कहे जाने वाले /4/ 

भारत के प्रधानमंत्राी भी न्यायपालिका की स्वतंत्रता के असली असर को समझने के लिए मजबूर हो रहे हैं। /5/ 

सर्वोच्च न्यायालय के कई ऐसे फैसले रहे  हैं, जिसमें निर्द्धद हुकूमत की मोदी सरकार के इरादों को बाधित किया है। मिसाल के तौर पर,- आईटी के संशोधित 2021 के नियमों के तहत गठित फैक्ट चेकिंग यूनिट पर - जिसने प्रेस इन्फर्मेशन ब्यूरो ’ को किसी भी ख़बर को ‘असली या फर्जी घोषित करने का अधिकार दिया था और इस तरह सोशल मीडिया माध्यमों पर कानूनी कार्रवाई के रास्ते आसान कर दिए थे - उस पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थगनादेश। /6/
- पर्यावरण सुरक्षा के नियमों को कमजोर करने वाले पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी कार्यालय ज्ञापनों Office Memorandumको समाप्त कर देना
- मोदी सरकार द्वारा धारा 370 समाप्त करने और जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने के निर्णय की आलोचना के अपराधीकरण को समाप्त करना /7/

इसमें कोई दो राय नहीं कि संविधान के उसूलों और उसके मूल्यों पर टिके रहने की न्यायपालिका की इन ताज़ा मिसालों ने नागरिक आज़ादी की हिमायती तमाम लोगों और संगठनों को नया बल मिला है।

वैसे हाल के समयो में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसलों में सबसे रेखांकित करने वाला फैसला रहा है - मोदी सरकार द्वारा इलेक्टोरेल बाॅड जैसी अपारदर्शी योजना को, जिसने पूजीपतियों और थैलीशाहों के पिछले दरवाजे से सत्ताधारी पार्टी को मालामाल करने का रास्ता आसान किया था - उसे पूरी तरह असंवैधानिक घोषित करना। आला अदालत ने अपने फैसले के तहत स्टेट बैक आफ इंडिया को भी इस बात के लिए मजबूर किया कि वह इससे जुड़े तमाम तथ्य सार्वजनिक दायरे में रखे।

आला अदालत ने इस बात को रेखाकित किया कि बेनामी इलेक्टोरल बाॅंड जारी करने की योजना ‘संविधान की धारा 19/1/ए’ के तहत प्रदत्त सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है’ /8/
 उसने यह भी जोड़ा कि राजनीतिक पार्टियां चुनावी प्रक्रिया में संबंधित इकाइयां हैं और चुनाव में निर्णय लेने के लिए राजनीतिक पार्टियों के फंडिंग की पूरी जानकारी होनी चाहिए। /वही/
चुनावी बाॅंड जारी करने का यह समूचा प्रसंग - जिस पर तभी से सवाल उठे थे, जबसे यह योजना बनी थी - जिन्हें 'स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा स्कैम’ ‘/9/ 

घोषित किया गया है, उसके विवरण बताते है कि किस तरह उसके चंदे का बड़ा हिस्सा सत्ताधारी पार्टी को गया और इतना ही नही घाटे में जाने वाली कंपनियों ने भी भाजपा के खजाने पर खूब पैसे लूटे. ऐसे उदाहरण भी सामने आए कि सरकारी एजेंसियों - ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स ने - वित्तीय तथा अन्य अनियमितताओं के नाम पर कंपनियों पर छापे डाले और जांच शुरू की और जैसे ही इन कंपनियों ने इस अपारदर्शी इलेक्टोरल बांड योजना में चंदा दिया, उनके खिलाफ जारी तमाम जांच बंद हो गयी।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए इस ऐतिहासिक निर्णय के बाद उस पर कथित तौर पर दबाव बनाने के लिए एक शर्मनाक कार्रवाई भी सामने आयी, जब भाजपा के करीबी समझे जाने वाले 600 वकीलों ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखा - जिसमें अनर्गल किस्म के आरोप लगाए गए कि किस तरह ‘वकीलों का एक समूह’ दबाव समूह बनाने की कोशिश कर रहा है ( पत्र का इशारा उन अग्रणी वकीलों की तरफ था, जो तमाम ख़तरोें को उठाते हुए सरकार की अनियमितताओं को बेपर्द करने के लिए, अपने राजनीतिक विरोधियों को प्रताड़ित करने के उसके कदमों के ख़िलाफ़  लिए अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं और संविधान के सिद्धांतों की हिफाजत की पूरी कोशिश करते हैं।)  सबसे विचलित करने वाली बात यह थी कि भाजपा के करीबी वकीलों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को दबाव में लाने की इस कवायद पर भारत के प्रधानमंत्री  ने गोया तत्काल मुहर लगा दी, जब उन्होंने उनके इस विवादास्पद पत्र को अपने टिवटर हैण्डल से टिवट किया और एक तरह से सर्वोच्च न्यायालय पर दबाव बनाने की शर्मनाक कोशिश के पीछे छिपे असली हाथों को उजागर किया /10/

और जैसा कि इस विवादास्पद पत्र को लेकर ऑल इंडिया लाॅयर्स एसोसिएशन फार जस्टिस ।All-India Lawyers’ Association for Justice (AILAJ) की प्रतिक्रिया बताती है कि ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बाधित करने की लिए यह एक छिपी धमकी’ तब सामने आयी है, जब सर्वोच्च न्यायालय अन्य कई संवेदनशील मसलों पर अपना फैसला सुनाने जा रहा है, जो मौजूदा हुकूमत को बेचैन कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर वह ईवीएम के इस्तेमाल, /11/, 
सीएए की संवैधानिकता, विपक्षी नेताओं तथा राजनीतिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी जैसे मसलों पर भी अपनी राय देने जा रहा है।

इधर नेतन्याहू और उधर उनके ‘बेस्ट फ्रेंड'

यह बात सर्वविदित है कि इजराएल के वजीरे आज़म नेतनयाहू और भारत के प्रधानमंत्राी मोदी एक दूसरे की ‘दोस्ती’ की बात करते रहते हैं।

कुछ साल पहले विश्व मैत्री दिवस पर जनाब मोदी को भेजा गया नेतनयाहू का संदेश चर्चित हुआ था, जिसमें उन्होंने  शोले के गीत ‘यह दोस्ती हम नहीं छोडे़गे’ के साथ अपनी बात लिखी थी। /12/

विश्व राजनय में अपनी इस ‘दोस्ती’ का इजहार करने के मौके दोनों में से कोई नहीं छोड़ता है। /13/

अभी हालही में संयुक्त राष्ट्रसंघ की मानवाधिकार परिषद के सामने जब यह प्रस्ताव आया कि इजराएल, जो फिलिस्तीनी जनता के खिलाफ जनसंहारात्मक युद्ध छेड़ा है, उसे हथियार भेजे जाने पर पाबंदी लगायी जाए तो भारत उन गिनेचुने मुल्कों में था, जिन्होंने इस मतदान में हिस्सा नही लिया। /14/ 

यह बात कम अहम नहीं है कि नेतनयाहू और उनके ‘बेस्ट फ्रेड’ एक तरह से एकसाथ मुश्किल मे आते दिख रहे है और उनकी इन ताज़ा मुश्किलों की जड़ आंतरिक ही है, उनके अपने देश की न्यायपालिका, जिसे नियंत्रण में करने की पुरजोर कोशिश दोनों ने की है।

फिलवक्त़ इस बात की भविष्यवाणी नही की जा सकती कि चीज़े आगे कैसे विकसित होंग  लेकिन यह बात साफ है कि यह स्थिति उन्होंने खुद तैयार की है।

यह याद कर सकतेे हैं कि नेतनयाहू का फिर एक बार सत्तारोहण / दिसम्बर 2022/ - जब उन्होंने इजराएल के इतिहास के सबसे बड़े दक्षिणपंथी गठबंधन के सहारे सत्ता संभाली और सत्ता की बागडोर आते ही उनकी पहली अहम कोशिश थी कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर किया जाए, ऐसी व्यवस्था बनायी जाए कि उसके फैसले संसद के अंदर बहुमत के आधार पर पलटे जा सके। और जनतंत्र को कमजोर करनेवाले उनके इस प्रस्तावित कदम के खिलाफ इजराएल के अंदर एक व्यापक जनादोलन खड़ा हुआ, मगर इस पर भी वह नही माने और उन्होंने ऐसा कानून बना भी डाला /जून 2023 /

हम याद कर सकते हैं कि 1 जनवरी 2024 के अपने ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने 8 बनाम 7 वोट से नेतनयाहू की संसद के इस निर्णय को खारिज कर दिया है। और एक तरह से आज नहीं तो कल नेतन्याहू के खिलाफ आपराधिक मामलों में दायर याचिका पर कार्रवाई का के रास्ते को सुगम कर दिया है, जिसके तहत वह जेल भी जा सकते हैं।

गौरतलब है कि नेतनयाहू की सरकार ने जहा न्यायपालिका को कमजोर करने की आमने सामने कोशिश की, मगर मोदी की अगुआई वाली हुकूमत का रूख थोड़ा अलग किस्म का था। न्यायपालिका के साथ खुले में मोर्चा लेने के बजाय उन्होंने परोक्ष तरीको का इस्तमाल किया। मसलन अदालतों मे नियुक्ति के मामले में हस्तक्षेप की या उसमें सरकारी प्रतिनिधि के बैठने की गुंजाइश कायम करना। सरकार ने इस बात का भी खयाल नही किया कि ऐसा कदम न्यायपालिका की स्वायत्तता को बुरी तरह प्रभावित करेगा।

तत्कालीन कानून मंत्री किरण रिजिजू ने न्यायपालिका को लेकर जैसी टिप्पणियां की और उसे दबाव में लाने की असफल कोशिश की वह जगजाहिर है /15/ 

इतना ही ही संविधान की शपथ खाकर अपने पद पर बैठे उपराष्ट्रपति जगदीप धनकर ने जिस तरह संविधान के बुनियादी ढांचे पर सवाल उठाए और न्यायाधीशों की नियुक्ति की स्थापित प्रक्रिया पर आपत्ति दर्ज की, उसने इस बात को उजागर किया कि सरकार के इरादे क्या है /16/

एक साधारण व्यक्ति भी बता सकता है कि इन कोशिशों की जड़ में क्या है ?

दरअसल सत्ता में बैठे हुक्मरानों के लिए न्यायपालिका पर अपने वर्चस्व कायम रखना अब बेहद महत्वपूर्ण हो गया है - भले ही संविधान में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के अलग अलग होने की बात कही गयी है और न्यायपालिका की स्वायत्तता पर जोर दिया गया है।

मौजूदा मोदी हुकूमत की बेचैनी साफ समझ में आती है। विधायिका पर अपने पूर्ण बहुमत के आधार पर वह कार्यपालिका को भी अपने पूरे मातहत करने में सफल हुई है। इतना ही नहीं लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए दूरगामी तौर पर महत्वपूर्ण कार्यपालिका की तमाम संस्थाओं -सीबीआई, ईडी , सीबीआई आदि का एक तरह से ‘हथियारीकरण’ करने के अपन एजेंडा  पर भी वह आगे बढ़ गयी है। बार बार इस संबंध में रिपोर्टें आयी हैं कि किस तरह इन संस्थाओं के जरिए छापे डलवा कर, विपक्षी पार्टी के नेतओं को प्रताडित करके विपक्ष की सरकारों को गिराने में तथा अपने पसंद की हुकमत वहां कायम करने में भाजपा सफल हुई है। 
इतना ही नहीं जनतंत्रा का प्रहरी समझे जाने वाले लोकतंत्र के चैथे खंभे मीडिया का भी एक तरह से गोदीकरण करने में वह काफी आगे बढ़ गयी है। 2014 के बाद आलम यह है कि मुख्यधारा का मीडिया सरकार को नही बल्कि विपक्ष से सवाल पूछता है और आपसी नफरत को बढ़ावा देने की केन्द्र सरकार के कदमो का शह देता है।

मोदी हुकूमत अच्छी तरह जानती है कि जनतंत्र का यह तीसरा खम्भा - अर्थात न्यायपालिका - अभी भी उसके नियंत्रण  मे पूरी तरह नही है। और जब तक ऐसा नियंत्रण कायम नही होता है, यह संभावना हमेशा बनी रहेगी कि वह संविधान को कमजोर करने और हिन्दू राष्ट में प्रवेश करने के उसके एजेंडा  को बाधित कर दे।

वैसे इस परिस्थिति में भी वह किस तरह चुपचाप तरीके से आगे बढ़ रहा है, इसे जानना हो तो हम जानेमाने वकील और कानूनी अध्येता डा मोहन गोपाल के पिछले साल के वक्तव्य को सुन सकते हैं जिसमें वह बताते हैं कि किस तरह भाजपा के सत्तारोहण के साथ ‘ऐसे न्यायाधीशों की संख्या में उछाल आया है जो कानून के उदगम को संविधान के दायरे के बाहर धर्म में ढूंढते  हैं'No of Theocratic Judges Who Find Source Of Law In Religion Than Constitution has Increased:  
"दरअसल मोदी की अगुवाई वाले शासन में जिस तरह परम्परावादी/थेअक्रटिक न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि हुई है, वह एक तरह से दो हिस्सों वाली रणनीति का हिस्सा है जिसका मकसद 2047 तक भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना है। रणनीति यही है कि संविधान को पलटा न जाए बल्कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा ही उसे हिन्दू दस्तावेज के तौर पर व्याख्यायित किया जाए।

पहला कदम है ऐसे जजों की नियुक्ति जो संविधान से परे देखना चाहते हैं और दूसरा चरण तब शुरू होगा जब न्यायाधीश अपने फैसलों के पीछे के स्रोतों को उजागर करेंगे और यह सिलसिला हिजाब वाले फैसले से शुरू हुआ है। ..

हम धीरे धीरे ऐसी अवस्था तक पहुंच सकते है जहां हम कह सकें कि उसी संविधान के तहत - जैसे कि सर्वोच्च न्यायालय ने व्याख्यायित किया है - भारत एक हिन्दू धर्मतंत्रा है ; इस तरह विचार यह है कि न्यायपालिका का अपहरण किया जाए और एक हिन्दू धर्मतंत्र को स्थापित किया जाए "/वही/

उनके मुताबिक न्यायपालिका की स्वायत्तता को बनाए रखने और कार्यपालिका के उसमें हस्तक्षेप को रोकने के इस संघर्ष के दूरगामी परिणाम होंगे, जिसका यहां के जनतंत्र की अंतर्वस्तु पर प्रभाव पड़ेगा।
एक ऐसी प्रष्ठभूमि में जबकि संविधान की आत्मा पर ही नियंत्रण कायम करने की कोशिशे परवान चढ़ी है, सत्ताधारी जमात के लिए एक पीठासीन जज - जो कुछ साल में ही सर्वोच्च न्यायायल के प्रमुख पद पर विराजमान होंगी /18/ 
उन्होंने एक सार्वजनिक व्याख्यान में प्रगट बातें कतई पसंद नही आयी होगी। सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश नागरत्थ्ना - जिन्होंने कुछ माह पहले बिल्किस अपराधियों को जेल की सजा सुनायी थी और उन्हें  नीचली अदालत द्वारा दी गयी छूट को खारिज किया था और नोटबंदी पर आए फैसले में वह अल्पमत में रहने के बावजूद उन्होंने तमाम लोगों की बात को जुबां दी। उन्होंने अपने हालिया व्याख्यान में साफ साफ कह दिया कि नोटबंदी ऐसी कवायद थी जिसके तहत काले पैसे को सफेद में बनने की योजना को अमली जामा पहनाया गया। /19/

ऐसी बातें जो न्यायपालिका के पदासीन जज द्वारा चुनावों के ऐन मौके पर कही जाए तो सत्ताधारी जमात को अधिक चुभती है।

Notes :
1.https://www.telegraphindia.com/world/protests-against-israeli-prime-minister-benjamin-netanyahu-intensify-as-ceasefire-talks-resume/cid/2010367 ; https://www.thestandard.com.hk/breaking-news/section/6/214949/Demonstrators-vow-to-'save-Israel'-from-Netanyahu-in-new-protests
2. https://www.aljazeera.com/news/2024/1/1/israels-supreme-court-strikes-down-judicial-overhaul-law
3. https://www.washingtonpost.com/world/2024/03/29/israel-haredim-high-court-military-service/
4. https://twitter.com/narendramodi/status/1294573318926766081?lang=en ; https://www.hindustantimes.com/india-news/on-friendship-day-israel-tweets-yeh-dosti-hum-nahi-todenge-on-pm-modi-netanyahu-friendship/story-JueAoARDxjIhSNUE1EyRCO.html)
5.  https://www.livelaw.in/top-stories/judiciary-in-india-has-become-majoritarian-dushyant-dave-247813 ; https://thewire.in/law/rising-concerns-about-indias-judiciary; Theocratic Judges Who Find Source Of Law In Religion Than Constitution Increased: Dr Mohan Gopal, https://www.youtube.com/watch?v=5Eduw62pyJI ; https://www.thehindu.com/opinion/lead/an-unfortunate-ideological-shift-in-the-judiciary/article38083370.ece
6. https://www.ndtv.com/india-news/supreme-court-puts-on-hold-centres-notification-on-its-fact-check-unit-5281535
7. https://thesouthfirst.com/pti/sc-upholds-right-to-criticise-state-says-greeting-pakistan-on-i-day-is-not-a-crime/
8. https://www.hindustantimes.com/india-news/pm-modi-draws-krishna-sudama-analogy-at-up-event-what-was-he-referring-to-101708353162402.html
9. https://www.tbsnews.net/world/electoral-bond-biggest-scam-world-will-cost-bjp-heavily-economist-parakala-prabhakar-817891
10.https://thewire.in/law/classic-playbook-of-autocratic-lawyers-decry-modi-backed-letter-on-judiciary
11. https://www.nationalheraldindia.com/national/supreme-court-serves-notice-to-eci-on-plea-to-tally-every-evm-vote-against-vvpat-slips
12. https://www.hindustantimes.com/india-news/on-friendship-day-israel-tweets-yeh-dosti-hum-nahi-todenge-on-pm-modi-netanyahu-friendship/story-JueAoARDxjIhSNUE1EyRCO.html
13. https://www.theguardian.com/world/2023/oct/31/india-pro-israel-narendra-modi-bjp-government
14. https://www.thehindu.com/news/national/india-abstains-at-human-rights-council-on-vote-calling-ceasefire-in-gaza-and-for-arms-embargo-against-israel/article68033720.ece

15. https://theprint.in/judiciary/rijiju-writes-to-cji-wants-panels-with-govt-reps-to-advise-collegium-on-judges-appointments/1317404/
16. https://thewire.in/rights/what-is-the-basic-structure-of-jagdeep-dhankhar
17 https://www.youtube.com/watch?v=5Eduw62pyJI
18. https://www.primepost.in/justice-nagarathnamma-to-be-cji-in-2027/
19. https://www.thehindu.com/news/national/demonetisation-was-a-way-of-converting-black-money-into-white-justice-b-v-nagarathna/article68009833.ece

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