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किसानों का करनाल लघु सचिवालय घेराव दूसरे दिन भी जारी

संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है, "किसान दृढ़ संकल्प के साथ खड़े हैं, और सरकार हत्या करके बच नहीं सकती है। हम विरोध के पीछे मजबूती से खड़े हैं और हरियाणा सरकार के कार्यों की निंदा करते हैं। किसान सीएम मनोहर लाल खट्टर को सबक सिखाएंगे”।
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करनाल और पड़ोसी जिलों के हजारों किसानों ने जिला प्रशासन से बातचीत के विफल होने के बाद कल यानी मंगलवार से ही शहर में लघु सचिवालय की घेराबंदी कर रखी है। आक्रोशित किसान एसडीएम आयुष सिन्हा को निलंबित करने और भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत प्राथमिकी दर्ज करने की मांग कर रहे हैं।

मंगलवार को करनाल अनाज मंडी में किसानों के आने पर किसान नेताओं ने महापंचायत को सूचित किया कि उन्हें जिला प्रशासन से बातचीत के लिए आमंत्रित किया गया है और बैठक के बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा। किसानों ने सहमति व्यक्त की कि वे अपनी मांगों के प्रति प्रतिबद्ध रहते हुए कानून और व्यवस्था को चुनौती नहीं देंगे। परन्तु ये बातचीत विफल रही इसके बाद किसानों ने सचिवालय कूच किया और फिर उसके बाद दो और दौर की बातचीत हुई लेकिन कोई रास्ता नहीं निकला।

किसान नेताओं ने कहा कि सरकार ज़िद पर अड़ी है और किसानों की मांग पर विचार तक नहीं कर रही है। इसके बाद किसानों ने रात में वहीं डेरा डाल दिया जिसके बाद रात में प्रशासन ने एक बार फिर बातचीत न्यौता भेजा लेकिन किसानों ने साफ़ किया वो रात में कोई बात करेंगे। जिसके बाद आज यानी बुधवार दोपहर दो बजे के करीब एकबार फिर किसानों का एक प्रतिनिधि मंडल जिला प्रशासन से मिलने गया है।  

हालाँकि सूत्रों की मने तो सरकार भारी दबाव में है और वो सिन्हा को सस्पेंड कर परे मसले पर एक न्यायिक जाँच बिठा सकती है।

वैसे करनाल से बाहर जींद-चंडीगढ़, जींद-करनाल, जींद-दिल्ली हाइवे को किसानों द्वारा खोल दिया गया है। कल मंगलवार दोपहर में पुलिस द्वार किसानों पर बल प्रयोग के बाद यहां जाम लगाया गया था। किसानों का कहना है कि अगर करनाल से कोई आदेश आता है, तो वह फिर रास्ते जाम कर देंगे।  

किसानों का आरोप है कि 28 अगस्त को शांतिपूर्ण किसानों के खिलाफ प्रशासनिक हिंसा में एक किसान सुशील काजल शहीद हो गए और कई किसान घायल हुए।

उस समय हरियाणा सरकार को एसडीएम सिन्हा और अन्य अधिकारियों, जो किसानों के ‘सर फोड़ने’ का आदेश देते हुए देखे गए थे। उन्हीं के खिलाफ कार्रवाई करने का अल्टीमेटम जारी किया गया था। किसानों ने मांग की थी कि अधिकारियों को बर्खास्त किया जाए और एसडीएम आयुष सिन्हा के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया जाए, साथ ही शहीद काजल के परिवार को 25 लाख रुपये और राज्य हिंसा में घायल हुए किसानों को 2-2 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए। अल्टीमेटम की समय सीमा 6 सितंबर तक थी, जिसके बाद किसानों ने लघु सचिवालय का घेराव करने की चेतावनी दी थी।

चूंकि खट्टर सरकार ने किसानों की मांगों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है,और इसके बजाय एसडीएम की कार्रवाई का समर्थन किया है, किसानों ने विरोध के लिए अपनी योजनाओं को आगे बढ़ाने का फैसला किया। इसी सिलसिले में मंगलवार को करनाल की अनाज मंडी में एक महापंचायत का आयोजन हुआ। किसान अनाज मंडी में जुटे और फिर लघु सचिवालय का घेराव करने के लिए आगे बढे। जिसे शुरआत में प्रशासन ने रोकने का प्रयास किया और पानी की बौछार भी की लेकिन वो किसानों की संख्या और हौसले के सामने टिक न सका और किसान सचिवालय पहुँच गए। हज़ारों हज़ार किसानों ने रात में भी अपना घेराव जारी रखा है। इस बीच सचिवालय के सामने ही किसानों ने अपने टेंट गाड़ दिए।  

किसान संगठनों ने कहा कि एक शर्मनाक और कायरतापूर्ण कृत्य में, करनाल के जिला प्रशासन ने क्षेत्र में धारा 144 लागू कर दी है और इंटरनेट बंद कर दिया है, और प्रदर्शनकारियों पर आईपीसी की धारा 188 के तहत मामला दर्ज करने की धमकी दी है। एसकेएम ने कहा कि इन दमनकारी कदमों से उन किसानों का हौसला नहीं टूटेगा, जिन्होंने पिछले 10 महीनों से इस अत्याचार को झेला है।

अत्यधिक आवेशपूर्ण माहौल में, किसानों के साथ बातचीत से पता चलता है कि हाल के महीनों में राज्य सरकार के साथ टकराव की एक श्रृंखला के बाद एक अविश्वास गहरा गया है। पिछले कुछ महीनों में कई मुद्दों को लेकर किसान फतेहाबाद, हिसार और सिरसा में राज्य सरकार के साथ पहले ही आमना-सामना हो चुका है।

स्थानीय ग्रामीणों और करनाल के दो गुरुद्वारे निर्मल कुटिया एंव डेरा कारसेवा ने वहां मौजूद किसानों और ड्यूटी कर रहे जवानों के खाने के लिए लंगर पहुंचाया। इस घेराव को देखते हुए प्रशासन ने करनाल के साथ-साथ कुरुक्षेत्र, कैथल, पानीपत और जींद में सोमवार रात 12 बजे से मंगलवार रात 12 बजे तक इंटरनेट बंद किया गया था। 

हरियाणा के सहाबाद के सुलखानी से यात्रा कर करनाल पहुंचे सवर्णा सिंह नंबरदार ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्हें अब मुख्यमंत्री और उनकी सरकार के वादों पर विश्वास नहीं है। उन्होंने कहा, "हमने कभी नहीं सोचा था कि स्थिति इतनी बिगड़ जाएगी और हमें इतनी बार सड़कों पर उतरना होगा।" यह पूछे जाने पर कि जब उन्होंने लाठीचार्ज के दृश्य पहली बार देखे तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी, उन्होंने कहा, “बहुत बुरा लगा। जब बातचीत से मामला सुलझाया जा सकता था तो उन्हें इतनी बेरहमी से क्यों पीटा गया? किसानों ने हथियार नहीं उठाए।”

नंबरदार ने कहा कि तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में शामिल होना अपनी जमीन बचाने के लिए उनका अंतिम उपाय था।

आगे उन्होंने कहा “अगर अनुबंध खेती लागू हो जाती है, तो हम एक समय बाद जमीन के मालिक नहीं रहेंगे। सरकार पर्याप्त रोजगार के अवसर पैदा नहीं कर रही है। प्रधानमंत्री ने वादा किया था कि 2022 तक कृषि आय दोगुनी हो जाएगी। हम समय से केवल तीन महीने दूर हैं। क्या हमारी आमदनी दोगुनी हो गई है? उन्होंने यहां बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों और अर्धसैनिक बलों को तैनात किया है। क्या इसमें पैसा नहीं लगता है? वे इसका इस्तेमाल रोजगार पैदा करने के लिए कर सकते थे। ऐसे में मुझे उस दिन से डर लगता है जब मेरे बच्चे कहेंगे कि हमने उनके लिए कोई जमीन नहीं छोड़ी। वे अपने परिवार का भरण पोषण कैसे करेंगे?”

कैथल से आई एक महिला प्रदर्शनकारी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि वे अपनी मांगों पर अडिग हैं और पूरी होने तक घर नहीं जाएंगी। उन्होंने कहा, 'हम देखना चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी के पास हमारे लिए जेलों में कितनी जगह है।

संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के वरिष्ठ नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि प्रशासन अधिकारी और उसके आपराधिक आचरण का बचाव करता रहा। “हमने उनसे स्पष्ट रूप से तीन बार पूछा कि क्या वे अपराधी अधिकारी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर रहे हैं। वे कहते रहे कि उनकी बातें अनुचित थीं। यह किसी भी बातचीत का आधार नहीं हो सकता। अगर वे अड़े रहते हैं, तो हम भी अपने उद्देश्य के लिए प्रतिबद्ध हैं।”  

पुलिस ने कल, मंगलवार को किसान नेता राकेश टिकैत, बलबीर सिंह राजेवाल, गुरनाम सिंह चढूनी, विकास शिशर, इंद्रजीत सिंह सहित मोर्चे के अन्य नेताओं को हिरासत में लिया था। परन्तु कुछ ही देर में रिहा कर दिया।

अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) के नेता इंद्रजीत सिंह ने न्यूज़क्लिक से कहा कि “प्रशासन अतार्किक तर्कों से बचाव कर रहा है। उन्होंने कहा, "एक बच्चा भी बता पाएगा कि अधिकारी ने जो किया वह सेवा नियमों और संविधान के खिलाफ था, और उसका बचाव नहीं किया जा सकता है। अगर कोई पीड़ित परिवार 25 लाख रुपये का मुआवजा और सरकारी नौकरी और घायलों को 2 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग कर रहा है तो हम चांद नहीं मांग रहे हैं। किसान समाधान चाहते हैं लेकिन प्रशासन इसमें देरी कर रहा है।"

मोर्चा ने एक बयान में कहा, "किसान दृढ़ संकल्प के साथ खड़े हैं, और सरकार हत्या करके बच नहीं सकती है। हम विरोध के पीछे मजबूती से खड़े हैं और हरियाणा सरकार के कार्यों की निंदा करते हैं। किसान सीएम मनोहर लाल खट्टर को सबक सिखाएंगे”।

इस बीच 27 सितंबर को होने वाले भारत बंद की तैयारियां जोरों पर हैं। देशभर में तैयारी बैठकें हो रही हैं। बिहार में किसान संघ 11 सितंबर को पटना में अधिवेशन करेंगे। मध्य प्रदेश में 10 सितंबर तक सभी तैयारी बैठकें पूरी कर ली जाएंगी, जिसके बाद बंद के लिए समर्थन जुटाने के लिए किसान संघ की बैठकें होंगी। उत्तर प्रदेश में एसकेएम के मिशन उत्तर प्रदेश कार्यक्रम के लिए 9 सितंबर को लखनऊ में एसकेएम की बैठक होगी।

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