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क्या उत्तराखंड में लगातार हो रही अतिवृष्टि के लिये केवल प्रकृति ज़िम्मेदार है? 

पेड़ो की अंधाधुंध कटायी के कारण मानसून को रोकने के लिये जो नमी चाहिये होती है, वह आज लगभग समाप्त हो चुकी है जिससे जो बादल मैदानी क्षेत्रों  में रुकने चाहिये वह सीधे पर्वतों तक आ जाते हैं। इसके कारण राज्य में बादल फटने की समस्या बढ़ती ही जा रही है। 
क्या उत्तराखंड में लगातार हो रही अतिवृष्टि के लिये केवल प्रकृति ज़िम्मेदार है? 

एक ओर जहां देश के साथ-साथ उत्तराखंड राज्य में भी कोरोना ने उत्पात मचाया हुआ है वहीं दूसरी ओर प्रकृति ने भी अपना रौद्र रूप राज्य में दिखाना शुरू कर दिया है। 11 मई 2021 को उत्तराखंड राज्य के टिहरी जिले की तहसील देवप्रयाग में सायं लगभग पांच बजे देवप्रयाग बाजार के ऊपर पहाड़ पर बादल फटने/अतिवृष्टि से देवप्रयाग बाजार के बीच शांता गदेरे में भारी मलबा एवं पानी आने से माल की काफी क्षति हुई है। प्रत्यक्षदर्शियों से मिली जानकारी के अनुसार नगर पालिका भवन में निर्मित आईटीआई देवप्रयाग, सीएससी सेंटर, इलेक्ट्रॉनिक और फर्नीचर आदि की दुकानें, देवप्रयाग बाजार को जोड़ने वाली पैदल पुलिया और श्री दुर्गा शर्मा भवन पर निर्मित 5 दुकानें क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। हालांकि किसी जनहानि की अभी तक कोई खबर नहीं है।

देवप्रयाग के तुणगी गांव से ग्राम प्रधान अरविंद सिंह जियल बताते हैं कि दशरथ पर्वत माला पर बादल फटने से अतिवृष्टि होने के कारण शांता गदेरे में लगभग तीन मंजिल जितना ऊँचा पानी आया जो की पर्वतीय क्षेत्र के लिये एक आम बात है लेकिन गदेरे में अतिक्रमण कर बने नगर पालिका भवन ने पानी का रास्ता रोका, जिसके कारण पानी को निकासी नहीं मिल पायी और  पानी ने गदेरे से बाहर आकर तबाही मचा दी। उन्होंने बताया कि भवन के इस अवैध निर्माण को रोकने के लिये स्थानीय लोग अदालत भी गये थे। जिसके बाद अदालत के आदेश पर भवन निर्माण पर रोक भी लगी और इस कारण वहाँ केवल एक मंजिल का निर्माण ही हो पाया था। अरविन्द सिंह आगे कहते हैं कि यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि मानव निर्मित आपदा है। प्रशासन एवं सत्ता के कुछ लोगों की मिलीभगत के कारण यह अवैध निर्माण हुआ है जो इस आपदा का मुख्य कारण भी है। जिसके चलते आपदा में क्षतिग्रस्त दुकानों के मालिक अपने रोजगार से हाथ धो चुके हैं। इसलिये हम सरकार से मांग करते हैं कि आपदा से प्रभावित सभी व्यक्तियों को मुआवजा और रोजगार दिया जाये।

ऐसा नहीं है कि देवप्रयाग में हुई यह घटना इस साल की पहली घटना है बल्कि इसी महीने की तीन और चार तारीख को उत्तरकाशी जिले की ग्राम पंचायत कुमराडा और जाकरागाड चिन्यालीसौड़ में तथा उस के बाद टिहरी जिले के उनियाल गाँव में बादल फटने के कारण भारी नुकसान हुआ है। यहाँ पर भी गनीमत रही कि किसी भी तरह की जनहानि नहीं हुई है लेकिन गांव, खेत सड़क और रास्तों को भरी क्षति पहुँची है। स्थानीय लोगों का कहना है कि देवप्रयाग के शांति बाजार में लगभग करोड़ों के नुकसान का अनुमान लगाया जा रहा है। पुलिस को यहां अभी तक किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है। अगर कोरोना कर्फ्यू की स्थिति नहीं होती तो यहां बड़ी संख्या में जनहानि हो सकती थी। 

बुधवार को मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने आपदा प्रभावित क्षेत्र देवप्रयाग का दौरा किया। मुख्यमंत्री ने प्रभावित लोगों से मुलाकात की और कहा कि हर संभव सहायता दी जाएगी। मुख्यमंत्री ने जिलाधिकारी को प्रभावितों को सहायता जल्द उपलब्ध कराने के निर्देश दिये। 

बादल फटना या क्लाउड बर्स्ट क्या होता है

बादल फटना या क्लाउड बर्स्ट बारिश होने का एक्सट्रीम फॉर्म है। इसे मेघविस्फोट या मूसलाधार वर्षा भी कहते हैं। मौसम विज्ञान के अनुसार, जब बादल बड़ी मात्रा में पानी के साथ आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है, तब वे अचानक फट पड़ते हैं। पानी इतनी तेज रफ्तार से गिरता है कि एक सीमित जगह पर कई लाख लीटर पानी एक साथ जमीन पर गिर पड़ता है, जिसके कारण उस क्षेत्र में तेज बहाव वाली बाढ़ आ जाती है। आसान शब्दों में समझे तो यदि पानी से भरे एक गुब्बारे को फोड़ दिया जाए तो सारा पानी एक ही जगह तेजी से गिरने लगता है। ठीक उसी प्रकार पानी से भरे बादल की बूंदें तेज़ी से नीचे गिरती हैं। इसी को बादल फटना कहते हैं। किसी भी स्थान पर बादल फटने की घटना तभी होती है जब ज्यादा नमी वाले बादल एक ही जगह इक्कठा हो जाते हैं, फिर पानी की बूँदें आपस में मिल जाती हैं, बूंदों का भार अधिक हो जाने के कारण भारी बारिश शुरू हो जाती है। बादल फटने पर 100 मिमी प्रति घंटे की रफ़्तार से बारिश हो सकती है। कुछ ही मिनट में 2 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा हो जाती है, जिस कारण भारी तबाही होती है। यह तो सभी जानते ही होंगे कि जब नॉर्मल बारिश होती है तो धीरे-धीरे धरती उसे सोखती जाती है। लेकिन क्लाउड ब‌र्स्ट में पानी इतनी ज्यादा मात्रा में गिर पड़ता है कि वह गिरते ही तेजी से निचले इलाकों की ओर बहने लगता है। जब उसे जगह नहीं मिलती तो वहां बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है। एक तो पानी का वेग बहुत तेज होता है, दूसरे इतने ही वेग से कभी-कभी ओले भी गिरने लगते हैं। पानी के भारी फोर्स के कारण रास्ते में आने वाली चीजें ध्वस्त होती चली जाती हैं। यह हम सबने केदारनाथ वाली घटना में टीवी पर भी देखा था, जब मजबूत मकान भी ताश के पत्तों की तरह पानी में समाते चले गए।

उत्तराखंड में इस वर्ष लगातार हो रही अतिवृष्टि की इन घटनाओं पर प्रकाश डालते हुए हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्‍वविद्यालय श्रीनगर में भौतिक विज्ञान के सहायक प्रोफेसर डॉ.आलोक सागर गौतम बताते हैं कि मानसून से पहले इस प्रकार बारिश के होने का मुख्य कारण पश्चिमी विक्षोभ या वेस्टर्न डिस्टर्बन्स का अधिक समय तक सक्रिय हो जाना है, लेकिन राज्य में हो रही अतिवृष्टि का कारण केवल पश्चिमी विक्षोभ नहीं है। इस के अतरिक्त अरब सागर में बनने वाला तूफान भी है जिस कारण पश्चिम की ओर से तेज़ नमीवाली हवाये देश में प्रवेश करती है। वहीं दूसरी ओर बंगाल की खाड़ी से भी लगातार हवायें चलती हैं जो कि देश में पूर्वी ओर से प्रवेश करती हैं, जो भारत के उत्तरी राज्यों में पहुँच कर आपस में मिलती हैं और घने काले बादल बनाती है। यही बादल वर्षा का कारण बनते हैं। डॉ.आलोक सागर गौतम आगे बताते हैं कि राज्य के पर्वतीय क्षेत्र में हो रहे चारधाम यात्रा सड़क निर्माण और नये होटल अदि निर्माण में ऐसी तकनीक का इस्तेमाल नहीं हो रहा जो प्रकृति के अनुकूल हो। साथ ही वाहनों की आवाजाही भी दिन-प्रति-दिन बढ़ती जा रही है जिस कारण वायु और ध्वनि प्रदूषण दोनों में ख़ासी वृद्धि हो रही है। इन सब कारणों के फलस्वरूप पिछले कुछ समय से तापमान में वृद्धि हो रही है जोकि वर्तमान में हो रही प्राकृतिक घटनाओं का एक मुख्य कारण है। इसके लिए प्रशासन को सतर्क रहते हुए जनता तक जानकारी पहुंचाने वाले अपने तंत्र को और मजबूत करने की जरूरत है। साथ ही किसी भी प्रकार का नया निर्माण यदि होता है तो पहले यह सुनिश्चित कर लिया जाये कि इस से प्रकृति को किसी प्रकार की हानि तो नहीं होगी। 

दून साइंस फोरम के संयोजक विजय भट्ट कहते हैं कि हम इस बात को नकार नहीं सकते कि पर्वत और जंगलों में जरूरत से ज्यादा मानवीय हस्तक्षेप भी इस प्रकार की घटनाओं का एक कारण है। प्राकृतिक घटनाओं को घटित होने से रोका नहीं जा सकता लेकिन यदि समय पर जानकारी लोगों तक पहुंच जाये तो इन घटनाओं में होने वाली जानमाल की हानि को कम किया जा सकता है। इसके साथ ही विजय भट्ट सुझाव देते हैं कि उत्तराखंड के दूर-दराज के क्षेत्रों तथा स्थानीय स्तर पर भूकंप, वर्षा आदि को मापने के यंत्रों को लैब्स और कॉलेजों में स्थापित किया जाना चाहिए ताकि समय से पूर्वानुमान लगाया जा सके और जान-माल के नुकसान को कम किया जा सके। 

उत्तराखंड जिसका अधिकांश हिस्सा पहाड़ी क्षेत्र है, जिस कारण यहाँ इस प्रकार की घटनाएं होती रहती हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षो में ये घटनाएँ और इन से होने बाली क्षति दोनों की संख्या में बहुत तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है। समाजसेवी और पर्यावरण में रूचि रखने वाले अजय शर्मा का कहना है कि मैदानी क्षेत्रों  में पेड़ो की अंधाधुंध कटायी के कारण, मानसून को रोकने के लिये जो नमी चाहिये होती है वह आज लगभग समाप्त हो चुकी है जिस कारण जो बादल मैदानी क्षेत्रों  में रुकने चाहिये वह सीधे पर्वतों तक आ जाते हैं जिस कारण बादल फटने की समस्या बढ़ती जा रही है। उत्तराखंड में जानमाल की अधिक क्षति होने का कारण नदी-नालों में होने वाला अवैध निर्माण है क्योंकि पानी अपना रास्ता नहीं बदलता है। जो भी पानी के रास्ते में आता है बह जाता है और हम लोग नदी या नालों में निर्माण करते समय यह भूल जाते हैं। 

वानिकी कॉलेज रानीचौरी में एनवायर्नमेंटल साइंस के एसोसिएट प्रोफ़ेसर डा.एसपी सती का कहना है कि आज इंसानों के द्वारा प्राकृतिक नालों और नदियों पर अपने लालच के चलते अतिक्रमण कर कब्ज़ा कर लिया गया है, जिस कारण आये दिन बारिश होने पर नदी नालों का पानी आपदा का रूप ले लेता है। बारिश या अतिवृष्टि एक प्राकृतिक घटना है जो समय-समय पर घटित होती रहती है। लेकिन यह प्रलयकारी तभी होती है जब इंसानों के द्वारा नियमों को अनदेखा कर प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया जाता है। यदि हम चाहते हैं कि भविष्य में इस प्रकार की हानि कम हो तो सब से पहले हमे नदी-नालों में हो रहे अवैध निर्माण पर पूरी तरह से अंकुश लगाना होगा। अन्यथा इस प्रकार की घटनाएँ आगे भी होती रहेंगी जिनका खामियाजा आम जनता को ही भुगतना पड़ेगा।

राज्य में हो रही अतिवृष्टि की घटनाएं प्राकृतिक हैं, लेकिन इस बात से नकारा भी नहीं जा सकता कि इन घटनाओं को आपदा का रूप देने में प्रशासन का पूर्ण सहयोग है। यदि प्रशासन ईमानदारी से अपना कार्य करे और आम जनता भी प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझे तो भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं में जरूर कमी देखने को मिलेगी।

लेखक देहरादून स्थित एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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