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कर्नाटक की जनता नई कांग्रेस सरकार से क्या चाहती है?

पूरे कर्नाटक में लोगों की उम्मीदें अलग-अलग हैं, लेकिन कांग्रेस का इम्तिहान सामाजिक न्याय के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को लेकर होगा।
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फ़ोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स

13 मई को, कर्नाटक के लोगों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को विशाल बहुमत से जीता दिया। चार साल और दो मुख्यमंत्रियों की पारी के बाद, भाजपा सरकार को आखिर किसानों, मजदूरों और नौकरी की तलाश कर रहे महत्वाकांक्षी युवाओं के क्रोध झेलना पड़ा और सत्ता से हाथ धोना पड़ा। न्यूज़क्लिक ने आने वाली कांग्रेस सरकार से उनकी अपेक्षाओं को समझने के लिए राज्य भर में कई लोगों से बात की। उनकी प्रतिक्रियाएँ नीचे पेश की जा रही हैं।

अमृत, उम्र 39, बेलगावी से नर्स:

“मुझे आने वाली सरकार जो उम्मीद है वह यह कि कांग्रेस सरकार बेलगावी में एक एम्स अस्पताल का निर्माण करे। इस जिले की आबादी 50 लाख से अधिक है, लेकिन सबसे बड़ा (सार्वजनिक) अस्पताल बेलगावी शहर का जिला अस्पताल है, और इसमें केवल 750 बिस्तर हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली में 4,000 से अधिक बिस्तर हैं। यहां ऐसा कोई कार्यरत सुपर स्पेशियलिटी सार्वजनिक अस्पताल नहीं है जो यहां ओपन हार्ट प्रोसीजर, लिवर ट्रांसप्लांट और अन्य प्रमुख सर्जरी कर सके। इसके लिए मरीजों को बेलागवी शहर के निजी अस्पतालों में जाना पड़ता है और इन प्रोसिजर्स में लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। तकनीकी रूप से, जिला अस्पताल (जिसे सिविल अस्पताल भी कहा जाता है) के अंदर एक सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल है। दो महीने पहले इसका उद्घाटन किया गया था। लेकिन कर्मचारियों की भर्ती नहीं की गई है और कोई भी विभाग काम नहीं कर रहा है। अमृत ​​ने कहा, हमने एम्स अस्पताल के लिए ऑनलाइन अभियान चलाया है।

स्वास्थ्य के मुद्दों पर कम करने वाले एक्टिविस्ट बेलगावी में स्वास्थ्य सुविधाओं की तुलना धारवाड़ से करते हैं। वे कहते हैं कि, ''धारवाड़ की आबादी करीब 20 लाख है, लेकिन वहाँ कर्नाटक आयुर्विज्ञान संस्थान (केआईएमएस) है। यह 2000 बेड का अस्पताल है। उन्हें एम्स की भी जरूरत नहीं है, लेकिन राजनीतिक लॉबिंग के चलते उन्हें जल्द ही एम्स मिल जाएगा।  गुलबर्गा और रायचूर के स्थानीय लोग भी हुबली-धारवाड़ में एम्स बनाने के फैसले का विरोध कर रहे हैं। वहां एक साल से यह अभियान चल रहा है। हम बेलगावी शहर में एम्स चाहते हैं। शायद इसलिए कि यह एक सीमावर्ती जिला है जिसका (महाराष्ट्र के साथ) पुराना विवाद है, वे हमें और सुविधाएं देने को लेकर अनिश्चित हैं। यहां तक कि सुवर्ण सौधा (द्वितीय विधान सभा भवन) धारवाड़ के करीब बनाई गई है। इतने वर्षों के ऑपरेशन (2012) के बाद भी सुवर्ण विधान सौधा के पास कोई बड़ा सरकारी विभाग नहीं है। सनद रहे कि, बेलागवी हवाई अड्डा राज्य के सबसे पुराने हवाई अड्डों में से एक है। हालाँकि, यहाँ से नई दिल्ली या मुंबई के लिए कोई सीधी उड़ान नहीं है; उड़ानें बेंगलुरु से होकर जाती हैं, जो विपरीत दिशा में है। बेलागवी जिला राज्य के राजस्व में मुख्य योगदानकर्ता है, लेकिन यह सबसे उपेक्षित जिलों में से एक है।”

अमृत बेलगावी कोर डेवलपमेंट ग्रुप का हिस्सा है, जो बुनियादी ढांचे के अभियान में लीन उत्साही नागरिकों का समूह है। वे बेलगावी में विकास के लिए सुझाव और सिफारिश पेश करते हैं और साथ निर्वाचित सदस्यों से जुड़कर हल ढूँढने की कोशिश करते हैं।

वासुदेव मेती, उम्र 52, रायचूर से किसान

वासुदेव मेती कहते हैं कि, “उत्तर कर्नाटक में किसानों को पानी की कमी के कारण सिंचाई में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। अलमट्टी बांध की ऊंचाई 519 मीटर से बढ़ाकर 524 मीटर करने का सर्वोच्च न्यायालय का आदेश है। यदि बांध की ऊंचाई बढ़ाई जाती है, तो इससे उत्तर कर्नाटक के आठ जिलों को लाभ होगा। इसके परिणामस्वरूप सिंचाई के लिए 24/7 पानी की आपूर्ति होगी। होसपेट बांध में 32 टीएमसी पानी की गाद बन चुकी है। नई सरकार को डिसिल्टिंग सुनिश्चित करनी होगी। जब येदियुरप्पा सीएम थे, हमने उन्हें एक अपील भेजी थी, उन्होंने गंगावती में एक नए बैलेंसिंग जलाशय को मंजूरी दी थी। बोम्मई सरकार ने परियोजना के लिए 1000 करोड़ रुपये स्वीकृत किए लेकिन डीपीआर तैयार नहीं किया गया है। हमने पिछली सरकार को उर्वरकों की कीमत कम करने में मदद करने के लिए कई अनुरोध भेजे थे। उन्होंने हमारी अपीलों का जवाब नहीं दिया।”

मेती उधार लेने वालों किसानों के सामने पेश आने वाली समस्याओं के बारे में बात करते हैं। वे कहते हैं, ''मणप्पुरम फाइनेंस और मुथूट फाइनेंस जैसी कंपनियों द्वारा दिया जाने वाला  गोल्ड लोन भी एक मुद्दा है। ग्रामीण क्षेत्रों में, किसान कर्ज़ के बदले में थोड़ा सा सोना गिरवी रख देते हैं। ये कंपनियां बिना किसी जमानत के लोन देती हैं। शर्त यह है कि यदि कोई तीन नोटिस के बाद भी कर्ज नहीं चुका पाए तो गिरवी रखा हुआ सोना कंपनियों का हो जाता है। गांवों में लोग नियमित रूप से पैसा नहीं कमा पाते हैं। वे हर महीने ब्याज का भुगतान नहीं कर सकते हैं। यदि भुगतान में कुछ दिनों की देरी हो जाती है, तो वे पूरे महीने का ब्याज वसूलते हैं। ब्याज दर 3 प्रतिशत प्रति माह है। हमने सरकार पर इन कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव डाला है। श्रीनिवासपुर के पूर्व विधायक रमेश कुमार ने पिछले साल विधानसभा में यह मुद्दा उठाया था। लेकिन कोई बदलाव नहीं हुआ है।"

उन्होंने एपीएमसी की बुरी दशा के बारे में भी विस्तार से बताया। उनके मुताबिक, “एपीएमसी भयंकर कुप्रबंधन की शिकार है। यहां लोहा और सीमेंट भी बिक रहा है। हम दो कृषि कानूनों (2020 में भाजपा राज्य सरकार द्वारा पेश) को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं। हालाँकि, बोम्मई सरकार ने हमारी अपीलों को नज़रअंदाज़ कर दिया था। केंद्र सरकार ने भी अपने कृषि  कानूनों को निरस्त कर दिया था, लेकिन राज्य सरकार ने इन्हे लागू किया, यानी कर्नाटक कृषि उपज विपणन (विनियमन और विकास) (संशोधन) अधिनियम, 2020 यहां लागू है। हमारी उम्मीद है कि कांग्रेस इस कानून को निरस्त कर देगी। उन्होंने ऐसा करने का वादा किया है। इसके परिणामस्वरूप एपीएमसी का निजीकरण हुआ है। वे दिवालिया हो रहे हैं। अन्य कानून कृषि भूमि के अधिग्रहण से संबंधित है, अर्थात कर्नाटक भूमि सुधार (दूसरा संशोधन) अधिनियम, 2020। यह कानून गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए कृषि भूमि की खरीद पर प्रतिबंध को हटाता है। किसानों के पास छोटी जोत होती है। इन्हें आसानी से खरीदा जा सकता है। इसके बाद वे क्या करेंगे? आम लोगों की जमीन चली जाएगी। उन्हें काम खोजने के लिए दूसरी जगहों पर जाना पड़ेगा।”

मेती बिजली वितरण के निजीकरण के कोशिशों के बारे में भी बताते हैं। वे कहते हैं कि, 'बिजली की आपूर्ति मीटर से जाएगी और हमें इसे रिचार्ज कराना होगा जैसे हम अपने फोन को रिचार्ज करते हैं। हमारे पंप सेट बेकार पड़े रहेंगे। जब पंप सेट काम करना बंद कर देंगे तो हम अपनी फसलों की सिंचाई कैसे करेंगे? हमारे खर्चे पहले से ही इतने ज्यादा हैं। जब हम कपास उगाते हैं, तो हमें 5,000 रुपये से 6,000 रुपये प्रति क्विंटल का खर्च आता है। लेकिन बाजार भाव जो हमें मिलता है वह 6,500 रुपये प्रति क्विंटल है। हम इतने कम दाम पर कैसे जीवित रह सकते हैं? हम डॉ स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के आधार पर एमएसपी कानून चाहिए।"

शिवसुंदर, उम्र 56, बेंगलुरु के रहने वाले एक लेखक

शिवसुंदर कहते हैं कि, ''नई सरकार से अपेक्षाओं के बारे में बात करने से पहले कांग्रेस पार्टी के स्वरूप को समझना होगा। यह नवउदारवादी अर्थव्यवस्था और सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति से प्रेरित पार्टी है। जब भी इस पर दबाव पड़ेगा तो यह उन कल्याणकारी उपायों को विकसित करेगी जो नवउदारवादी नीतियों की सीमा को लांघ न पाए। वास्तव में, 'राजकोषीय उत्तरदायित्व अधिनियम' को पहली बार 2002 में एसएम कृष्णा सरकार ने ही पारित किया था। इसके बाद, 2003 में यह एक अखिल भारतीय कानून बन गयाथा। सभी सरकारों के लिए यह क़ानून बाइबिल बन गया है। इसका इस्तेमाल सभी कल्याणकारी उपायों में कटौती करने और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए संसाधनों को बचाने के लिए किया जाता है, जो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में मदद करता है।"

लेखक शिवसुंदर

उन्होंने भाजपा के कार्यक्रम का विरोध करने में कांग्रेस की अक्षमता के बारे में भी विस्तार से बताया। उनके मुताबिक, “हो सकता है कि सरकार भाजपा के हिंदुत्ववादी नाटक के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। लेकिन विपक्ष में भाजपा, सरकार में रहने वाली भाजपा से ज्यादा खतरनाक है। अमित शाह ने साफ कर दिया कि अगर आप बीजेपी को वोट नहीं देंगे तो सांप्रदायिक दंगे होंगे। सड़क पर सांप्रदायिक तत्वों को रोकने के लिए कांग्रेस के पास संगठनात्मक मशीनरी नहीं है। वे कम से कम 2024 तक इन तत्वों को रोकने के लिए कोई कानून भी पारित नहीं करे पाएंगे, क्योंकि वे भी हिंदुओं को नाराज नहीं करना चाहते हैं।”

अंत में, वे कर्नाटक में वामपंथी और स्वतंत्र आवाजों के 'कांग्रेसीकरण' के बारे में बोलते हैं। वे कहते हैं, ''चुनाव लोगों की राजनीतिक चेतना जगाने का अवसर था। लेकिन वे कांग्रेस के कार्यकर्ता बन गए। वाम दलों ने कांग्रेस और जद (एस) को बिना शर्त समर्थन की पेशकश की। एक और विकल्प प्रदान करने के बजाय, प्रगतिशील संगठन और समूह (जो चुनावों के दौरान बने थे) ने भी खुद को कांग्रेस के प्रचार तक सीमित कर लिया। 2024 तक, एक शर्त होगी - वे कहेंगे कि यदि आप कांग्रेस की आलोचना करते हैं, तो इससे भाजपा को मदद मिलेगी। समस्या यह है कि विपक्ष की जगह अब पूरी तरह बीजेपी के हवाले कर दी गई है।  जन आंदोलन को विपक्ष की जगह लेनी चाहिए और भाजपा के भरोसे नहीं छोड़ना चाहिए। अगर कांग्रेस के खिलाफ गुस्सा है तो अब एक ही विकल्प है।

हंडीजोगी राजन्ना, उम्र 49, तुमकुर के एक कार्यकर्ता

“मेरी उम्मीद है कि बिना घरों वाले परिवारों को दो एकड़ जमीन और रहने के लिए एक घर दिया जाना चाहिए। कर्नाटक में 74 खानाबदोश समुदाय हैं (कुछ कार्यकर्ताओं ने इनकी संख्या 121 आंकी है)। वे सभी 31 जिलों में मौजूद हैं और दर्द में चुपचाप जी रहे हैं। वे शेड, टेंट और सूअरों के घरों में रह रहे हैं। पिछली सरकार के नेताओं ने वादा किया था कि कर्नाटक को झोपड़ी मुक्त बनाया जाएगा। एक्टिविस्ट हंडीजोगी राजन्ना कहते हैं कि, अगर कोई सरकार इसे हकीकत बनाती है, तो मुझे खुशी होगी।” 

हंडीजोगी राजन्ना, अलेमारी बुदकट्टू महासभा के नेता

तुमकुर जिले के एक्टिविस्ट का कहना है कि हाल तक खानाबदोश समुदायों के पास दस्तावेज़ीकरण की कमी थी। “2013 में भी, हमारी रसोई और पेट भरे नहीं थे। हमारा मुख्य पेशा सड़कों पर भीख मांगना और जो मिल जाए खा लेना था। ऐसा लगता था कि हमारे भाग्य में कोई आजीविका कमाने की नियति नहीं थी। फिर केंद्र सरकार से भीख मांगने पर रोक लगाने की बात हुई। अगर भीख मांगने पर प्रतिबंध लगा दिया गया तो हताश लोग कैसे जीवित रहेंगे? खानाबदोश समुदाय खतरे की रडार के नीचे है। किसी ने हमें पहचानने की कोशिश नहीं की है। हमारे पास आधार कार्ड या राशन कार्ड जैसे दस्तावेज नहीं थे। उसके बाद सिद्धारमैया (कांग्रेस के) आए। अपना संगठन अलेमारी बुदकट्टू महासभा (खानाबदोश जनजातियों का संघ) बनाने के बाद, हमने उनसे हमसे मिलने का अनुरोध किया। उन्होंने हमें सुना और हमारे समुदायों के बारे जानकारी हासिल की और बताया कि कैसे हमारे पास दस्तावेज़ नहीं थे। उन्होंने डॉ बीआर अंबेडकर विकास निगम के भीतर अलेमारी सेल की शुरुआत की। कर्ज़ की सुविधा की। खानाबदोश समुदायों के प्रत्येक सदस्य के लिए दो लाख का प्रावधान किया गया। दो एकड़ जमीन और एक घर का वादा भी किया था। जबकि हमें ऋण मिल गया है, हमें अभी तक जमीन या घर नहीं मिला है। तुमकुर जिले में ही 128,000 अलेमारी (खानाबदोश) परिवार हैं। यह महासभा द्वारा एकत्र किया गया डेटा है। इसमें से केवल 10 प्रतिशत परिवारों के पास अपने घर हैं। हालाँकि, कुछ प्रगति हुई है। अलेमारिस के पास राशन कार्ड हैं। उनके घरों के अंदर खाना है। यह सिद्धारमैया की विरासत है।”

चांद पाशा, उम्र 29, गुलबर्गा से छात्र

बेंगलुरु यूनिवर्सिटी में पीएचडी स्कॉलर चाँद पाशा कहते हैंकि, 'एक छात्र होने के नाते मुझे उम्मीद है कि नई सरकार शिक्षा को ज्यादा महत्व देगी। मुझे उम्मीद है कि एनईपी को कांग्रेस लागू नहीं करेगी। एनईपी में छात्रों के लिए सकारात्मक दीर्घकालिक दृष्टिकोण नहीं है। कई विशेषज्ञों ने इसका विरोध किया है। भाजपा सरकार ने इसे लागू कर दिया है। हमारे शिक्षकों ने हमें बताया है कि दस वर्षों में सभी सार्वजनिक विश्वविद्यालयों को बंद कर दिया जाएगा और निजी संस्थानों द्वारा इन्हे प्रतिस्थापित कर दिया जाएगा। इससे छात्रों का भविष्य प्रभावित होगा। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अल्पसंख्यक छात्रों की छात्रवृत्तियां छीन ली गईं हैं। स्कूल से लेकर कॉलेज स्तर तक शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं। उन्हें भरा जाना चाहिए। इससे बेरोजगारी दूर होगी और छात्रों को अच्छी शिक्षा मिलेगी। इसके अलावा, बच्चों के मध्याह्न भोजन से अंडे छीनने का भी प्रयास किया गया। यह रुकना चाहिए। बच्चों के भोजन में राजनीति का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। नई सरकार से मेरी यही उम्मीद है।"

प्रतिभा, उम्र 50, बेंगलुरु की गारमेंट यूनियन की नेता

“हमारी उम्मीद है कि कांग्रेस सरकार कारखाने के श्रमिकों के लिए 12 घंटे के कार्य दिवस की नीति को तुरंत वापस लेगी। कर्नाटक में परिधान उद्योग में लगभग 4 लाख श्रमिक कार्यरत हैं। इनमें 85 प्रतिशत महिलाएं हैं। मुफ्त बस यात्रा (महिलाओं के लिए) के वादे को लागू किया जाना चाहिए। मेरी यह भी इच्छा है कि सरकार गारमेंट उद्योग के लिए न्यूनतम वेतन बढ़ाए। न्यूनतम वेतन मात्र 440 रुपए प्रतिदिन है। जबकि इसे 560 रुपए प्रतिदिन होना चाहिए। प्रतिभा कहती हैं कि, 2018 में, कांग्रेस सरकार ने मजदूरी दोगुनी करने के लिए एक प्रस्ताव लाई थी। लेकिन उन्होंने इसे फैक्ट्री मालिकों के दबाव के कारण वापस ले लिया था।” 

पूरे कर्नाटक में लोगों की अपेक्षाएं अलग-अलग हैं। यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि किसान और एक्टिविस्ट भाजपा द्वारा शुरू की गई नवउदारवादी नीतियों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। जनता ने 12 घंटे के कार्यदिवस और नए कृषि सुधारों को खारिज कर दिया है। बिजली के निजीकरण और कृषि भूमि के उदारीकरण की नीतियों ने किसानों में भय भर दिया है। उत्तरी कर्नाटक में पानी की कमी ने किसानों की आय को चौपट कर दिया है। जबकि एमएसपी पर कानून केंद्र सरकार पर निर्भर करता है, राज्य सिंचाई सुविधाओं के सुधार पर तुरंत काम शुरू कर सकता है।

कांग्रेस की सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता की भी जांच अब होगी। जहां मुसलमान शांति और सुरक्षा की उम्मीद कर रहे हैं, वहीं खानाबदोश समुदाय अभी भी अपने सिर पर छत का सपना देख रहे हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

What Does Karnataka Want From its new Congress Govt?

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