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एनपीआर के विरोध में 1000 से ज़्यादा महिलाओं का मुख्यमंत्रियों के नाम पत्र

“एनपीआर महिलाओं के ऊपर स्पष्ट रूप से ख़तरा उत्पन्न कर रहा है। इसलिए एनपीआर को जनगणना के सूचीकरण से अलग किया जाए।”
NPR

देशभर की 1000 से ज्यादा महिलाओं ने राज्य मुख्यमंत्रियों को पत्र लिख कर कहा है– “एनपीआर महिलाओं के ऊपर स्पष्ट रूप से ख़तरा उत्पन्न कर रहा है। इसलिए एनपीआर को जनगणना के सूचीकरण से अलग करो।”

आपको बता दें  कि पहली अप्रैल, 2020 से राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) का नवीनीकरण (updation) जनगणना के सूचीकरण के साथ होने जा रहा है। इसी के विरोध में महिलाओं ने सभी मुख्यमंत्रियों को यह पत्र भेजा है।

पत्र पर दस्तखत करने वालों में 20 से ज्यादा राज्यों से कार्यकर्ता, लेखक, शिक्षाविद, वकील, डॉक्टर, किसान, पेशेवर लोग, आंगनवाडी कार्यकर्ता और अन्य महिलाएं शामिल हैं।

पत्र पर दस्तखत करने वालीं प्रसिद्ध महिला अधिकार कार्यकर्ता जिनमें एनी राजा, फराह नक़वी, अंजलि भारद्वाज, वाणी सुब्रमनियम, मीरा संघमित्रा, मरियम धावले और पूनम कौशिक शामिल है; ने इस पत्र को मंगलवार, 17 मार्च को दिल्ली प्रेस क्लब में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जारी किया।

मुख्यमंत्रियों को संबोधित इस पत्र में लिखा गया है:-

“हम आपको भारत की महिलाओं के रूप में लिखते हैं कि हम राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के खिलाफ़ हैं। महिलाएं भारत की आबादी का लगभक 50% हिस्सा हैं, और यह विरोध हमारे स्वयं के जीवन के अनुभवों पर आधारित हैI”

प्रेस सम्मलेन में एनी राजा ने कहा की, “अधिकतर महिलाओं के नाम ज़मीन या संपत्ति नहीं होती है, उनकी साक्षरता दर कम होती है, और वह शादी के बाद माता पिता का घर बिना किसी काग़ज़ात के छोड़ देती हैं। असम में, 19 लाख जैसी बड़ी आबादी जो एनआरसी से छूटी है उनमें बड़ी संख्या में महिलाएं हैं। यह सच्चाई है।”

फराह नक़वी ने कहा, “सभी जाति और धर्म के निरपेक्ष महिलाएं एनपीआर-एनआरआईसी (NPR-NRIC) जैसी व्यवस्था से प्रभावित होंगी जो नागरिकता की परीक्षा मनमानी और डराकर लेने की तैयारी में है।” उन्होंने कहा, “महिलाएं और बच्चे जो आदिवासी समुदाय से हैं, दलित महिलाएं, मुस्लिम महिलाएं, प्रवासी श्रमिक, छोटा किसान, भूमिहीन, घरेलू कार्मिक, यौन कर्मी और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को नागरिकता साबित करने को कहा जायेगा; यह सब पर बेदखली का जोख़िम हैI”

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अंजलि भरद्वाज ने नागरिकता अधिनियम की धारा 14 और 2003 के नियम की बात की जिसमें साफ़ साफ़ एनपीआर सामग्री को भारतीय नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (NRIC) के साथ जोड़ने की बात कही गई है और स्थानीय रजिस्ट्रार को शक्ति दी है कि वह लोगो को “संदिग्ध नागरिक” बना सके। उन्होंने कहा कि गृह मंत्री ने जो 12 मार्च को संसद में कहा था की किसी को भी “संदिग्ध” नहीं बनाया जायेगा उसकी कोई कानूनी मान्यता नहीं होगी जबतक उचित कानूनों और नियमों में संशोधन नहीं किये जायेंगे I

प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल वक्ताओं ने कहा की जनगणना जैसी प्रक्रिया की पवित्रता और महत्ता बचाए रखने के लिए देशभर की महिलाओं ने हर राज्य के मुख्यमंत्री को एनपीआर को जनगणना से अलग करने को कहा है। जहां enumerators यानी गणना करने वाले सिर्फ जनगणना का सूचीकरण करें। हालांकि कई राज्यों ने सीएए, एनआरसी, एनपीआर के खिलाफ़ विधानसभा में संकल्प पारित किया है, लेकिन जबतक जनगणना और एनपीआर को अलग करने के लिए एक अप्रैल से पहले कार्यकारी (executive) आदेश जारी नहीं होते यह संकल्प (resolutions) केवल एक अभिव्यक्ति बन कर रह जायेगा। हर राज्य को कार्यकारी आदेश तुरंत जारी करने की आवश्यकता है।

दो राज्य – केरल और पश्चिम बंगाल ने एनपीआर को अलग रखने के लिए कार्यकारी आदेश जारी किये हैं, तथा राजस्थान और झारखंड ने एक अप्रैल, 2020 से सिर्फ जनगणना करने का आदेश दिया है। वक्ताओं ने इन राज्यों द्वारा की गई कार्यवाही की सराहना की।

मुख्यमंत्रियों को भेजा गया पत्र और विभिन्न राज्यों द्वारा जारी किए गए आदेश/अधिसूचना नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके देखे जा सकते हैं-

https://drive.google.com/drive/folders/17jnovR4wTYBw9p7nTLiFJIMYO-6Agh6w?usp=sharing 

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