उद्योग अभी भी संकट में, नहीं काम आ रही कोई तरकीब

भारतीय आर्थिक संकेतकों में जो गहरे संकट की तरफ इशारा कर रहा है, वह औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) है, जिसके आंकड़े सांख्यिकी मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) हर महीने प्रकाशित करता है। यह एक तय अवधि में विभिन्न औद्योगिक वस्तुओं के संबंध में औद्योगिक उत्पादन की मात्रा में आए बदलावों का ब्यौरा देता है।
यह कहने की जरूरत नहीं है कि औद्योगिक उत्पादन भारत जैसे बड़े देश की अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य की कुंजी है। क्योंकि यह सीधे तौर पर रोज़गार, मज़दूरी, कीमतों को प्रभावित करता है- आज यह सब चिंता का विषय है। ऐसा इसलिए है क्योंकि औद्योगिक उत्पादन में लगभग पिछले चार साल से मंदी छाई हुई है, जिसमें महामारी से संबंधित लॉकडाउन के समय में आई विनाशकारी गिरावट भी शामिल है।
नीचे दिए गए चार्ट से पता चलता है कि फरवरी 2020 के बाद से आईआईपी का प्रदर्शन कैसा रहा है, जो भारत में महामारी फैलने से पहले का आखिरी महीना था क्योंकि मार्च के अंतिम सप्ताह में जल्दबाजी में पूर्ण लॉकडाउन लगा दिया गया था। जैसा कि देखा जा सकता है, फरवरी 2020 में आईआईपी 5.2 प्रतिशत की उचित दर से बढ़ रहा था, हालांकि उतनी नहीं जितनी कि अर्थव्यवस्था की जरूरत थी। यह 2018-19 से भारतीय अर्थव्यवस्था में चली आ रही मंदी के बाद हुआ था। लेकिन महामारी के पहले के स्तर के बाद, इसने असाधारण सुस्ती दिखाई है, और अक्सर लगभग शून्य प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज़ हुई, यहां तक कि यह नकारात्मक स्तर पर भी चली गई थी।
यहां यह बात याद रखी जानी चाहिए कि, कई अन्य आर्थिक मापदंडों की तरह, विकास दर की गणना भी एक साल पहले के स्तर से की जाती है और इसलिए यदि आधार वर्ष कम है तो आप एक साल बाद इसमें तेजी देख सकते हैं। या यह उन कुछ तेजी की व्याख्या करता है जो दिखाई दे रही हैं। बेशक, अप्रैल 2020 पहले लॉकडाउन के कारण, औद्योगिक उत्पादन में बड़ी गिरावट को दर्शाता है।
अगस्त 2022, वह महीना है, जिसके लिए हाल ही में नया डेटा जारी किया गया था, इसका आईआईपी (IIP) (-) 0.8% की दर से बढ़ रहा था, यानी अगस्त 2021 के संबंध में इसमें वास्तव में गिरावट आई है।
क्षेत्रवार विकास दर भयावह तस्वीर दिखाती है
आईआईपी तीन क्षेत्रीय उत्पादन के हिस्सों से बनता है- खनन, विनिर्माण और बिजली उत्पादन। इस साल अगस्त में, खनन (-) 3.9 प्रतिशत की दर से घटा रहा था जबकि विनिर्माण (-) 0.7 प्रतिशत की दर से नीचे जा रहा था। केवल बिजली का उत्पादन वास्तव में बढ़ रहा था लेकिन वह भी केवल 1.4 प्रतिशत की दर से।
संक्षेप में यह देखना शिक्षाप्रद है कि कौन से क्षेत्र कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं। कपड़ा, परिधान, चमड़ा और फार्मास्यूटिकल्स सभी खराब प्रदर्शन कर रहे हैं जैसा कि दोहरे अंकों की नकारात्मक विकास दर (यानी गिरावट) से संकेत मिलता है। ये मजबूत निर्यात वाले क्षेत्र हैं। इसलिए, शायद उनकी कमी का प्रदर्शन दुनिया के बाकी हिस्सों में आर्थिक संकट के कारण हो सकता है, जिससे निर्यात में गिरावट आई है। इसकी पुष्टि बढ़ते चालू खाते के घाटे (आयात और निर्यात बिलों के बीच का अंतर) से होती है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में, घाटा 23.9 बिलियन डॉलर या जीडीपी का 2.8 प्रतिशत हो गया था, जो वित्त वर्ष 2021-22 की अंतिम तिमाही में 13.4 बिलियन डॉलर (जीडीपी का 1.5 प्रतिशत) हो गया था।
लेकिन यह विनिर्माण अर्थव्यवस्था के कई अन्य क्षेत्रों में ढीले विकास या वास्तव में गिरावट की व्याख्या नहीं करता है। इस प्रकार, गढ़े हुए धातु उत्पाद, विद्युत उपकरण, रबर और प्लास्टिक उत्पाद, सभी लाल रेखा के दायरे में हैं जबकि खाद्य उत्पादों में शून्य वृद्धि दिखाई दे रही है। इसके अलावा, जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, खनन क्षेत्र नकारात्मक विकास का प्रदर्शन कर रहा है।
इसका मतलब यह है कि घरेलू अर्थव्यवस्था में मांग सीमित है, खासकर मशीनरी और इलेक्ट्रिकल सेगमेंट में ऐसा है। ऑटोमोबाइल क्षेत्र में निरंतर मांग के कारण पेट्रोलियम उत्पादों में बेहतर वृद्धि दिखाई दे रही है, जिसमें भी उल्लेखनीय सुधार दिखाई दे रहा है। लेकिन सिर्फ कार और बाइक की बिक्री से देश का औद्योगिक क्षेत्र पुनर्जीवित नहीं होने वाला है।
बड़े उद्योग को बैंक क़र्ज़
नरेंद्र मोदी सरकार कारपोरेट क्षेत्र की ख़ुशामद करती नज़र आती है या कभी-कभी डांटती भी दिखाई देती है कि उन्हें नई उत्पादक क्षमताओं में निवेश करना चाहिए। सरकार ने सितंबर 2019 में कॉर्पोरेट टैक्स में भारी कटौती की थी। इसने उद्योगजगत को, खासकर एमएसएमई (मध्यम, लघु और सूक्ष्म उद्यम) क्षेत्र को कर्ज़ देना आसान बना दिया था। हालांकि उपरोक्त आसान कर्ज़ को कॉर्पोरेट निगल चुके हैं, जिसके एवज़ में क्षमताओं का बहुत कम विस्तार हुआ है।
जहां तक बड़े उद्योग का संबंध है, भारतीय रिजर्व बैंक से कर्ज़ के बकाए का डेटा (नीचे चार्ट में दिखाया गया है), उनकी उदासीनता का खुलासा करता नज़र आता है। फरवरी 2020 में, महामारी से पहले के महीने में, बड़े उद्योगों का बकाया कर्ज़ 23.6 लाख करोड़ रुपये था। अगस्त 2022 में, पिछले महीने जिसके लिए डेटा उपलब्ध था, वह 24.1 लाख करोड़ रुपये हो गया था।
हर बार जब सरकार आसान कर्ज़ की पेशकश करती है तो कॉरपोरेट क्षेत्र में कुछ हल्की-फुलकी तेजी आती है, लेकिन इसके तुरंत बाद भारी गिरावट आ जाती है।म यह 2020 में पहले लॉकडाउन के दौरान और फिर 2021 में कोविड की दूसरी लहर के दौरान हुआ था। 2022 के पहले कुछ महीनों में कर्ज़ के बहाव में तेजी आई, लेकिन तब से यह फिर से स्थिर हो रहा है, जैसा कि ऊपर दिए गए चार्ट में दिखाया गया है। यह ढाई साल पहले फरवरी 2020 में महामारी से पहले के स्तर से थोड़ा ही ऊपर है।
यह मोदी सरकार की कॉरपोरेट जगत को कर्ज देने की नीति की नाटकीय विफलता का सबूत है जो समझती है कि इससे निवेश में वृद्धि होगी, और इसलिए रोज़गार बढ़ेंगे, और इससे अर्थव्यवस्था में बड़ी रिकवरी होगी।
'ट्रिकल डाउन' की ज़िद
मोदी सरकार इस बदनाम या नाकाम सिद्धांत का आंख मूंदकर पालन कर रही है कि कॉरपोरेट जगत देश को तंगी के जंगल से बाहर निकाल देगा। यह, अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में नीति की चौतरफा विफलता के बावजूद, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि बेरोजगारी संकट को हल करने में इसकी विफलता साफ नज़र आती है, जो कम वेतन/कमाई के संकट के साथ-साथ बढ़ रही है।
इस संकट का सबसे बड़ा प्रभाव यह रहा है कि बड़ी संख्या में लोगों के हाथों में खरीदने की शक्ति बहुत सीमित हो गई है। नतीजतन, बाज़ार में कोई मांग नहीं है। कारपोरेट जगत उत्पादक क्षमताओं को बढ़ाने से इनकार कर रहा है क्योंकि वह इस स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ है। अगर मांग नहीं होगी तो वह अपने उत्पाद कहां बेचेगा? लेकिन यही कारपोरेट व्यापक/अत्यधिक बेरोज़गारी से लाभ कमा रहा है क्योंकि उसे कम मजदूरी देनी पड़ रही है और इस प्रकार उनका लाभ बढ़ रहा है।
इस कमतर नीति का केवल एक ही इलाज़ है जो देश को कीचड़ में धसने से रोक सकता है। लेकिन इसके लिए लोगों को निर्णायक कदम उठाने होंगे।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।