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पाकिस्तान के आईने में भारत की छवि

अगर भारत हिंदू राष्ट्र बना तो इसकी दशा पाकिस्तान से भी ज़्यादा ख़राब होगी। यह न केवल दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यकों बल्कि सभी बौद्धिक समुदाय के लिए भी विनाशकारी होगा।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : BT

पाकिस्तान की मानवाधिकार कार्यकर्ता तथा मशहूर श़ायरा फ़हमीदा रियाज़ ने पाकिस्तान में सैनिक तानाशाही तथा धार्मिक कट्टरपंथ के ख़िलाफ़ संघर्ष करने के कारण भारत में सात वर्ष निर्वासन में बिताए। 2018 में उनका लाहौर में निधन हो गया। उनकी मशहूर नज़्म है-

तुम बिलकुल हम जैसे निकले,

अब तक कहां छिपे थे भाई।

यह नज़्म आज के दौर में भारत-पाकिस्तान दोनों के लिए इतनी मौजू है कि मैं इस नज़्म को पूरा लिखने का लोभसंवरण नहीं कर पा रहा हूं।:-

तुम बिलकुल हम जैसे निकले

अब तक कहां छिपे थे भाई

वो मूर्खता, वो घामड़पन

जिसमें हमने सदी गंवाई

आखिर पहुंची द्वार तुम्‍हारे

अरे बधाई, बहुत बधाई।

प्रेत धर्म का नाच रहा है

कायम हिंदू राज करोगे ?

सारे उल्‍टे काज करोगे !

अपना चमन ताराज़ करोगे !

तुम भी बैठे करोगे सोचा

पूरी है वैसी तैयारी

कौन है हिंदू, कौन नहीं है

तुम भी करोगे फ़तवे जारी

होगा कठिन वहां भी जीना

दांतों आ जाएगा पसीना

जैसी तैसी कटा करेगी

वहां भी सब की सांस घुटेगी

माथे पर सिंदूर की रेखा

कुछ भी नहीं पड़ोस से सीखा !

क्‍या हमने दुर्दशा बनाई

कुछ भी तुमको नजर न आयी?

कल दुख से सोचा करती थी

सोच के बहुत हंसी आज आयी

तुम बिलकुल हम जैसे निकले

हम दो कौम नहीं थे भाई।

मश्‍क करो तुम, आ जाएगा

उल्‍टे पांव चलते जाना

ध्‍यान न मन में दूजा आए

बस पीछे ही नज़र जमाना

भाड़ में जाए शिक्षा-विक्षा

अब जाहिलपन के गुन गाना

आगे गड्ढा है यह मत देखो

लाओ वापस, गया ज़माना

एक जाप सा करते जाओ

बारंबार यही दोहराओ

कैसा वीर महान था भारत

कैसा आलीशान था-भारत

फिर तुम लोग पहुंच जाओगे

बस परलोक पहुंच जाओगे

हम तो हैं पहले से वहां पर

तुम भी समय निकालते रहना

अब जिस नरक में जाओ वहां से

चिट्ठी-विट्ठी डालते रहना।

फ़हमीदा रियाज़ की ये नज़्म इस बात की गवाही देता है, कि पाकिस्तान, जिसकी जीडीपी अस्सी के दशक तक करीब-करीब भारत के बराबर थी। आज धार्मिक कट्टरता तथा घोर सामाजिक पिछड़ेपन के कारण उसकी गिनती दुनिया के निर्धनतम तथा ख़तरनाक देशों में हो रही है। मेरे एक मित्र अहमद भाई जो करांची में कस्टम विभाग में बड़े अधिकारी हैं तथा लेखक और शायर भी हैं, उनका परिवार 1947 में भारत-पाकिस्तान के बीच विभाजन में पाकिस्तान चला गया, लेकिन उनका पूरा ननिहाल भारत के पटना ही में है। उनसे मेरी फेसबुक के माध्यम से ही बात हो पाती है, वे अक्सर अपना यह दुख बयां करते हैं कि दोनों देशों की समान संस्कृति और भाषा होने के बावज़ूद न एक-दूसरे से लोग मिलजुल सकते हैं और न व्यवहार-पत्रव्यवहार ही कर सकते हैं। एक-दूसरे के देशों का वीजा मिलने में बहुत सी कठिनाइयां आती हैं।

खैर……इस मुद्दे को हम आगे के लिए छोड़ते हैं। पिछले दिनों बातचीत करने में उन्होंने एक दिलचस्प बात बताई कि पाकिस्तान के वर्तमान आर्थिक संकट के पीछे वहां लंबे समय से चल रही धार्मिक कट्टरता ही अहम है। वहां पर इस समय 250रुपये की 250 ग्राम की एक ब्रेड, 300रुपये के एक दर्जन अंडे, 250रुपये लीटर दूध, 800रुपये किलो सेब, 500रुपये दर्जन केले है। वे कहते हैं कि इन दामों से यह नहीं समझना चाहिए कि वहां पर इन चीज़ों की कमी है। पाकिस्तान में फलों का उत्पादन बहुत होता है, इसके अलावा अफ़ग़ानिस्तान से भी फल और मेवे पाकिस्तान में आसानी से पहुंच जाते हैं। यहां पर पोल्ट्री फॉर्म और डेयरी उत्पादन भी बहुत विकसित है, इस सबके बावज़ूद अगर वहां दाम बहुत ज़्यादा है, तो इसके पीछे वहां की सेना है, क्योंकि वहां के सभी उत्पाद के थोक व्यापार पर सेना का वर्चस्व कायम है। सेना पर वहां कोई प्रश्न नहीं उठा सकता,यहां तक कि पाकिस्तानी सिनेट में भी इस पर कोई बहस नहीं हो सकती।

1947 में जब धर्म के आधार पर पाकिस्तान बना, तो पाकिस्तान को पूर्णतया इस्लामी देश बनाया गया, लेकिन जवाहर लाल नेहरू की दूरदर्शिता के कारण भारत में धर्मनिरपेक्षता की नीति लागू हुई, जिसके कारण देश उस धार्मिक कट्टरता से बच गया, जिसे पाकिस्तान आज भी झेल रहा है। हालांकि 1947 में ही संघ परिवार ने पाकिस्तान की तरह भारत को भी धर्म आधारित हिंदू राष्ट्र में बदलने की पूरी कोशिश की, लेकिन वे उस समय अपने उस मिशन में असफल रहे। आज वे अपने उस दिशा की ओर पूरी सफलता और तीव्रता के साथ बढ़ रहे हैं जो पूरे भारत के लिए एक ख़तरे की घंटी है। कोई भी धार्मिक राष्ट्र पहले अपने कुछ काल्पनिक शत्रुओं की तलाश करता है, जो निश्चित रूप से वहां के अल्पसंख्यक होते हैं। पाकिस्तान में शुरूआत में वहां के अल्पसंख्यक जिसमें हिंदू और सिख संप्रदाय के लोग थे उनको निशाना बनाया गया। आज वहां के हालात ये हैं, कि पाकिस्तान में मुसलमानों के ही एक संप्रदाय अहमदिया और शिया लोगों को भी गैर इस्लामी मान लिया गया। उनके मस्ज़िदों में बम विस्फोट हुए और उनकी हत्याएं भी की गईं जो आज भी हो रही हैं। पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरता जिआ-उल-ह़क के शासनकाल में तेज़ी से उभरी, जब उन्होंने पाकिस्तान का पूर्ण रूप से इस्लामीकरण किया।

नब्बे के दशक में जब रूस ने अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़ा कर लिया, तब रूसियों को अफ़ग़ानिस्तान से हटाने के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद से पाकिस्तान में ढेरों उग्रवादी इस्लामी चरमपंथी संगठनों को धन और हथियार दिए, जिससे कि रूस से लड़ सकें। रूस के अफ़ग़ानिस्तान से निकलने के बाद इन चरमपंथी संगठनों ने पाकिस्तान को ही निशाना बनाना शुरू कर दिया। आज पाकिस्तान को तालिबान-पाकिस्तान (टीडीपी) नामक संगठन अफ़ग़ानिस्तान के तालिबान की तरह का एक कट्टर इस्लामी देश बनाने के लिए हथियारबंद संघर्ष कर रहा है, जिसने हज़ारों पाकिस्तानी सैनिकों को भी मार डाला है और उनकी ये गतिविधियां आज भी जारी हैं। इस संबंध में एक कहावत पाकिस्तान पर बिलकुल सटीक लागू होती है, कि "अगर आप बाघ पर सवारी करेंगे, तो अंत में बाघ आप ही को काटेगा।"

पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरपंथ ने एक बड़ा आर्थिक संकट पैदा कर दिया। वहां पर विदेशी निवेशक अपनी पूंजी नहीं लगा रहे हैं। यहां तक कि वहां के बड़े उद्योगपति अपनी पूंजी दुबई, कतर और सऊदी अरब जैसे देशों में स्थानांतरित कर रहे हैं। पढ़े–लिखे लोग जिसमें आईटी, मेडिकल और इंजीनियरिंग सेक्टर के लोग प्रमुख हैं, प्रतिदिन हज़ारों की संख्या में पाकिस्तान छोड़कर जा रहे हैं।

आज अगर पाकिस्तान अमेरिका का आर्थिक रूप से ग़ुलाम बन गया है, तो इसके पीछे पाकिस्तान में उभरी व्यापक धार्मिक कट्टरता भी जिम्मेदार है। पाकिस्तान में व्यापक रूप से मानवाधिकारों का हनन हो रहा है। पत्रकारों, सिविल सोसायटी के लोगों का व्यापक रूप से दमन हो रहा है। विरोधी विचारों वाले लोग वहां पर गायब कर दिए जाते हैं। उनका कुछ भी पता नहीं चलता है। वहां पर लोकतांत्रिक सरकार होने के बावज़ूद हज़ारों कार्यकर्ता जेल में बंद हैं, जिसमें स्त्री और बच्चे सभी शामिल हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, "पाकिस्तान में विरोधी राजनीतिक कार्यकर्ताओं और नेताओं के बच्चों तक का अपहरण कर लिया जाता है और इस शर्त पर रिहा किया जाता है कि वे अपने राजनीतिक दलों से त्यागपत्र दे दें, नहीं तो उनकी हत्या कर दी जाएगी।" ऐसी राजनीतिक हत्याएं पहले भी हुई हैं और आज भी हो रही हैं।

आज हम देखते हैं कि पाकिस्तान को धार्मिक कट्टरता ने तबाह कर दिया और अब हम इस बात पर गौर करेंगे कि इस उदाहरण से हमें क्या सीखना चाहिए? पाकिस्तान में जिआ-उल-हक़ के शासन में अस्सी के दशक में ईशनिंदा कानून पारित किया गया, जिसमें किसी भी व्यक्ति को ईशनिंदा का आरोपी ठहराकर फांसी दी जा सकती है। इसके चलते ढेरों निर्दोष लोगों को फांसी पर चढ़ाया गया या फिर खुलेआम उनकी हत्या कर दी गई। 2011 में पाकिस्तान में पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या उन्हीं के गार्ड ने इसलिए कर दी थी, क्योंकि वे इस कानून के विरोधी थे। जब उनका हत्यारा ज़मानत पर जेल से रिहा हुआ, तो हज़ारों लोगों ने फूल-माला पहनाकर उसका स्वागत किया। हम याद करें, भारत में जब एक मुस्लिम युवक की पीट-पीटकर हत्या कर देने के आरोपी जेल से ज़मानत पर बाहर आए, तो उनका भी भाजपा के केंद्रीय मंत्री सहित बहुत से भाजपा कार्यकर्ताओं ने फूल-मालाओं से स्वागत किया।

इसी तरह गुजरात में एक गर्भवती मुस्लिम महिला बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार के बारह आरोपी जिन्हें अजीवन कारावास की सज़ा मिली थी, उन्हें कथित अच्छे आचरण के कारण बहुत जल्दी ही जेल से रिहा कर दिया गया था, तब हज़ारों भाजपा समर्थकों ने फूल-मालाओं से उनका स्वागत किया। अभी कुछ वर्ष पहले पंजाब में भी ईशनिंदा जैसे कानून को बनाने की मांग उठी थी। इस आईने में हम देख सकते हैं कि अगर भारत हिंदू राष्ट्र बना तो इसकी दशा पाकिस्तान से भी ज़्यादा ख़राब होगी। यह न केवल दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यकों बल्कि सभी बौद्धिक समुदाय के लिए भी विनाशकारी होगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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