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पत्नी नहीं है पति के अधीन, मैरिटल रेप समानता के अधिकार के ख़िलाफ़

कर्नाटक हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सेक्शन 375 के तहत बलात्कार की सज़ा में पतियों को छूट समानता के अधिकार यानी अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। हाईकोर्ट के मुताबिक शादी क्रूरता का लाइसेंस नहीं है।
marital rape
Image courtesy : Feminism In India

"संविधान में सबको समानता का अधिकार है। ऐसे में पति शासक नहीं हो सकता है, यह सदियों पुरानी सोच और परंपरा है कि पति उनके शासक हैं। विवाह किसी भी तरह से महिला को पुरुष के अधीन नहीं करता है। संविधान में सबको सुरक्षा का समान अधिकार है।"

ये टिप्पणी कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले के दौरान की। कोर्ट ने अपने फैसले में आरोपी पति की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत अपनी पत्नी द्वारा लगाए बलात्कार के आरोप को हटाने की मांग की थी। अदालत ने पति के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया कि आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 के चलते बलात्कार के अपराध में वैवाहिक बलात्कार यानी मैरिटल रेप अपवाद की श्रेणी में है और इसलिए उसके खिलाफ आरोप तय नहीं किया जा सकता है।

बता दें कि कर्नाटक हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सेक्शन 375 के तहत बलात्कार की सज़ा में पतियों को छूट समानता के अधिकार यानी अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। हाईकोर्ट के मुताबिक शादी क्रूरता का लाइसेंस नहीं है। शादी समाज में किसी भी पुरुष को ऐसा कोई अधिकार नहीं देती है कि वह महिला के साथ जानवरों जैसा व्यवहार करे। अगर कोई भी पुरुष महिला की सहमति के बिना संबंध बनाता है या उसके साथ क्रूर व्‍यवहार करता है, तो यह दंडनीय है। चाहे फिर पुरुष महिला का पति ही क्यों न हो।

क्या है पूरा मामला?

कर्नाटक हाई कोर्ट का ये फैसला ऐसे समय में आया में आया है जब मैरिटल रेप को लेकर देश में बहस तेज़ है। इस मामले को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें धारा 375 के अपवाद 2 की संवैधानिकता को मनमाना, अनुचित और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी गई है। अदालत ने हाल ही में इन याचिकाओं पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

यहां ध्यान रहे कि कर्नाटक हाईकोर्ट के जज जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 की संवैधानिकता पर फैसला नहीं सुनाया है, बल्कि हाईकोर्ट ने विधायिका को इस मुद्दे पर विचार करने की सलाह दी है। कोर्ट ने कहा कि हम ये नहीं कह रहे हैं कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए या इस अपवाद को विधायिका हटा ले। लेकिन इस मसले पर विचार करना जरूरी है। यदि बलात्कार के आरोप को कथित अपराधों के खंड से हटा दिया जाता है, तो यह शिकायतकर्ता पत्नी के साथ घोर न्याय नहीं होगा।

अदालत के अनुसार पतियों के पत्नियों पर ऐसे यौन हमलों का महिला पर मनोवैज्ञानिक और शारीरिक दोनों प्रभाव पड़ता है। पतियों की ऐसी हरकतें पत्नियों की आत्माएं झकझोर कर रख देते हैं और अब संसद को इन 'चुप्पियों' को सुनने की जरूरत है। सदियों से माना जाता है कि पत्नी पति की गुलाम होती है। उसके मन, आत्मा और हर चीज पर पति का हक होता है। पति जैसा चाहे वैसा बर्ताव कर सकता है। इस तरह मामले अब देश में बढ़ रहे हैं और इस मान्यता को बदलने की जरूरत है।

मैरिटल रेप' क़ानून की नज़र में नहीं है अपराध

भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में बलात्कार की परिभाषा बताई गई है और उसे अपराध माना गया है। लेकिन इस धारा का अपवाद 2 कहता है कि अगर एक शादी में कोई पुरुष अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाता है, जिसकी उम्र 15 साल या उससे ऊपर है तो वो बलात्कार नहीं कहलाएगा, भले ही उसने वो संबंध पत्नी की सहमति के बगैर बनाए हों।

हालांकि साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने महिला की आयु 18 साल कर दी थी। बीते लंबे समय से इस अपवाद पर आपत्ति जताई जा रही है। हालांकि अब भी भारत में 'वैवाहिक बलात्कार' यानी 'मैरिटल रेप' क़ानून की नज़र में अपराध नहीं है। इसलिए आईपीसी की किसी धारा में न तो इसकी परिभाषा है और न ही इसके लिए किसी तरह की सज़ा का प्रावधान है।

अब तक कैसे रहे हैं अदालतों के फ़ैसले

मैरिटल रेप के मामलों को देखें तो अब तक आए कोर्ट के फैसलों में एक विरोधाभास नज़र आता है। जहां छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के जज एन के चंद्रावंशी ने एक आदमी को अपनी ही पत्नी के बलात्कार के आरोप के मामले में बरी करते हुए ये कहा था कि एक पति का अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार नहीं है चाहे वो दबाव में या उसकी इच्छा के बगैर बनाया गया हो। वहीं केरल हाई कोर्ट ने ऐसे ही मामले में कहा था कि ये मानना कि पत्नी के शरीर पर पति का अधिकार है और उसकी इच्छा के विरुद्ध संबंध बनाना मैरिटल रेप है।

इस मामले में सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट की टिप्पणी भी खूब सुर्खियों में रही थी, जिसमें अदालत ने इसे अपराध माने जाने को लेकर दाख़िल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा था कि वैवाहिक दुष्कर्म के मामले में प्रथम दृष्टया सजा मिलनी चाहिए और इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए।

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अदालत का यह भी कहना था कि महत्वपूर्ण बात यह है कि एक महिला, महिला ही होती है और उसे किसी संबंध में अलग तरीके से नहीं तौला जा सकता, "यह कहना कि, अगर किसी महिला के साथ उसका पति जबरन यौन संबंध बनाता है तो वह महिला भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (बलात्कार) का सहारा नहीं ले सकती और उसे अन्य फौजदारी या दीवानी कानून का सहारा लेना पड़ेगा, ठीक नहीं है।"

बाक़ी दुनिया का क्या है हाल?

दुनिया में देखा जाए तो कई ऐसे देश है जहां मैरिटल रेप एक अपराध की श्रेणी में आता है। संयुक्त राष्ट्र की सहयोगी संस्था यूएन वीमेन के मुताबिक घर महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक जगहों में से एक है। संस्था की रिपोर्ट के अनुसार दस में से चार देश मैरिटल रेप को अपराध मानते हैं। 50 से ज्यादा देशों जिसमें अमेरिका, नेपाल, ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं वहां पत्नी के साथ मैरिटल रेप को अपराध माना गया है वहीं एशिया के ज्यादातर देशों में क़ानून में बदलाव को लेकर कोशिशें जारी हैं।

संयुक्त राष्ट्र की Progress of World Women 2019-20 की रिपोर्ट बताती है कि 185 देशों में सिर्फ 77 देश ऐसे हैं जहां मैरिटल रेप को लेकर कानून है। बाकी 108 में से 74 देश ऐसे हैं जहां महिलाओं को अपने पति के खिलाफ रेप की शिकायत करने का अधिकार है। वहीं, भारत समेत 34 देश ऐसे हैं जहां मैरिटल रेप को लेकर लेकर कोई कानून नहीं है।

भारत में मैरिटल रेप को भले ही अपराध नहीं माना जाता, लेकिन अब भी कई सारी भारतीय महिलाएं इसका सामना करती हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS-5) के मुताबिक, देश में अब भी 29 फीसदी से ज्यादा ऐसी महिलाएं हैं जो पति की शारीरिक या यौन हिंसा का सामना करती हैं। ग्रामीण और शहरी इलाकों में अंतर और भी ज्यादा है। गांवों में 32% और शहरों में 24% ऐसी महिलाएं हैं।

शादी का ये मतलब बिल्कुल नहीं की पत्नी सेक्स के लिए हमेशा बैठी है तैयार

गौरतलब है कि मैरिटल रेप पर अब तक कई जनहित याचिकाएं कोर्ट में दाखिल हो चुकी हैं। कई बार महिलाओं की आपबीती सुनकर खुद कोर्ट ने सख्त टिप्पणियां की हैं, लेकिन अभी तक इस पर कोई अलग से कानून नहीं बन पाया है। शायद आपको याद हो कि दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान एक्टिंग चीफ़ जस्टिस गीता मित्तल और सी हरि शंकर की बेंच ने कहा था कि शादी का ये मतलब बिल्कुल नहीं की पत्नी सेक्स के लिए हमेशा तैयार बैठी है।

इसके उलट सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में यह दलील दी थी कि पश्चिमी देशों में मैरिटल रेप को अपराध माना जाता है इसका मतलब यह नहीं है कि भारत भी आंख बंद कर वही करे। एक ऐसा देश जहां शादीशुदा संबंध में सेक्स की बात करना टैबू हो, वहां सरकार की ओर से दिए जाने वाले यह तर्क पितृसत्ता की जड़ को और गहरा करते है। मैरिटल रेप सिर्फ घरेलू मसला नहीं है जो इसे घरेलू हिंसा कानून के तहत लपेट दिया जाए, ये एक अपराध है। अपराध करने वाला पति है तो उसको नकारा नहीं जा सकता है। इस मामले में अब केंद्र सरकार के रुख का इंतजार सभी को है लेकिन सरकार की पिछली दलील से तो ऐसा ही लगता है कि ऐसी सोच और समाज से वैवाहिक बलात्कार जैसी कुरीति को हटाने के लिए अदालत ही अब एकमात्र उम्मीद नज़र आती है।

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