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खोरी गांव: पुनर्वास के बिना घर तोड़े जाने का विरोध कर रहे लोगों पर पुलिस का लाठीचार्ज, चढूनी के नेतृत्व में धरना

फरीदाबाद के खोरी गांव में पुलिस और स्थानीय लोगों में झड़प हो गई। पुलिस ने बर्बर लाठीचार्ज किया जिसमें कई लोग घायल हो गए। पुलिस ने कुछ लोगों को हिरासत में भी लिया है। इसके बाद किसान नेता गुरुनाम सिंह चढूनी के नेतृत्व में स्थानीय मज़दूर परिवारों ने बस्ती के बाहर ही शांतिपूर्ण धरना शुरू कर दिया है।
खोरी गांव: पुनर्वास के बिना घर तोड़े जाने का विरोध कर रहे लोगों पर पुलिस का लाठीचार्ज, चढूनी के नेतृत्व में धरना

आज बुधवार, 30 जून को मजदूरों के पुनर्वास की मांग को लेकर फरीदाबाद के खोरी गांव के अंबेडकर पार्क में महापंचायत होनी थी, जिसमें संयुक्त किसान मोर्चा के नेता गुरनाम सिंह चढूनी को पहुंचना था, इसमें शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में खोरी गांव के मजदूर परिवार पहुंचे। लेकिन पुलिस ने लोगों को पंचायत स्थल पर जाने की अनुमति नहीं दी। जिसके बाद स्थानीय लोग और पुलिस आमने सामने हुए फिर पुलिस द्वारा बर्बर लाठीचार्ज किया गया। इस महापंचायत में शामिल होने आए लोगों ने कहा कि 'पहले समुचित पुनर्वास करें, फिर विस्थापन की बात करें।'

स्थानीय लोग अंबेडकर पार्क जो खोरी गांव के बीच में है वहां जान चाहते थे परन्तु पुलिस प्रशासन उन्हें रोक रहा था। पुलिस बार बार धमकी भरे लहज़े में लोगो को चेता रही थी कि वे लोग चले जाएं वरना उन्हें इसका भुगतान करना होगा। बाद में हुआ भी वही जो पुलिस कह रही थी। पुलिस ने सूरजकुंड थाने के एसएचओ के नेतृत्व में बर्बर लाठीचार्ज किया। उन्होंने यह भी नहीं देखा कि महिला है या बच्चे। पुलिस ने अंधाधुंध लाठियाँ भांजी, कई तस्वीरों में देखा जा सकता है कि पुरुष पुलिसकर्मी महिलाओं को भी पीट रहे हैं। 

इन सबके बीच किसान नेता भी मज़दूरों के समर्थन में उतरे और उन्होंने मज़दूरों को बिना पुनर्वास के हटाने को अमानवीय बताया। संयुक्त मोर्चा के नेता गुरुनाम सिंह चढूनी खोरी गांव पहुंचे लेकिन पुलिस प्रशासन ने उन्हें गांव वालों से न मिलने दिया और न ही गांव में घुसने दिया। जिसके बाद वो गांव के बाहर ही कुछ स्थानीय लोगो के साथ शांतिपूर्ण धरने पर बैठ गए। 

"कहाँ तो तय था चराग़ाँ हरेक घर के लिये,

कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये"

दुष्यंत कुमार का यह शेर आज की स्थिति पर बिल्कुल सटीक बैठता है। केंद्र की सरकार में सत्तासीन बीजेपी का लोकसभा चुनाव में बहुत बड़ा वादा था कि जहाँ झुग्गी वहीं मकान, लेकिन इसके विपरीत वर्तमान महामारी के समय में दिल्ली-एनसीआर सहित कई राज्यों में अवैध अतिक्रमण के नाम पर लोगों को बेघर किया जा रहा है। बेघर करके उन्हें सड़कों पर खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर किया जा रहा है।

ताज़ा मामला हरियाणा के फरीदाबाद जिले के अरावली वनक्षेत्र का है जहाँ कोरोना  महामारी, मानसून मौसम से तुरंत पहले और भीषण गर्मी के बीच, कुछ सप्ताह पहले 10000 परिवारों को नगर पालिका ने बेघर करने की तैयारी है। हालाँकि ये सब उच्चतम न्यायलय के आदेश पर किया जा रहा है। ये सभी परिवार लगभग 25-30 वर्षों से फरीदाबाद के खोरी गांव इलाक़े के आरावली क्षेत्र में रहते थे।

किसान नेता चढूनी ने कहा प्रशासन मज़दूरों को मारने पर तुला है। इस गर्मी में प्रशासन ने लोगों के घरों की बिजली और पानी का कनेक्शन काट दिया है। लोगों की जिंदगी भर की कमाई पर बुलडोजर चला रही है लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे।

आगे उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा अगर खट्टर सरकार इन्हें रहने की जगह नहीं देती है तो वो यहां रहने वाले एक लाख लोगों को लेकर जीटी करनाल रोड  पर किसानों के साथ बैठेंगे। 

महापंचायत में भाग लेने आए गांव के निवासी सुशील कुमार ने कहा, "वे हमारे जैसे निर्दोष लोगों के साथ ऐसा ही करते हैं। हमारे पास अपनी आवाज उठाने और अपनी चिंताओं को साझा करने के लिए कोई जगह नहीं है,  आज का दिन एक प्रतीकत्मक विरोध का था। लेकिन पुलिस ने हमारे साथ बात करने की जगह लाठी से बात की है। अगर हमारी सभा करने से कोरोना के प्रसार का डर है, तो क्या यह हमारे गांव में तैनात सैकड़ों  पुलिस कर्मियों पर लागू नहीं होता है?”

पुलिस को प्रदर्शनकारियों को घसीटते हुए और उन पर क्रूर बल और दमन का प्रयोग करते हुए देखा गया। विरोध प्रदर्शनों के बीच सूरजकुंड पुलिस स्टेशन में   इंकलाबी मजदूर केन्द्र के संजय मौर्य, यथार्थ पत्रिका के सत्यवीर और भगत सिंह छात्र एकता मंच के राजवीर और रवींद्र को हिरासत में लिया गया। पुलिस ने उनकी हिरासत की पुष्टि करते हुए कहा कि उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया गया है क्योंकि उन्होंने धारा 144 का उल्लंघन किया है।

हालाँकि पुलिस प्रशासन ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए दावा किया कि सबकुछ नियंत्रण में है, कुछ बाहरी लोगों द्वारा लोगों को भड़काया जा रहा था। उनमें से कुछ लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है कि वो कौन है और यहाँ क्यों आए थे?

दो दशकों से अधिक समय से गांव में रहने वाली समीना खान ने विरोध के दौरान टूटते हुए कहा, "कोई भी दिल्ली की भीषण गर्मी में खड़ा नहीं होना चाहता - हम बस इतना चाहते हैं कि हमारे सिर पर छत रहे, मेरे लिए फ़रमान मौत का फ़रमान है। पुलिस हमें अपने घरों में वापस जाने के लिए कह रही है लेकिन वे हमारे घरों को भी छीन रहे हैं, हम कहाँ जाएँ?”

मो. करीम लगभग 47 वर्ष के हैं और पेशे से दर्जी हैं। उन्होंने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए बताया कि उन्होंने दस बारह साल पहले लाखों रुपये में यहां ज़मीन ली थी और पैसा लगाकर घर बनाया था। उस दौरान पुलिस प्रशासन के लोगों ने भी पैसा लिया था अब वो ही हमारे घर तोड़ने आ रहे हैं, हम कहाँ जाएंगे आप ही बताइए?

वो बताते हैं कि अब उनकी आँखें भी कमज़ोर हो गई हैं जिससे वो ठीक से काम नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में नया आशियाना कैसे बनाएंगे? उनके दो बच्चे भी हैं जो अभी छोटे हैं। 

क़रीब 50 साल पुराना है गांव

खोरी गांव कई साल पुराना असंगठित क्षेत्र के मजदूर परिवारों का गांव है। मजदूर आवास संघर्ष समिति खोरी, फरीदाबाद जिसके बैनर के तहत यह पूरा आंदोलन लड़ा जा रहा है, उसके मुताबिक़ 1970 के आसपास में बसा हुआ यह गांव धीरे-धीरे बढ़ता गया और आज 2021 में गांव की आबादी एक लाख तक पहुंच गई इस गांव में 10,000 घर बने हुए हैं इन घरों में अधिकतम लोग अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति एवं अल्पसंख्यक समुदाय से हैं।

आपको बता दें कि इसे पूरे मामले की शुरुआत वर्ष 2016 में हुई। जब पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने खोरी गांव के पुनर्वास करने के संबंध में फैसला सुनाया। इसके बाद फरीदाबाद नगर निगम ने वर्ष 2017 में इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। जिसमें 7 जून 2021 को उच्चतम न्यायलय ने खोरी गांव के मजदूर परिवार के घरों को 6 सप्ताह में बेदखल करने का फैसला सुनाया। प्रशासन ने खोरी गांव की बिजली एवं पानी की सुविधा को रोक दिया।

अतिक्रमण हटाने के उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद बेघर होने के भय से यहां लोग लगातार आत्महत्या की कोशिशें कर रहे हैं। ऐसी ही परेशान एक महिला ने शुक्रवार 18 जून को आत्महत्या करने का प्रयास किया था। जबकि उससे दो दिन पहले 16 जून को 55 वर्षीय एक व्यक्ति ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी।

18 जून को आत्महत्या की कोशिश करने वाली महिला ने अपने ऊपर तेल छिडक़र आग लगाने की कोशिश की थी, वो तो समय रहते पड़ोसी ने देख लिया और उसे बचा लिया।

पीड़ित महिला ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि अगर उनका ये मकान टूट जाएगा तो वो कहां जाएंगे और इसी डर से उसने आत्महत्या करने की कोशिश की।

आपको बता दे यही डर खोरी गांव का हर निवासी जता रहा है। 

मकानों को गिराए जाने की खबर की पृष्ठभूमि में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने 18 जून को खोरी पहुंचकर वहां के निवासियों से मुलाकात की थी। पाटकर ने कहा तब कहा था, ‘‘प्रशासन अगर लोगों के आशियाने तोड़ता है तो इस तरह की कार्रवाई को किसी भी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता।’’

उन्होंने हरियाणा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार मानवता के खिलाफ काम कर रही है, उसे लोगों के घर तोड़ने से पहले खोरी गांव के लोगों को बसाने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए थे। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने न्यायालय में लोगों के पक्ष ठीक से पैरवी नहीं की।

मजदूर आवास संघर्ष समिति  का कहना है कि लोगों को कोरोना की महामारी की वजह से कहीं पर भी किराये पर भी घर नहीं मिल रहा है, अगर कहीं मिल भी जाता है तो आर्थिक तंगी एवं कमजोरी के कारण ले नहीं पा रहे हैं और न ही लोगों को दूसरे गांव में कहीं रहने की सुविधा है जिससे कि वह वहां भी नहीं जा सकते हैं ऐसे दौर में मजदूर दुविधा की स्थिति में पड़ा हुआ है। खोरी गांव की छाती पर पुलिस बल तैनात है जिससे लोगों में डर एवं खौफ पैदा हो गया है। कोरोना महामारी की तीसरी लहर की वजह से बच्चे एवं गर्भवती महिलाएं तथा एकल महिलाएं संकट की स्थिति में है।

समिति ने केंद्र की सरकार पर भी हमला बोलते हुए कहा 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नारा था 2022 तक सबको घर मिलेगा किंतु यहां घर छीने जा रहे हैं। जहां झुग्गी वहीं मकान का नारा इस जन्म में साकार होगा?"

समिति ने साफ कहा है  बिना पुनर्वास के विस्थापन मानव अधिकारों का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने बेदखली का आदेश दिया है किंतु पुनर्वास हरियाणा सरकार की जिम्मेदारी है। महामारी में मजदूर परिवारों को सड़क पर फेंक देना कौन सा न्याय है? सरकार को तुरंत खोरी के परिवारों को पुनर्वास देकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करना चाहिए।"

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