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भारत को म्यांमार पर अपनी हद पर डटे रहना होगा

वैश्विक भूराजनीतिक संघर्ष से म्यांमार में पैदा होने वाली अस्थिरता और अशांति का भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की सुरक्षा पर गंभीर असर पड़ेगा।
भारत

म्यांमार में आंतरिक स्थिति लगातार खराब हो रही है। वहां से बड़ी संख्या में लोग सीमा लांघकर भारत आ रहे हैं। इस बीच केंद्र सरकार ने बिल्कुल सही कदम उठाते हुए मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में एक सलाहकार भेजा है।

म्यांमार में सुरक्षाबलों के हाथों जान गंवाने वाले प्रदर्शनकारियों की संख्या में बढ़ोत्तरी होने की रिपोर्टों के बीच, म्यांमार प्रशासन ने मुख्य शहर यांगून के कई और इलाकों में मार्शल लॉ लगा दिया है। इससे पहले प्रशासन ने चीनी नागरिकों के स्वामित्व वाले कुछ कारखानों को जलाए जाने, फिर 2000 लोगों द्वारा आग बुझाने वाली गाड़ियों को घटनास्थल पहुंचने से रोकने की घटना के बाद, यांगून के उपनगरीय इलाकों में मार्शल लॉ लगाया था। 

चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने एक संपादकीय में आरोप लगाया कि "हिंसक हमले बहुत संगठित और योजना बनाकर किए गए थे।" संपादकीय में इशारों-इशारों में कहा गया कि म्यांमार में हो रहे प्रदर्शन और चीनी नागरिकों के प्रतिष्ठानों पर हुई आगजनी को विदेश से समन्वित किया जा रहा है। बीजिंग ने "बर्मा ह्यूमन राइट्स नेटवर्क" के कार्यकारी निदेशक और संस्थापक के ट्विटर अकाउंट को म्यांमार में फैली अशांति को उकसाने के लिए जिम्मेदार ठहराया। यह अकाउंट 2015 से लंदन से संचालित हो रहा है।

BHRN का ब्रिटिश गुप्तचर संस्थाओं से संबंध माना जाता है। सोशल मीडिया के ज़रिए फैलाई जाने वाली रंगीन क्रांति के दोहराव वाला तरीका यहां भी सामने आ रहा है। हाल में हॉन्गकॉन्ग, थाईलैंड और बेलारूस में रंगीन क्रांति की कोशिशें हुई थीं। पिछले कुछ हफ़्तों से BBC, रेडियो फ्री एशिया (अमेरिका से वित्तपोषित), वॉयस ऑफ अमेरिका समेत कई मीडिया संस्थान म्यांमार के मुद्दे पर अपनी सक्रियता बढ़ा चुके हैं और यांगून में मौजूद युवा क्रांतिकारियों से संपर्क-समन्वय बनाए हुए हैं।

ग्लोबल टाइम्स ने बताया कि अमेरिका ने चीन से म्यांमार सेना की निंदा करने और उनके खिलाफ़ प्रतिबंध लगाने के लिए कहा था। लेकिन "चीन निश्चित तौर पर यह प्रस्ताव नहीं मानेगा। असल में आसियान का कोई भी देश म्यांमार के प्रति अमेरिका और पश्चिमी देशों की तरह का रवैया नहीं अपना सकता। संयोग से म्यांमार के पड़ोसी देशों ने भी व्यवहारिक कारणों से चीन के जैसा रवैया अपना रखा है। यह किसी भी देश की स्वतंत्रता और स्वायत्ता के नैतिक आदर्श का पालन भी करता है। पश्चिम के पास उनपर उंगली उठाने का कोई अधिकार नहीं है। पश्चिमी देश अपना शिकंजा मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।"

रूस का विश्लेषण भी कहता है कि म्यांमार में अस्थिरता उकसाने की पश्चिमी देशों की मंशा 'कुटिल' है और इसका मक़सद चीन के लिए "समस्याएं पैदा करना है।" स्पुतनिक में एक टिप्पणी में लिखा गया, "पश्चिमी देशों को लगता है कि म्यांमार के साथ चीन के रणनीतिक आर्थिक हितों के चलते चीन को निशाना बनाया जा सकता है। मतलब अगर चीन म्यांमार की निंदा नहीं करता, तो म्यांमार के प्रदर्शनकारियों को चीन के प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। अगर चीन निंदा करता है तो उसके म्यांमार के सैनिक शासन के साथ रिश्ते खराब हो जाएंगे।"

"बाइडेन प्रशासन ने यह बेहद साफ़ कर दिया है कि अमेरिका, चीन के साथ भूराजनीतिक शत्रुता अब ट्रंप प्रशासन से भी आगे ले जाने वाला है। एक वैश्विक ताकत के तौर पर चीन के उभार को वाशिंगटन कुचलना चाहता है। अमेरिका और उसके पश्चिमी मित्र देशों का आंकलन है कि म्यांमार को निशाना बनाकर, चीन द्वारा अपने वैश्विक व्यापार और आर्थिक विस्तार के लिए बनाए जा रहे नए रेशम मार्ग के एक अहम स्तंभ को नुकसान पहुंचाया जा सकता है।"

चीन की सीमा पर स्थित म्यांमार में अशांति पश्चिमी देशों के हित में है। इससे चीन के युनान की बंगाल की खाड़ी के ज़रिए, हिंद महासागर तक पहुंच को रोका जा सकता है। रूस और चीन के आसपास के देशों में अस्थिरता पैदा करना अमेरिका की रोकथाम नीति का अहम हिस्सा है। यहां मक़सद रंगीन क्रांति को उकसाना, उसके बाद स्थानीय कठपुतलियों के सहारे अमेरिका समर्थक सरकार का गठन करना है, ताकि चीन और रूस को एक टकराव के चक्र में घेरा जा सके। जॉर्जिया और यूक्रेन में रंगीन क्रांति को सफलता मिली है। पश्चिमी गुप्तचर संस्थाओं द्वारा हॉन्गकॉन्ग और बेलारूस में सत्ता प्रतिष्ठानों को नुकसान पहुंचाने के लिए अस्थिरता फैलाने की कोशिशें हाल में असफल हुई हैं। थाईलैंड और म्यांमार में कोशिशें फिलहाल जारी हैं।

जहां तक भारतीय नज़रिए की बात है, तो यहां म्यांमार की भूराजनीति अहम नहीं है, बल्कि यहां एक ऐसा पड़ोसी अहमियत रखता है जिसकी भारत के साथ 1600 किलोमीटर लंबी सीमा है। एक भूराजनीतिक संघर्ष से म्यांमार में पैदा होने वाली अस्थिरता से भारत के पूर्वोत्तर में गंभीर नतीज़े होंगे। पूर्वोत्तर में रहने वाली जनजातियों के म्यांमार के सीमावर्ती इलाकों में रहने वाली जनजातियों के साथ ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और नृजातीय संबंध हैं।

म्यांमार में अस्थिरता फैलने और राज्य की शक्ति असफल होने से बड़ी संख्या में लोगों के भारत पलायन करने की संभावना है। हर कीमत पर इसे रोका जाना चाहिए। ग्लोबल टाइम्स ने इसके बारे में चेतावनी देते हुए कहा, "म्यांमार में कई नृजातीय समूह रहते हैं, जिससे देश के भीतर गंभीर विरोधाभास मौजूद हैं। म्यांमार के घरेलू मामलों में एक सक्रिय हस्तक्षेप से असहनीय नतीज़े आएंगे।"

फिलहाल म्यांमार में जारी अशांति मध्य के शहरों और कस्बों, खासकर यांगून और मांडले में फैली है, जहां बर्मी लोग रहते हैं। दूसरे क्षेत्रों (सीमावर्ती क्षेत्रों) में अलग-अलग नृजातीय समूह रहते हैं, जो देश की आबादी का करीब़ 50 फ़ीसदी हिस्सा हैं और यह लोग अस्थिरता फैलाने में शामिल नहीं हैं।

विडंबना यह है कि बाहरी लोगों को म्यांमार की जटिल अंतर्नृजातीय स्थिति के बारे में जानकारी नहीं है। मोटे तौर पर म्यांमार में 20 भिन्न नृजातीय सशस्त्र समूह हैं, जिनके पास करीब़ 70,000 लड़ाके हैं। यह दूरदराज के ज़ंगलों में अपनी गतिविधियां जारी रखते हैं, इनमें से कुछ के पास ऐसे क्षेत्रों पर भी नियंत्रण है, जो राष्ट्रीय तौर पर केंद्र सरकार के तहत आते हैं। जबकि दूसरे समूह कई दशकों से गुरिल्ला युद्ध छेड़े हुए हैं।

कोई भी धारणा जो मानती है कि गैर-बर्मी नृजातीय समूह, यांगून या मांडले के प्रदर्शनकारियों (बर्मी लोगों) के साथ आकर एक साझा गठबंधन बना सकते हैं, वह महज़ एक सपना है। बल्कि केंद्रीय क्षेत्र के बर्मी राजनेताओं ('आंग सान सू की' की पार्टी NLD के नेता) का सीमावर्ती इलाकों में बमुश्किल ही कोई प्रभाव है।

अच्छी बात है कि यह गैर-बर्मी नृजातीय समूह, सेना से संघर्ष करने की NLD की अपील पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। इन समूहों में गहरे तौर पर यह भावना घर कर गई है कि NLD सरकार के तहत पिछले एक दशक के लोकतांत्रिक शासन में कभी उन्हें "लाभ" नहीं पहुंचाया गया। बल्कि इनमें से कई नृजातीय इलाकों में पिछले 10 सालों में संघर्ष ज़्यादा तेज ही हुआ और मानवाधिकार उल्लंघनों में बढ़ोत्तरी ही हुई है। आंग सान सू की सरकार ने ना तो इनकी निंदा की और ना ही इन्हें रोकने की कोशिश की। बल्कि तत्कालीन सरकार ने इनमें से कई नृजातीय समूहों को आतंकी संगठन तक घोषित कर दिया। 

यहीं विरोधाभास है। यहां मामला यह है कि NLD कट्टर (बर्मी) राष्ट्रवादी पार्टी है। सू की के पिता ने बर्मी सेना की स्थापना बर्मी राष्ट्रवाद के प्रतीक के तौर पर की थी, नए-नवेले राष्ट्र के लिए सेना एक मजबूत बांध बन गई, जिसका नृजातीय आधार बर्मी समूह था। सू की का खुद मानना था कि एक संस्थान के तौर पर सेना को मजबूत बने रहने चाहिए, बिना इसके 135 नृजातीय समूहों वाला म्यांमार अनगिनत हिस्सों में बंट जाएगा और देश बड़े स्तर के गृहयुद्ध में उलझ जाएगा। 

इस स्थिति में अपरिहार्य तौर पर भारत के उत्तरपूर्वी राज्य, अस्थिर और अशांत म्यांमार में जारी नृजातीय टकराव में डूब जाएंगे। भारत के उत्तरपूर्व में रहने वाली आबादी सीमापार के नृजातीय समूहों से करीबी रिश्ते की भावना रखती है। म्यांमार में ईसाई धर्म दूसरा सबसे बड़ा धर्म है, देश की 10 फ़ीसदी आबादी ईसाई है। यह कोई संयोग नहीं था कि 2017 में पोप ने एक ईसाई प्रचारक मिशन म्यांमार भेजा था। 

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

India Should Hold the Line on Myanmar

 

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