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झारखण्ड : फादर स्टैन स्वामी की मौत से जनता में रोष, न्याय के लिए छिड़ी मुहिम

फादर स्टैन स्वामी की मौत के खिलाफ राज्य के गैर भाजपा दलों व संगठनों ने संयुक्त मुहिम शुरू की। स्वामी की हिरासत में मौत की जांच, यूएपीए रद्द करने समेत सभी विचाराधीन राजनीतिक बंदियों की रिहाई की मांग तेज हुई।
झारखण्ड : फादर स्टैन स्वामी की मौत से जनता में रोष, न्याय के लिए छिड़ी मुहिम

ख़बरें बता रहीं हैं कि फादर स्टैन स्वामी की न्यायिक हिरासत में हुई मौत ने व्यापक लोकतांत्रिक शक्तियों को मौजूदा केंद्र की सरकार के दमनात्मक रवैये के खिलाफ मुखर होने के लिए किस क़दर प्रेरित किया है। उनकी याद में आयोजित हो रहे शोक – श्रद्धांजलि कार्यक्रमों से उनकी मौत की जिम्मेदार मोदी सरकार व एनआईए के साथ-साथ देश के न्याय तंत्र के खिलाफ भी आवाज़ें मुखर होने लगीं हैं।  

झारखण्ड प्रदेश लंबे समय से फ़ादर स्टैन स्वामी का मुख्य कार्यक्षेत्र रहा है। यही वजह है कि उनकी मौत से गमगीन लोगों और तमाम आन्दोलनकारी शक्तियों का आक्रोश अब प्रदेश का मुख्य सियासी मुद्दा बनकर एक जनांदोलन का स्वरुप लेता जा रहा है। जिसकी एक बड़ी शुरुआत 15 जुलाई को वामपंथी दलों और सभी गैर भाजपा सत्ताधारी दल झारखण्ड मुक्ति मोर्चा व सभी घटक दलों के अलावा कई आदिवासी व सामाजिक जनसंगठनों द्वारा 15 जुलाई को संयुक्त राजभवन मार्च के रूप में होना है। 

झारखण्ड के राज्यपाल के समक्ष होने वाले इस प्रतिवाद मार्च की केन्द्रीय मांगें हैं--फादर स्टैन स्वामी की हिरासत में हुई मौत की स्वतंत्र जांच व दोषियों को सज़ा हो, मोदी सरकार का विरोध करने वाली शक्तियों पर लगाया जा रहा यूएपीए कानून रद्द हो तथा जेलों में बंद सभी विचाराधीन राजनितिक बंदियों, मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं व सामाजिक कार्यकर्त्ताओं की अविलंम्ब रिहाई की जाए। कयास यह भी लगाया जा रहा है कि इस कार्यक्रम के एक दिन पहले ही संघ परिवार व सरकार के अत्यंत विश्वस्त माने जाने वाले प्रदेश के नए राज्यपाल का शपथग्रहण होना है। बहुत संभव है कि प्रशासन राज्य में कोरोना माहामारी के कारण लागू ‘स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह’ की बंदिशों का हवाला देकर इस प्रतिवाद मार्च को अनुमति नहीं दे। कार्यक्रम के आयोजक भी अड़े हुए हैं कि जब इसी कोरोना का में जिस अमानवीयता से बीमार फादर को जबरन ले जाकर जेल में मार दिया गया तो हम भी उसका प्रतिवाद इसी कोरोना काल में ही करंगे, प्रशासन को जो करना है वो कर ले। 

फादर स्टैन स्वामी की मौत के विरोध में गैर-भाजपा विपक्षी दलों के 15 जुलाई के राजभवन मार्च का फैसला 6 जुलाई को हुई राजधानी में हुई संयुक्त बैठक में लिया गया था। जिसकी आधिकारिक घोषणा 9 जुलाई को भाकपा माले झारखण्ड मुख्यालय स्थित महेंद्र सिंह भवन में शहीद फादर स्टैन स्वामी न्याय मंच द्वारा आयोजित शहादत संकल्प सभा से की गयी। जिसमें झामुमो व राजद के अलावे सीपीएम, सीपीआइ , मासस व भाकपा माले के नेतृत्वकारी सदस्य समेत कई अन्य जन संगठनों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। 

फादर स्टैन स्वामी की सत्ता प्रायोजित ह्त्या के खिलाफ ‘आक्रोश को अंजाम तक ले जायें’ के आह्वान के साथ आयोजित इस शहादत संकल्प सभा के मुख्य वक्ता भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि फादर स्टैन स्वामी की शहादत साहस का पैगाम देती है। आज देश और दुनिया में यही चर्चा है कि फादर की मौत सत्ता प्रायोजित ह्त्या है। विडंबना ही है कि जिन सवालों के लिए वे लड़ते रहे, अंततः उसी का शिकार बना कर मारा गया। उन्होंने देश की जेलों में वर्षों से बंद हजारों बेगुनाह विचाराधीन कैदियों का मसला उठाया था और अंत में उनको भी उसी सूची में डालकर मार डाला गया। वे विस्थापन के खिलाफ सदा आवाज़ उठाते रहे और एनआईए उन्हें ही रांची से जबरन विस्थापित बनाकर मुंबई ले गयी जहां उन्हें एक विस्थापित की मौत मारा गया। मोदी सरकार ने विरोध करनेवाली तमाम शक्तियों को एक सबक सिखाने की कोशिश की है। ऐसे में एक व्यापकतम एकता आधारित ज़मीनी विपक्ष की फौरी ज़रूरत है जो इसका कारगर जवाब दे सके। कहा जा रहा है कि आज सड़कों पर हो रहे बड़े बड़े जन आंदोलन ही वर्तमान का विपक्ष बन गए हैं। इन्हीं सन्दर्भों में फादर स्टैन की ह्त्या यही पैगाम दे रही है कि आज का समय इस निज़ाम के खिलाफ तठस्थ होने की कोई गुंजाइश ही नहीं छोड़ रहा है। जो भी तठस्थ है कहीं ना कहीं से इस निज़ाम को ही मजबूती दे रहा है। इसलिए एक ऐसी व्यापकतम विपक्षी एकता बननी चाहिए जो देश में चल रहे सभी आन्दोलनों की ऊर्जा लिए हुए हो। जिस साहस और धैर्य के साथ फादर स्टैन लोहा ले रहे थे, विपक्षी एकता को भी इसी से अनुप्रेरित होना चहिये। फादर स्टैन हमारे सामने एक ऐसी ज़िन्दा संघर्षशील विरासत छोड़ गए हैं जो सामूहिक विरोध की अभिव्यक्ति और आन्दोलनों की सामूहिकता की प्रेरणा देती है।  

हेमंत सोरेन सरकार के प्रमुख घटक दल झामुमो के महासचिव सुप्रिय भट्टाचार्य ने फादर स्टैन स्वामी की मौत को राज्य संरक्षित ह्त्या बताते हुए कहा कि 2014 के बाद से देश में ऐसी सत्ता आई है जो लोगों को फिर से प्रजा बनाकर अपनी बादशाहत चलाना चाहती है। जो कोई भी प्रजा से नागरिक बनने की कोशिश करेगा उसे यह फादर स्टैन की तरह ख़त्म कर दे रही है। इसी प्रजा की आवाज़ बनकर उभरे सिद्धू कानू और बिरसा मुंडा से लेकर गाँधी तक को खामोश कर दिया गया था। फादर स्टैन भी इसी ख़ामोशी की आवाज़ बनकर उभरे तो उन्हें भी खामोश कर दिया गया। आज इस देश में आप शासन से कोई सवाल नहीं पूछ सकते हैं। फादर स्टैन स्वामी के सवाल हर आदिवासी और वंचित जनों के थे और हम सब भी उसी की नुमाइंदगी करते हैं।  इसलिए आज पूरे देश में भाजपा विरोधी सारी शक्तियां फादर की मौत पर कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए इस बात का ऐलान  कर रहीं हैं कि उनके उठाये सवालों पर संघर्ष जारी रहेगा। 

संकल्प सभा के विषय को रेखांकित करते हुए माले विधायक विनोद सिंह ने कहा कि राज्य गठन के बाद से प्रदेश में हो रही जल जंगल ज़मीन और खनिज लूट के मुखर विरोध ने फादर को सत्ता के निशाने पर ला दिया था। इस कारण यहां बनने वाली भाजपा गठबंधन सरकारों की इन पर पैनी नज़र थी। पिछले रघुवर दास शासन में तो फादर स्टैन पर राजद्रोह का मुकदमा भी कर दिया गया था। फादर स्टैन के प्रति सच्ची श्रद्धांजली तभी होगी जब उनके उठाये सवालों पर पूरी दृढ़ता व ईमानदारी के साथ एकजुट होकर ज़मीनी संघर्ष को आगे बढ़ाएंगे।

मार्क्सवादी समन्वय समिति नेता व पूर्व विधायक अरूप चटर्जी ने कहा कि वर्तमान की केंद्र में बैठी सरकार को अपने खिलाफ में बोला जाना पसंद नहीं है। इसलिए जो कोई भी इसके खिलाफ बोलता है, उसे यूएपीए जैसे कानूनों में बंद करके जेलों में सड़ने के लिए छोड़ देते हैं। अथवा फादर स्टैन की भांति साजिश रचकर मार देती है। ईडी सीबीआई जांच और एनआईए से छापे डलवाकर सबको डरा रही है। इससे मुकाबले के लिए व्यापक एकजुटता और योजनाबद्ध आन्दोलन के लिए सबको तत्पर होना पड़ेगा।

सीपीएम के झारखण्ड प्रदेश सचिव मंडल सदस्य प्रकाश विप्लव ने देश में तानाशाही का राज चला रही भाजपा विरोधी कारगर विपक्षी एकता के लिए वामपंथी एकता को आधार बनाने पर जोर दिया। इसी के माध्यम से फादर स्टैन के सवालों और सपनों को पूरा करने की राह तैयार की जा सकती है। राज्य सीपीआई नेता महेंद्र पाठक तथा गठबंधन सरकार के घटक राजद प्रतिनिधि राजेश यादव ने भी विपक्ष की ज़मीनी एकजुट आन्दोलन से ही फादर स्टैन के अधूरे कार्यों को पूरा करने की आवश्यकता बतायी। 

आदिवासी मूलवासी अस्तित्व मंच की चर्चित आन्दोलनकारी दयामनी बारला ने कहा कि गोदी मीडिया जो ब्रांड कर रही है कि फादर स्टैन सिर्फ आदिवासी सवालों पर ही केन्द्रित थे, सही नहीं है। सच्चाई है कि जहां कहीं भी संविधान और मानवाधिकारों के हनन के खिलाफ अथवा जन मुद्दों पर कोई आन्दोलन होता था, वे उससे सक्रिय तौर से जुड़ जाते थे। 

एआईपीएफ़ से जुड़े वरिष्ठ आदिवासी बुद्धिजीवी प्रेमचंद मुर्मू ने फादर स्टैन द्वारा शोषित वंचित जनों में शुरू किये गए विचार क्रांति को जारी रखने को उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजली कहा। 

फादर स्टैन स्वामी न्याय मंच के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता कुमार वरुण ने कहा कि स्थितियां बता रहीं हैं कि फादर की शहादत बहुत रंग लाएगी। युवा सोशल एक्टिविष्ट सिराज दत्त ने हेमंत सोरेन सरकार में हो रही पुलिस ज्यादतियों पर लगाम लगाने की मांग की। विचाराधीन बंदियों की रिहाई के सवाल पर फादर स्टैन के साथ सकिय रहे युवा एडवोकेट श्याम ने मोदी सरकार द्वारा विरोध और बोलने की आजादी पर लगाई जा रही पान्बदियों के खिलाफ व्यापक जनमत खड़ा करने की आवश्यकता बतायी। झारखण्ड जन संस्कृति मंच के प्रदेश संयोजक और जंगल बचाओ अभियान में सक्रीय युवा आदिवासी एक्टिविष्ट जेवियर कुजूर ने फादर स्टैन के व्यक्तित्व और कृतित्व की जानकारी दी। आवामी इन्साफ मंच झारखण्ड के एडवोकेट इम्तियाज़ ने आदिवासी, दलित व अल्पसंख्यकों पर बढ़ते संघी हमलों के खिलाफ फादर की सक्रियताओं का उलेख किया।  

इसके पूर्व फादर स्टैन की तस्वीर पर माल्यार्पण कर दो मिनट की शोक श्रद्धांजलि देने के पश्चात झारखण्ड संस्कृति मंच के कलाकारों ने फादर स्टैन को समर्पित शहीद गीत की प्रस्तुति की।

खबर यह भी है कि 13 जुलाई को मुंबई से लायी गयी फादर स्टैन के प्रतीक अस्थि कलश माल्यार्पण करने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन फादर स्टैन स्थापित सामाजिक केंद्र बगईचा जायेंगे। 

झारखण्ड प्रदेश में हर दिन किसी न किसी क्षेत्र से फादर स्टैन को श्रद्धांजली देने के साथ-साथ उनकी मौत के खिलाफ जारी प्रतिवाद कार्यकर्मों की श्रृंखला दर्शाती है कि आनेवाले समय में उनकी शहादत और उनके सवाल व्यापक लोकतान्त्रिक शक्तियों को नए सिरे से एकजुट और सक्रिय बनायेगें।  

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