Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

शिक्षण परिसरों में यौन शोषण, क्‍या लड़कियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित कर रहा है?

लैंगिक भेदभाव के अलावा इस पितृसत्तात्मक समाज में यौन शोषण भी एक बड़ा कारण है जिससे लड़कियां शिक्षा से दूर हो जाती हैं या उनके अभिभावकों द्वारा दूर कर दी जाती हैं।
girls education
फ़ोटो साभार : Human Rights Watch

उत्तर प्रदेश का उन्नाव हाल ही मे एक सरकारी स्कूल को लेकर सुर्खियों में आया। यहां स्कूल के हेडमास्टर पर कम से कम18 नाबालिग छात्राओं ने कथित यौन शोषण के आरोप लगाए। इससे पहले हरियाणा के जींद से भी कुछ ऐसी ही खबर सामने आई थी जहां 60 स्कूली छात्राओं के साथ यौन उत्पीड़न का मामला सामने आया था। ये महज़ एक दो घटनाएं नहीं कई स्कूलों और कॉलेज की सच्चाई है जो कभी तमिलनाडु तो कभी बनारस, छत्तीसगढ़, राजस्थान और गुजरात जैसे तमाम राज्यों से एक-एक कर खबरों में आती रहती हैं। इन ज्यादातर मामलों में आरोपी टीचर प्रिंसिपल या प्रोफेसर ही होते हैं बावजूद इसके अभी तक कितनों को क्या कानूनी सज़ा मिली या शिक्षा के क्षेत्र से यौन शोषण को दूर करने के लिए क्या सख्त कदम उठाए गए इसकी कोई खास जानकारी समझ में नहीं आती।

बता दें ये सभी मामले दूर-दराज के छोटे गांवों से लेकर जाने-माने विश्वविद्यालयों तक के हैं जहां यौन हिंसा को लेकर लड़कियां लगातार संघर्ष कर रही हैं और कई बार तो उनके स्कूल या कॉलेज छोड़ने तक की नौबत भी आ जाती है। लैंगिक भेदभाव के अलावा इस पितृसत्तात्मक समाज में यौन शोषण एक बड़ा कारण भी है जिससे लड़कियां शिक्षा से दूर हो जाती हैं या उनके अभिभावकों द्वारा दूर कर दी जाती हैं। अक्सर शिक्षा और रोज़गार के लिए जारी रिपोर्ट्स में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को देखकर सभी खुद को शाबाशी देने लगते हैं। लेकिन हम ये भूल जाते हैं कि अभी भी समाज के कई हिस्सों में लड़कियों को अपने बुनियादी शिक्षा और विकास के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है।

लड़कियां स्कूल छोड़ने को क्यों हैं मजबूर?

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के मुताबिक लगभग पांच में से एक लड़की अभी भी निम्न-माध्यमिक की पढ़ाई पूरी नहीं कर पा रही है। लगभग10में से चार लड़कियां आज भी उच्च-माध्यमिक विद्यालय की पढ़ाई पूरी नहीं कर पा रही हैं। कुछ क्षेत्रों में तो संख्या और भी निराशाजनक है। ये पूरी दुनिया का हाल है। भारत के हालात इससे भी भयानक हैं। यहां प्राइमरी स्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद लगभग 65फीसदी लड़कियों ने स्कूल छोड़ दिया। ये आंकड़े शिक्षा मंत्रालय ने अपनी पहली 'ग्रामीण भारत में प्राथमिक शिक्षा की स्थिति' रिपोर्ट में बताए हैं। हालांकि इस पढ़ाई छोड़ने के पीछे यौन हिंसा के अलावा और भी कई बड़े कारण हैं लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ये बच्चियों के माता-पिता के मन का सबसे बड़ा डर जरूर है।

शिक्षा क्षेत्र की जानकार और कार्यकर्ता स्वाति सिंह बताती हैं कि वैसे भी हमारे देश में लोग लड़कियों की शिक्षा को लेकर बहुत उत्सुक नज़र नहीं आते। कहीं मां-बाप अपनी बच्चियों को घर से ज़्यादा दूर भेजना नहीं चाहते क्योंकि वे उनकी सुरक्षा को लेकर आश्वस्त नहीं रहते। तो कहीं वे उनकी पढ़ाई पर खर्च को फिजूल मानते हैं कहीं घर की सोच सिर्फ लड़कों को पढ़ने की आज़ादी देती है तो कभी कहीं किसी लड़की के साथ हुई शोषण-उत्पीड़न की घटनाएं बाकी लड़कियों को भी घर में कैद होने को मजबूर कर देती हैं।

स्वाति बताती हैं कि अक्सर गांव के स्कूलों में लड़कियां शिकायत को भी आगे इसलिए नहीं आती क्योंकि उन्हें डर होता है कि उनकी पढ़ाई छूट जाएगी। फिर उनके लिए घर के चूल्हा-चौके से बाहर निकलने का यही एक रास्ता भी होता है। उनकी आवाज़ भी कई बार 'इज्जत' के नाम पर दबा दी जाती हैं। जैसा कि जींद के मामले में भी ये आरोप लगा की पुलिस ने मामले में देरी की और एक महीने बाद जाकर प्रिंसिपल के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। उन्नाव वाले में भी यही सुनने को मिला की लड़कियां बीते लंबे समय से परेशान थीं और अभी भी काफी तनाव में हैं। ये सब उनके लिए इतना आसान नहीं है क्योंकि यहां बात सिर्फ आगे बढ़कर शिकायत करने की नहीं है उनके सामने सबसे बड़ा डर उनकी पढ़ाई छूट ने का भी है।

बालिका छात्रावासों और बालगृहों की बदहाल स्थिति

लंबे समय से बालिका छात्रावासों और बाल सुधार गृहों के हालात पर खबरें करने वाली पत्रकार ऋचा शर्मा बताती हैं कि पॉक्सो यानी यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण कानून हमारे यहां बहुत मज़बूत है बावजूद इसके किसी में इसका डर नहीं है। क्योंकि लड़कियों की स्थिति हर किसी को पता है जो कभी डर तो कभी लालच से इन घटनाओं को छिपाने को मजबूर हो जाती हैं। गांव के स्कूलों में तो गुड टच-बैड टच किसी तरह की जागरूकता भी नहीं है। जब तक कोई बड़ी घटना सामने नहीं आती कोई हलचल तक नहीं होती। और ऐसा भी नहीं की इसका सिर्फ एक व्यक्ति जिम्मेदार है ये पूरा एक सांठ-गांठ का खेल होता है जिसमें नीचे से लेकर ऊपर तक कई लोगों का हाथ होता है और कई बार तो शासन-प्रशासन की संलिप्तता भी देखने को मिलती है।

ऋचा आगे कहती हैं कि सरकारी या गैर सरकारी सभी बालिका छात्रावासों और बाल गृहों की बदहाल स्थिति किसी से छिपी नहीं है। यहां कई बार अलग-अलग तरह के मुजफ्फरपुर, देवरिया, कानपुर और आगरा समेत कई बालिका गृह कांड देश के सामने आ चुके हैं। कई बार आरोपी गिरफ्तार हुए हैं एक-आध मामलों में सज़ा भी मिली है। लेकिन इन सब में जो मुख्य मुद्दा सुरक्षा का है उसमें कोई खास परिवर्तन नहीं आया है। क्योंकि इस ओर सरकार और महिला आयोग का ध्यान बिल्कुल ही नहीं जाता जब तक कुछ बड़ा नहीं हो जाता।

गौरतलब है कि कई बार स्कूल से लेकर विश्वविद्यालयों तक लड़कियों ने अकेले और सामूहिक रूप से यौन शोषण के खिलाफ आवाज़ बुलंद की है। हालांकि ये हिम्मत हर स्कूल और कॉलेज परिसर में देखने को नहीं मिलती। इसलिए लड़कियों के ड्राप आउट को कम करने के लिए सबसे पहले सुरक्षा के पुख्ते इंतजाम के साथ ही अपराधियों पर सख्त कार्यवाई की भी जरूरत है जिससे लड़कियों के हौसले बुलंद हो सके मां-बाप भी निश्चिंत हो सकें और लड़कियां अपनी पढ़ाई पूरी कर आज़ादी से जीवन जी सकें।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest