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झारखंड : नेतरहाट फ़ील्ड फ़ायरिंग रेंज तो रुका, “टाइगर प्रोजेक्ट परियोजना” के विस्थापन से छुटकारा कब तक?

हेमंत सोरेन सरकार द्वारा लिए गए ताज़ा फैसले के तहत ‘नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज’ की अवधी विस्तार पर रोक लगाए जाने से इस क्षेत्र के साथ साथ पूरे प्रदेश के आदिवासी समाज और जन आन्दोलनकारियों में काफी हर्ष है। लेकिन टाइगर प्रोजेक्ट परियोजना व अन्य विनाश परियोजनाओं को भी वापस लेने का मुद्दा अपनी जगह पर बना हुआ है।
Jharkhand

हेमंत सोरेन सरकार द्वारा लिए गए ताज़ा फैसले के तहत ‘नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज’ की अवधी विस्तार पर रोक लगाए जाने से इस क्षेत्र के साथ साथ पूरे प्रदेश के आदिवासी समाज और जन आन्दोलनकारियों में काफी हर्ष है। सभी एक स्वर से सरकार के इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए स्वागत कर रहें हैं। लेकिन अपनी सरकार को आदिवासियों का परम हितैषी बताने वाले खूंटी से भाजपा सांसद व मोदी सरकार में आदिवासी मामलों के केन्द्रीय मंत्री जी ने अभी तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। न ही आये दिन हेमंत सोरेन व उनकी सरकार को आदवासी विरोधी बताकर आड़े हाथों लेने वाले प्रदेश भाजपा के आदिवासी रहनुमा झारखण्ड भाजपा विधायक दल नेता जी ने कोई टिपण्णी की है।

नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज विरोधी आन्दोलन में अपना कैरियर और घर बार छोड़कर कूद पड़नेवाले युवा आदिवासी एक्टिविस्ट व आदिवासी अधिकार मोर्चा से जुड़े जेवियर कुजूर ने कहा है कि सरकार को चाहिए कि अब वह ज़ल्द से ज़ल्द ‘पलामू टाइगर प्रोजेक्ट’ और उसके विस्तारीकरण कार्यक्रम को भी रद्द कर दे। ताकि लातेहार-गुमला के कई आदिवासी गावों के लोग जो पिछले कई वर्षों से सरकार-प्रशासन और वन विभाग द्वारा उन्हें जबरन विस्थापित किये जाने हेतु आतंकित किये जा रहें हैं, उन्हें भी  संकटों से छुटकारा मिल सके। 

सनद रहे कि ‘पलामू टाइगर प्रोजेक्ट’ को देश की आज़ादी के उपरांत ही इस प्राकृतिक क्षेत्र के आदिवासियों व आदिम जनजाति सम्मुदाय के लोगों की मर्ज़ी के खिलाफ जबरन थोप दिया गया। बताया जाता है कि सन 1950 के दौर में ही इस क्षेत्र की सुंदर रमणीक वादियों में “राष्ट्र निर्माण’ के नाम पर यहाँ पर्यटन-मौज मस्ती का स्थल बनाने के लिए यहाँ नेतरहाट स्कूल व डैम के अलावे चर्चित  बेतला नेशनल पार्क निर्माण कार्य किया गया। जिसके लिए यहाँ बसनेवाले आदिवासी समुदाय के लोगों को विकास के झांसे में रखकर उनकी काफी ज़मीनें अधिग्रहित कर ली गयी। जिससे यहाँ भरी संख्या में विस्थापित हुए आदिवासी-आदिम जनजाति समुदाय के लोगों को 1954-60 के दौरान आस पास के इलाकों में बसाया गया। इसी क्रम में 1983 में पुरे इलाके को ‘पलामू टाइगर रिजर्व क्षेत्र’ घोषित कर दिया गया। सरकारी सूत्रों के अनुसार इसे देश का प्रमुख बाघ संरक्षण क्षेत्र परियोजना कहा गया। पिछली सरकारों ने इसे और अधिक विस्तार देते हुए ‘टाइगर रिजर्व प्रोजेक्ट कॉरिडोर’ परियोजना लागू करने का फरमान दे दिया। हाल के दिनों में एक बार फिर से लातेहार व गुमला जिले के कई गावों में विस्थापित होकर बसे आदिम जनजाति और गरीब आदिवासी समुदाय के लोगों को हटने के लिए तरह तरह से दबाव डाला जा रहा है।

गौरतलब है कि झारखण्ड गठन के काफी पहले ही 1954 में एकीकृत बिहार के समय केंद्र सरकार के निर्देश पर ‘मैनुवर्स फिल्ड फायरिंग आर्टिलरी प्रैक्टिस एक्ट 1938’ के तहत नेतरहाट फिल्ड फायरिंग रेंज परियोजना के लिए नेतरहाट पठार क्षेत्र के 7 राजस्व गावों को अधिसुचित किया गया। जिसमें कहा गया कि यहाँ भारतीय सेना तोप चलाने का अभ्यास करेगी। तत्कालीन बिहार की सरकार ने इसे अमली जामा पहनाते हुए सभी चिन्हित आदिवासी गावों में इसका फरमान जारी  कर दिया। उसके बाद यहाँ सेना द्वारा नियमित रूप से तोपाभ्यास शुरू कर दिया गया। बताया जाता है कि आए दिन असमय तोपों के चलने से न सिर्फ पूरा इलाका बारूद के धमाकों से इस क़दर भर उठता था कि  जंगलों में जानेवाले आदिवासियों और वहां के जानवरों की जान पर बन आती थी। ‘केन्द्रीय जन संस्घर्ष समिति’ के अनुसार उस दौर के तोपाभाय्स से 30 ग्रामीणों के मारे गए और अनेकों घायल होकर अपंग हो चुके हैं। जिससे सेना व प्रशासन के लोग आज भी अधिकारिक तौर से इन्कार करते रहें हैं। इतना ही नहीं काई बार तो तोप के गोलों के जलते हुए हुए टुकड़े लोगों के घरों में जा गिरने से लोग बुरी तरह से झुलस जाया करते थे और वहां बंधे जानवर मर गए। सेना के जवानों द्वारा आदिवासी महिलाओं के साथ दुष्कर्म किये जाने की भी कई घटनाएँ सामने आयीं। जिनमें से दो महिलायें तो सैनिकों द्वारा सामूहिक दुष्कर्म किये जाने के कारण मर गयीं। सेना व प्राशासन ने पीड़ित ग्रामीणों के इन आरोपों को भी सिरे से खारिज करते रहे।

उक्त घटनाओं से क्षेत्र के व्यापक आदिवासियों में तीखा क्षोभ पनपने लगा और नेतरहाट फायरिंग रेंज परियोजना का विरोध सड़कों पर प्रदर्शित होने लगा। मामला तब और भी अधिक तनावपूर्ण हो उठा जब तत्कालीन बिहार सरकार ने 1991-92 में परियोजना की अवधी को 2002 तक के लिए बढ़ाते हुए फिल्ड फायरिंग रेंज क्षेत्र का विस्तार कर 245 गावों को अधिसूचित कर दिया। फलतः पुरे इलाके के आदिवासी-ग्रामीण बुरी तरह से आक्रोशित हो उठे और इलाके में जगह जगह बरिकेड लगाकर ‘ सेना का आना मना है’ जैसी तख्तियां लगाई जाने लगीं। इस अभियान में महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया जिनके जुझारूविरोध का नजारा उस दिन सबसे अधिक दीखा जब 22 मार्च 1992 को सेना की टुकड़ियां ट्रर्कों में सवार होकर तोपाभ्यास के लिए पहुंची। हजारों की तादाद में महिलायें सेना की गाड़ियों का रास्ता रोक कर नारे लगाने लगीं। मजबूरन सेना के जवानों को वहां से वापस लौटना पड़ गया। तब से आज तक सेना वहाँ तोपाभ्यास के लिए नहीं जा सकी है।

 ‘केन्द्रीय जन संघर्ष समीति’ के संयुक्त बैनर तले नेतरहाट फिल्ड फायरिंग रेंज के विरोध में आन्दोलन लगातार जारी रहा है। जिसका नेतृत्व जेरोम जेराल्ड कुजूर समेत अनेकों चर्चित आदिवासी आन्दोलनकारी कर रहें हैं। प्रति वर्ष 22-23 मार्च को संघर्ष-संकल्प दिवस पुरे जोशो खरोश के साथ मानया जाता है। जिसमें हजारों ग्रामीण व आदिवासी समाज के लोग अपने पारम्परिक परिधान और ढोल-नगाड़ा-मांदर के साथ नारे लगाते नाचते-गाते हुए शामिल होते हैं। इसी साल के आयोजन में देश के चर्चित किसान नेता राकेश टिकैत ने विशेष रूप से भाग लेकर आन्दोलन को राष्ट्रव्यापी समर्थन दिया। 

झारखण्ड विधान सभा के पिछले बजट सत्र में माले विधायक विनोद सिंह ने फायरिंग रेंज के विरोध में हो रहे आंदोलनों का हवाला देते हुए प्रश्न काल में इसके वापस लिए जाने व आगे की समयावधि विस्तार नहीं दिए जाने की मांग उठायी थी। पांचवी अनुसूची क्षेत्र होने का हवाला देते हुए नेतरहाट फिल्ड फायरिंग रेंज परियोजना के साथ साथ पलामू टाइगर प्रोजेक्ट के विस्तारीकरण योजना रद्द करने की मांग को लेकर सैकड़ों लोगों ने 21 से 25 अप्रैल तक राजभवन मार्च किया। उन्हें दिए गए ज्ञापन में सभी 245 गावों की ग्राम सभा के सर्वसम्मत फैसले की जानकारी देते हुए कहा गया कि- हम अपनी ज़मीनें नहीं देंगे। 

फिलहाल, नेतरहाट फिल्ड फायरिंग रेंज के लिए आवधि विस्तार पर रोक लगाए जाने की खबर प्रचारित होने के तत्काल बाद से ही राजधानी रांची में विभिन्न सामाजिक संगठनों के सदस्यों द्वारा सरकार के फैसले के स्वागत में जगह जगह कार्यक्रम किये जा रहें हैं. 18 अगस्त को ही कई सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने मुख्यमंत्री आवास जाकर हेमंत सोरेन को गुलदस्ता देकर आभार प्रकट किया।                                        

19 अगस्त को नेतरहाट फिल्ड फायरिंग रेंज के खिलाफ विगत कई वर्षों से आन्दोलन संचालित कर रहे संगठन ‘केन्द्रीय जन संघर्ष समिति’ के सदस्यों तथा कई आदिवासी सामाजिक संगठनों द्वारा विजय जुलुस निकाला गया।

निस्संदेह हेमंत सरकार के इस फैसले से अब लातेहार-गुमला जिला स्थित अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य से भरे पूरे नेतरहाट क्षेत्र के गावों-जंगलों में सेना के तोप के गोले नहीं बरसेंगे। न ही सेना के तोपाभ्यास के दौरान मासूम ग्रामीणों के जानें जायेंगी और ना महिलाओं की आबरू और जंगल रौंदे जायेंगे। विगत 30 वर्षों से जारी संघर्ष ने रंग दिखाया है और फायरिंग रेंज वापस लेने की मांग पूरी हुई है। लेकिन टाइगर प्रोजेक्ट परियोजना व अन्य विनाश परियोजनाओं को भी वापस लेने का मुद्दा अपनी जगह पर बना हुआ है। देखना है कि आदिवासी समुदायों के वास्तविक हितों को महत्व देने व जनाक्षाओं को पूरा करने में  हेमंत सोरेन की सरकार आगे क्या कुछ करती है।

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