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कमलेश हत्याकांड : पुलिस की कहानी में कई झोल, साथ ही मंशा पर भी सवाल!

इस हत्याकांड के बाद सबसे बड़ा प्रश्न प्रदेश के बिगड़ती कानून व्यवस्था का है। साथ ही ख़ुफ़िया विभाग की नाकामी का भी, लेकिन इस महत्वपूर्ण विषय को छोड़कर इस हत्या को जिस तरह सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है, वो अपने आप में कई सवाल खड़े करती है।
kamlesh tiwari
फोटो साभार : अमर उजाला

लखनऊ में शुक्रवार को दिन-दहाड़े हुए कमलेश तिवारी हत्याकांड का खुलासा करने का दावा उत्तर प्रदेश पुलिस कर रही है, लेकिन उसकी कहानी में झोल ही झोल हैं। उधर, मृतक कमलेश तिवारी की माँ के बयान को पुलिस लगातार नज़रअंदाज़ कर रही है। हिन्दूवादी संगठन,  इस हत्या को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि कमलेश के बेटे ने भी कहा है कि उसको पुलिस-प्रशासन की कार्रवाई पर पूरा भरोसा नहीं है।

उत्तर प्रदेश पुलिस के अनुसार कमलेश की हत्या की साज़िश गुजरात के सूरत में रची गई थी। प्रदेश पुलिस के मुखिया ओपी सिंह ने शनिवार को बताया कि इस हत्या में शामिल गिरफ़्तार अभियुक्तों से प्रारंभिक पूछताछ से पता चला है कि इस हत्या की साज़िश के पीछे मुख्य वजह कमलेश तिवारी का 2015 का विवादित भाषण था।

डीजीपी ने बताया है कि सभी आरोपियों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के बिजनौर से मुफ्ती नईम क़ासिमी और मौलाना अनवारुल हक़ को भी हिरासत में लिया गया है।

डीजीपी ओपी सिंह के अनुसार घटनास्थल से जांच के दौरान मिले मिठाई के डिब्बे से अहम सुराग मिले और गुजरात राज्य पुलिस की मदद से तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया गया।

उल्लेखनीय है कि पुलिस अधिकारियों ने अपने पहले बयान में कहा था की कमलेश तिवारी की हत्या आपसी रंजिश का नतीजा है। पुलिस ने कहा था की ऐसा लगता है की हत्या करने वाले हिन्दू महासभा के पूर्व नेता से पहले से परिचित थे। उन्होंने कमलेश तिवारी के घर पर बैठ कर उनसे बात की, साथ में चाय-नाश्ता किया और फिर हत्या करके फ़रार हो गए।

लखनऊ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने अपने बयान में कहा था कि ऐसा लगता है कि हत्यारे आधे घंटे तक कमलेश तिवारी के नाका स्थित घर में रहेऔर लगता है यह पूर्ण रूप से एक आपराधिक मामला है। 

लेकिन फिर देखते ही देखते यूपी पुलिस के अफसरों का रवैया और बयान बदलते चले गए। आपराधिक मसला एकदम सांप्रदायिक मसला बन गया और परिचित हत्यारे अचानक दूसरे प्रदेश के अपरिचित दूसरे धर्म के बताए जाने लगे, जो उनके एक चार साल पहले के बयान से नाराज़ थे।

अब कमलेश तिवारी की हत्या के मामले में एक नए ख़ुलासे की ख़बर है। पुलिस का दावा है कि लखनऊ के खालसा होटल से संदिग्ध सामग्री बरामद हुई है। होटल कमरे से भगवा कपड़े मिले हैं जिनपर खून के निशान मिले हैं। राजधानी पुलिस मौके पर पहुंची और संदिग्ध सामान को कब्जे में लेकर जांच शुरू कर दी है।

बता दें कि मृतक के घर के पास सीसीटीवी से मिली तस्वीरों में भी दो लोग भगवा और लाल कुर्ता पहने हुए दिखाई दे रहे थे।

कुल मिलाकर इस हत्याकांड के बाद सबसे बड़ा प्रश्न प्रदेश के बिगड़ती कानून व्यवस्था का है। साथ ही ख़ुफ़िया विभाग की नाकामी का भी, लेकिन इस महत्वपूर्ण विषय को छोड़कर इस हत्या को जिस तरह सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है, वो अपने आप में कई सवाल खड़े करती है।

हत्या के सूचना आते ही हिन्दू महासभा और हिन्दू समाज पार्टी के कथित सदस्यों से राजधानी में उप्रदव शुरू कर दिया। कई जगह महत्वपूर्ण रोड जाम की गईं और सरकारी सम्पत्ति को भी नुकसान पहुँचाया गया। इसके अलावा कई दुकानों में भी तोड़फोड़ की गई।

नफ़रत फैलाने वाले मैसेज भी सोशल मीडिया पर एकदम वायराल होने लगे। शुक्रवार देर रात पुलिस को उपद्रवियों पर लाठीचार्ज भी करना पड़ा।

राजधानी लखनऊ में हिन्दूवादी संगठनों द्वारा किये जा रहे विरोध प्रदर्शनों के कारण कई जगह तनाव का वातावरण है। क्यूँकि यह संगठन मानते है कि कमलेश की हत्या के पीछे मुस्लिम समुदाय का हाथ है। मृतक कमलेश की पत्नी ने भी मुस्लिम समुदाय के लोगों के ख़िलाफ़ नामज़द मुक़दमा लिखाया है।

मृतक की माँ का योगी सरकार पर आरोप

मृतक की माँ ने बेख़ौफ़ ढंग से अपने बेटे की हत्या के लिए योगी सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा है कि कमलेश के विरुद्ध फतवा पिछली सरकार में दिया गया था। लेकिन उस समय उसको कोई उंगली तक नहीं लगा पायामगर भारतीय जनता पार्टी की सरकार में मेरे बेटे की हत्या हो गई। तमाम चैनलों और मीडिया के सामने उन्होंने साफ कहा की भाजपा और योगी आदित्यनाथ उनके बेटे से जलते थे और उन्होंने ही उसे मरवा दिया। उन्होंने इस हत्या में शिवकुमार गुप्ता का भी नाम लिया।

उन्होंने कहा कि उनके बेटे की हत्या एक मंदिर को लेकर भाजपा नेता शिवकुमार गुप्ता ने कराई है। उन्होंने आरोप लगाया कि शिवकुमार गुप्ता एक बड़ा माफिया है और उसके खिलाफ कई मुक़दमे चल रहे हैं। उनके बेटे के आगे मंदिर में शिवकुमार की एक न चलती थी इसलिए उसने उनके बेटे को मरवा दिया। 

बेटे को भी प्रशासन पर विश्वास नहीं

सिर्फ़ कमलेश की माँ ही नहीं कमलेश के बेटे को भी प्रशासन की कार्रवाई पर पूरा विश्वास नहीं है। हत्या में हुई गिरफ्तारियों पर कमलेश के बेटे सत्यम तिवारी ने कहा है कि उन्हें नहीं पता है कि जो लोग पकड़े गए हैं उन्हीं लोगों ने पिता को मारा है या पुलिस निर्दोष लोगों को फंसा रही है।

सत्यम तिवारी ने कहा कि अगर यही लोग असली दोषी हैं और इनके खिलाफ कोई सबूत है तो इसकी जांच एनआईए को करनी चाहिए।

उन्होंने आगे कहा कि अगर एनआईए जांच में यह साबित हो जाता है तभी वह संतुष्ट होंगे। सत्यम ने कहा, 'मुझे इस प्रशासन पर कोई विश्वास नहीं है।'

पुलिस पर उठे सवाल 

कमलेश तिवारी की हत्या के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस पर न सिर्फ़ उनके परिवार वाले बल्कि पूर्व पुलिस अधिकारी भी सवाल उठा रहे हैं। पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरी कहते हैं कि पुलिस की बताई गई बातों पर संदेह जन्म लेता है। पुलिस मृतक की पत्नी के बयान पर तो एफ़आईआर दर्ज कर रही हैलेकिन मृतक की माँ के आरोप को नज़रंदाज़ कर रही है।

दारापुरी कहते हैं कि 2015 में धमकी मिलने के चार साल बाद 2019 में हत्यायह बात संदेह को जन्म देती है कि पुलिस ने जल्दबाज़ी में बयान दिया है। पूर्व आईपीएस कहते हैं जो लोग भगवा वस्त्र पहने मृतक के घर के बाहर के सीसीटीवी में दिख रहे हैं, उनकी गिरफ़्तारी जब तक नहीं होगी इस हत्या का पूर्ण ख़ुलासा नहीं हो सकता है। 

पूर्व वरिष्ठ अधिकारी शक जताते हैं कि इस हत्याकांड का सांप्रदायिक करण करके उत्तर प्रदेश ख़ासकर लखनऊ के कैंट विधानसभा उपचुनाव में राजनीतिक लाभ लेने की मंशा भी हो सकती है।

ख़ुफ़िया विभाग की नाकामी

कमलेश तिवारी की हत्या के बाद एक बार फिर योगी आदित्यनाथ सरकार क़ानून व्यवस्था के सवाल पर घिरती नज़र आ रही है। वरिष्ठ पत्रकार और टाइम्स ऑफ़ इंडिया के पूर्व सम्पादक अतुल चंद्रा मानते हैं कि कमलेश तिवारी की हत्या उत्तर प्रदेश की क़ानून व्यवस्था के साथ ख़ुफ़िया विभाग की नाकामी को भी दर्शाता है।

अतुल चंद्रा कहते हैं कि हत्या का समाचार मिलते ही पुलिस को तुरंत हरकत में आना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआजिसकी वजह से उपद्रवियों को सांप्रदायिक माहौल बिगड़ने का मौक़ा मिला। अतुल चंद्रा कहते हैं कि मृतक कमलेश तिवारी की माँ ने जिस भाजपा नेता नाम लिया है उसकी जब तक जाँच नहीं हो जाती हैतब तक यह नहीं कहा जा सकता है कि हत्या का ख़ुलासा हो गया है।  

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