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भारत की जनता और सरकारें दोनों क़र्ज़ के बोझ के तले दबे हुए हैं  

2014 के बाद से, राज्य सरकारों का संयुक्त क़र्ज़ 200 प्रतिशत से अधिक और केंद्र सरकार का लगभग 150 प्रतिशत बढ़ा है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। फ़ोटो साभार : Bloomberg

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा हाल ही में जारी आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल में बैंकों से कुल व्यक्तिगत क़र्ज़ लगभग 41 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच गया है। ये क़र्ज़ विभिन्न अन्य आकस्मिकत ख़र्चों के अलावा घर, वाहन, उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुएं आदि खरीदने के लिए लिए गए थे। 2014 की तुलना में, इसमें 400 प्रतिशत से अधिक की आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है। (नीचे चार्ट देखें)

इस विशाल राशि के महत्व को जानने के लिए, निम्न पर विचार करें: 2023-24 का केंद्रीय बजट लगभग 45 लाख करोड़ रुपये है। तो, व्यक्तिगत ऋण इसके काफी करीब हैं!

फिर सरकार द्वारा लिए गए क़र्ज़ के बारे में क्या? आरबीआई के नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि केंद्र सरकार का कुल क़र्ज़ 157 लाख करोड़ रुपये है, जबकि सभी राज्य सरकारों को मिलाकर 2022-23 के अंत में संयुक्त क़र्ज़ 76 लाख करोड़ रुपये का अनुमानित है। 

व्यक्तिगत क़र्ज़ में भयानक वृद्धि   

व्यक्तिगत क़र्ज़ में इतनी अधिक वृद्धि का क्या मतलब है? कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि अर्थव्यवस्था के लिए यह एक अच्छा संकेत है क्योंकि लोग अधिक सामान या सेवाएँ खरीदने के लिए क़र्ज़ ले रहे हैं। यह उच्च आय, अच्छे सामाजिक सुरक्षा कवरेज और स्थिर नौकरियों वाली समृद्ध अर्थव्यवस्थाओं के लिए तो सच हो सकता है।

हालाँकि, विशाल बेरोज़गारी और मुद्रास्फीति, बड़े पैमाने पर कम वेतन वाली नौकरियों और औद्योगिक क्षेत्र में निरंतर कम होती वृद्धि के कारण भारत की आर्थिक स्थितियों को देखते हुए, यह बहुत अधिक गंभीर स्थिति का संकेत देता है।

क़र्ज़ इसलिए लिया जा रहा है क्योंकि परिवार अपनी कमाई से अपनी जरूरतें पूरी नहीं कर पा रहे हैं। जारी आंकड़ों से पता चलता है कि जो भारी खर्च किया जा रहा है वह घर खरीदने  या महंगी शिक्षा पर किया जा रहा है, क्योंकि छोटे, संभवतः खुदरा, खर्च के मामले में लिए जाने वाले क़र्ज़ में उतनी वृद्धि नज़र नहीं आ रही है। 

इसमें जो एक उल्लेखनीय बात शामिल है वह यह कि क्रेडिट कार्ड के जो भुगतान लंबित पड़े हैं, पहली बार वे 2 लाख करोड़ रुपये की राशि को पार कर गए हैं – यह पिछले वर्ष से लगभग 30 प्रतिशत की वृद्धि है। यह वृद्धि दर पिछले वर्ष और बैंक क़र्ज़ की वृद्धि से लगभग दोगुनी है। क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल ज्यादातर उपभोग की वस्तुओं को खरीदने के किया जाता है और इसके क्रेडिट कार्ड भुगतान के बकाए में इतनी बड़ी वृद्धि समाज के अपेक्षाकृत बेहतर वर्गों के बीच भी बढ़ती क़र्ज़दारी को दर्शाती है।

इस बीच, सूक्ष्म और लघु और बड़े उद्योगों ने बैंक क़र्ज़ के मामले में बहुत धीमी वृद्धि दिखाई है, जो क्रमशः 10 प्रतिशत और 5 प्रतिशत है, और जो दर्शाता है कि ये बड़े नियोक्ता नई क्षमताओं में निवेश नहीं कर रहे हैं। इसलिए, वे कोई नया रोजगार उपलब्ध नहीं करा पाएंगे, जिसके परिणामस्वरूप पारिवारिक आय पर निरंतर सीमाएं लगेंगी।

हाल के राष्ट्रीय लेखा आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के हिस्से के रूप में निजी उपभोग व्यय कम हो गया है, जिससे परिवारों की कठिन आर्थिक स्थिति का पता चलता है।

केंद्र सरकार का बढ़ता क़र्ज़

सरकारें अपना कामकाज चलाने के लिए अक्सर क़र्ज़ लेती हैं। ये क़र्ज़ निजी वाणिज्यिक स्रोतों से लिए जा सकते हैं, जैसे कि बैंक या जनता को जारी किए गए बांड के माध्यम से, या इन्हें मौजूदा निधियों जैसे भविष्य निधि कोष या लघु बचत निधि आदि से भी हासिल किया जा सकता है।

लेकिन भारत में बढ़ता क़र्ज़ ख़तरे की घंटी बजा रहा है - जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में दिखाया गया है। केंद्र सरकार की बकाया देनदारियां (ऋण) 2014 में 64 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2022-23 में 157 लाख करोड़ रुपये हो गई हैं। नौ वर्षों में यह लगभग 150 प्रतिशत की वृद्धि है।

2022-23 में, केंद्र सरकार का लगभग 58 प्रतिशत क़र्ज़ बाजार स्रोतों, यानी बैंकों जैसे वाणिज्यिक क़र्ज़दाताओं पर बकाया था। सरकार को इस क़र्ज़ के मुक़ाबले हर साल ऊंचा ब्याज देना पड़ता है। 

2023-24 के बजट में, अनुमानित ब्याज भुगतान लगभग 11 लाख करोड़ रुपये है, जो वर्ष के लिए अनुमानित कुल खर्च का लगभग 23 प्रतिशत है। यह केंद्र सरकार द्वारा लिए गए क़र्ज़ के वित्तपोषण पर खर्च किए गए लोगों के पैसे का एक बहुत बड़ा हिस्सा है। क़र्ज़ चुकाना वर्षों तक जारी रहेगा, लेकिन यह भविष्य की सरकारों के लिए सिरदर्द बनेगा।

यदि इस प्रकार एकत्रित किए गए धन को लोगों के लाभ के लिए इस्तेमाल किया जाता तो  इतनी बड़ी देनदारियाँ उठाना उचित होता। लेकिन सरकार विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं  (जैसे मनरेगा) पर खर्च में कटौती या कम कर रही है क्योंकि उसका दावा है कि उसे अपने बजट को संतुलित करना है और वह इस तरह के खर्च को वहन नहीं कर सकती है।

क़र्ज़ वास्तव में उनकी मदद कर रहे हैं जिन्हे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी "संपत्ति निर्माता" कहते हैं  यानि कॉर्पोरेट क्षेत्र, जिसे कर कटौती, प्रोत्साहन और सब्सिडी जैसे विभिन्न उपहार दिए जा रहे हैं। उक्त क़र्ज़ अंततः इन रियायतों का वित्तपोषण कर रहे हैं। इस तरह के क़र्ज़ राजमार्गों और तेज़ ट्रेनों जैसी विभिन्न बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर भी खर्च किए जा रहे हैं, जिनकी उपयोगिता संदिग्ध है।

राज्य सरकारें भी जमकर क़र्ज़ ले रही हैं

इस बीच, राज्य सरकारें भी भारी उधार ले रही हैं, लेकिन इसमें उनकी कोई गलती नहीं है। जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट से पता चलता है, राज्य सरकारों की संयुक्त देनदारियां 2014-15 में लगभग 25 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर चालू वर्ष में अनुमानित 76 लाख करोड़ रुपये हो गई हैं - पिछले नौ वर्षों में यह 200 प्रतिशत की वृद्धि है।

विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च कम करने की केंद्र सरकार की नीतियों का मतलब है कि राज्य सरकारों को इसे वहन करने के लिए आगे आना होगा और उस कमी को पूरा करना होगा जिसे केंद्र सरकार कम कर रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सभी योजनाएं राज्य सरकारों द्वारा जमीन पर लागू की जाती हैं। इनमें से कई में उन्हें पहले से तय हिस्सा देना होता है। योजनाओं को लागू न कर पाने का पूरा असर मौजूदा राज्य सरकार पर ही पड़ेगा।

2017 में जीएसटी लागू होने के बाद राज्य सरकारों ने टैक्स और शुल्क लगाने के अपने अधिकार खो दिए थे। इससे उनके राजस्व संग्रह पर असर पड़ा है। इसके अलावा, केंद्र सरकार निवेश के लिए पूंजी जुटाने के मामले में, अक्सर सख्त और कठिन शर्तें लगाती है। यह विभिन्न योजनाओं के लिए धन जारी करने पर भी अधिकार रखती है और इनमें देरी या बाधाएं राज्य सरकारों के लिए कठिनाइयों का कारण बनती हैं।

इन सबके अलावा, कई राज्य सरकारें अपने वित्त को मजबूत करने और राजनीतिक रूप से लाभप्रद परियोजनाओं को शुरू करने या स्थानीय कॉरपोरेट्स और व्यापारियों को रियायतें देने के लिए क़र्ज़ लेने में केंद्र सरकार के उदाहरण का पालन कर रही हैं। खासकर भाजपा की राज्य सरकारें मोदी सरकार द्वारा दिखाए गए राजकोषीय प्रबंधन के रास्ते पर उत्साहपूर्वक चल रही हैं।

इस सब का नतीजा क़र्ज़ का खड़ा एक विशाल पहाड़ है जो अब भारतीयों पर बोझ बन गया है और अंततः आने वाले वर्षों में इसे उनकी कमाई से ही चुकाया जाएगा।

मूल अंग्रेजी में प्रकाशित इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Indebted Country: People, Governments Both Buried Under Loans

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