Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

जुनैद-नासिर हत्याकांड : न्यू इंडिया का सीज़न 2 ?

भाजपा के सत्ता में आने के बाद से बढ़ी भीड़तंत्र की घटनाओं के अब तक के पैटर्न से इतर जुनैद-नासिर हत्याकांड और ज़्यादा ख़तरनाक है।
nasir junaid case
फ़ोटो साभार: PTI

पिछले दिनों राजस्थान के घाटमीका गांव के दो युवाओं जुनैद और नासिर के जले हुए कंकाल हरियाणा के भिवानी में जिस हालात में मिले हैं, वह इस तरह की घटनाओं के एक डरावने पैटर्न की ओर इशारा करता है। मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के सत्ता में आने के बाद से बढ़ी भीड़तंत्र की घटनाओं के अब तक के पैटर्न से इतर जुनैद-नासिर हत्याकांड और ज़्यादा ख़तरनाक है। इसी तरह के सभी हत्याकांडो में जाने की बजाय सिर्फ दादरी के अख़लाक़ (2015), लातेहर के मज़लूम अंसारी और उनके 12 वर्ष के बेटे इम्तियाज़ खान (2016), अलवर के पहलू खान (2017), झारखंड के ही तबरेज़ अंसारी (2017)  जैसे कुछ हत्याकांडों की तुलना में ही देखें तो जुनैद और नासिर की हत्याएं इससे काफी कुछ नई और गंभीर स्थिति का संकेत देने वाली हैं।

पहली तो यह कि अब तक इस तरह की भीड़ से होने वाली हत्याओं (हालांकि इन्हे भीड़-हत्या कहना पर्याप्त नहीं है) की-प्रणाली या मोडस ऑपरेंडी-में अफवाह फैलाकर भीड़ जुटाना, उन्हें उकसाकर उन्मादी बनाना, जो कार्यवाही में शामिल हो सकते हैं उन्हें शामिल कर, बाकियों को दर्शक बनाकर किसी निहत्थे, निरपराधी इंसान पर हमला बोल देना और मार डालना शामिल हुआ करता था। इस तरह की आपराधिक योजना में कथित रूप से जनता की आस्था के आहत होने, उनकी भावनाओं के अचानक उमड़ पड़ने इत्यादि जैसे बहाने और आड़ हुआ करती थी। जुनैद और नासिर हत्याकांड की क्रोनोलॉजी इससे अलग है। ये इस मायने में ख़तरनाक है कि इसमें स्वतः स्फूर्तता का दिखावा तक नहीं किया गया।

आरोपी मोनू मानेसर का गिरोह इन दोनों को कथित तौर पर उनके राजस्थान के गांव से उठाता है, हरियाणा के जींद में ले जाकर उन्हें निर्मम यातनाएं देकर अधमरा कर देता है। उसके बाद उन्हें इधर-उधर घुमाते हुए, बिना किसी भय के धड़ल्ले के साथ हरियाणा के एक पुलिस थाने में ले जाता है। थाने वाली खट्टर पुलिस इन दोनों की हालत देखकर उन्हें लेने से ही मना कर देती है, इसे आगे के काम की स्वीकृति मानकर ये गिरोह भिवानी की सड़क पर जुनैद और नासिर को कथित तौर पर उनकी गाड़ी सहित ज़िंदा जला देता है। बात इतने भर पर नहीं रुकती-हत्यारों का आरोपी इसके बाद बाकायदा इंस्टाग्राम और सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी करता है, उसमे "मार डालने, काट डालने" का अपना काम जारी रखने का ऐलान दोहराता है। इसी के साथ वह अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर हरियाणा के आला पुलिस अफ़सरों के साथ तस्वीरें भी शेयर करता है।

देश की राजधानी से एकदम सटे इलाकों-मेवात, रेवाड़ी, गुरुग्राम और फरीदाबाद में सक्रिय मोनू मानेसर के राजनीतिक संबंध किसी से छिपे नहीं है; वह खुद भी नहीं छुपाता। हिटलर के तूफानी जत्थों की तर्ज़ पर बने आरएसएस से जुड़े बजरंग दल का नेता होना और भाजपा का समर्थक होना वह सार्वजनिक रूप से स्वीकारता है। यह बात अलग है कि अपने जाने-माने अंदाज़ में फिलहाल बजरंग दल ने इस हत्याकांड से अपनी किसी भी संबद्धता से इंकार किया है, हालांकि यह भी सिर्फ दिखावा है, इस खंडन में इस बात का इनकार नहीं है कि मोनू मानेसर बजरंग दल का सदस्य है। भीड़-हत्याएं क़ानून इत्यादि का रास्ता तो पहले ही छोड़ चुकी थीं, अब उन्हें 'दिखावे की भीड़' भी नहीं चाहिए। ये गिरोह कहीं भी, किसी भी राज्य में जाकर किसी को भी उठाकर उसकी हत्या कर सकते हैं इसके अलावा पुलिस थानों को बताकर भी अपने अपराधों को अंजाम दे सकते हैं। यह गोरक्षा के नाम पर गुंडई है। इन्हे Cow Vigilante कहना भी शाब्दिक अपराध है, ये Vigilante यानि सजग चौकस दस्ते नहीं है, बल्कि हत्यारे गिरोह हैं।

इसकी दूसरी और कहीं ज़्यादा सांगठिक विशिष्टता यह है कि अब इन वारदातों को अंजाम देने वाले गिरोह, बिखरे उत्पातियों के पार्ट टाइम समूह नहीं हैं, वे संगठित, शासन प्रशासन के साथ जुड़े और बाकायदा अनुमोदित स्वीकृत दल हैं। एक-डेढ़ दशक पहले तक पुलिस के साथ इनका ढीला-ढाला, अघोषित समन्वय हुआ करता था। क़ानून व्यवस्था में स्वैच्छिक नागरिक भागीदारी की आड़ में बनी नगर रक्षा समितियों की तरह पुलिस इनकी, या इनमे से कुछ की मदद लिया करती थी। अब यह ढीला-ढाला समन्वय बाकायदा सांस्थानिक रूप ले चुका है। हरियाणा में गोरक्षा टास्क फ़ोर्स के नाम पर इस तरह के गिरोहों की समितियां बना दी गईं हैं-उन्हें खुलेआम हथियार रखने और उनका इस्तेमाल करने की छूट दे दी गई है। अब वे किसी आते-जाते पशुपालक या विक्रेता को घेरकर निशाना नहीं बना रहे हैं- बल्कि खुलेआम हथियार लहराते हुए दबिश दे रहे हैं, छापे मार रहे हैं, मुस्लिम बहुल आबादी में जाकर उकसावे की कार्यवाहियां कर रहे हैं। टास्क फ़ोर्स की आड़ में हर तरह के अपराधों को अंजाम दे रहे हैं। सरकार और पुलिस की इनपर खुली छत्रछाया है इसलिए ये बेधड़क काम कर रहे हैं। प्रशासन कहीं न कहीं उनके साथ है, किस तरह साथ है यह जुनैद और नासिर वाले मामले में पंचायत विभाग की सरकारी गाड़ी के इस्तेमाल से सामने आ चुका है। ये किस तरह के लोग हैं यह खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार सार्वजनिक रूप से बता चुके हैं, जब भीड़ द्वारा की जाने वाली हत्याओं पर दुनिया भर में प्रतिक्रियाओं को देखते हुए उन्होंने बयान दिया था। इस बयान में उन्होंने इन्हें ऐसा अपराधी बताया था जो दिन में गौरक्षक बनते हैं और रात में अपराध करते हैं। मोदी ने राज्य सरकारों से इनकी अपराध कुंडली-डोजियर-भी तैयार करने को कहा था। डोजियर तो खैर क्या बनना था, उनकी पार्टी की सरकारों ने उन्हें एक तरह से आधिकारिक दर्जा ही दे दिया।

यह इसलिए और ज़्यादा ख़तरनाक है क्योंकि यह सरकार प्रायोजित अराजकता है; इसलिए वे जहां चाहें वहां जा कर कोई भी अपराध कर सकते हैं मगर क़ानून व्यवस्था की मशीनरी उन तक नहीं पहुंच सकती। जुनैद नासिर की हत्या के बाद यह गिरोह राजस्थान से हरियाणा तक खुलेआम घूमता रहा लेकिन जब राजस्थान की पुलिस उसके गांव जाकर छापा मारने गई तो किसी कैथल बाबा को सामने लाकर उसके राजनीतिक गिरोह ने पंचायतों और महापंचायतों का तूमार खड़ा कर दिया। हरियाणा का राजनीतिक और प्रशासनिक नेतृत्व भी एक तरह से उसकी ढाल बनकर खड़ा हो गया। हत्यारे वीडियो लाइव करते हुए खुले घूमते रहें, और न्याय मांगने के लिए आवाज़ उठाने वालों पर मुकदमो का पहाड़ लाद दिया गया। इसे राज्य प्रायोजित अराजकता के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। बात-बात पर बोलने वाले प्रधानमंत्री मोदी अपनी नाक के नीचे, अपनी ही पार्टी की सरकार, जिसका एक इंजन वे खुद को बताकर इसे डबल इंजन की सरकार कहते नहीं थकते, के राज में घटी इन घटनाओं पर एक शब्द नहीं बोलते हैं। इसके अलावा गृह मंत्री अमित शाह भी मौन रहते हैं। यह चुप्पी अनायास नहीं है बल्कि इस तरह की अराजकता के साथ सहमति है, उसका अनुमोदन है। इसलिए यह एक संप्रभु, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, संवैधानिक गणराज्य के लिए ख़तरनाक बात है।

ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि देश को बुरी से बुरी आशंकाओं से भी ज़्यादा बुरी स्थिति में पहुंचा दिया गया है। यह उन्माद और सांप्रदायिकता के फासीवाद में रूपांतरित होने की तरफ बढ़ता पैटर्न है। भाजपा, उसकी सरकारें, उनका राजनैतिक नेतृत्व अब तक इस तरह के मामलों में अपराधियों को छिपे तौर पर संरक्षण दिया करता था, प्रोत्साहन देता था, मगर अब सीधे-सीधे उनके साथ उतरने में भी उन्हें लाज नहीं आती। मोनू मानेसर को दिए अभयदान सहित उसके लिए वकीलों की भीड़ खड़ी कर दी जाएगी जैसे ऐलान किए जा रहे हैं। इसके क्या मायने हैं इसे अब तक के इसी तरह के हुए ज़्यादातर हत्याकांडों में, लंबित इंसाफ की मौजूदा दशा को देखने से स्थिति स्पष्ट हो जाती है। पानसरे, कुलबुर्गी, दाभोलकर, गौरी लंकेश हत्याकांडों के मुकदमों की स्थिति क्या है? गुजरात के नरसंहार के अपराधियों को सज़ा दिए जाने का रिकॉर्ड क्या है...खैर इसे फिलहाल यहीं रहने देते हैं। यही देख लेते हैं कि भीड़-हत्याओं के बड़े-बड़े मामलों की क्या स्थिति है ?

इसी तरह का एक हत्याकांड 2017 के जून में इसी हरियाणा के फरीदाबाद की खंदावली में हुआ था। ईद की खरीदारी करके घर लौट रहे जुनैद को उसकी पोशाक के कारण ट्रेन में मार डाला गया था। ज़्यादातर अभियुक्त कुछ महीनों में बाहर आ आ गए, बाकी बचे डेढ़ साल में ज़मानत पर रिहा हो गए। छह साल होने को है, सज़ा होना तो दूर की बात रही, मुक़द्दमा ही तरीके से शुरू नहीं हुआ। जुनैद के पिता बताते हैं कि हत्याकांड के बाद देश दुनिया में उपजे क्षोभ और आक्रोश को देखकर उस समय मुख्यमंत्री खट्टर ने 10 लाख और सांसद ने 20 लाख रूपये की राहत राशि देने की घोषणा की थी। यह राशि आज तक नहीं मिली। अब मुख्यमंत्री और सांसद मिलने तक को तैयार नहीं है। जब वे बगल के गांव में दौरे पर आए तो वे मुख्यमंत्री से मिलने पहुंच गए तो उन्होंने बाकी सबसे बात की, लेकिन जुनैद के पिता की सुनी तक नहीं। बाकी ज़्यादातर ऐसे प्रकरणों में भी यही हालात हैं। तारीख पर तारीख है-गुरमीत राम रहीम के मामले में किसी तरह अगर सज़ा मिल भी गई तो पैरोल का सिलसिला जारी रहता है। इसके अलावा ज़मानत मिलने पर छूटने और रिहाई पर बाहर आने पर मालाओं से स्वागत और अभिनंदन होता है।

यह सिर्फ यहीं तक महदूद रहने वाला है? नहीं! अराजकता सर्वग्रासी होती है और कहीं अगर राज्य प्रायोजित हो तो सर्वनाशी हो जाती है। यह हिंदू मुसलमान नहीं देखती। वह 2017 में 'पहले जुनैद' के साथ जो करती है, 2018 में बुलंदशहर के पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के साथ भी वही करती है। इनकी हत्या के मामले में भी जिन 44 लोगों पर चार्जशीट दायर हुई थी उनमे से 4 को छोड़ बाकी सब बाहर हैं। ये 4 भी इसलिए जेल में हैं क्योंकि उनकी ज़मानत को चुनौती देने सुबोध कुमार सिंह की पत्नी सुप्रीम कोर्ट गई थीं, वरना शायद वे भी बाहर आ चुके होते। वहीं पिछले महीने ही सोलापुर के आईटी प्रशिक्षित युवा मोहसिन शेख की पुणे में भीड़ द्वारा की गई हत्या पर 9 साल बाद सुनाए फैसले में अदालत ने सभी 21 आरोपियों को ससम्मान बरी कर दिया। आपको बता दें कि ये वही अपराधी हैं जिन्हें ज़मानत देते समय महाराष्ट्र हाईकोर्ट की जस्टिस मृदुला भाटकर ने स्तब्धकारी टिप्पणी की थी कि "चूँकि मोहसिन शेख दाढ़ी और टोपी में था, इसलिए निशाना बन गया।  

भिवानी के लोहारू में जली हुई जीप में मिले जुनैद और नासिर के कंकाल आरएसएस नियंत्रित व कॉर्पोरेट मित्र भाजपा सरकार के न्यू इंडिया सीरीज़ के नए सीज़न का ट्रेलर है। उनका मकसद इसे पूरी 'फिल्म' में बदलना है। इसे रोकना ही होगा। जो भी इसके विनाशकारी असर से वाकिफ हैं उन्हें बिना देरी किए इसके ख़िलाफ़ उतरना होगा, जो अभी भी किंतु-परंतु में उलझे हैं उन्हें भी उठना होगा।

(लेखक लोकजतन के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest