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कार्वी घोटाले ने घरेलू ब्रोकरेज इंडस्ट्री को हिला कर रख दिया

सेबी ने कार्वी को नियमित परिचालन से रोक दिया है क्योंकि इस नियामक ने पाया कि कंपनी ने संबंधित लेनदेन के लिए अपने ग्राहकों के पावर ऑफ अटॉर्नी का दुरुपयोग किया है।
Karvy Scandal Sends Shockwaves

इस साल नवंबर महीने में सामने आए हैदराबाद स्थित कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग लिमिटेड (केएसबीएल) के बड़े घोटाले ने फिर से शेयर बाजार के फर्जीवाड़े को उजागर किया है जबकि बैंकों को शेयर या प्रतिभूति प्रणाली के खिलाफ ऋण मामले में सुधारात्मक उपाय करने के लिए प्रेरित किया।

22 नवंबर को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने केएसबीएल को उसके रियल एस्टेट से जुड़ी कार्वी रियल्टी में निवेश करने वाले उसके निवेशकों से संबंधित धन और प्रतिभूतियों के दुरुपयोग को लेकर उसके नियमित संचालन को जारी रखने पर प्रतिबंध लगा दिया है। हालांकि, बाजार नियामक ने 2,300 करोड़ रुपये की राशि का घपला बताया है। हाल ही में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) द्वारा शुरू की गई। जारी फ़ोरेंसिक ऑडिट ईवाई अकाउंटेंट द्वारा की जा रही है जो धन के दुरुपयोग की वास्तविक सीमा को संभवतः आगे बढ़ाएगा।

सेबी ने प्रथम दृष्टया पाया कि अपने ग्राहकों द्वारा दी गई पावर ऑफ अटॉर्नी (पीओए) का केएसबीएल ने दुरुपयोग करके अपने ग्राहक की प्रतिभूतियों का ग़लत इस्तेमाल किया है। इसलिए इस नियामक ने डिपॉजिटरी एंड स्टॉक एक्सचेंज को इस ब्रोकरेज फर्म के ख़िलाफ़ नियामकीय कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दिया। इसके बाद एनएसई और बीएसई दोनों ने कार्वी को उसके परिचालन से प्रतिबंधित कर दिया।

सेबी की तरफ से ये आदेश उस समय दिया गया जब कथित तौर पर कार्वी के कई ग्राहकों ने इस नियामक को शिकायत की थी कि पैसे और प्रतिभूतियां उनके व्यापारिक खातों में नहीं आ रहे है। एक अलग जांच में एनएसई ने यह भी पाया कि कार्वी अपने ग्राहक के पीओए का दुरुपयोग कर रहा था क्योंकि इस नियामक ने पाया कि केएसबीएल ने जनवरी से अगस्त 2019 तक एनएसई को मैनडेटरी सबमिशन की सूचना नहीं दी थी।

अध्यक्ष और कार्वी समूह के संस्थापकों में से एक प्रभावशाली व्यापारी सी पार्थसारथी इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कार्वी ऐसे विवादों के लिए कोई नया नहीं है।

साल 2015 में 2003-2005 की अवधि के दौरान आईपीओ (प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव) घोटाले से संबंधित मामले में सेबी ने कार्वी को नए प्राथमिक बाजार असाइनमेंट लेने से रोक दिया था जिसमें शुरुआती शेयर बिक्री में बोली लगाना भी शामिल था।

इस साल जून में बेंगलुरु पुलिस ने कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग, कार्वी प्राइवेट वेल्थ, कार्वी रियल्टी और कार्वी कैपिटल के शीर्ष अधिकारियों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले उस वक़्त दर्ज किया जब कई निवेशकों ने शिकायत की कि उनसे 4 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी हुई थी।

जब यह घोटाला सामने आया तो विश्लेषकों ने खुले तौर पर कहा है कि ये कंपनी वर्षों से पीओए का दुरुपयोग कर रही है।

कार्वी की कार्य प्रणाली

कार्वी द्वारा सेबी को सौंपे गए विवरण के अनुसार केएसबीएल के पास 12 लाख ग्राहक हैं जिनमें से लाख सक्रिय ग्राहक हैं। रोज़ाना औसतन 20,000 से 25,000 ग्राहक लेनदेन करते हैं। केएसबीएल का पूरे भारत में 900 कार्यालय है।

सेबी की तरफ से जारी किए गए जून महीने के सर्कुलर के अनुसार इसने सभी ब्रोकरेज फर्मों को धन जुटाने के लिए ग्राहकों की प्रतिभूतियों को गिरवी नहीं रखने को लेकर स्पष्ट रुप से प्रतिबंधित किया है। सभी ब्रोकर को इन मानदंडों का पालन करने के लिए सितंबर 2019 के अंत तक का समय भी दिया गया है जबकि स्टॉक एक्सचेंजों, क्लीयरिंग कॉर्पोरेशन और डिपॉजिटरीज को इसकी निगरानी करने का काम सौंपा गया था।

लेकिन, यह पता चला कि केएसबीएल पिछले कुछ वर्षों से अपने भुगतान दायित्वों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा था और अपनी दूसरी कंपनियों को फंड देने के लिए पैसा जुटाने के लिए शेयर गिरवी रखना उसकी मुख्य रणनीति रही है।

पिछले कुछ सालों में सेबी ने कासा फिनवेस्ट प्राइवेट लिमिटेड, गिनीज सिक्योरिटीज लिमिटेड, फिकस सिक्योरिटीज, बीआरएच वेल्थ क्रिएटर्स, फेयरवेल्थ सिक्योरिटीज और हाल ही में इसी तरह के उल्लंघन के लिए बीएमए वेल्थ पर प्रतिबंध लगा दिया है।

कथित तौर पर बीएमए वेल्थ ने अपने ग्राहकों की प्रतिभूतियों को गिरवी रखकर 100 करोड़ रुपये की राशि जुटाई।

शेयर या प्रतिभूतियों को गिरवी रखना एक प्रकार की ऋण-वृद्धि करने की प्रणाली है जिसमें कंपनियां शेयरों या प्रतिभूतियों को समानांतर रूप में लेकर ऋणदाताओं से पैसे जुटाती हैं। डिफ़ॉल्ट के मामलों में ऋणदाताओं के पास पैसे की वसूली के लिए गिरवी रखे शेयरों या प्रतिभूतियों को बेचने का अधिकार होता है।

कार्वी में जिन बैंकों के पैसे फंसे हैं उनमें आईसीसीआई बैंक (875 करोड़ रुपये), एचडीएफसी बैंक (195 करोड़ रुपये), इंडसइंड बैंक (105 करोड़ रुपये) और आदित्य बिड़ला फाइनेंस (100 करोड़ रुपये) जैसी कंपनियां शामिल हैं। हालांकि, इसे सेबी द्वारा प्रतिभूतियों को जारी करने से प्रतिबंधित कर दिया गया क्योंकि वे ऋण देने में विफल रहे।

इसने बैंकों और अन्य ऋणदाताओं को प्रतिभूतियों पर दिए गए ऐसे सभी ऋणों की फिर से जांच करने और भविष्य के लेनदेन पर नज़र रखने के लिए कहा है।

इसके अलावा, इस घोटाले की ख़बर ने घरेलू ब्रोकिंग उद्योग को हिला कर रख दिया है क्योंकि ब्रोकरों को अनुपालन लागत (कंप्लायन कॉस्ट) बढ़ने का डर है। साल दर साल ब्रोकरों की संख्या घट रही है। सेबी के आंकड़ों से पता चलता है कि 2014-15 में जहां 5,899 ब्रोकर थे वहीं 31 दिसंबर 2018 तक 34% घटकर 3,542 हो गई।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Karvy Scandal Sends Shockwaves Across Domestic Brokerage Industry

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