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भारत न्याय यात्रा और न्याय में विश्वास बहाल करने की चुनौती

सरकार की विधायिका के ज़रिये जवाबदेही में कमी एक प्रकार का अन्याय है।
India

कांग्रेस पार्टी के नेता और सांसद राहुल गांधी के नेतृत्व में मणिपुर से मुंबई तक भारत न्याय यात्रा 14 जनवरी 2024 को शुरू होने वाली है। यह यात्रा संविधान के ऊंचे लक्ष्यों में अपने विश्वास को जताने के लिए आम लोगों को एकजुट करने का वादा करती है: इसका विचार सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय है। यह लोगों की एकता और एकजुटता को तोड़ने वाले तथा उनमें बाधा उत्पन्न करने वाले विभाजनकारी सांप्रदायिक नेरेटिव के बिल्कुल विपरीत है।

भारत के विचार में न्याय

यह साफ है कि यात्रा न्याय को अपना केंद्रीय मुद्दा बनाने की उम्मीद करती नज़र आती है, जिसके लिए कांग्रेस पार्टी ने घोषणा की है कि यह अपनी यात्रा मणिपुर में शुरू करेगी जो अपने आप में महत्वपूर्ण है। मणिपुर में, लोगों के अधिकारों को कुचल दिया गया है। इस गर्मी के मौसम में अचानक हिंसा भड़कने पर देश की संवैधानिक मशीनरी मणिपुर के लोगों की रक्षा करने में विफल रही है। इसलिए, यात्रा के शुरुआती बिंदु में यह आशा पैदा करने की क्षमता है कि सार्वजनिक चर्चा साझा चिंताओं पर केंद्रित हो। यह इस धारणा को मजबूत कर सकती है कि भारत में हर कोई अपनी आस्था या किसी अन्य पहचान की परवाह किए बिना न्याय का हक़दार है। जब बहुसंख्यकों की आस्था को लेकर प्रचार और उन्माद पैदा किया जाता है, तो न्याय या न्याय के इर्द-गिर्द लोगों की लामबंदी भारत की समग्र संस्कृति और बहुलवाद में विश्वास पैदा कर सकती है।

व्यवहार में न्याय

यात्रा की घोषणा लोगों की कल्पना को ज़िंदा कर सकती है। यह न्याय के स्थायी सिद्धांतों में से एक को व्यवहार में लाने के लिए उत्प्रेरक बन सकती है, विशेष रूप से 1970 के दशक के जॉन रॉल्स के न्याय के सिद्धांत को मजबूत कर सकती है। अमेरिकी राजनीतिक सिद्धांतकार ने एक सकारात्मक नेरेटिव को गति दी जो शिक्षा, आजीविका, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य प्राथमिक जरूरतों के जरिए वास्तविक जीवन की पहुंच के संदर्भ में स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और न्याय के आदर्शों को प्रस्तुत करता है। व्यवहार में न्याय का विचार सामाजिक और राजनीतिक ताकतों को गति प्रदान करता है जो दुनिया भर में शासन को प्रभावित करना जारी रखते हैं।

सार्वजनिक तर्क को मज़बूत करना

भारत न्याय यात्रा ने आज़ादी की आंदोलन पर विचार-विमर्श की एक प्रक्रिया की शुरूआत की है। महात्मा गांधी ने दांडी मार्च और अपने अन्य आंदोलनों को विदेशी शासन और अस्पृश्यता और पितृसत्ता जैसे घरेलू अन्याय के खिलाफ भारतीय लोगों की लामबंदी के रूप में वर्णित किया था। उनका दृढ़ विश्वास था कि दमन के दोनों रूपों से लड़ने और उन्हें उखाड़ फेंकने के लिए हिंसा की नहीं, बल्कि सार्वजनिक तर्क को मजबूत करने की जरूरत है।

उन्होंने कहा था कि, "शांति हथियारों के टकराव से नहीं आएगी, बल्कि न्याय से आएगी।" भारत न्याय यात्रा, भारत जोड़ो यात्रा की तरह, सार्वजनिक तर्क को जगाने का एक रूप है। यह लोकतांत्रिक तरीके से लोगों तक पहुंचने का एक माध्यम है। इसके लिए लोगों को राजनीतिक, सामाजिक या आर्थिक, सभी रूपों में न्याय के उनके संवैधानिक अधिकार के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए और फिर लोकतांत्रिक तरीकों से इसे व्यवहार में लाने का प्रयास किया जाना चाहिए। 

बीआर अंबेडकर के विचार

बीआर अंबेडकर ने "शिक्षित करो, आंदोलन करो और संगठित हों" का जोशपूर्ण नारा दिया था, जिस पर प्रोफेसर अमर्त्य सेन और जीन ड्रेज़ ने अपनी पुस्तक, एन अनसर्टेन ग्लोरी: इंडिया एंड इट्स कॉन्ट्राडिक्शन्स में विस्तार से चर्चा की है। वे लिखते हैं, “सामाजिक और आर्थिक रूप से भेदभाव झेलने वाले अंबेडकर (जो 'आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र' के साथ जुड़ाव की कमी के लिए भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं को चुनौती देने से नहीं कतराते थे) ने इस बात पर जोर दिया था कि हमारे पास विश्वास खोने के बजाय आगे बढ़ने के कारण हैं, कि लोगों को अन्याय के खिलाफ 'शिक्षित करो, आंदोलित करो और संगठित करो'।"

लेखक आगे कहते हैं: “लेकिन, जैसा कि अम्बेडकर ने तर्क दिया था कि, संगठन और आंदोलन अच्छे और सूचित तर्क पर आधारित होना चाहिए। उनके आह्वान में पहला आइटम, 'शिक्षित होना या करना है', जो यहां महत्वपूर्ण है... हम अंबेडकर के सूचित और तर्कसंगत सार्वजनिक जुड़ाव के दृष्टिकोण से बहुत प्रेरित हैं। इसका महत्वपूर्ण कार्यभार 'नया भारत' ढूंढना ही नहीं है, बल्कि इसे बनाने में योगदान देना है।

इसलिए, भारत न्याय यात्रा एक नए भारत के निर्माण में सार्वजनिक तर्क पर आधारित आशा के मामले में एक साहस का प्रतिनिधित्व करती है, जहां न्याय आजादी के आंदोलन के दौरान तैयार किए गए भारत के दृष्टिकोण को कायम रखेगा, जिसे बहुसंख्यकवादी मुहिम और ध्रुवीकरण की राजनीति नुकसान पहुंचा रही है।

असहमति का गला घोंटना

नव-उदारवाद के इस युग में, आर्थिक संसाधनों के बड़े हिस्से पर क्रोनी पूंजीपतियों के कब्ज़ा करने की कोशिश से अन्याय बढ़ना स्वाभाविक है। बढ़ती असमानताओं के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय एक कल्पना बनकर रह गया है। बढ़ती और ऊंची बेरोजगारी दर और महंगाई/मुद्रास्फीति ने लाखों भारतीयों के लिए अन्याय का माहौल बनाया है, विशेष रूप से युवाओं की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया है।

सत्तारूढ़ शासन, साठगांठ वाले पूंजीवाद का अनुसरण कर रहा है, जिससे लड़ने का उसने वादा किया था और असहमति को दबा रहा है। विशेष रूप से, संसद सहित अपनाए जा रहे आर्थिक मॉडल के खिलाफ उठाए गए सवालों को दबाया जा रहा है। हाल ही में लोकसभा और राज्यसभा से रिकॉर्ड 146 सांसदों को निलंबित कर दिया गया। उन्होंने हाल ही में संसद सुरक्षा में हुई चूक पर गृह मंत्री से बयान की मांग करते हुए संसद में विरोध प्रदर्शन किया था।

वे विपक्षी नेता विधायिका के रूप में कार्य कर रहे थे: जो चाहते थे कि सत्ता में रहते होने वाली घटनाओं के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराना चाहिए।

सरकार की तरफ से विधायी तौर पर जवाबदेही की कमी एक प्रकार का अन्याय है। भारत न्याय यात्रा सरकार को जवाबदेह बनाकर न्याय की शुरुआत करने के लिए एक परिवर्तनकारी आंदोलन बन सकती है - लेकिन इसे सार्वजनिक तर्क को मजबूत करने के माध्यम से ही किया जा सकता है।

लेखक, भारत के राष्ट्रपति केआर नारायणन के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटि के रूप में काम कर चुके हैं। व्यक्त विचार निजी हैं। 

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Bharat Nyaya Yatra and Challenge of Restoring Faith in Justice

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