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लद्दाख: वार्ता की प्रक्रिया में आम लोगों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए

स्थानीय लोगों का मानना था कि लेह से दिल्ली का सीधा संपर्क इस इलाक़े के विकास को बहुत बढ़ावा देगा; लेकिन इलाक़े के निवासियों को इस बात का कतई एहसास नहीं था कि अनुच्छेद 35ए को निरस्त करने से उन्हें पूर्ववर्ती राज्य में जो सुरक्षा थी उससे वंचित होना पड़ेगा।
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फ़ोटो साभार: वॉलपेपर फ़्लेयर

जुलाई 2022 को इस वेबसाइट पर एक लेख प्रकाशित किया गया जिसका शीर्षक "इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, कार्रवाई करें" था। अब लगभग एक साल होने को है और लद्दाख में हालात सुधरने की बजाय और भी खराब हो गए हैं।

तबसे ही लद्दाख के लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। आदिवासी नेता सोनम वांगचुक के दो प्रमुख मुद्दों- क्षेत्र को अनुसूची VI के तहत विशेष दर्जा देने और मूल समुदायों द्वारा सामना किए जा रहे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को लेकर पांच दिवसीय भूख हड़ताल की गई थी। इस भूख हड़ताल के बाद इलाके में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। आम लोगों ने, यहां तक कि बौद्धों और मुसलमानों की धार्मिक सभाओं में बड़े पैमाने के धरने हुए और लोग भूख हड़ताल आदि पर बैठे।

इसके बाद, फरवरी 2023 में, दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक जोरदार प्रदर्शन किया गया, जिसमें लद्दाखियों का एक बड़ा वर्ग शामिल हुआ था।

इस बीच, सैन्य पृष्ठभूमि वाले एक नए लेफ्टिनेंट गवर्नर की नियुक्ति कर दी गई। लद्दाख में चीजें अभी भी दिल्ली में बैठी सत्ता के मुताबिक नहीं हो रही थीं। अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर से अलग होने के बाद दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को नियंत्रित करती है।

अगस्त 2019 में लद्दाख इलाके में मानो खुशी का माहौल था क्योंकि उन्होंने सोचा था कि लेह से श्रीनगर, श्रीनगर से दिल्ली और फिर वापस लेह के त्रिकोण को तोड़ना स्वागतयोग्य था क्योंकि वह स्थिति बोझिल थी। इसके बजाय, उन्हें लगा लेह से दिल्ली का सीधा संपर्क इलाके के विकास को काफी गति देगा।

हालांकि, लद्दाख के निवासियों को इस बात का एहसास नहीं था कि अनुच्छेद 35 ए को निरस्त करने से उन्हें जो सुरक्षा पूर्ववर्ती राज्य से मिल रही थी वह समाप्त हो जाएगी। उदाहरण के लिए, सरकारी नौकरियों, नियुक्ति प्रक्रियाओं आदि की प्राथमिकता को लें। आज, लद्दाखियों की बड़ी चिंता यह है कि विभिन्न विभागों में नियुक्तियों के लिए कोई लोक सेवा आयोग या अधीनस्थ चयन बोर्ड नहीं है।

लद्दाख में वर्तमान आंदोलन करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) और लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) की एक संयुक्त पहल पर हो रहा है जिसमें न केवल राजनीतिक समूह और पार्टियां बल्कि ट्रेड यूनियन और सामाजिक और धार्मिक समूह भी शामिल हैं।

प्रमुख मांगे

इस लेखक की केडीए के नेता सज्जाद करगिली से बात हुई, जो केडीए और एलएबी के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ राज्य के मंत्री से मिलने दिल्ली गए थे, उन्होंने इलाके में उठाई जा रही चार प्रमुख मांगों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि कम से कम बातचीत की प्रक्रिया शुरू होगी।

• क्षेत्र में छठी अनुसूची के तहत दर्जे की मांग जोर पकड़ रही है। यह मांग लद्दाखियों की एक मजबूत लामबंदी का कारण बन गई है। जैसा कि सज्जाद ने बताया, “अतीत में कुछ घोषणाएं की गई थीं कि लद्दाख इलाके में हजारों हेक्टेयर जमीन कॉरपोरेट्स को दी जाएगी। इससे लोगों में अशांति फैल गयी है। 90 प्रतिशत से अधिक आबादी आदिवासी है और अपनी भूमि और संस्कृति की रक्षा की हकदार है।” भारतीय संविधान की अनुसूची 6 के अनुसार, प्रशासन के अंतर्गत आने वाले इलाके असम, नागालैंड, त्रिपुरा और मिजोरम हैं। इन्हें स्वायत्त इलाकों और स्वायत्त जिलों के रूप में प्रशासित किया जाता है। लद्दाख क्षेत्र अपने क्षेत्र के लिए ऐसी सुरक्षित स्वायत्तता की मांग करता है।

• स्थायी लोक सेवा आयोग की मांग: यह काफी आश्चर्य की बात है कि 2019 में जम्मू-कश्मीर से इस क्षेत्र के अलग होने के बाद से, राजपत्रित और गैर-राजपत्रित वर्गों में स्थानीय युवाओं को कोई रोजगार नहीं मिला है। इससे गैर-लद्दाखियों को नौकरियां दिए जाने और स्थानीय लोगों को बेरोजगारी की मार झेलने का डर भी पैदा हो गया है।

• एक विधायिका और व्यापक राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग: जैसे ही केंद्र शासित प्रदेश ने क्षेत्र में सत्ता संभाली, एक अंतर्निहित द्वंद्व विकसित हो गया। वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में दो पहाड़ी परिषदें, लेह और कारगिल शामिल हैं। इससे पहले, लोकसभा में एक संसद सदस्य होता था, जो अभी भी है, और क्षेत्र से विधायकों का एक समूह होता है। पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य में कम से कम दो मंत्री होते थे। हालांकि, वर्तमान व्यवस्था में, निर्वाचित के मामले में लोगों का सशक्तिकरण यदि पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ तो कमजोर हो गया है। उदाहरण के लिए, बजट प्रावधानों को लें। दोनों पहाड़ी परिषदों का संयुक्त बजट 700 करोड़ रुपये से अधिक नहीं है, जबकि नौकरशाह द्वारा संचालित यूटी प्रशासन जिसमें कुछ भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी शामिल हैं का बजट 5,500 करोड़ रुपये से अधिक है। इस धन को खर्च करने में मूल निवासियों का ध्यान शायद ही रखा जाता है। इसलिए दूसरी प्रमुख मांग लद्दाख को एक विधानसभा और लोकसभा के लिए एक और सांसद वाला राज्य घोषित करने की है।

• पहले से मौजूद पुराने राज्य विषय कानूनों के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में 12,000 से अधिक पदों को भरना, स्थानीय आबादी के लिए आरक्षण सुनिश्चित करना शामिल है।

19 जून, 2023 को राज्य मंत्री (गृह) नित्यानंद राय के साथ बैठक में भाग लेने वालों में लेह एपेक्स बॉडी के तीन प्रतिनिधि शामिल थे- थुपस्तान छेवांग, लद्दाख से दो बार लोकसभा सदस्य, चेरिंग दोरजे और नवांग रिगज़िन जोरा, दोनों पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के पूर्व कैबिनेट मंत्री और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस से, कमर अली अखून, पिछली जम्मू-कश्मीर सरकार में पूर्व कैबिनेट मंत्री थे, हाजी असगर अली करबलाई, पूर्व विधायक और सज्जाद करगिली, करगिल से एक प्रमुख सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता हैं।

समस्याएं जो समाधान के दायरे से परे हैं

इस बीच, यह इलाका कल्पना और उनसे निपटने की क्षमता से परे, अपनी समस्याओं से जूझ रहा है।

उदाहरण के लिए, गर्मियों और शरद ऋतु के महीनों के दौरान इस इलाके में आने वाले पर्यटकों की भारी आमद होती है। जबकि यह स्थानीय आबादी के लिए आय के प्रमुख स्रोतों में से एक है, यह बड़े पैमाने पर पर्यटन के खतरों को भी सामने लाता है। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पहाड़ी और नगर पालिका परिषदों के लिए एक बड़ी चुनौती है। भले ही वे कूड़ा इकट्ठा कर पाते हैं लेकिन कूड़े की गुणवत्ता ऐसी है कि वे शायद ही इसके साथ कुछ कर पाते हैं।

लेह में इंटीग्रेटेड माउंटेन इनिशिएटिव (आईएमआई) ने हाल ही में किए गए एक 'अपशिष्ट ऑडिट' में पाया है कि एकत्र किए गए कुल कचरे में से 75 प्रतिशत न तो बायोडिग्रेडेबल है और न ही रिसाइकल करने योग्य है। ऐसे कचरे का क्या किया जाना चाहिए, जो देश में कहीं और पैदा होता है लेकिन उसे लाया लेह में जाता है और पहाड़ियों में फेंक दिया जाता है?

इसी तरह, यह जानना दिलचस्प था कि 10 सबसे बड़े प्रदूषकों में से 8 बहुराष्ट्रीय निगम थे। विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) कानून लेह और करगिल क्षेत्रों में शायद ही लागू होते हैं। कचरा कुछ-कुछ साफ-सफाई के साथ बढ़ता जा रहा है, लेकिन फिर हर दिन नया कचरा जुड़ता जाता है।

लेह शहर में जल प्रदूषण बड़े पैमाने का है। सूखे गड्ढे वाले शौचालयों से जल फ्लश वाले शौचालयों में बदलाव के कारण लगभग 95 प्रतिशत जल स्रोतों के प्रदूषित होने का अनुमान है। पीने के पानी का इंतजाम सिंधु नदी से किया जाना चाहिए।

जलवायु परिवर्तन का स्पष्ट प्रभाव लद्दाखियों पर देखा जा सकता है, अनुकूलन उपायों में जोखिमों और निवेश का शायद ही कोई आकलन किया गया है। यहां तक कि लेह क्षेत्र के लिए बनाई गई विकास योजना भी मैदानी इलाकों का एक और कॉपी-पेस्ट मॉडल है, जो इस क्षेत्र की समस्याओं को और बढ़ा देगा।

लेह से नई दिल्ली तक कनेक्शन लद्दाख में रहने वाले लोगों की समस्याओं के लिए रामबाण माना जाता था। हालांकि, तकनीकी हस्तक्षेप के नए दिल्ली मॉडल और अपना भविष्य तय करने में लोगों की भूमिका को नजरअंदाज करने से चीजें और खराब हो गई हैं।

दिल्ली में हुई बातचीत अगले दौर की बातचीत तक जारी रहनी चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि लोगों को योजना बनाने और अपना भविष्य तय करने के लिए मुख्य भूमिका में रखा जाए।

(लेखक शिमला के पूर्व डिप्टी मेयर हैं। व्यक्त विचार निजी हैं)

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

Ladakh Region Demands a Major Disruption in the Process of Engagement

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