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राजनीति
झारखंड : बुरुगुलीकेरा नरसंहार का कारण पत्थलगड़ी विरोध है या कुछ और!
पुलिस ने 14 नामजद समेत 200 लोगों के खिलाफ हत्या की प्राथमिकी दर्ज़ की है। हैरानी की बात है कि प्राथमिकी में कहीं से भी पत्थलगड़ी विरोध का ज़िक्र नहीं है।
अनिल अंशुमन
24 Jan 2020
pathalgarhi

झारखंड में गैर भाजपाई नयी सरकार के आते ही प्रदेश की मीडिया अचानक से अपनी ‘ आदर्श भूमिका’ में ऐसी कूद पड़ी है मानो मामला आर-पार का बन गया हो। ऐसा ही दिखा जब गत 22 जनवरी को प्रदेश के सभी प्रमुख अखबारों के फ्रंट पेज़ के लीड न्यूज़ में पश्चिमी सिंहभूम के गुदड़ी प्रखण्ड स्थित बुरुगुलीकेरा गाँव में सात लोगों की एकसाथ नृशंश हत्या की खबर प्रकाशित हुई। एक ही तस्वीर और लगभग एक ही भाषा शैली की सनसनीखेज खबर में बताया गया कि उक्त कांड पत्थलगड़ी का विरोध करने की प्रतिक्रिया में हुआ है। सनद हो कि इस सनसनीखेज खबर के लिए किसी भी अखबार अथवा चैनल के किसी प्रतिनिधि के घटनास्थल पर तत्काल जाकर तहक़ीक़ात करने संबंधी कोई जानकारी सामने नहीं आई है। जिसका साफ मतलब है कि पहली खबर का स्रोत पुलिस ही है।

दूसरी अचंभापूर्ण घटना है कि भाजपा शासन के रहते आदिवासियों के सवालों व उनके साथ होने वाली दमन-उत्पीड़न की सभी घटनाओं पर मौन रहनेवाला पार्टी का जनजातीय मोर्चा की तत्परता। जिसने आनन फानन में प्रेसवार्ता कर इस नृशंश घटना के लिए हेमंत सरकार को फौरन कठघरे में खड़ा कर यह आरोप लगा दिया कि यह घटना उनकी सरकार द्वारा पत्थलगड़ी के नाम पर हिंसा करनेवालों के खिलाफ उठाए गए देशद्रोह जैसे कठोर कदम को वापस लिए जाने का ही परिणाम है। हाल ही में भाजपा में शामिल हुए इस मोर्चा के अध्यक्ष और अन्य नेताओं की अगुवाई में एक प्रतिनिधि मण्डल तो राज्यपाल को जाकर विरोध ज्ञापन भी सौंप आया, साथ ही एक विशेष जांच टीम के जाने की घोषणा भी की गयी है ।

जिन अखबारों ने अपने फ्रंट पेज़ न्यूज़ में इस वीभत्स कांड का कारण पत्थलगड़ी का विरोध करना घोषित किया था, अधिकांश ने 24 जनवरी को भीतर के पन्नों की छोटी खबर के रूप में दूसरा समाचार प्रकाशित किया। जिसमें एडीजे मुरीलाल मीणा ने साफ किया है कि इस घटना को पत्थलगड़ी से नहीं जोड़ा जा सकता है, यह आपसी रंजिश की घटना है। चाईबासा एसपी ने भी पत्थलगड़ी की घटना से इंकार किया है। सवाल है कि मीडिया किसके इशारे और आदेश पर इतनी जल्दी घटना के निष्कर्ष पर पहुँच गयी?

दूसरी ओर, 23 जनवरी को अपनी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार के घोषित कार्यक्रम को रद्द कर मुख्यमंत्री सीधे घटनास्थल पर पहुँच गए और कांड के पीड़ित परिजनों से जाकर मिले। वहाँ भी उपस्थित मीडिया के प्रतिनिधियों ने घटना को पत्थलगड़ी से ही जोड़कर ही सारे सवाल किए, जिनका जवाब देते हुए उन्होंने कहा, 'मेरे लिए यह प्रदेश सिर्फ एक राज्य ही नहीं बल्कि एक परिवार है और ये दुखद घटना हमारे परिवार के बीच घटी है। जिससे मुझे काफी पीड़ा हुई है। मैंने एसआईटी की विशेष जांच टीम गठित कर सात दिनों के अंदर रिपोर्ट देने का आदेश दिया है। साथ ही सख्त हिदायत दी है कि किसी भी सूरत में किसी को भी कानून को अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है और इस कांड के जो भी दोषी होंगे उन्हें कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाएगी। भविष्य में ऐसी किसी घटना की पुनरावृति न हो इसके लिए भी प्रशासन को पूरी तैयारी करने के आदेश दिये हैं।'

मीडिया प्रतिनिधियों द्वारा इस घटना के पीछे पत्थलगड़ी विवाद होने संबंधी सवालों के बार बार पूछे जाने तथा भाजपा की विशेष जांच टीम के आने संदर्भ में उन्होंने साफ कहा कि अभी कुछ स्पष्ट नहीं है और अभी यहाँ जो भय का माहौल बनाने का प्रयास हुआ है, अराजक तत्वों को इसमें सफलता नहीं मिलेगी। जहां तक भाजपा की विशेष जांच टीम के आने का मामला है तो हमारी यही उम्मीद है कि जो लोग आएंगे चीजों को निष्पक्ष होकर देखेंगे। कुछ लोग पत्थलगड़ी की गलत व्याख्या कर रहें हैं।

सोशल मीडिया पर आदिवासी एक्टिविस्ट समुह मीडिया द्वारा बिना किसी ठोस प्रमाण के पूरे मामले को पत्थलगड़ी से जोड़कर एकतरफा खबर प्रसारित करने पर तीखी आपत्ति दर्ज करवा रहे हैं। वे इस नरसंहार कांड के पीछे आपसी रंजिश होने जैसे तथ्य के सामने आने के बावजूद घटना की आड़ में पत्थलगड़ी की आदिवासी परंपरा को हिंसा से जोड़े जाने से काफी रुष्ट हैं। इस कारण अखबारों के बहिष्कार की भी बातें कहीं जा रहीं हैं। वहीं एक समूह पूरी मुखरता से इसे आदिवासियों के खिलाफ गहरी साजिश बताते हुए कह रहा है कि आदिवासी ग्राम सभा में सर्वसम्मति से फैसले लेने की ही परंपरा आज भी कायम है, जिसमें विरोध करने पर हत्या करने का तो कोई रिवाज नहीं रहा है।

प्रदेश की पिछली रघुवर-भाजपा सरकार ने आदिवासियों के पत्थलगड़ी अभियान को राष्ट्रद्रोह घोषित कर अनेकों पर देशद्रोह का मुकदमा थोप दिया था। मीडिया और शहरों में बड़े बड़े होर्डिंग्स टंगवा कर आदिवासियों द्वारा आधार कार्ड, वोटर आई कार्ड राशन कार्ड वापस लेने और चुनाव समेत सभी सरकारी योजनाओं के बहिष्कार करने जैसी राष्ट्रद्रोह की बातें का ऐसा प्रचार किया गया मानो यहाँ के आदिवासी देशद्रोह पर उतारू हैं। जबकि वास्तव में झारखंड के आदिवासी मोदी – रघुवर शासन द्वारा संविधान की पाँचवी अनुसूची के प्रावधानों को धता बता कर लाठी – पुलिस के बल पर उनकी ज़मीनें और खनिज के बेलगाम लूट और विरोध करनेवालों पर दमन से आक्रोशित थे। जिसका परिणाम भी सामने आया जब विधान सभा की दो आदिवासी रिज़र्व सीटों को छोड़ बाकी सभी पर भाजपा को कड़ी हार का सामना करना पड़ा ।

केंद्र सरकार, गोदी मीडिया और प्रदेश के विपक्ष में बैठी एकमात्र भाजपा को छोड़ शेष सभी की निगाहें सात दिनों बाद आनेवाली एसआईटी जांच टीम की रिपोर्ट पर लगी हुई हैं। पुलिस ने 14 नामजद समेत 200 लोगों के खिलाफ हत्या की प्राथमिकी दर्ज़ की है। हैरानी की बात है कि प्राथमिकी में कहीं से भी पत्थलगड़ी विरोध का ज़िक्र नहीं है। जो उसी गाँव के नरसंहार पीड़ित परिवार के बटाऊ बुढ़ के बयान पर दर्ज़ हुई है। 23 जनवरी को ग्रामीणों कि अनुपस्थिति में प्रशासन के सहयोग से सभी मृतकों का अंतिम संसकार कर दिया गया है।

प्रदेश का व्यापक आदिवासी समाज इस घटना से स्तब्ध है क्योंकि उनकी अपनी ग्राम सभा परंपरा में आज तक ऐसा वीभत्स – अमानवीय कांड कभी नहीं हुआ था। फिलहाल बेचैनी भरी बहसें जारी हैं जिनमें आदिवासी समाज को बदनाम करने की किसी गहरी साजिश का ही अंदेशा लगाया जा रहा है। वहीं कुछ लोगों की राय में वर्तमान की गैर भाजपा सरकार को अस्थिर करने की कोशिश भी बताई जा रही है। अचानक से मीडिया की तेज़ सक्रियता भी प्रदेश के लोगों ने पिछली सरकार के समय में कभी नहीं देखी थी।

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