कश्मीर, सुप्रीम कोर्ट और राहुल गांधी
कश्मीर की स्थिति पर भारत के सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी अगस्त 2019 से बनी हुई है। क्या कांग्रेस नेता राहुल गांधी इस निहायत संवेदनहीन सुप्रीम चुप्पी को कठघरे में खड़ा करेंगे? क्या वह कश्मरी जनता को, जो गहरे अलगाव (alienation) में रह रही है, भारत से जोड़ने की दिशा में उत्प्रेरक की भूमिका निभा पायेंगे?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा अपने आख़िरी चरण में केंद्र-शासित क्षेत्र जम्मू-कश्मीर में दाख़िल हो चुकी है। 7 सितंबर 2022 को कन्याकुमारी (तमिलनाडु) से शुरू हुई यह यात्रा 30 जनवरी 2023 को जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर पहुंच कर ख़त्म हो जायेगी।
सवाल हैः कश्मीरी जनता इस यात्रा को किस तरह देखेगी और उससे क्या हासिल करेगी?
ग़ौर करने की बात है कि कश्मीरी जनता 1989 से लगातार भारतीय फ़ौज के बूटों और बंदूकों के साये तले रह रही है, भीषण दमन झेल रही है, और भारत से गहरे अलगाव में है। क्या राहुल गांधी इस अलगाव को ख़त्म करने के लिए कुछ उपाय सुझा पायेंगे?
इस अलगाव ने 5 अगस्त 2019 को और भी गंभीर रूप ले लिया। उस दिन कट्टर हिंदू राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 को, जो जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता आया है, ख़त्म कर दिया, और एक राज्य के रूप में जम्मू-कश्मीर के अस्तित्व को ख़त्म करते हुए उसे दो केंद्र-शासित क्षेत्रों में बांट दिया। तब से इस केंद्र-शासित क्षेत्र में न विधानसभा है, न चुनी हुई सरकार है।
5 अगस्त 2019 के बाद से ख़ासकर कश्मीर घाटी में, जो मुस्लिम-बहुल इलाक़ा है, जनता पर राजसत्ता के दमन ने और ज़ोर पकड़ लिया है।
अनुच्छेद 370 को रद्द करने और राज्य को दो केंद्र-शासित क्षेत्रों में बांट देने की अलोकतांत्रिक, दमनकारी कार्रवाई को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में अगस्त 2019 में दाख़िल की गयीं। लेकिन सुनवाई के लिए उनका नंबर अभी तक नहीं आया है, जबकि तीन साल से ऊपर हो चुके हैं।
राहुल गांधी इस सवाल से कैसे रूबरू होते हैं, कैसे सामना करते हैं, यह देखना है। वह अपने भाषणों में कहते रहे हैं कि न्यायपालिका और चुनाव आयोग-समेत देश की सभी स्वतंत्र संस्थाओं पर नरेंद्र मोदी सरकार ने पूरी तरह क़ब्ज़ा कर लिया है। क्या वह (राहुल गांधी) मांग करेंगे कि सुप्रीम कोर्ट ‘नरेंद्र मोदी के क़ब्ज़े’ से मुक्त होकर कश्मीर से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करे?
लोगों को याद होगा, जुलाई 2022 में देश के राष्ट्रपति पद के चुनाव के दौरान विपक्ष के साझा उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने जम्मू-कश्मीर के ज्वलंत मुद्दे पर देश के सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) की सुप्रीम चुप्पी पर गंभीर सवाल उठाया था। उन्होंने इस चुप्पी को बहुत चिंताजनक और अफ़सोसनाक बताया था। उन्होंने जो-कुछ कहा था, उससे यही मतलब निकल रहा था कि भारत का सुप्रीम कोर्ट दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सुप्रीम कोर्ट बन गया है।
तब यशवंत सिन्हा ने कहा था कि क़रीब तीन साल बीत जाने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीर से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई भी नहीं शुरू की, और यह गहरे अफ़सोस और चिंता की बात है। उन्होंने कहा था कि संवैधानिक मामलों को लंबे समय तक लटकाये रखने और उनका निपटारा न किये जाने से अदालत की साख ख़त्म हो जाती है।
यहां यशवंत सिन्हा का संदर्भ इसलिए दिया जा रहा है कि विपक्ष का एक नेता इस मुद्दे को पहले उठा चुका है। कांग्रेस विपक्ष की एक मज़बूत पार्टी है। उसके नेता राहुल गांधी से यह उम्मीद की जायेगी कि वह इस मुद्दे को और आगे बढ़ायें।
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने फ़ासिस्ट हिंदुत्ववादी राजनीतिक आख्यान के आमने-सामने मानवतावादी और बंधुत्ववादी राजनीतिक आख्यान पेश किया है। इसने देश की आबादी के बहुत बड़े हिस्से का ध्यान खींचा है। इस अर्थ में भारत जोड़ो यात्रा का अच्छा-ख़ासा महत्व है। कश्मीर को भी मानवतावादी और बंधुत्ववादी राजनीति का इंतज़ार है।
(लेखक कवि और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं)
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