उत्तर प्रदेश पुलिस एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार मामला गाड़ी पलटने या एनकाउंटर करने का नहीं बल्कि खुद झांसी पुलिस के एसपी यानी सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस के सरेआम पिटने का है। पुलिस की इस फ़ज़ीहत का आरोप किसी और पर नहीं बल्कि सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के नेता और कार्यकर्ताओं पर लगा है। हालांकि पुलिस इस पूरे विवाद को मामूली धक्का-मुक्की का नाम दे रही है लेकिन इस घटना के वीडियो जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं वो कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं।
इस पूरे मामले पर विपक्ष पुलिस और प्रशासन की दुर्गति के लिए सरकार पर निशाना साध रही है तो वहीं बेहतर कानून व्यवस्था और अपराधियों को प्रदेश से बाहर का रास्ता दिखाने का दावा करने वाली योगी सरकार चुप्पी साधे हुए है।
क्या है पूरा मामला?
प्राप्त जानकारी के मुताबिक शुक्रवार, 4 दिसंबर को यूपी के झांसी के महाविद्यालय में एमएलसी चुनाव की मतगणना चल रही थी। इस दौरान समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को बढ़त मिलते देख भारतीय जनता पार्टी के विधायकों और कार्यकर्ताओँ ने मतगणना स्थल पर हंगामा शुरू कर दिया। जब पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की वे पुलिस से ही भिड़ गए। पुलिस वालों का ही डंडा छीनकर उनपर हमला कर दिया।
लाइव हिंदुस्तान में छपी खबर के मुताबिक पहली वरीयता में सपा प्रत्याशी करीब ढाई हजार वोटों से आगे रहे। इसके बाद द्वतीय वरीयता की गिनती शुरू हुई तो उसमें भी करीब दो हजार वोटों से आगे हो गए। यह खबर मतगणना स्थल के बाहर पहुंची तो भाजपा के सदर व बबीना विधायक और बड़ी संख्या में बीजेपी कार्यकर्ता वहां पहुंच गए। पुलिस ने उन्हें मतगणना स्थल में अंदर जाने से रोका जिस पर झड़प हो गई। आक्रोशित विधायक बाहर धरने पर बैठ गए और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करने लगे।
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि एक नीले रंग का कुर्ता पहने शख्स पुलिस अधिकारी का डंडे के सहारे गला दबाने की कोशिश कर रहा है। नीला कुर्ता पहने शख्स बीजेपी का झांसी महानगर का अध्यक्ष प्रदीप सरावगी बताया जा रहा है। वहीं वायरल वीडियो में दावा किया गया है कि जिस पुलिस अधिकारी पर हमला हो रहा है वो झांसी के एसपी सिटी विवेक त्रिपाठी हैं।
हालांकि घटना के बाद झांसी पुलिस ने सफाई में कहा है कि चुनाव के दौरान भीड़ के साथ पुलिस की सिर्फ धक्का मुक्की हुई है और वोटों की गिनती शांतिपूर्ण ढंग से हुई है।
पुलिस क्या कह रही है?
इस संबंध में झांसी पुलिस ने ट्वीट करके इस बात को माना कि पुलिसवालों के साथ धक्का-मुक्की हुई है। हालांकि उन्होंने एसपी विवेक त्रिपाठी को पीटे जाने की खबर को भ्रामक और फेक न्यूज करार दिया।
इस घटना पर झांसी पुलिस की ओर एसएसपी दिनेश कुमार ने कहा है, “झांसी में एमएलसी चुनाव में मतगणना शांतिपूर्ण हुई है। कुछ लोगों ने गेट के अंदर घुसने की कोशिश की, इसी बीच धक्का मुक्की हुई है। किसी के साथ भी लाठीचार्ज नहीं हुआ है। एसपी सिटी के ऊपर हमले की जो खबरें चल रही हैं वो गलत खबर है। कोई सिपाही घायल नहीं हुआ, सिर्फ धक्का मुक्की हुई है।”
विपक्ष का सरकार पर निशाना
इस घटना के बाद एक बार फिर विपक्ष के नेताओं ने योगी सरकार के ‘बेहतर कानून व्यवस्था’ और ‘अपराधियों के प्रदेश छोड़कर कर भागने’ के दावों पर सवाल उठाए हैं।
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प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने ट्वीट में कहा, “विधान परिषद के चुनाव में सपा की जीत व अपनी हार से बौखलाए भाजपाइयों ने मतगणना में घपले की कोशिश में झाँसी की पुलिस पर जानलेवा हमला किया। पुलिस पर हमलावार भाजपाइयों की तुरंत गिरफ़्तारी हो। भाजपा लोकतंत्र को निर्लज्ज होकर लूटना चाहती है। उप्र में क़ानून-व्यवस्था पूरी तरह ठप्प है।”
वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय लल्लू ने भी घटना पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए मुख्यमंत्री के दावों पर सवाल उठाया साथ ही यूपी पुलिस को आत्ममंथन करने की बात कही।
अजय लल्लू ने अपने ट्वीट में लिखा, “झांसी में भाजपा विधायकों के सामने ही भाजपा नेता ने एसपी सिटी को पटक-पटक कर पीटा। सरकार के आगे घुटने टेक चुकी पुलिस को आत्ममंथन करना चाहिए। सत्ता दल के नेताओं को गुंडागर्दी सरकार पर सवाल है। सीएम को बताना चाहिए कि वह कौन से गुंडों को उप्र से बाहर जाने की बात करते है?”
गौरतलब है कि यूपी पुलिस की फजीहत का ये कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी बलिया का गोलीकांड हो या कानपुर का विकास दुबे मामला, बुलंदशहर में इंस्पेक्टर सुबोध की हत्या हो या लखनऊ का चर्चित विवेक तिवारी एनकाउंटर कांड अक्सर यूपी पुलिस कभी अपनी वजहों से तो कभी सत्तापक्ष के कारण सवालों के घेरे में ही नज़र आती है।