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जोशीमठ: नई दरारें, पुराने घरों में फिर से रहने को मजबूर लोग  

"लोग दहशत में है कि बरसात में कुछ भी हो सकता है। सरकार स्पष्ट कर दे कि कौन से इलाके सुरक्षित हैं और कौन से असुरक्षित। लेकिन अब तक ऐसा कुछ नहीं किया गया। लगता है कि सरकार किसी बड़ी आपदा का इंतजार कर रही है।"
Joshimath

बारिश शुरू होने के साथ ही जोशीमठ में कुछ नई दरारें उभरने की बातें सामने आने लगी हैं। कहीं-कहीं पुरानी दरारें चौड़ी होने की भी सूचना है। जोशीमठ की स्थिति को समझने के लिए नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी की अध्यक्षता में बनाई गई विशेषज्ञ संस्थाओं की रिपोर्ट 6 महीने बाद भी सार्वजनिक नहीं हुई। जिस आधार पर शहर के सुरक्षित और असुरक्षित इलाके चिन्हित किए जा सकते थे। न ही जोशीमठ के उपचार के लिए जरूरी कदम उठाए गए। जबकि खतरा मान कर बंद किए गए हेलंग-मारवाड़ी बाईपास का कार्य दोबारा शुरू कर दिया गया है। एनटीपीसी ने भी मरम्मत से जुड़े कार्य शुरू कर दिए है।

राहत शिविरों में रह रहे लोग अपने घरों को लौट रहे हैं या फिर अन्य स्थानों पर शरण ले रहे हैं। राहत शिविर औपचारिक तौर पर बंद तो नहीं हुए लेकिन लोगों की शिकायत है कि उनसे जगह खाली करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। 
इस वर्ष जनवरी में धंसते हुए हिमालयी नगर जोशीमठ के दरारों वाले घरों से पुलिस के दम पर लोगों को घरों से खींच-खींच कर बाहर निकाला गया था। वे घर रहने के लिहाज से असुरक्षित कहे गए। जून की बारिश की तेज बौछारों के बीच लोग वापस उन्हीं घरों में रह रहे हैं। 

लोगों का सवाल है, राज्य सरकार और एनडीएमए ने इन 6 महीनों में जोशीमठ में क्या किया?

जोशीमठ के सुनील गांव के 78 भवन रहने के लिहाज से असुरक्षित चिन्हित किए गए थे। इनमें से एक भवन महिला मंगल दल की सदस्य अनिता पंवार का भी था। उनका परिवार वापस लौट आया है। वह कहती हैं “ज्यादातर लोग अपने दरारों वाले घरों में लौट आए हैं। पिछले एक-दो महीने से बारिश शुरू होने के साथ ही अब नई जगह दरारें बनने लगी हैं। कहीं-कहीं पुरानी दरारें चौडी भी हुई हैं। उन्हीं घरों में रहने में लोगों में डर तो है लेकिन हम कर क्या सकते हैं? प्रशासन अब हमसे कोई बात नहीं कर रहा। पहले कहा गया था कि सबके लिए घर बनाएंगे और लोगों को शिफ्ट किया जाएगा। वे सिर्फ मुआवजा बांट रहे हैं, उस पर भी असंतोष है, उसकी प्रक्रिया बहुत धीमी है”। 

शिविर में घटते गए लोग

करीब 4500 घर और तकरीबन 25 हजार अनुमानित आबादी वाले जोशीमठ के 868 भवन रहने के लिहाज से असुरक्षित घोषित किए गए थे। यहां से लोगों को होटल, विद्यालय जैसे राहत शिविरों में रखा गया था। कई लोग किराए के कमरों में रह रहे थे। जिनका किराया प्रशासन द्वारा वहन किया गया।

चमोली जिला प्रशासन की वेबसाइट पर उपलब्ध सूचना के मुताबिक 1 फरवरी तक 249 परिवार के 904 सदस्य राहत शिविरों में रह रहे थे और 47 परिवार रिश्तेदारों के घर या फिर किराए के कमरों में रह रहे थे। 1 मार्च तक 224 परिवार के 824 सदस्य राहत शिविरों में और 171 परिवार रिश्तेदार/किराए के कमरों में रह रहे थे। 1 अप्रैल तक 181 परिवार के 694 सदस्य राहत शिविर में रह गए। एक मई तक 132 परिवार के 502 सदस्य राहत शिविरों में बचे। अब तक की ताजा सूचना के मुताबिक 19 जून तक 65 परिवारों के 263 सदस्य राहत शिविरों में हैं।

अंजू सकलानी का घर तस्‍वीर अंजू सकलानी 

घर, भविष्य और जिंदगी सब असमंजस की स्थिति में

सुनील गांव की अंजू सकलानी का परिवार भी अपने उसी घर में करीब एक महीना पहले लौट आया। हालांकि अंजू के पति ने होटल के उस कमरे की चाबी अब तक नहीं लौटाई है जिसमें पूरा परिवार ठहराया गया था।

अंजू बताती हैं कि मार्च अंत से ही होटल वाले कमरा खाली करने का दबाव बना रहे थे। प्रशासन ने भी 31 मार्च तक राहत शिविर चलाने की बात कही थी। लोगों ने हल्ला मचाया और चारधाम यात्रा का समय हो गया तो इस अवधि को 30 अप्रैल किया गया, फिर 31 मई और फिर अब 30 जून कर दिया गया है। वे एक-एक महीना कर राहत शिविर का समय बढा रहे हैं। सभी लोग असमंजस में हैं। होटल वालों और अन्य लोगों से लड़ाई भी होने लगी। वे चाहते थे कि हम कमरे खाली कर वापस लौट जाएं।

अंजू और उनके परिवार के सदस्य अप्रैल के महीने तक दिन अपने घर में बिताते थे और रात को होटल वापस लौटते थे। वह कहती हैं “मई में हम सब घर में वापस लौट आए। मेरे पति होटल का कमरा नहीं छोड़ना चाहते। कहीं कोई मुश्किल आए तो हम वहां रहने जा सकें। लेकिन अब 30 जून को वह खाली करना ही होगा।”

उनके परिवार को जोशीमठ पुनर्वास पैकेज के तहत तकरीबन 6 लाख रुपए मुआवजा दिया गया है। अंजू कहती हैं “हमारा दो मंजिला घर है। एक मंजिल बनाने में करीब 10 लाख रुपए लग गए। जमीन के लिए अभी तक कोई मुआवजा नहीं दिया जा रहा। 6 लाख रुपए लेकर हम कहां जाएंगे। हम अपना मकान नहीं छोडेंगे और न ही उसे तोड़ने देंगे। हमने पूछा है कि आप ऐसा मकान 5-6 लाख रुपए में बनाकर दिखाओ”।

घर, भविष्य और जिंदगी सब असमंजस की स्थिति में है। अंजू कहती हैं “अब बरसात इसी दरारों वाले घर में गुजारनी है। और कहां जाएंगे? पिछले 2-3 सालों से हम डर-डर कर जी रहे हैं। सब कुछ जोड़ जोड़ कर यह घर बनवाया था। पता नहीं इस बरसात में क्या होगा, ये मकान कितना बचेगा, कितना चला जाएगा।”

अंजू के घर के नजदीक ही गौशाला में मई-जून की बारिश में नई दरारें उभर आईं।

देहरादून में अतुल सती और संजय उनियाल , 22 फरवरी को जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के सदस्य अधिकारियों से मिलने देहरादून पहुंचे।

जोशीमठ में पिछले 6 महीनों में सुधार के नाम पर क्या हुआ?

जोशीमठ की सुरक्षा के लिए स्थानीय स्तर पर बनाई गई जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के अतुल सती 22 जून को देहरादून आए। ताकि यहां अधिकारियों से मिल सकें। वह कहते हैं "पिछले 5-6 महीने के आंदोलन के बाद लोगों ने जो हासिल किया था, सरकार उसे खत्म करने की तरफ जा रही है। हमारे आंदोलन के फलस्वरूप 11 सूत्रीय मांगों पर राज्य सरकार ने सहमति जतायी थी। हमें कार्रवाई का आश्वासन दिया था। 8 अप्रैल को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हमसे जोशीमठ में बात की थी। लेकिन हमारी एक भी मांग पर अब तक कार्रवाई नहीं की गई। स्थिति अब और गंभीर हो गई है क्योंकि पहले आंदोलन के दबाव में लोग राहत शिविरों में रखे गए थे। अब वे राहत शिविर भी बंद हो गए हैं और 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग अपने अपने घरों में लौट गए हैं। 31 मई तक ज्यादातर होटलों के कमरे खाली करवा लिए।"

वह आगे कहते हैं "तीन रोज पहले रात साढ़े 12 बजे से ढाई बजे तक जबरदस्त बारिश हुई। अधिकांश लोग घरों से बाहर निकल आए। गदेरों में पानी बढ़ गया और घरों में जाने लगा। लोग फावड़ा कुदालें लेकर घर के बाहर खड़े रहे। परिवार का एक सदस्य रात को जागकर चौकीदारी करता है कि कुछ होगा तो बाकी लोगों को जगा सके। बरसात अब शुरू हो रही है। ऐसे में लोगों का टूटे हुए, दरारों वाले घरों और धंसी हुई जमीन में रहना खतरनाक है।" 

अतुल कहते हैं कि इन छह महीनों में जोशीमठ के स्थायीकरण के लिए कोई काम नहीं किए गए। नालियां नहीं बनाईं। भू-धसाव रोकने के उपाय नहीं किये गए। "हम दो दिन पहले जिलाधिकारी से मिले तो वे कहते हैं कि जोशीमठ के ट्रीटमेंट से जुड़े कार्यों का प्रस्ताव बनाकर गढ़वाल कमिश्नर को भेजते हैं लेकिन वहां से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलती। पानी निकासी के लिए सिंचाई विभाग की डीपीआर निरस्त कर दी गई। फिर टीएचडीसी को डीपीआर बनाने को कहा गया। जो अभी तक जमा नहीं की गई है।"

जोशीमठ : संघर्ष  समिति का पत्र

अप्रैल में जोशीमठ संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को 11 सूत्रीय मांगपत्र सौंपा था। जिसकी 9 मांगों पर मुख्यमंत्री ने सहमति जताई थी। संघर्ष समिति का कहना है कि सहमति के बावजूद इस पर मुख्यमंत्री ने कोई कदम नहीं उठाया।

क्यों नहीं खुला जोशीमठ पुनर्वास और विस्थापन कार्यालय?

बरसात के मौसम की ओर आगे बढ़ रहे जोशीमठ के लोग सरकार की इस उपेक्षा से नाराज हैं। जोशीमठ निवासी कमल रतूड़ी कहते हैं "लोग दहशत में है कि बरसात में कुछ भी हो सकता है। सरकार स्पष्ट कर दे कि कौन से इलाके सुरक्षित हैं और कौन से असुरक्षित। लेकिन अब तक ऐसा कुछ नहीं किया गया। लगता है कि सरकार किसी बड़ी आपदा का इंतजार कर रही है। आप इतनी बड़ी आबादी को किसी बड़ी आपदा में कैसे रेस्क्यू करेंगे। ये संभव ही नहीं है।"

मार्च में हुई कैबिनेट बैठक में राज्य कैबिनेट ने जोशीमठ में पुनर्वास और विस्थापन कार्यालय खोलने का शासनादेश जारी किया था लेकिन यह अब तक नहीं शुरू हो सका। कमल कहते हैं कि पूरा प्रशासनिक अमला बद्रीनाथ यात्रा और बद्रीनाथ मास्टर प्लान में लगा हुआ है। जिलाधिकारी, उप जिलाधिकारी सभी इसमें व्यस्त हैं। अगर एक अलग कार्यालय खुल गया होता तो जोशीमठ पुनर्वास का काम तेजी से बढा होता।

जोशीमठ की उपजिलाधिकारी कुमकुम जोशी इस समय छुट्टी पर चल रही हैं। उनकी जगह नगर की जिम्मेदारी संभाल रहे आईएएस अधिकारी दीपक सैनी न्यूज़क्लिक से बातचीत में बताते हैं कि वे पिछले 4-5 दिनों से बद्रीनाथ में व्यस्त हैं। आज बद्रीनाथ के पास एक गांव में बादल फटा है तो उस स्थिति को देख रहे हें। जोशीमठ में क्या लोग उन्हीं घरों में वापस लौट गए, इस सवाल का जवाब वह तत्काल नहीं दे सके।

जोशीमठ का रिस्क मैप

राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सचिव रंजीत सिन्हा भी खुद को इस बात से अनजान बताते हैं कि जोशीमठ के लोग दरारों वाले घरों में लौटे हैं। इस बारे में पूछने पर वह जिलाधिकारी से बात करने की बात कहते हैं। न्यूज़क्लिक से बातचीत में सिन्हा कहते हैं "हमने जोशीमठ में भू-धसाव की स्थिति के आधार पर बनाया गया रिस्क मैप जिलाधिकारी के साथ साझा किया है। हम इसे जल्द ही लोगों के साथ साझा करेंगे। जिला प्रशासन को रिस्क मैप के आधार पर क्षेत्र चिन्हित करने के लिए बोला गया है।" 

"जोशीमठ में 9 वार्ड हैं। हर वार्ड में कुछ सुरक्षित जोन हैं, कुछ असुरक्षित जोन। सुरक्षा के लिहाज से हर वार्ड में कुछ अधिक खतरे वाले क्षेत्र मैप किए गए हैं, कुछ मध्यम और कुछ कम खतरे वाले पॉकेट्स हैं। खतरे के स्तर के आकलन के आधार पर ही काले, लाल, पीले और हरी श्रेणी में बांटा गया है। काले और लाल श्रेणियां अधिक खतरनाक है और यहां लोगों को रहने नहीं दिया जा सकता। सभी श्रेणियों के लिए अलग योजना बनाई गई है। इस नक्शे के लिहाज से क्षेत्र चिन्हित करने के बाद पुनर्वास को लेकर अंतिम फैसला होगा।''

सिन्हा कहते हैं कि काले और लाल श्रेणी में चिन्हित किए गए इलाकों में लोग यदि वापस लौटे हैं तो उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।

गढ़वाल आयुक्त सुशील कुमार से प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की गई लेकिन उनका मोबाइल लगातार स्विच ऑफ रहा और कार्यालय नंबर पर घंटी बजती रही मगर फोन नहीं उठा।

हेलंग मारवाड़ी बाईपास निर्माण दोबारा शुरू करने के विरोध में 23 जून को व्यापारियों ने किया विरोध प्रदर्शन

जोशीमठ का उपचार नहीं, अन्य निर्माण शुरू

जोशीमठ के भू-धसाव के उपचार के लिए इन 6 महीनों में कोई कार्य नहीं शुरू हुआ। लेकिन जनवरी में भू-धसाव संकट के बाद बंद किए गए हेलंग मारवाड़ी बाईपास का निर्माण दोबारा शुरू कर दिया गया है। खबर के मुताबिक बाईपास के लिए आईआईटी रुड़की, लोक निर्माण विभाग और टीएचडीसीआईएल के विशेषज्ञों से सर्वेक्षण रिपोर्ट मांगी गई थी। कहा गया है कि रिपोर्ट में जोशीमठ भू-धसाव का हेलंग मारवाड़ी बाईपास पर कोई असर नहीं पडेगा।

23 जून को जोशीमठ के व्यापारियों ने बाईपास बनाने का विरोध किया। प्रांतीय उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल के बैनर तले व्यापारियों ने बाजार बंद रखा और जुलूस निकाला। व्यापार मंडल के अध्यक्ष नैनी भंडारी कहते हैं कि इस रोड के बनने से जोशीमठ के लोगों की आजीविका छिन जाएगी। वैज्ञानिक रिपोर्ट भी नहीं सार्वजनिक की गई है जिससे यह पता चले कि इस रोड के निर्माण से जोशीमठ में भू-धसाव पर क्या असर होगा। 

वहीं जोशीमठ संघर्ष समिति के कोषाध्यक्ष संजय उनियाल कहते हैं कि जोशीमठ की तलहटी में मारवाड़ी हेलंग बाईपास का निर्माण शुरू किया गया है। इससे लोगों में खतरे का भय बना हुआ है। एनटीपीसी को भी कोर्ट से मरम्मत से जुड़े कार्यों की अनुमति मिल गई है। इन्हीं वजहों से जोशीमठ में दिक्कत शुरू हुई थी।

जोशीमठ को लेकर जारी 19 जून के बुलेटिन में भी एनटीपीसी तपोवन विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना के तहत हो रहे निर्माण कार्यों पर लगी रोक की बात हटा ली गई है। जबकि इससे पहले के 12 जून के बुलेटिन में इसका उल्लेख किया गया है।
जोशीमठ को सुरक्षित बनाने के लिए कुछ नहीं किया

भू एवं पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ रवि चोपड़ा कहते हैं "जोशीमठ में राज्य और केंद्र सरकार का आपदा प्रबंधन प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। उन्होंने प्रभावित लोगों की पुकार पर ध्यान नहीं दिया। लोगों के जीवन को सुरक्षित बनाने के लिए कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं किया गया। ये देखते हुए कि बारिश शुरू हो चुकी है जोशीमठ के असहाय लोग अब अत्यधिक जोखिम की स्थिति में हैं।"

वह कहते हैं "जनवरी में जोशीमठ में पानी का रिसाव होने के तुरंत बाद कुछ उपाय किये जा सकते थे। लेकिन कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया। भूमिगत जल के रिसाव के चलते धरती के नीचे मिट्टी का कुछ हिस्सा हट गया जिससे जमीन धंसने लगी।'' 
भारी वर्षा की स्थिति में मिट्टी पर उच्च दबाव बनने की संभावना है, जो निश्चित रूप से भूस्खलन को बढ़ा सकता है और कुछ भूस्खलन का कारण भी बन सकता है। इस समय जरूरत है कि सरकार बेहद संवेदनशीलता के साथ लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाए।" 

(देहरादून से स्वतंत्र पत्रकार वर्षा सिंह)

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