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मानव विकास सूचकांक में और पीछे भारत; स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवनस्तर बुरी तरह प्रभावित

यूएनडीपी के 191 देशों की सूची में भारत 132 वें नंबर में है। मानव विकास सूचकांक के मामले में पड़ोसी देशों चीन, श्रीलंका, भूटान और बांग्लादेश ने भी भारत को पीछे छोड़ दिया है।
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Image courtesy : The Indian Express

भारतीय अर्थव्यवस्था को सरकार भले ही 5 ट्रिलियन इकोनॉमी बनाने के सपने लोगों को दिखा रही हो लेकिन संयुक्त राष्ट्र की मानें तो लोगों का औसत जीवन स्तर बेहतर नहीं हुआ है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने 191 देशों के सर्वेक्षण के आधार पर मानव विकास सूचकांक जारी किया है। इस इंडेक्स में भारत को कुल 0.633 अंक दिए गए हैं जो भारत को मध्यम मानव विकास वाले देशों की श्रेणी में रखता है। वहीं 2019 में भारत को कुल 0.645 अंक दिए गए थे। यह गिरावट स्पष्ट तौर पर दर्शाती है कि कोरोना महामारी ने देश में लोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवनस्तर को बुरी तरह प्रभावित किया है। यहां ग़ौर करने वाली बात ये है कि भारत इससे पहले साल 2021 में 131वें स्थान पर था लेकिन इस साल वह एक पायदान और नीचे फिसल कर 132 वें स्थान पर चला गया है।

बता दें कि इस सूचकांक में सिर्फ़ किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का सहारा नहीं लिया जाता बल्कि औसत जीवन स्तर निकालने के लिए ग़रीबी, साक्षरता और लिंग आधारित मानकों को आधार बनाया जाता है। मानव विकास सूचकांक के मामले में पड़ोसी देशों चीन, श्रीलंका, भूटान और बांग्लादेश ने भी भारत को पीछे छोड़ दिया। सूचकांक में श्रीलंका को 73वां रैंक मिला है। इसी के साथ चीन को 79वां, भूटान को 127वां, बांग्लादेश को 129वां स्थान मिला है।

भारत में औसत जीवन स्तर क्यों गिरता जा रहा है?

रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक से लोगों में तनाव, उदासी, गुस्सा और चिंता बढ़ रही है, जो अब रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। ऐसे में अनिश्चितता से भरी इस दुनिया में हमें एक दूसरे से जुड़ी इन चुनौतियों से निपटने के लिए हमें वैश्विक एकजुटता की भावना की जरुरत है।

भारत में यूएनडीपी के प्रतिनिधि शोको नोडा का इस बारे में कहना है कि वैश्विक स्तर पर मानव विकास में हो रही प्रगति पलट गई है, भारत भी गिरावट की इसी प्रवृत्ति को दर्शाता है। रिपोर्ट के मुताबिक लगातार पिछले दो वर्षों में वैश्विक स्तर पर लोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा, आय और जीवन स्तर में गिरावट आई है, जिससे भारत भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। देखा जाए तो मानव विकास में हो रही प्रगति पांच वर्षों की गिरावट के साथ 2016 के स्तर पर वापस आ गई है। लेकिन इन सबके बीच थोड़ी राहत की बात भी है कि ये आंकड़े दर्शाते हैं कि 2019 की तुलना में मानव विकास में व्याप्त असमानता का प्रभाव कम हुआ है।

हालांकि मानव विकास सूचकांक, मानव विकास के जिन तीन प्रमुख आयामों स्वस्थ और लंबा जीवन, शिक्षा तक पहुंच और जीवन गुणवत्ता को मापता है। इनकी गणना चार प्रमुख संकेतकों जीवन प्रत्याशा, औसत स्कूली शिक्षा, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय पर आधारित है और इन तीन प्रमुख आयामों को देखें तो मानव विकास सूचकांक में आई हालिया गिरावट में जीवन प्रत्याशा का बहुत बड़ा हाथ रहा। आंकड़ों के अनुसार जहां वैश्विक स्तर पर 2019 में एक व्यक्ति की औसत आयु 72.8 वर्ष थी वो 2021 में 1.4 वर्षों की गिरावट के साथ घटकर 71.4 वर्ष रह गई है।

जीवन प्रत्याशा के मामले में जो रुझान वैश्विक स्तर पर सामने आए हैं, उन्हें भारत से जुड़े आंकड़ों में भी स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। जहां 2019 में देश में प्रति व्यक्ति औसत जीवन प्रत्याशा 69.7 थी वो 2021 में 2.5 वर्षों की गिरावट के साथ 67.2 वर्ष रह गई थी। इसी तरह भारत में स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष 11.9 वर्ष हैं, और स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष 6.7 हैं। वहीं यदि देश में प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय को देखें तो वो करीब 6,590 डॉलर है।

मालूम हो कि दुनिया के अन्य देशों की बात करें तो इस साल ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में स्विटज़रलैंड को कुल 0.962 अंकों के साथ पहले स्थान पर जगह दी गई है। जहां औसत जीवन प्रत्याशा 84 वर्ष है। वहीं यदि शिक्षा की बात करें तो वहां व्यक्ति औसतन 13.9 वर्ष शिक्षा ग्रहण करता है जबकि स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष 16.5 वर्ष हैं। इसी तरह वहां एक औसत व्यक्ति की सकल राष्ट्रीय आय 66,933 डॉलर है। वहीं इसके विपरीत इस इंडेक्स में दक्षिण सूडान को सबसे निचले 191वें पायदान पर जगा दी गई है। देखा जाए तो दक्षिण सूडान में औसत जीवन प्रत्याशा 55 वर्ष है, जबकि एक औसत व्यक्ति की सकल राष्ट्रीय आय केवल 768 डॉलर है। इसी तरह दक्षिण सूडान में एक औसत बच्चा 5.7 वर्ष स्कूल जाता है।

सतत विकास के लक्ष्यों में भारत काफी पीछे

गौरतलब है कि इस साल मार्च के महीने में एनुअल स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2022 रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें कहा गया था कि सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में भारत फिलहाल काफी पीछे है। ऐसे कम से कम 17 प्रमुख सरकारी लक्ष्य हैं, जिनकी समय-सीमा 2022 है और धीमी गति के चलते अब इन्हें हासिल नहीं किया जा सकता है। एक मार्च को जारी इस रिपोर्ट के मुताबिक सतत विकास लक्ष्यों (एसीडीजी) को हासिल करने में भारत पिछले दो सालों में तीन पायदान नीचे खिसका है। यह रिपोर्ट डाउन टू अर्थ मैगजीन का सालाना प्रकाशन थी और इसे केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा पत्रकारों के लिए आयोजित नेशनल कॉन्क्लेव, अनिल अग्रवाल डायलॉग (एएडी), 2022 में जारी किया था।

बहरहाल, पीएम मोदी को वोट देने पर 'शक्तिशाली नेता और उनकी मज़बूत सरकार' का दंभ दिखाने वाली बीजेपी अपने वादे और ज़मीनी हक़ीकत से कोसो दूर नज़र आती है। उनकी घोषणाएं ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ा चढ़ा कर पेश की जाती हैं और सच्चाई प्रचार की गूंजती आवाज़ों तले दब जाती है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस ने 2014 और फिर 2019 के आम चुनावों में शानदार जीत हासिल कर सरकार का गठन किया। सरकार बनते ही विकास के कई वादे और घोषणाएं हुईं। कई सतत विकास के सरकारी लक्ष्यों का सरकार ने ज़ोर-शोर से प्रमोशन किया, इनकी समय सीमा 2022 रखी गई। हालांकि अब जब हम 2022 के सितंबर में कदम रख चुके हैं तो इन योजनाओं के पूरा होने का इंतज़ार अभी भी कर रहे हैं। जाहिर है इससे सरकार के दावों की पोल खुलती नज़र आ रही है और देश में 'सबके साथ, सबके विकास' की सच्चाई भी साफ-साफ दिखाई दे रही है।

इसे भी पढ़ें: सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में भारत काफी पीछे: रिपोर्ट

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