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जालंधर लोकसभा उप-चुनाव: सभी पार्टियों की प्रतिष्ठा का बना सवाल

चुनाव में निजी आरोप-प्रत्यारोप हावी हैं और लोगों के मुद्दे हाशिये पर हैं।
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फ़ोटो साभार: India Rail Info

आगामी 10 मई को होने वाले जालंधर लोकसभा (रिज़र्व सीट) का उप-चुनाव सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है। भले ही 13 मई को मतगणना होनी है पर राजनीतिक पार्टियों ने अभी से अपना जमा-घटाव करना शुरू कर दिया है। चुनाव में निजी आरोप-प्रत्यारोप हावी हैं और लोगों के मुद्दे हाशिये पर हैं।

जालंधर लोकसभा क्षेत्र में 9 विधानसभा क्षेत्र फिल्लौर, आदमपुर, नकोदर, शाहकोट, करतारपुर, जालंधर वेस्ट, जालंधर सेंट्रल, जालंधर उत्तरी और जालंधर छावनी पड़ते हैं। इस निर्वाचन क्षेत्र में 16,21,800 मतदाता हैं, जिसमें 844904 पुरुष, 776855 महिलाएं और 41 थर्ड जेंडर हैं। यहाँ दलित आबादी 38 प्रतिशत से भी अधिक है।

ज्ञात रहे कि लोकसभा की यह सीट कांग्रेस के संतोख चौधरी के देहांत के कारण खाली हुई थी। राहुल गांधी की भारत यात्रा के दौरान दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हुई थी। कांग्रेस ने उनकी पत्नी करमजीत कौर चौधरी को ही अपना उम्मीदवार बनाया है। आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से ‘आप’ में शामिल हुए सुशील कुमार रिंकू को मैदान में उतारा है। अकाली दल इस बार बसपा से मिलकर चुनाव लड़ रहा है। अकाली दल ने अपने उम्मीदवार के तौर पर विधानसभा क्षेत्र बंगा के विधायक डॉ. सुखविंदर कुमार सुखी को खड़ा किया है। भाजपा यहाँ से पहली बार चुनाव में उतरी है। जब भाजपा का गठबंधन अकाली दल से होता था तो इस सीट पर अकाली दल चुनाव लड़ता था। भाजपा ने अकाली दल को छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए इंदर इकबाल अटवाल को सिख चेहरे के तौर पर अपना प्रत्याशी बनाया है। इंदर इकबाल अटवाल लोकसभा के पूर्व उप-स्पीकर चरनजीत सिंह अटवाल के बेटे हैं।

इस बार भाजपा की कोशिश अपने दम पर अच्छा प्रदर्शन करने की है। भले ही चारों प्रमुख पार्टियां एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रही हैं पर मुख्य मुकाबला कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच होता दिख रहा है। कुल 19 उम्मीदवार मैदान में हैं। सभी पार्टियों के बड़े नेता अपनी-अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के पक्ष में ज़ोरदार प्रचार में जुटे हुए हैं।

कांग्रेस के लिए यह सीट जीतना अपनी प्रतिष्ठा का सवाल है क्योंकि एक तो यह सीट उसने 2019 के लोकसभा चुनाव में जीती थी। दूसरा यह सीट जीत कर पार्टी सिर्फ पंजाब में ही नहीं बल्कि पूरे देश में अपनी ताकत का संदेश देना चाहती है। दिवंगत संतोख सिंह चौधरी की पत्नी करमजीत कौर चौधरी यह सीट जीत कर अपने परिवार की ताकत को दिखाना चाहती हैं। चौधरी परिवार का इस इलाके में अपना वर्चस्व है। करमजीत के बेटे विक्रमजीत सिंह चौधरी फिल्लौर विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं।

कई राजनीतिक जानकारों का मानना है कि करमजीत कौर चौधरी को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार इसलिए बनाया है कि पार्टी चौधरी परिवार के रुतबे का यहाँ से फायदा लेना चाहती है और संतोख चौधरी की मौत के बाद इलाके में उनके पक्ष में जो जज्बाती माहौल बना हुआ है उसको अपने पक्ष में भुनाना चाहती है। 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जालंधर लोकसभा में पड़ने वाली 9 विधानसभा सीटों में से 5 सीटें जीती थीं। कांग्रेस के बारे में यह आमतौर पर माना जाता है कि उसकी आपसी फूट उसकी जीत में बड़ी रुकावट बनती है। इस उप-चुनाव के दौरान पहले यह बात भी चलने लगी थीं कि पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी भाजपा ज्वाइन कर लेंगे और वह भाजपा के प्रत्याशी होंगे पर यह बात हकीकत में नहीं बदल सकी। यह ऐसा चुनाव है जिसमें कांग्रेस पार्टी स्थानीय नेताओं से लेकर राज्य के बड़े नेताओं तक को एकजुट कर लड़ती दिखाई दे रही है।

आम आदमी पार्टी के लिए यह चुनाव जीतना कई मायनों में अहम है। विधानसभा जीत के कुछ महीनों बाद ही भगवंत मान की खाली हुई संगरूर लोकसभा सीट पर आप को शिकस्त का सामना करना पड़ा था जिससे यह प्रभाव बनने लगा कि पार्टी से बहुत ही कम समय में पंजाबियों का मोह भंग हो गया। इस उप-चुनाव को जीत कर बनी हुई धारणा को तोड़ना और लोकसभा में अपना खाता खोलना आम आदमी पार्टी का मुख्य लक्ष्य है।

‘आप’ इस चुनाव में लोगों से यह कह कर वोट मांग रही है कि अगले 4 वर्ष उन्होंने ही लोगों के काम करने हैं क्योंकि पंजाब में हम सत्ता में हैं। यही बात केजरीवाल भी कह चुके हैं। उधर आरोप के तौर पर यह खबरें भी आ रही हैं कि ‘आप’ के स्थानीय नेता गांव के पंचों सरपंचों पर दबाव डाल रहे हैं कि यदि आपको हम से काम लेने हैं तो हमारे पक्ष में वोट डलवाओ। इसी लोकसभा क्षेत्र में पड़ने वाले एक सरपंच ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया, “आप के स्थानीय नेता और जिला स्तर के अफसर हमें धमकी भरे लहज़े से कहते हैं कि यदि आप ने आगे वाले चार सालों में अपने काम करवाने हैं तो ‘आप’ के उम्मीदवार के पक्ष में वोट डलवाओ, नहीं तो हम आप के विरुद्ध मामले भी खोल देंगे।” हालांकि आप के नेता इन आरोपों को विरोधियों की चाल कहते हैं।

सीनियर पत्रकार जगतार सिंह का इन आरोपों पर कहना है, “यह तो बिलकुल उसी तरह की बात हो गई जैसे भाजपा ‘डबल इंजन वाली सरकार’ का राग अलापती है। यह नैतिक तौर पर भी और लोकतान्त्रिक भावना के भी उलट है कि यदि आप ने हमें वोट न डाला तो हम आपके काम नहीं करेंगे। यह लोगों को सरेआम धमकी देने के बराबर है।”

कुछ दिन पहले कांग्रेस के नेता सुखपाल सिंह खैहरा ने अपने ट्विटर पर एक ऑडियो साझा किया है, इस कथित ऑडियो में आप के नेता संदीप पाठक पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल चीमा सहित कई और नेताओं को रौब भरे लहजे में कहते है कि यदि आपको दिए गए गांवों में से वोट न पड़े तो मैं आप को भी नहीं बख्शूगां। कुछ दिन पहले ‘आप’ सरकार के कैबिनेट मंत्री की एक कथित अश्लील वीडियो की चर्चा होने के कारण भी विरोधी सरकार को निशाने पर ले रहे हैं। दूसरी तरफ मरहूम पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला के पिता ने भी जालंधर लोकसभा सीट पर आकर लोगों को अपील करनी शुरू की है कि पंजाब सरकार उसके बेटे के कत्ल के मामले में इन्साफ नहीं दिला सकी इसलिए इस उप-चुनाव में ‘आप’ सरकार के खिलाफ वोट डालें। मूसेवाला के पिता बलकौर सिंह की जनसभा में उमड़ रही लोगों की भीड़ ‘आप’ के लिए चुनौती बनी हुई है।

2022 के विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक हार का सामना कर चुके अकाली दल के लिए यह चुनाव उसके अस्तित्व का सवाल बना हुआ है। अकाली दल के लिए बड़ी चुनौती यह है कि उसका उम्मीदवार इस निर्वाचन क्षेत्र से बाहर का है। प्रकाश सिंह बादल की मौत के बाद अकाली दल के पक्ष में लोगों की कोई भावुक लहर भी नहीं दिखाई दे रही। इस चुनाव में अकाली दल की सहयोगी पार्टी बसपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में दो लाख से ज्यादा वोट लिए थे, अब देखना यह होगा कि क्या उतने या उसके नजदीक वोट बसपा अपने सहयोगी अकाली दल को दिला सकेगी या नहीं।

दूसरी पार्टियों से नेताओं को अपने में शामिल कर अपना आधार बनाने की कोशिश करने वाली भाजपा अकाली दल से नाता टूटने के बाद पहली बार अकेले जालंधर से लोकसभा का चुनाव लड़ रही है। भाजपा सिख चेहरों को अपने में शामिल कर पंजाब में अपना आधार बनाने की फ़िराक में है। इस सीट पर भाजपा को सुखदेव सिंह ढींडसा और बीबी जागीर कौर जैसे नेताओं का समर्थन हासिल है। भाजपा ने जिस इंदर इकबाल अटवाल को इस उप-चुनाव में अपना चेहरा बनाया है वह पगड़ीधारी सिख हैं। आखिर पगड़ीधारी सिख उम्मीदवार का फायदा भाजपा को कितना मिलेगा?

इसके बारे में दोआबा की राजनीति की अच्छी समझ रखने वाले सीनियर पत्रकार अरुणदीप हमें कुछ इस तरह समझाते हैं, “जालंधर लोकसभा क्षेत्र में 38 प्रतिशत दलित वोट हैं। यह दलित आगे काफी जातियों एवं श्रेणीयों में बटे हुए हैं। यहाँ दलितों में ज्यादा संख्या रविदासिया समुदाय की है। यह जाति काफी हद तक आपस में एकजुट है। इसीलिए पंजाब विधानसभा में चन्नी फैक्टर इस इलाके में चल गया था। कांग्रेस का जालंधर में अच्छा प्रदर्शन रहा था क्योंकि चन्नी रविदासिया समुदाय से आते हैं। अब भाजपा की दिक्कत यह है कि उसका उम्मीदवार बेशक पगड़ीधारी है पर वह मजहबी सिख (सिख वाल्मीकि) भाईचारे से आता है। अब मजहबी सिख को तो रविदासिया ने वोट नहीं देनी। बल्कि देखा गया है कि वाल्मीकि समुदाय (हिन्दू वाल्मीकि) मजहबी सिखों से अपना उस तरह का नजदीकी रिश्ता नहीं रखते। यही गलती एक बार 2009 में अकाली दल हंस राज हंस को टिकट दे कर की थी।”

सामाजिक कार्यकर्त्ता और लेखक कुलविंदर आदमपुर हमें बताते है, “इस चुनाव में लोगों के मुद्दे पूरी तरह हाशिये पर हैं, राजनीतिक पार्टियों का अपना ही आरोप-प्रत्यारोप चलता रहा है। यहाँ आदमपुर की सड़क नहीं बनी, हमारे यहां कोई अच्छा शिक्षा केंद्र नहीं है। लोगों को सेहत सुविधाओं के लिए बड़े शहर की तरफ जाना पड़ता है। बेरोजगारी बहुत बड़ा मुद्दा है। यह मुद्दे इस चुनाव से गायब हैं।”

नौजवानों में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्त्ता परमजीत सिंह कड़ियाम कहते हैं, “हमारा नौजवान इस समय पूरी तरह भ्रमित है। उसको सही दिशा की जरूरत है। पंजाब में उसे अपना भविष्य नहीं दिख रहा इसलिए वह विदेशों की तरफ जा रहा है। नौजवानों के लिए रोजगार के मौके पैदा करना सरकारों का फ़र्ज़ है पर सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए नौजवान मात्र वोट और भीड़ से बढ़कर और कुछ नहीं हैं।’’

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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