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विशेष: एक हमारी और एक उनकी मुल्क में हैं आवाज़ें दो

गणतंत्र दिवस के मौके पर आइए सुनते हैं जावेद अख़्तर की नज़्म...जो हमें बता रही है कि किस तरह मुल्क में दो आवाज़ें हैं—एक जो प्यार सिखाती है, आगे बढ़ना सिखाती है और दूसरी जो नफ़रत बढ़ाती, एक-दूसरे को लड़ाती है। अब ये हम पर है कि हम इनमें से कौन सी आवाज़ सुनते हैं।
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एक हमारी और एक उनकी

मुल्क में हैं आवाज़ें दो

अब तुम पर है कौन सी तुम

आवाज़ सुनों तुम क्या मानो

 

हम कहते हैं जात धर्म से

इन्सा की पहचान ग़लत

वो कहते है सारे इंसा

एक है यह एलान ग़लत

 

हम कहते है नफ़रत का

जो हुक्म दे वो फ़रमान ग़लत

वो कहते है ये मानो तो

सारा हिन्दुस्तान ग़लत.

 

हम कहते है भूल के नफ़रत,

प्यार की कोई बात करो...

वो कहते है ख़ून ख़राबा

होता है तो होने दो.

 

एक हमारी और एक उनकी

मुल्क में हैं आवाज़ें दो.

अब तुम पर है कौन सी तुम

आवाज़ सुनो तुम क्या मानो.

 

हम कहते हैं इंसानों में

इंसानों से प्यार रहे

वो कहते है हाथों मे

त्रिशूल रहे तलवार रहे.

 

हम कहते हैं बेघर बेदर

लोगों को आबाद करो

वो कहते हैं भूले बिसरे

मंदिर मस्जिद याद करो

 

एक हमारी और एक उनकी

मुल्क में हैं आवाज़ें दो

अब तुम पर है कौन सी तुम

आवाज़ सुनो तुम क्या मानो.

 

 जावेद अख़्तर

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