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जोशीमठ की बात दिल्ली पहुंचने में देर हो गई !

जोशीमठ के आशियानों में दरार देखकर वहां रहने वाले लोगों का कलेजा छलनी हुआ जा रहा है। आंसू थमने का नाम नहीं ले रहा। पहाड़ों का जीवन बहुत मुश्किलों से भरा होता है, जहां तिनका-तिनका जोड़कर चार दीवारें नहीं खड़ी जाती बल्कि उसमें एक दुनिया आबाद होती है और किसी की यही दुनिया पाताल में उनकी निगाहों के सामने रफ़्ता-रफ़्ता समाई जा रही है। लंबे समय से जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के तहत आंदोलन कर रहे अतुल सती से न्यूज़क्लिक की रिपोर्टर नाज़मा ख़ान ने इस मुद्दे पर बात की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश :
Atul Sati

इंसानी नज़रिए से देखें तो महसूस होता है कि इस वक़्त जोशीमठ से गुज़रने वाली नदी से ज़्यादा पानी वहां रहने वाले बाशिंदों की आंखों में होगा। इंसान के दिल के क़रीब जो सबसे ख़ास ख़्वाहिश होती है उसका नाम है घर जिसे एक ख़ूबसुरत लफ़्ज़ आशियाने में समेटा जा सकता है। लेकिन इन्हीं आशियानों में दरार देखकर वहां रहने वाले लोगों का कलेजा छलनी हुआ जा रहा है। आंसू थमने का नाम नहीं ले रहा।

पहाड़ों का जीवन बहुत मुश्किल होता है, जहां तिनका-तिनका जोड़कर चार दीवारें नहीं खड़ी जाती बल्कि उसमें एक दुनिया आबाद होती है और किसी की यही दुनिया पाताल में उनकी निगाहों के सामने रफ़्ता-रफ़्ता समाई जा रही है। लगातार जोशीमठ से जुड़ी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। ये तस्वीरें किसी भी संवेदनशील इंसान की आंखों को डबडबा देने के लिए काफ़ी हैं। दिल्ली में रहते हुए मेरा पहाड़ों से एक 'इमोशनल ट्रैवलर' का नाता है और जब इस ख़बर ने मुझे इतना परेशान कर दिया तो उन लोगों का क्या हाल होगा जो लगातार न जाने पिछले कितने सालों से गले की नस खींच-खींच कर चिल्ला रहे हैं और इस आने वाली आपदा के बारे में सरकार, समाज को चेताने की कोशिश कर रहे हैं।

ऐसे ही चंद लोगों से मेरी बात हुई जिनमें सबसे ख़ास थे अतुल सती। अतुल सती इस मुद्दे पर पिछले कई सालों से एक लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं, वे लगातार इस ख़तरे से आगाह कर रहे थे लेकिन ऐसा लग रहा है जोशीमठ की आवाज़ दिल्ली पहुंचने में देर हो गई। पेश हैं उनसे बातचीत के मुख्य अंश :

नाज़मा ख़ान : ऐसा लगता है कि जोशीमठ की आवाज़ दिल्ली पहुंचने में देर हो गई। क्या कहेंगे आप?

अतुल सती : बिल्कुल, बहुत देर हो गई है'। हम इस पूरे हालात को बदल सकते थे, ये Scenario ( परिघटना) 360 डिग्री एंगल में बदली जा सकती थी, हमने पहली बार जब मेमोरेंडम दिया था ( 16 नवंबर 2021, ये उस जगह के लिए दिया गया था, जहां अब ये शुरू हुआ है)। उस वक़्त हमने चेतावनी दे दी थी कि कुछ बड़ा होने वाला है। हमने तभी कहा था कि अगर अभी 14 परिवारों की व्यवस्था नहीं की जा रही फिर पांच हज़ार परिवारों के बारे में सोचना पड़ेगा तो नाकों चने दबाने वाली नौबत आ जाएगी, लेकिन उस चेतावनी को नहीं सुना गया।

हम इस परियोजना के ख़िलाफ़ पिछले 18-19 साल से लड़ रहे हैं अगर इसे तभी बंद कर दिया गया होता तो ये नौबत नहीं आती।

नाज़मा ख़ान : जोशीमठ में बिगड़े हालात के लिए NTPC ( National Thermal Power Corporation Limited ) के प्रोजेक्ट का लगातार विरोध किया जा रहा है

अतुल सती : अभी भी हमें सूचना मिल रही है कि यहां हो सकता है कि काम रुका न हो।

नाज़मा ख़ान : अब तो प्रधानमंत्री ख़ुद इस मसले पर नज़र बनाए हुए हैं, कमेटी गठित कर रहे हैं इसके बावजूद अगर ऐसी सूचना मिल रही है तो ये बहुत ही हैरानी की बात है।

अतुल सती : वो सरकार का एक बड़ा प्रोजेक्ट है, बड़ा पैसा लगा है उसमें क्या बात कर रही हैं आप, कैसे उसे आसानी से बंद कर देंगे।

2021 की तबाही का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि यहां इतनी बड़ी आपदा आई 200 लोग मर गए, जोशीमठ में तो मरने की आशंका है, वहां तो लोग मर चुके थे, उन लाशों पर खड़े होकर हमारे मुख्यमंत्री ने कहा कि इस आपदा को परियोजना के ख़िलाफ़ प्रोपगेंडा की तरह इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। उनका इतना संवेदनहीन बयान था। बजाए मरने वालों के प्रति संवेदना व्यक्त करने के वे ये सब कह रहे थे।

नाज़मा ख़ान : क्या अब भी कोई आस-कोई उम्मीद बची है?

अतुल सती : जोशीमठ की? 

नाज़मा ख़ान : जी

अतुल सती : उम्मीद पर तो दुनिया क़ायम है, हमने प्रशासन से कहा कि जगह ख़ाली करवा ली जाए। लोगों को सुरक्षित जगह पर भेज दिया जाए तो क्या पता चार-पांच महीने में ये Phenomenon ( घटनाक्रम) बदल जाए। हो सकता है NTPC का काम बंद जो जाए, विस्फोट बंद हो जाए तो पांच-सात महीने में हालात बदल जाए। ऐसी हमारी उम्मीद है। पर कुछ जगह ऐसी हैं, जो किसी भी हालत में जाएगा, उसको तो बिल्कुल नहीं बचाया जा सकता। वो क़रीब आधा किलोमीटर चौड़ा है और क़रीब एक किलोमीटर लंबा है। वो इलाक़ा अचानक ही बहुत ही सीरियस हो गया है।

और ऐसे में बारिश हो गई तो हालात बहुत ख़राब हो सकते हैं और उन्होंने बताया कि आज या कल बारिश होने की पूरी संभावना है। हालांकि वहां से बहुत से लोगों को हटा लिया गया है, पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता कि क्या होगा।

नाज़मा ख़ान : बीजेपी शासित राज्य में एक व्यक्ति के लिए ये लड़ाई कितनी मुश्किल है?

अतुल सती : मैं यहां 20-22 साल से लड़ाई लड़ रहा हूं, हमने तो यहां संयुक्त संघर्ष चलाया, मुझ से पहले भी यहां एक कार्यकर्ता थे गोविंद सिंह जो कम्युनिस्ट नेता थे और चिपको आंदोलन के प्रणेता थे। वे मास लीडर थे, यहां उनकी एक आवाज़ पर जनता खड़ी होती थी। और मैंने भी जब-जब जनता को बुलाया वो पहुंची। ये मेरा पहला आंदोलन नहीं है, 2004 से 2007 तक तीन साल लगातार, बिना रुके मैं जुलूस निकालता रहा। मैं वहां कोई अकेला नहीं चलता था उसमें लोग होते थे। हमने तालाबंदी की, तीन-तीन हज़ार लोगों का जुलूस निकाला ये मैंने अकेले नहीं किया, लोगों का भरोसा है मुझ पर। फिर उन्होंने कहा कि हां ठीक है चुनाव एक अलग चीज़ है लेकिन हमने लोगों के बीच दूसरी तरह से भरोसा हासिल किया अपनी ईमानदारी से। हमको ख़रीदने की कोशिश हुई है। NTPC ने तो बोली लगाई हमारी, प्रमाण है हमारे पास।

अतुल सती से बात करने का बहुत कम वक़्त मिला, वो आज-कल सोशल मीडिया से लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया में छाए हुए हैं। लेकिन ये सब देखकर बस एक ही सवाल दिल में आ रहा था कि जिस शख़्स को अब खोज-खोज कर सुना जा रहा है काश की वक़्त रहते उसकी बात सुन ली गई होती।

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