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जम्मू-कश्मीर डीडीसी चुनाव: भाजपा के सपनों और मिथकों की हार

नतीजे बता रहे हैं कि अनुच्छेद 370 की समाप्ति और जम्मू और कश्मीर संभागों को केंद्र शासित राज्यों में तब्दीली को जनता ने पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया है।
जम्मू-कश्मीर

नवगठित केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में पहले जिला विकास परिषद (डीडीसी) चुनाव के हाल ही में घोषित नतीजों को भाजपा और चाटुकार मीडिया सत्तारूढ़ दल की जीत के रूप में प्रचारित कर रहे हैं। लेकिन नतीजों पर बारीक नज़र डालने से पता चलता है कि वे जीत से बहुत दूर हैं, और जनादेश ने बता दिया कि कश्मीर घाटी में भाजपा की कोई स्वीकृति नहीं है और सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि जम्मू संभाग में भी उसे केवल आंशिक स्वीकृति मिली है।

कुल 280 वार्डों में से 278 सीट पर चुनाव हुए, यानी 20 जिलों में से हर ज़िले में 14 सीट। इस चुनाव में प्रमुख प्रतिद्वंद्वी दल/मोर्चे के रूप में भाजपा, गुपकर घोषणा (PAGD) का पीपुल्स अलायंस–जो सात विपक्षी दलों से बना था- और कांग्रेस थी। भाजपा ने कुल 75 सीटें जीतीं हैं और 20 में से सिर्फ पांच जिलों में स्पष्ट बहुमत हासिल किया है जबकि गुपकर गठजोड़ (PAGD) ने 110 सीटें जीती और उसे नौ जिलों में स्पष्ट बहुमत मिला है। शेष छह जिलों में किसी भी पार्टी का बहुमत नहीं है। कांग्रेस ने 26 सीटों पर और निर्दलीय और अन्य ने 55 सीटों पर जीत दर्ज की है। श्रीनगर जिले में सात निर्दलीय जीते है। नवगठित जेएंडके अपनी पार्टी (JKAP), जिसे भाजपा की करीबी कहा जाता है, ने 26 सीटें जीतीं है।

निर्दलीय (50) और अन्य (5) की जीत ने इस मजबूत तथ्य को दर्शाया है कि स्थानीय निकाय के चुनावों में, अक्सर स्थानीय उम्मीदवार काफी वजन रखते हैं, और, कई वार्डों में, लोग उन्हें स्थापित पार्टियों से अधिक पसंद करते हैं।

जम्मू और कश्मीर के दो डिवीजनों या जिलों में सीट वितरण से पता चलता है कि भाजपा ने जम्मू में 75 सीटों में से 72 सीटें जीतीं हैं और कश्मीर में केवल तीन सीटों पर जीत दर्ज़ की है। ये तीन सीटें भी भाजपा ने इसलिए जीतीं क्योंकि वहाँ गुपकर गठजोड़ (PAGD) की तरफ से दो सीटों पर कोई उम्मीदवार नहीं था, जबकि तीसरे में पीडीपी और नेकां दोनों ही चुनाव लड़ रही थीं, जिससे भाजपा को जीतने का मौका दे दिया।

दूसरी ओर, गुपकर गठजोड़ (PAGD) ने न केवल घाटी में उलटफेर किया, बल्कि जम्मू जिले में भी 26 सीटें जीत ली,जबकि कांग्रेस ने यहाँ 17 सीटें जीतीं है। जाहिर है, जम्मू संभाग में, भाजपा का समर्थन कुछ जिलों तक ही सीमित है, मुख्यतः जम्मू, रियासी, कठुआ, सांबा और डोडा। ये सभी हिंदू बहुल जिले हैं और इन क्षेत्रों में भाजपा पहले भी मजबूत रही है। गौर करने वाली बात यह है कि विपक्षी दलों के मैदान में उतरते ही इन क्षेत्रों में भी विपक्षी दलों को समर्थन मिलना शुरू हो गया था और इससे उन्हें अपना खोया आधार मिलने लगा था। यहाँ के नतीजे इस बात को स्पष्ट करते हैं कि जम्मू को संघ शासित प्रदेश बनाना और उसकी निरंतर उपेक्षा जनता में उभरे असंतोष को दर्शाता है।

पार्टियों/मोर्चों को मिला वोट शेयर उन्हे मिले समर्थन की बारीकियों का खुलासा करते हैं

इन चुनावों में पार्टियों को मिला वोट-शेयर उनकी पकड़ को जानने का बेहतरीन बैरोमीटर हैं जो बताता है कि विभिन्न प्रतियोगी दलों और उनकी विचारधाराओं को कितना समर्थन है। जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में दिखाया गया है, बीजेपी को पूरे जम्मू-कश्मीर में लगभग 25 प्रतिशत वोट शेयर हासिल हुआ है। गुपकर गठजोड़ कुछ इससे पीछे नहीं है जिसे 23 प्रतिशत वोट शेयर मिला जबकि कांग्रेस को लगभग 14 प्रतिशत वोट मिले हैं।

यहां तक कि अगर कोई भाजपा के साथ जेकेएपी के वोटों को भी जोड़ले, तो जम्मू-कश्मीर पर  भाजपा की नीतियों के समर्थन का प्रतिनिधित्व करने के लिए जिसमें अनुच्छेद 370 को निरस्त करना और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजन करने के बारे में- यह समर्थन कुल वोटों का लगभग 30 प्रतिशत बैठता है यानी एक तिहाई से भी कम।

जिन पार्टियों ने भाजपा की नीतियों का जमकर विरोध किया- गुपकर गठजोड़ (PAGD) और कांग्रेस- को लगभग 37 प्रतिशत वोट शेयर मिला है, जो निर्णायक रूप से भाजपा+ वोटों से कहीं अधिक है। निर्दलीय और अन्य को लगभग 34 प्रतिशत वोट मिले हैं। यहाँ इस तथ्य को ध्यान में रखना दिलचस्प बात है कि जम्मू संभाग में निर्दलीय और अन्य को लगभग 29 प्रतिशत वोट मिले हैं, जबकि कश्मीर में उन्हें 45 प्रतिशत वोट मिले हैं। यदि इसमें कुछ बात है, तो वह यह कि गुपकर गठजोड़ PAGD (या इसके प्रमुख घटक, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी) के आपसी मतभेद की वजह से है।

खासतौर से महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी, जो 2015-2017 में भाजपा के साथ गठबंधन में थी और उस दौरान वह राज्य की सत्ता संभाले थी, बाद में भाजपा की आलोचक बनने के बावजूद उसे करारा झटका लगा है। कुल मिलाकर, उसे जम्मू और कश्मीर में केवल 3.9 प्रतिशत वोट मिले है, और विशेष रूप से कश्मीर में, इसे केवल 8.8 प्रतिशत वोट मिले हैं। इसकी तुलना अन्य बड़ी क्षेत्रीय पार्टी, नेकां से करें, जिन्हें कुल मिलाकर 16.3 प्रतिशत वोट मिले और कश्मीर घाटी में 18 प्रतिशत वोट शेयर हासिल हुआ है। गुपकर गठजोड़ (PAGD) की एक अन्य क्षेत्रीय पार्टी या घटक,  सज्जाद गनी लोन के नेतृत्व वाली जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (JKPC)- जो एक समय भाजपा के साथ प्रेम करती नज़र आती थी, लेकिन वह धारा 370 को निरस्त करने के खिलाफ थी और इसलिए लोन को भी अन्य क्षेत्रीय नेताओं के साथ गिरफ्तार कर लिया था- वह कश्मीर घाटी में 6.2 प्रतिशत वोट पाने में कामयाब रही। गुपकर गठजोड (PAGD) की अन्य घटक, माकपा, दक्षिणी कश्मीर के कुलगाम जिले से जहां अलगाववाद की जड़ है, वहाँ वह पाँच सीट पाने में कामयाब रही है।

डीडीसी के चुनावों को जम्मू-कश्मीर के प्रति भाजपा की उस लौह-नीति पर जनमत संग्रह के रूप में देखा जा रहा था, जिसकी शुरुआत अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण से हुई थी, जिसने राज्य के विशेष दर्जे और स्वायत्तता को समाप्त कर दिया था, और इसका विभाजन दो केंद्र शासित प्रदेशों में कर दिया था।

नतीजे बयान कर रहे हैं कि पहले से मौजूद राजनीतिक ध्रुवीकरण अभी भी जारी है- जो अक्सर समुदाय आधारित विभाजन को ओवरलैप करदेता है जो खुद भाजपा द्वारा पूर्ववर्ती राज्य को एक तोहफा था। हालाँकि, जम्मू और कश्मीर में शांति और समृद्धि के बारे में मोदी समर्थित मुख्यधारा के मीडिया ने जो काल्पनिक बुलबुला बनाया था कि राज्य में बीजेपी को भारी समर्थन है, का फिर से पर्दाफाश हो गया है। अब, राज्य के अशांत लोगों को विधानसभा चुनावों का इंतजार हैं- शायद 2021 में होगा- तब फिर से वे अपनी राजनीतिक इच्छा व्यक्त कर पाएंगे।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

J&K DDC Polls: Defeat for BJP’s Dreams and Myths

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