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कर्नाटकः शिक्षकों के 57% से ज़्यादा पद खाली

कर्नाटक में बिना शिक्षकों के शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति हो गई है। आंकड़े बता रहे हैं कि एक शिक्षक के स्कूलों के मामले में कर्नाटक देश में पांचवे स्थान पर है और शिक्षकों के रिक्त पदों के मामले में देश में पहले स्थान पर।
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प्रतीकात्मक तस्वीर।फ़ोटो साभार: TOI

कर्नाटक में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर भाजपा बड़े-बड़े दावे कर रही है। भाजपा की राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति का दावा कर रही हैं। विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप के संदर्भ में प्रचार किया जा रहा है। शिक्षकों की भर्ती को लेकर प्रचार किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फोटो के साथ ई-विद्या योजना के संदर्भ में प्रचार किया जा रहा है। चमकीला प्रचार तो चारों तरफ है लेकिन भाजपा ये नहीं बता रही कि कुल मिलाकर कर्नाटक में शिक्षा और सरकारी स्कूलों की स्थिति क्या है।

इंफ्रास्टर्क्चर की क्या स्थिति है? क्या पीने का पानी, बिजली, पुस्तकालय, टॉयलेट और हाथ धोने जैसी बुनियादी सुविधाएं स्कूलों में है? क्या स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक हैं? जाहिर है शिक्षा के क्षेत्र में जिस क्रांति का दावा भाजपा कर रही है उसके लिए इन बुनियादी सुविधाओं का होना अनिवार्य है। तो क्या ये सुविधाएं हैं या इनके बिना ही शिक्षा में क्रांति हो गई है? आइये, पड़ताल करते हैं।

बिन शिक्षक शिक्षा में क्रांति

जाहिर है कि गुणवत्ता परक शिक्षा के लिए स्कूलों में पर्याप्त शिक्षकों का होना अनिवार्य है। लेकिन भाजपा बिना शिक्षकों के गुणवत्ता परक शिक्षा का ही नहीं बल्कि शिक्षा में क्रांति का दावा कर रही है। देश में स्कूलों की स्थिति के बारे में शिक्षा मंत्री से राज्यसभा में सवाल पूछा गया। 14 दिसंबर 2022 को शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने जिसका लिखित जवाब दिया। जिसके अनुसार कर्नाटक में शिक्षकों के आधे से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। कर्नाटक में शिक्षकों के 1 लाख 41 हज़ार 358 पद यानी 57% से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। देश में शिक्षकों के सबसे ज्यादा खाली पद कर्नाटक में हैं। इन खाली पदों में साल दर साल लगातार बढ़ोतरी ही हुई है।

वर्ष 2019-20 में शिक्षकों के रिक्त पदों की संख्या 22,200 यानी 8.46% थी, वर्ष 2020-21 में ये संख्या बढ़कर 34,079 यानी 14.62% हो गई और वर्ष 2021-2022 में ये आंकड़ा 1,41,358 यानी 57.57% पर पहुंच गया।

राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में 22 मार्च 2023 को शिक्षा राज्यमंत्री अन्नपूर्णा देवी ने बताया है कि कर्नाटक में 7,848 यानी 15% सरकारी स्कूल मात्र एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। एक शिक्षक के स्कूलों के मामले में कर्नाटक देश में पांचवे स्थान पर है और शिक्षकों के रिक्त पदों के मामले में देश में पहले स्थान पर है। लगता है शिक्षकों के रिक्त पदों में इस क्रांतिकारी बढ़ोतरी को भाजपा शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति की तरह पेश कर रही है।

बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी

अब एक बार नज़र डालते हैं कि कर्नाटक के स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की क्या स्थिति है। शिक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार कर्नाटक के 1,001 स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से शौचालय नहीं है।

आधे से ज्यादा यानी 26,320 स्कूलों में पुस्तकालय नहीं है। जिन स्कूलों में पुस्ताकलय है ज़रूरी नहीं है कि किताबें भी हों।

कर्नाटक में 23,185 यानी मात्र 47% स्कूलों में किताबों वाली लाइब्रेरी है।

25,862 यानी 52% स्कूलों में बिजली नहीं है।

207 स्कूलों में विद्यार्थियों के लिए पीने के पानी की सुविधा नहीं है।

28,778 यानी 58% स्कूलों में हाथ धोने की सुविधा नहीं है।

29,022 यानी 58% स्कूलों में मेडिकल सुविधा नहीं है।

ये आंकड़े बता रहे हैं कि जिन स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं तक नहीं है वहां शिक्षा की गुणवत्ता की स्थिति क्या होगी।

कर्नाटक में चुनाव में केंद्र और राज्य दोनों भाजपा सरकारों के हवाले से शिक्षा में क्रांति का दावा किया जा रहा हैं। जबकि सच्चाई ये है कि भाजपा के शासनकाल में सरकारी स्कूल और शिक्षा बुरी तरह बर्बाद हुई है।

गौरतलब है कि सरकारी स्कूलों में ग़रीबों के बच्चे पढ़ते हैं। सरकारी स्कूलों की बर्बादी का अर्थ है ग़रीबों को शिक्षा से दूर करना। भाजपा न तो स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं दे पाई है और न ही पर्याप्त शिक्षक। बल्कि बड़े पैमाने पर सरकारी स्कूलों को बंद किया गया है।

15 मार्च 2023 को एक सवाल के लिखित जवाब में शिक्षा राज्यमंत्री अन्नपूर्णा देवी ने बताया है कि देश भर में 61,361 सरकारी स्कूलों को बंद किया गया है। 2018-19 में देश में स्कूलों की संख्या 10,83,747 थी जो वर्ष 2021-22 में घटकर 10,22,386 रह गई।

अजीब बात ये है कि भाजपा के मंत्री एक तरफ तो खुद संसद में इन डरावने आंकड़ों को लिखित रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं दूसरी तरफ शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति का दावा कर रहे हैं। आप खुद तय कीजिये इसे गैरजिम्मेदारी कहें या कुछ और...।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)

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