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मैरिटल रेप: घरेलू मसले से ज़्यादा एक जघन्य अपराध है, जिसकी अब तक कोई सज़ा नहीं
भारतीय कानून की नज़र में मैरिटल रेप कोई अपराध नहीं है। यानी विवाह के बाद औरत सिर्फ पुरुष की संपत्ति के रूप में ही देखी जाती है, उसकी सहमति- असहमति कोई मायने नहीं रखती।
सोनिया यादव
23 Jan 2022
Marital rape

"ना का मतलब ना होता है, उसे बोलने वाली लड़की कोई परिचित हो, फ्रेंड हो गर्लफ्रेंड हो, सेक्स वर्कर हो या आपकी अपनी बीवी ही क्यों ना हो, ना मतलब ना होता है और जब कोई ये बोलता है तो तुम्हें रुकना है।”

साल 2016 में आई फिल्म पिंक का ये डायलॉग किसी भी शारीरिक संबंध में सहमति की अहमीयत को समझाने के लिए काफी है। औरत की इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती बनाया गया कोई भी यौन संबंध शारीरिक शोषण ही है फिर चाहें उसका स्टेटस अनमैरिड हो या मैरिड। हमारे देश में ऐसी महिलाओं की तादाद बहुत अधिक है जो शादी के रिश्ते में इस तरह के जबरन बनाए गए शारीरिक संबंधों को ही सामान्य, अपनी नियति और अपना कर्तव्य समझकर अपना लेती हैं। हालांकि इसके उलट कई ऐसी महिलाएं और संगठन भी हैं जो सालों से मैरिटल रेप के अपराधिकरण की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे हैं।

मैरिटल रेप के सिलसिले में हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट में डाली गई याचिकाओं पर सुनवाई हुई, जो पूरे देश में बहस का मुद्दा बनी हुई है।

बता दें कि भारत में 'वैवाहिक बलात्कार' यानी 'मैरिटल रेप' क़ानून की नज़र में अपराध नहीं है। इसलिए आईपीसी की किसी धारा में न तो इसकी परिभाषा है और न ही इसके लिए किसी तरह की सज़ा का प्रावधान है। दिल्ली हाई कोर्ट में इस मामले में दायर की गई याचिकाओं में धारा 375 के अपवाद 2 की संवैधानिकता को मनमाना, अनुचित और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी गई है।

क्या है पूरा मामला?

भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में बलात्कार की परिभाषा बताई गई है और उसे अपराध माना गया है। इन याचिकाओं में इस धारा के अपवाद 2 पर आपत्ति जताई गई है। ये अपवाद कहता है कि अगर एक शादी में कोई पुरुष अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाता है, जिसकी उम्र 15 साल या उससे ऊपर है तो वो बलात्कार नहीं कहलाएगा, भले ही उसने वो संबंध पत्नी की सहमति के बगैर बनाए हों। हालांकि साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने महिला की आयु 18 साल कर दी थी।

लेकिन सवाल अभी भी बरकरार है कि क्या शादी के बाद पति को पत्नी का शारिरीक शोषण करने का लाइसेंस मिल जाता है। देश में मैरिटल रेप को अपराध मानने की मांग लंबे समय से है। 2015 में गैर सरकारी संगठन आरटीआई फाउंडेशन, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेन्स एसोसिएशन तथा दो महिला और पुरुषों ने दिल्ली हाई कोर्ट में इस संबंध में याचिका दायर की थी, जिस पर अब सुनवाई हो रही है। उसमें कहा गया था कि धारा 375 के प्रावधान धारा 377 (अप्राकृतिक संबंधों) से मेल नहीं खाते हैं। इसमें पतियों को कानून से बचने का अधिकार दिया गया है।

मैरिटल रेप क्या होता है और क्या ये किसी रेप से अलग होता है? इसे समझने के लिए हमें उस महिला की मानसिक स्थिति को समझना होगा जिस पर शादीशुदा होने का टैग तो लग गया है लेकिन वो अपने पति के साथ सेक्स करने को लेकर सहज नहीं है। ठीक उसी तरह जिस तरह एक एक रेप में सामने वाले की सहमति के बिना उससे यौन संबंध बनाए जाते हैं, मैरिटल रेप में भी यही होता है।

दिल्ली हाई कोर्ट में याचिकाएं

दिल्ली हाई कोर्ट में मैरिटल रेप पर दायर हुई याचिकाओं में भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 को चुनौती दी गई है। इस पर हाई कोर्ट ने केंद्र से सवाल पूछा था जिसके जवाब में केंद्र ने एक ताज़ा हलफनामा दायर कर कहा है कि क़ानून में प्रस्तावित संशोधन के लिए विचार-विमर्श चल रहा है और इस संबंध में याचिकर्ता सुझाव दे सकते हैं। साथ ही केंद्र ने कोर्ट को ये सूचित किया है कि मैरिटल रेप को तब तक एक अपराध नहीं बनाया जा सकता जब तक इस मामले से संबंधित सभी पक्षों के साथ सलाह मशविरा की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती।

मालूम हो कि इससे पहले साल 2017 में केंद्र सरकार ने कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध करार नहीं दिया जा सकता है और अगर ऐसा होता है तो इससे शादी जैसी पवित्र संस्था अस्थिर हो जाएगी। इसी तरह सरकार ने यह तर्क भी दिया कि इसे अपराध की श्रेणी में लेने से महिलाओं को अपने पतियों को सताने के लिए एक आसान हथियार मिल जाएगा। उसके बाद हाई कोर्ट ने इसकी समीक्षा के लिए एमिकस क्यूरी यानी न्याय मित्र नियुक्त किए थे।

निर्भया कांड के बाद बनी जस्टिस वर्मा कमेटी की रिपोर्ट में भी कहा गया था कि असहमति से बनाए गए शारीरिक संबंध को बलात्कार की परिभाषा में शामिल किया जाना चाहिए। इस रिपोर्ट में मैरिटल रेप के लिए अलग से क़ानून बनाने की मांग की थी। उनकी दलील थी कि शादी के बाद सेक्स में भी सहमति और असहमति को परिभाषित करना चाहिए।

मैरिटल रेप को लेकर क्यों बंटे हैं लोग?

वैवाहिक बलात्कार के विपक्ष में खड़े लोगों का अक्सर ये तर्क होता है कि इस तरह के मामले में ये पता लगाना मुश्किल है कि क्या वास्तव में पुरुष दोषी है या उसे उसे किसी साजिश के तहत झूठे आरोपों में फंसाया जा रहा है। इसमें अन्य अपराधों की तरह दोष साबित नहीं किया जा सकता। हालांकि इसके पक्षकारों का कहना है कि सिर्फ इस आधार पर पुरुष को पूर्ण प्रतिरक्षा प्रदान करना बहुत गलत है।

इस मामले पर ट्विटर पर #MarriageStrike भी ट्रेंड हुआ जिसमें लोग इस मुद्दे के पक्ष और विपक्ष में बोलते नज़र आए। कई लोगों ने कहा कि महिलाएं मैरिटल रेप का मामला दर्ज कराती हैं तो वो साबित कैसे करेंगी कि उनके साथ क्या हुआ या पुरुष भी कैसे साबित करेगा वो गलत नहीं था।

Scenes after #MaritalRape law gets passed

Wife files case
Demands hefty alimony
Man agrees to pay
She withdraws saying it was out of anger
Court accepts her "apology" quashes case

But for feminists, men trending #MarriageStrike are potential rapists pic.twitter.com/tuq91hDiEO

— Deepika Narayan Bhardwaj (@DeepikaBhardwaj) January 20, 2022

चर्चाएं इस बात को लेकर भी हुई कि अगर कोई महिला पति से अलग होना चाहती है तो वो ऐसे आरोप का इस्तेमाल भी कर सकती है। और अगर लिव-इन रिलेशनशिप में ऐसे मामले सामने आए तो उनका क्या होगा? समाज का एक वर्ग इससे नाराज़ भी नज़र आया कि इस तरह शादी जैसे पवित्र बंधन को मज़ाक का जरिया बना दिया जाएगा। वहीं कुछ लोगों ने इस बात का जवाब इस तरह दिया कि जब सेक्स वर्कर से भी पहले सहमति ली जाती है तो एक पत्नी को ये अधिकार क्यों नहीं दिया जाना चाहिए?

Men tweeting in favour of #marriagestrike are potential rapists. Possible rapists. Previous rapists. Why would any man who is self-respecting not want for marital rape to be criminalised? How can there be legal protection for rape only becauseit happens in a marriage?

— Dr Meena Kandasamy (is on hiatus) (@meenakandasamy) January 19, 2022

इस मामले में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वायनाड से सांसद राहुल गांधी ने भी ट्वीट करते हुए लिखा, "सहमति हमारे समाज में कमतर आंकी गई अवधारणाओं में से एक है। महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इसे सबसे ऊपर रखना चाहिए।"

Consent is amongst the most underrated concepts in our society.

It has to be foregrounded to ensure safety for women. #MaritalRape

— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) January 16, 2022

वहीं वाम दल सीपीआई (एमएल) की पोलित ब्यूरो सदस्य और अखिल भारतीय प्रगतीशील महिला संगठन की राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन ने लिखा कि जिन्हें भी ये लगता है कि शादी में सहमति की जरूरत नहीं है, उन्हें कभी शादी ही नहीं करनी चाहिए।

कविता ने साल 2017 में भी केंद्र सरकार के शादी की व्यवस्था को अस्थिर करने वाले तर्क का विरोध करते हुए कहा था कि रेप की परिभाषा महिला की सहमति की रेखा पर होनी चाहिए न कि उसके संबंधों पर। इस बार भी कविता ने फेसबुक पर मैरिटल रेप के विरोध में जारी मैरिज स्ट्राइक पर हमाला बोलते हुए लिखा, "शादी में भी पत्नी की सहमति को नकार कर ज़बरदस्ती करना बलात्कार माना जाए। यह सुनकर जो मर्द शादी-हड़ताल #MarriageStrike कर रहे हैं, उम्मीद है वे आजीवन हड़ताल करेंगे। जो मर्द महिला की सहमति का सम्मान नहीं करते, वे पत्नी के लिए, हर महिला के लिए बड़ा ख़तरा हैं।"

अब तक कैसे रहे हैं अदालतों के फ़ैसले

मैरिटल रेप के मामलों को देखें तो अब तक आए कोर्ट के फैसलों में एक विरोधाभास नज़र आता है। जहां छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के जज एन के चंद्रावंशी ने एक आदमी को अपनी ही पत्नी के बलात्कार के आरोप के मामले में बरी करते हुए ये कहा था कि एक पति का अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार नहीं है चाहे वो दबाव में या उसकी इच्छा के बगैर बनाया गया हो। वहीं केरल हाई कोर्ट ने ऐसे ही मामले में कहा था कि ये मानना कि पत्नी के शरीर पर पति का अधिकार है और उसकी इच्छा के विरुद्ध संबंध बनाना मैरिटल रेप है।

इस मामले में सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट की टिप्पणी भी खूब सुर्खियों में रही थी, जिसमें अदालत ने इसे अपराध माने जाने को लेकर दाख़िल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा था कि वैवाहिक दुष्कर्म के मामले में प्रथम दृष्टया सजा मिलनी चाहिए और इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए।

अदालत का यह भी कहना था कि महत्वपूर्ण बात यह है कि एक महिला, महिला ही होती है और उसे किसी संबंध में अलग तरीके से नहीं तौला जा सकता, "यह कहना कि, अगर किसी महिला के साथ उसका पति जबरन यौन संबंध बनाता है तो वह महिला भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (बलात्कार) का सहारा नहीं ले सकती और उसे अन्य फौजदारी या दीवानी कानून का सहारा लेना पड़ेगा, ठीक नहीं है।"

बाक़ी दुनिया का क्या है हाल?

दुनिया में देखा जाए तो कई ऐसे देश है जहां मैरिटल रेप एक अपराध की श्रेणी में आता है। संयुक्त राष्ट्र की सहयोगी संस्था यूएन वीमेन के मुताबिक घर महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक जगहों में से एक है। संस्था की रिपोर्ट के अनुसार दस में से चार देश मैरिटल रेप को अपराध मानते हैं। 50 से ज्यादा देशों जिसमें अमेरिका, नेपाल, ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं वहां पत्नी के साथ मैरिटल रेप को अपराध माना गया है वहीं एशिया के ज्यादातर देशों में क़ानून में बदलाव को लेकर कोशिशें जारी हैं।

संयुक्त राष्ट्र की Progress of World Women 2019-20 की रिपोर्ट बताती है कि 185 देशों में सिर्फ 77 देश ऐसे हैं जहां मैरिटल रेप को लेकर कानून है। बाकी 108 में से 74 देश ऐसे हैं जहां महिलाओं को अपने पति के खिलाफ रेप की शिकायत करने का अधिकार है। वहीं, भारत समेत 34 देश ऐसे हैं जहां मैरिटल रेप को लेकर लेकर कोई कानून नहीं है।

भारत में मैरिटल रेप को भले ही अपराध नहीं माना जाता, लेकिन अब भी कई सारी भारतीय महिलाएं इसका सामना करती हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS-5) के मुताबिक, देश में अब भी 29 फीसदी से ज्यादा ऐसी महिलाएं हैं जो पति की शारीरिक या यौन हिंसा का सामना करती हैं। ग्रामीण और शहरी इलाकों में अंतर और भी ज्यादा है। गांवों में 32% और शहरों में 24% ऐसी महिलाएं हैं।

मैरिटल रेप सिर्फ़ घरेलू मसला नहीं है

गौरतलब है कि मैरिटल रेप पर अब तक कई जनहित याचिकाएं कोर्ट में दाखिल हो चुकी हैं। कई बार महिलाओं की आपबीती सुनकर खुद कोर्ट ने सख्त टिप्पणियां की हैं, लेकिन अभी तक इस पर कोई अलग से कानून नहीं बन पाया है। शायद आपको याद हो कि दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान एक्टिंग चीफ़ जस्टिस गीता मित्तल और सी हरि शंकर की बेंच ने कहा था कि शादी का ये मतलब बिल्कुल नहीं की पत्नी सेक्स के लिए हमेशा तैयार बैठी है।

इसके उलट सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में यह दलील दी थी कि पश्चिमी देशों में मैरिटल रेप को अपराध माना जाता है इसका मतलब यह नहीं है कि भारत भी आंख बंद कर वही करे। एक ऐसा देश जहां शादीशुदा संबंध में सेक्स की बात करना टैबू हो, वहां सरकार की ओर से दिए जाने वाले यह तर्क पितृसत्ता की जड़ को और गहरा करते है। मैरिटल रेप सिर्फ घरेलू मसला नहीं है जो इसे घरेलू हिंसा कानून के तहत लपेट दिया जाए, ये एक अपराध है। अपराध करने वाला पति है तो उसको नकारा नहीं जा सकता है। इस मामले में अब केंद्र सरकार के जवाब का इंतजार सभी को है लेकिन सरकार की पिछली दलील से तो ऐसा ही लगता है कि ऐसी सोच और समाज से वैवाहिक बलात्कार जैसी कुरीति को हटाने के लिए अदालत ही अब एकमात्र उम्मीद नज़र आती है।

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