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झारखंड: ‘स्वामित्व कार्ड योजना’ के ख़िलाफ़ आदिवासी संगठनों ने राज्यव्यापी आंदोलन का किया ऐलान

मौजूदा केंद्र की सरकार और पिछली राज्य सरकार ने मिलकर झारखंड में ‘भूमि बैंक’ बनाया जिसके ज़रिए 21 लाख एकड़ से अधिक सामुदायिक संपत्ति/ज़मीन को इसमें शामिल कर जबरन ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से क़ब्ज़ा कर लिया गया।
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झारखंड के आदिवासी बहुल क्षेत्र खूंटी जिला में केंद्र सरकार की स्वामित्व/प्रोपर्टी कार्ड योजना तथा इसके पायलट प्रोजेक्ट के तहत किये जाने वाले ड्रोन सर्वे के खिलाफ क्षेत्र के आदिवासियों के जारी विरोध को अब राज्यव्यापी आंदोलन का रूप दिया जाएगा। इसकी घोषणा राजधानी के गोस्सनर कॉलेज स्थित एचआरडीसी सभागार में 9 जुलाई को आयोजित ‘संघर्ष संकल्प गोष्ठी’ कार्यक्रम में की गई।

'प्रोपर्टी कार्ड योजना नहीं’, 'सीएनटी/एसपीटी व पांचवी अनुसूची-पेसा कानूनों को कड़ाई से लागू करो' की मुख्य मांग को लेकर आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच तथा मुंडारी खुंटकट्टी परिषद समेत कई प्रमुख आदिवासी जन सगठनों द्वारा इसका आयोजन किया गया था। जिसमें जल-जंगल-ज़मीन के सवाल को लेकर कई सामाजिक जन संगठनों व विस्थापन-विरोधी आंदोलन के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

इस कार्यक्रम के आमंत्रण-आधार पत्र में कहा गया था कि 'अभी नहीं तो कभी नहीं’, 'आइये मिलकर झारखंड को बचाएंगे'! आप सभी जानते हैं कि हमारे पूर्वजों ने सांप, भालू, बाघ, बिच्छू जैसे खूंखार जंगली जानवरों से लड़कर झारखंडी धरती को आबाद किया है। जब जब हमारी इस विरासत पर हमला हुआ, समाज ने संघर्ष किया। आज राज्य बनने के बाद लगातार आदिवासी, मूलवासी समुदाय के ऊपर हमला हो रहा है। आज तक राज्य और केंद्र द्वारा जितने भी संवैधानिक कानूनों में संशोधन या फेर बदल किया गया है, सभी आदिवासी, मूलनिवासी, किसान, दलित और मजदूरों के अधिकारों को ही कमज़ोर करने का काम किया है।

मौजूदा केंद्र की सरकार और पिछली राज्य सरकार ने मिलकर झारखंड में ‘भूमि बैंक’ बनाया जिसके जरिए 21 लाख एकड़ से अधिक सामुदायिक संपत्ति/ज़मीन को इसमें शामिल कर जबरन गैर-कानूनी तरीके से क़ब्ज़ा कर लिया गया। ज़मीनों के दस्तवेज़ ऑनलाइन बनाने के नाम पर रातों रात सैकड़ों असली ज़मीन मालिकों का नाम हटाकर दूसरे फर्जी नामों को दर्ज कर लिया गया। आज आदिवासी-मूलवासी रैयतों की ज़मीनों पर धड़ल्ले से कब्जा किया जा रहा है। सरकार नित नए कानून लाकर यहां के सभी आदिवासी, मूलवासी व किसानों के परंपरागत व संवैधानिक अधिकार को कमज़ोर करके पूंजीपतियों-कॉर्पोरेट उद्योगपतियों के हितों को पूरा कर रही है। झारखंड में हमारे जल-जंगल-ज़मीन के सुरक्षा कवच सीएनटी/एसपीटी एक्ट, पांचवी अनुसूची और पेसा कानून के प्रावधानों समेत समुदाय के सभी परंपरागत अधिकारों को तकनीकी रूप से कमज़ोर किया जा रहा है।

केंद्र सरकार द्वारा लायी गयी पायलट प्रोजेक्ट स्वामित्व कार्ड योजना भी इसी का हिस्सा है जिसके प्रभावी होते ही संविधान प्रदत्त सारे परंपरागत सामुदायिक अधिकार पूरी तरह से समाप्त हो जायेंगे। आप सभी जानते हैं कि उक्त योजना के तहत प्रोपटी कार्ड बनाने के नाम पर खूंटी जिला में ड्रोन सर्वे कराया जा रहा था जिसका सभी आदिवासी संगठन लगातार विरोध कर रहें हैं। माले के विधायक विनोद सिंह द्वारा 10 मार्च को झारखंड विधानसभा के बजट सत्र में इस सवाल को उठाते हुए कहा गया था कि खूंटी जिला पांचवी अनुसूची में आता है। बावजूद इसके ग्राम सभा की सहमति के बिना ही सबकी ज़मीन/संपत्ति का ड्रोन सर्वे कराया जा रहा है। जिसके जवाब में खुद मुख्यमंत्री ने भी कहा - यह काम केंद्र सरकार द्वारा किया जा रहा है। इसको लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में संशय की स्थिति है, इसलिए राज्य सरकार फिलहाल इसे होल्ड करने का आदेश देती है। साथ ही यह भी कहा कि सरकार इस संबंध में जांच कराएगी। लेकिन यह रोक स्थायी रूप से नहीं है।

उक्त संदर्भों में संगोष्ठी को संबोधित करते हुए आदिवासी मामलों के जानकार व अधिवक्ता धनिक गुड़िया ने कहा कि अब तक देश में तीन बार सर्वे हो चुका है। पहला सर्वे 1869 में, दूसरा 1902 में और तीसरा सर्वे 1932 में हुआ था। सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि पहले सर्वे में जिस आदिवासी के पास 250 एकड़ ज़मीन थी, तीसरे सर्वे के बाद महज 50 एकड़ रह गई। आदिवासियों की नासमझी व अशिक्षित होने का फायदा उस समय के ज़मींदारों और लगान वसूलने वालों ने उठाया। स्वामित्व कार्ड योजना के तहत होने वाले सर्वे के बाद भी वही होने वाला है। जिस ज़मीन पर गांव के पूरे समुदाय का हक हुआ करता था, अब सब सरकार अपने कब्जे में कर लेगी। तीन दशकों से नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज योजना के खिलाफ संघर्ष कर रहे जेरोम जेराल्ड ने कहा कि, झारखंड में पिछले कई दशकों से यहां के जल-जंगल-ज़मीन बचाने की लड़ाई लड़ी जा रही है। कुछ माह पूर्व ही 200 किलोमीटर की पदयात्रा निकालकर राजभवन को मांग पत्र सौंपकर गुहार लगाई गयी थी। लेकिन उस पर कोई संज्ञान लिए जाने की बजाय, सेना ने फायरिंग रेंज की अवधि विस्तार का पत्र भेज दिया। जबकि 246 गावों के ग्राम प्रधानों ने सर्वसम्मति से ये फैसाला पारित कर कह दिया है कि फायरिंग रेंज के लिए हम अपनी ज़मीनें नहीं देंगे। इस आशय का पत्र भी राज्यपाल को भेजा जा चुका है।

कोल्हान प्रमंडल से आये सामाजिक कार्यकर्ता रमेश जेराई ने भी बताया कि विल्किल्सन रूल के प्रावधानों को दरकिनार कर 112 प्रखंडों को अधिसूचित क्षेत्र में शामिल कर दिया गया है जिसका विरोध लगातार जारी है।

इस संगोष्ठी में हजारीबाग के बड़कागांव में विस्थापन-विरोधी लड़ाई लड़ रहे मिथिलेश दांगी, गोड्डा में अडानी पावर प्रोजेक्ट के खिलाफ लड़ रहे चिंतामणि तथा साहेबगंज से आये फ़ादर टॉम समेत कई अन्य वक्ताओं ने अपने सुझाव दिए। साथ ही वाम दलों के प्रतिनिधियों के अलावा रांची, सिमडेगा, पश्चिम सिंहभूम, हजारीबाग, लातेहार, गुमला, खूंटी, बोकारो, कोडरमा, सराइकेला-खरसांवा के प्रतिभागियों ने भी अपनी बातें रखीं।

आयोजन की मुख्य संयोजिका आंदोलनकारी दयामनी बारला ने संगोष्ठी का सार प्रस्तुत करते हुए कहा कि केंद्र सरकार की स्वामित्व योजना का विरोध जो खूंटी जिला से शुरू हुआ है, अब पूरे झारखंड में होगा। 3 अगस्त को सभी जिलों में आंदोलनकारी प्रतिनिधियों और गैर-भाजपा सभी राजनितिक दलों के साथ बैठकर आंदोलन की व्यापक रुपरेखा तैयार की जाएगी।

इन गंभीर चिंतन विमर्शों को दरकिनार कर झारखंड भाजपा के सभी नेता 12 जुलाई को प्रधानमंत्री के देवघर आगमन को सफल बनाने में अपनी पूरी ताक़त झोके हुए है। यहां वे नवनिर्मित हवाई अड्डे का उद्घाटन के बहाने तेलंगाना की तर्ज़ पर झारखंड के लोगों को अपने पाले में लाने के लिए 18 हज़ार करोड़ रुपये की योजनाओं का लोकलुभावन शिलान्यास करेंगे। चर्चा है कि यह सारी कवायद संताल परगना के झामुमो आदिवासी-आधार में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए की जा रही है। लेकिन ताज़ा ज़मीनी हालात तो यही बता रहें हैं कि केंद्र सरकार की स्वामित्व कार्ड योजना और ड्रोन सर्वे के खिलाफ बढ़ता आदिवासी विरोध कहीं सारा खेल न बिगाड़ दे। 

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