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विश्वगुरु बनने की चाह रखने वाला भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 107 देशों में 94वें पायदान पर

ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार 2020 में दुनिया भर के 107 देशों में से भारत 27.2 स्कोर के साथ 94वें रैंक पर है। इससे साफ है कि जिन 107 देशों का डेटा इस साल साझा किया गया है, उनमें से मात्र 13 देशों में भूख की वजह से लोग भारत से ज्यादा परेशान हैं।
भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 107 देशों में 94वें पायदान पर
Image courtesy: The Jakarta Post

भूख का नाम सुनते ही एक तरह की तड़प का ख्याल आता है। एक ऐसी तड़प का जहां पेट सन्न पड़ जाए। होंठ सूख जाए। दिमाग काम करना बंद कर दे। सांस का भीतर आना जाना मुश्किल हो जाए। हालात जिंदगी को अलविदा कहने वाले हो जाए। इसलिए भूख के साथ भुखमरी का एहसास भूख बोलते ही आ जाता है। इसलिए जरा सोच कर देखिए कि जिस परिवार में दो जून की भूख मिटाने के लिए हर रोज लड़ना पड़ता होगा उनका दुनिया के किसी भी दूसरे इंसान से किस तरीके का व्यवहार हो सकता है। जवाब आसान है चाहे जैसा मर्जी वैसा व्यवहार हो लेकिन वैसा तो नहीं होगा जैसा दो लोगों के बीच होना चाहिए। इसलिए भूख से लड़ना दुनिया की अहम जिम्मेदारियों में से एक है।

भूख को मापने के लिए कैलोरी इकाई का इस्तेमाल किया जाता है। एक तयशुदा मात्रा से कम कैलोरी का भोजन का सेवन भूख की कैटेगरी में आता है। जिसकी वजह से अल्पपोषण और कुपोषण जैसे परिणाम निकलकर आते हैं।

कैलोरी के इसी पैमाने के आधार पर हर साल वैश्विक क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर भूख को मापने के लिए ग्लोबल हंगर इंडेक्स का प्रकाशन होता है। साल 2020 का ग्लोबल हंगर इंडेक्स प्रकाशित हो चुका है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक बहुत कुछ जानने से पहले भारत की स्थिति जान लेते हैं। Global hunger index में 107 देशों के बीच भारत 94 पायदान पर है। भारत से 21 पायदान ऊपर नेपाल है और 19 पायदान ऊपर बांग्लादेश है। भारत भूख के लिहाज से ग्लोबल हंगर इंडेक्स के 'गंभीरता की स्थिति' वाली कैटेगरी में है।

4 तरह के पैमानों के जरिए ग्लोबल हंगर इंडेक्स को मापा जाता है। पहला पैमाना यह कि आबादी में कितना बड़ा हिस्सा अल्प पोषण का शिकार है। यानी कुल आबादी में कितने लोग जरूरी कैलोरी से कम कैलोरी लेकर जीवन जी रहे है।

दूसरा पैमाना चाइल्ड वेस्टिंग से जुड़ा होता है। इसका मतलब यह हुआ कि 5 साल से कम उम्र के बच्चों में कितने बच्चे ऐसे हैं जिनका वजन उनकी लंबाई के हिसाब से कम है। ठीक है सही तीसरा पैमाना चाइल्ड स्टांटिंग से जुड़ा होता है। इसका मतलब यह कि 5 साल के उम्र से कम उम्र के बच्चों में कितने बच्चे ऐसे हैं जिनकी लंबाई उनके वजन के मुताबिक नहीं है। और सबसे अंतिम पैमाना चाइल्ड मोर्टालिटी से जुड़ा होता है। इसका मतलब यह कि 5 साल से कम उम्र के कितने बच्चे 5 साल पूरा करने से पहले ही मर जा रहे है।

इन चारों पैमानों के आधार पर global hunger index तैयार किया जाता है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स के स्कोर के हिसाब से देखा जाए तो भारत का स्कोर साल 2000 से लेकर 2006 तक 40 के आसपास रहता था। लेकिन 2006 के बाद इसमें हर साल गिरावट आई है। इस साल भारत का स्कोर 27.2 है। 0 से लेकर 100 के बीच ग्लोबल हंगर इंडेक्स के तहत स्कोरिंग की जाती है। 0 का मतलब होता है कि अमुक देश में अल्प पोषण का शिकार कोई व्यक्ति नहीं है। यह सबसे आदर्श स्थिति होती है। यहां तक कोई देश नहीं पहुंच पाता। फिर भी अगर स्कोरिंग के लिहाज से देखा जाए तो साल 2006 के बाद भारत की स्थिति लगातार सुधरी है। फिर भी भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स के हिसाब से गंभीरता वाली स्थिति में पड़ता है। रैंकिंग के लिहाज से साल 2000 में भारत दुनिया के 113 देशों के बीच 83वें पायदान पर था। साल 2019 में घटकर दुनिया के 117 देशों के बीच 102 वें पायदान पर आ गया।

भारत की तकरीबन 15 फ़ीसदी आबादी को उतना भोजन नहीं मिलता जितनी भोजन की उसे हर रोज जरूरत होती है। 5 साल से कम उम्र के तकरीबन 18 फ़ीसदी बच्चों का वजन अपनी लंबाई के हिसाब से कम है। 5 साल से कम उम्र के बीच मृत्यु दर 3 से 4 फ़ीसदी के आसपास है। हालांकि अच्छी खबर है कि साल 2000 के बाद भारत में बच्चों की मृत्यु दर में लगातार गिरावट आई है। साल 2000 में यह 9 से 10 फ़ीसदी के आस पास रहती थी। कम होकर साल 2020 में तीन से चार फीसदी के आस पास आ गई है।

ग्लोबल हगर इंडेक्स के मुताबिक भारत में करीबन 135 करोड़ यानी अफ्रीका महादेश से भी ज्यादा लोग रहते हैं। खासकर देहात के इलाकों में खाद्य सुरक्षा की कमी है। अधिकतर महिलाएं हाशिए पर मौजूद होने के बावजूद हाशिए की तरफ ही बढ़ती जाती है। निचली जाति के लोगों में बहुत बड़े स्तर पर गरीबी है। इन सब की पहुंच ना तो स्कूल तक हो पाती है और ना ही जरूरी स्वास्थ्य सुविधाओं तक। यह सब मिलकर भारत की भूख की गंभीर स्थिति के कारण बनते हैं।

अब भारत को छोड़कर थोड़ा दुनिया की तरफ चलते हैं। समझते हैं कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स में दुनिया के बारे में क्या कहा गया है?

दुनिया में इस समय तकरीबन 69 करोड़ लोग भूख से जूझ रहे हैं। यानी 69 करोड़ लोगों को उतना भोजन नहीं मिल रहा है जितना मिलना चाहिए। साल 2018 में भोजन की कमी की वजह से तकरीबन 5 करोड़ 30 लाख 5 साल से कम उम्र के बच्चे मर गए। सोमालिया, साउथ सूडान, सीरिया, यमन, जैसे अफ्रीका के 8 ऐसे देश हैं जहां भुखमरी की दुनिया में सबसे बुरी स्थिति है।

दुनिया के देशों द्वारा सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल के तहत साल 2030 तक जीरो हंगर का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। लेकिन जिस तरह से दुनिया चल रही है अगर उसी तरह से चलती रहे तो साल 2030 तक जीरो हंगर का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता है। भुखमरी से निपटने के तौर तरीके भुखमरी खड़ा करने वाली समस्याओं के सामने कमजोर पड़ रहे हैं। दुनिया में कोविड-19 की महामारी और आर्थिक बदहाली की वजह से इस बार करोड़ों लोग भुखमरी के कगार पर धकेले जा चुके हैं।

मानव जंतु पर्यावरण स्वास्थ्य व्यापार से जुड़े तमाम क्षेत्रों के बीच आपसी गठजोड़ की बजाए बहुत अधिक बिखराव है। इस वजह से दबे पांव भुखमरी की स्थितियां बढ़ती रहती हैं लेकिन निपटने का कोई तौर तरीका नहीं अपनाया जाता है। इसलिए ग्लोबल हंगर रिपोर्ट का कहना है इन सभी क्षेत्रों में व्यापक तौर पर इंटरकनेक्शन और आपसी गठजोड़ की जरूरत है।

यह दुनिया मानव जंतु और पर्यावरण के आपसी मेलजोल से बनी है। इन सब की साझी हिस्सेदारी है। हम क्या उत्पादित करते है? कच्चे माल से किस तरह से पक्का माल बनाते हैं? उत्पादों का बंटवारा किस तरीके से करते हैं? मौजूद संसाधनों का इस्तेमाल किस तरीके से करते हैं?इन सब पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि पर्यावरण जंतु और मानव तीनों को अपना जरूरी हक मिल सके।

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