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जोशीमठ : घरों में दरार से लोगों में डर, 'भू-धंसाव की रिपोर्ट जारी करे सरकार'

उत्तराखंड के जोशीमठ में बारिश का मौसम आते ही घरों में नई दरारें दिखाई देने लगी हैं। डर के साए में जी रहे लोगों ने 'जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति' के बैनर तले एक दिन का धरना देकर सरकार को 11 सूत्री ज्ञापन की याद दिलाई।
joshimath

इसी साल जनवरी में अचानक उत्तराखंड के जोशीमठ ने देश ही नहीं पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा। इसकी वजह थी यहां घरों में पड़ी दरारों का अचानक ही चौड़ा हो जाना। घबराहट का ऐसा आलम था कि लोगों को अपने पुश्तैनी घरों को छोड़ कर विस्थापित होना पड़ा। लेकिन सरकार और प्रशासन की बेरुखी की वजह से विस्थापित लोगों में से कुछ परिवार एक बार फिर उन्हीं दरकते घरों को लौट गए हैं।

जनवरी में चौड़ी होती दरारों की ख़बर जुलाई आते-आते जैसे फाइलों के नीचे दब कर रह गई हो, लेकिन अपने ही घरों में हर पल बढ़ती दरारों को चौड़ा होता देख लोग शांत बैठने को तैयार नहीं हैं। बारिश के मौसम ने लोगों की चिंता बढ़ा दी है और एक बार फिर इन लोगों ने सरकार का ध्यान अपनी तरफ खींचने की कोशिश की।

पिछले कुछ सालों से बारिश शुरू होते ही पहाड़ों से भूस्खलन की ख़बरों का आना बढ़ गया है। ऐसे में इस साल मानसून के आते ही जोशीमठ के लोगों की चिंता पहले के मुकाबले कहीं ज़्यादा बढ़ गई है। कुछ दिन पहले ही बदरीनाथ और चमोली में लैंडस्लाइड की ख़बरें आई थीं।

इसके अलावा हाल ही में जोशीमठ के सुनील वार्ड में एक बड़ा गड्ढा दिखाई दिया जिसकी वजह से लोगों में दहशत है। हालांकि सुनील वार्ड ही नहीं बल्कि और भी कई जगहों पर गड्ढों के होने की ख़बर आ रही है। बारिश के मौसम में हालात क्या होने वाले हैं इस आशंका से लोग चिंतित हैं। और इसी चिंता की वजह से एक बार फिर सरकार को उसके वादों को याद दिलाने के लिए 'जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति' ने 3 जुलाई सोमवार को एक दिन का धरना बुलाया। और एक बार फिर SDM के माध्यम से मुख्यमंत्री को 11 सूत्री मांगों का ज्ञापन सौंपा। हालांकि ये ज्ञापन पहले भी सरकार को सौंपा जा चुका है।

image11 सूत्री ज्ञापन

इस 11 सूत्री ज्ञापन में जो सबसे अहम है वे सरकार द्वारा घोषित मुआवजा की मांग, विस्थापितों के लिए उचित पुनर्वास और जोशीमठ की आपदा के संदर्भ में देश की शीर्ष आठ संस्थाओं ने जो सर्वेक्षण/ अध्ययन किया है, उनके अध्ययन की रिपोर्ट को शीघ्र सार्वजनिक किया जाए जिससे लोगों में व्याप्त तमाम आशंकाओं का समाधान हो सके।

गौरतलब है कि जनवरी में शुरू हुआ आंदोलन क़रीब तीन महीने चला था जिसे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के आश्वासन पर 20 अप्रैल को 20 दिन के लिए स्थगित कर दिया गया था। 'जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति' ने अप्रैल में ही 11 सूत्री मांगों का ज्ञापन सरकार को सौंपा था और कहा था कि अगर सरकार ने उनकी मांगे नहीं मानी तो वे दोबारा आंदोलन करेंगे। और इसी सिलसिले में 20 दिन बाद 11 मई को एक मशाल जुलूस निकाला गया। इसके बाद भी लगातार संगठन आवाज़ उठाता रहा।

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लेकिन बारिश के मौसम में ताज़ा दरारें और भू-धंसाव की घटनाओं को देखते हुए क्या एक बार फिर सरकार का ध्यान खींचने के लिए आंदोलन तेज़ करने की ज़रूरत महसूस होने लगी है? बेहद नाजुक पहाड़ों में बसे जोशीमठ में क्या हालात हैं? इस पर हमने 'जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति' के संयोजक अतुल सती से फोन पर बात की। उनसे हुई बातचीत का अंश नीचे दिया गया है:

जोशीमठ में अभी क्या हालात हैं?

हालात ऊपरी तौर पर पहले से तो ठीक दिख रहे हैं लेकिन अगर हम बरसात के संदर्भ में देखें तो वे कुछ गंभीर हो जाते हैं। प्रभावित लोग जिनके घरों में दरारें हैं उनमें तो भय है, आशंका का माहौल है और जब बारिश होती है तो वे घर से बाहर निकल आते हैं, कुछ दिन पहले रात में तेज़ बारिश हुई तो लोगों में बहुत दहशत थी। लोग अपने घरों से बाहर निकल आए और फावड़ा लेकर कोशिश करने लगे की पानी का रुख़ बदल दें ताकि पानी कहीं जमा न हो पाए। लोगों में असमंजस की स्थिति है, लोगों को पता नहीं है कि उनके इलाक़े की क्या स्थिति है, क्योंकि वैज्ञानिकों की रिपोर्ट जारी हुई नहीं तो इससे साफ स्थिति के बारे में पता नहीं चल पा रहा कि बरसात का कितना असर होगा? लोग अपने अनुमान के मुताबिक चल रहे हैं। कई जगहों पर दरारें आ गई हैं, ये नई दरारें हैं, जहां पहले नहीं थीं उन घरों में भी दरारें आ गई हैं, तो इसलिए लोगों में ये आशंका है कि कब क्या हो जाए, और सरकार की तरफ से किसी तरह का कोई आश्वासन भी नहीं दिख रहा।

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जब हम DM से मिले या बाकी अधिकारियों से मिले तो उनका भी कहना है कि ''हम भी बरसात का इंतज़ार कर रहे हैं कि देखते हैं इससे कितना नुक़सान होता है, उसके बाद हम भी कुछ कर पाएंगे'' लेकिन हमने उनसे कहा कि हो सकता है कि संभव है इस बरसात में कुछ न हो लेकिन जहां तीन फीट से पांच फीट तक ज़मीन खिसक गई, इतने घरों में दरारें हैं तो पानी तो भरेगा और नुकसान तो होगा, पिछली बार भी जुलाई-अगस्त की बरसात में नुकसान नहीं हुआ, अक्टूबर की बारिश में बड़ा नुक़सान हुआ, अभी जब बारिश हो रही है तो आस-पास घटनाएं हो रही हैं, रास्ते टूट गए, पुल टूट गए, भले ही वे जोशीमठ से थोड़ा हटकर हुए हैं। लेकिन अगर वो बारिश कल या परसो यहां हो गई तो यहां ज़्यादा नुकसान होगा। पर वे (अधिकारी) कुछ बताने को तैयार नहीं हैं, या फिर उन्हें संदेह है कि ज़्यादा कुछ हो सकता है अगर हमने लोगों को बता दिया तो लोगों में पैनिक का माहौल बन जाएगा।

कितने परिवार हैं जो अब भी रिलीफ कैंप में या फिर अपने घरों को छोड़कर दूसरी जगहों पर रह रहे हैं?

रिलीफ कैंप में अब बहुत कम लोग रह गए हैं। मुश्किल से 10 फीसदी हैं, या इससे भी कम, ज्यादातर लोग अपने उन्हीं दरार वाले घरों में लौट चुके हैं या फिर किराए के घरों में। रिलीफ कैंप तो आप समझ लीजिए क़रीब-करीब बंद हैं।

दरार वाले घरों में लोगों का लौटना क्या सरकार की बड़ी लापरवाही नहीं?

ये आपराधिक लापरवाही है, एक समय आपने (सरकार) उन लोगों को वहां से खदेड़ा, ये बोलते हुए कि ''इन्हें छोड़िए इनमें ख़तरा है।'' मीडिया को दिखाने के लिए रिलीफ़ कैंप लगा दिए और अब जब कि हालात ज़्यादा नाजुक और ख़राब हैं तो वे लोग उन्हीं ख़तरे वाली जगहों पर लौट गए जिन्हें सरकार ने कहा था कि ये ख़तरे वाली जगह है। उस जगह को पहले Red zone कहा फिर Danger zone कहा। अब कह रहे हैं ये संवेदनशील हैं। तो चाहे रेड ज़ोन हो या फिर Danger zone या फिर संवेदनशील जगह, हर लिहाज से वे ख़तरनाक ही है, सिर्फ शब्दावली बदल देने से क्या होता है?

हाल ही में पता चला की सुनील वार्ड में बड़ा गड्ढा हो गया, क्या और भी जगहों पर ऐसा हुआ है?

सुनील वार्ड में तो अभी गड्ढा बना है इससे पहले गांधीनगर में हो गया था। ये तो लगातार हो रहा है। 15-20 दिन में ये कहीं ना कहीं बन रहे हैं। इन गड्ढों की गहराई काफी है। लोगों के मुताबिक कम से कम 10 फीट या उससे भी गहरे हैं ये गड्ढे। बाकी जगह पर भी 10 से 15 फीट गहरे गड्ढे बन चुके हैं। इससे ये अनुमान लग रहा है कि ज़मीन के नीचे कहीं कैविटी (बड़े गड्ढे) बन गई हैं।

रिपोर्ट्स जारी न करने के पीछे क्या वजह हो सकती है?

जानबूझकर जारी नहीं की जा रही है वर्ना कई बार मांगने पर, बोलने पर, इस पर हमने कई बार प्रेस कॉन्फ्रेंस की, इतना हल्ला मचाया, कल भी धरना दिया लेकिन नहीं बता रहे। सरकार का तीन दिन पहले एक प्रेस नोट (आपदा प्रबंधन के सचिव की तरफ से जारी किया गया था) आया है जिसमें वे कह रहे हैं कि ''रिपोर्ट के आधार पर हमने जोशीमठ का खाका तैयार कर लिया है कि क्या निर्माण होना है।'' इसका मतलब साफ है कि रिपोर्ट उनके पास है, लेकिन वे उसके बारे में बता नहीं रहे हैं। जबकि वो तो पब्लिक के लिए है, अगर किसी वैज्ञानिक संस्थानों ने अध्ययन किया है तो वो बताना चाहिए। ये लोकतांत्रिक देश है इसमें लोगों को ये जानने का हक है कि उनके बारे में क्या तय हो रहा है, किस आधार पर तय हो रहा है। और ये तो लोगों की जीवन सुरक्षा से जुड़ा हुआ सवाल है। ये तो वैसे भी बताया जाना चाहिए ताकि सरकार अगर कुछ न भी करे तो कम से कम हमें पता तो होना चाहिए कि हम जिस जगह पर रह रहे हैं वे सुरक्षित है या नहीं? और अगर वे सुरक्षित नहीं हैं तो हम उसका विकल्प तलाश करेंगे।

क्या फिर से बड़ा आंदोलन होगा?

अप्रैल के महीने में मुख्यमंत्री ने हमसे बातचीत की और आश्वासन दिया था कि ''हम आपकी 11 सूत्री मांगों पर सहमत हैं'' और हमसे अपील की कि अपना आंदोलन ख़त्म कर दें। हमने कहा कि हम ख़त्म तो नहीं करेंगे स्थगित करेंगे। तो हमने उनके आश्वासन पर 20 अप्रैल को स्थगित किया। 20 दिन का समय दिया फिर मशाल जुलूस निकाला, फिर 10-15 दिन के बाद एक बड़ा धरना दिया जिसमें मेधा पाटकर भी शामिल हुईं, बड़ी सभा हुई, फिर हमें लगा कि कोई कार्रवाई होगी। लेकिन नहीं हुई तो फिर हमने सरकार का ध्यान खींचने के लिए धरना दिया और ज्ञापन दिया कि जिस पर सहमति बनी थी उसे पूरा कीजिए। कल ये तय हुआ है कि हर 10-15 दिन के अंतराल पर हम ऐसा कार्यक्रम करेंगे जिस पर दबाव बना रहे। अभी यात्रा का सीज़न है तो हम समझते हैं कि सरकार उसे लेकर व्यस्त है लेकिन उसके बाद भी लगा कि सरकार कुछ नहीं कर रही है तो हमें अपना आंदोलन दोबारा से जारी करना पड़ेगा। 

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