सरकार के आर्थिक पैकेज में लोन गारंटी योजनाएँ, लेकिन आर्थिक प्रोत्साहन नहीं
नई दिल्ली: वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 13 मई को पहले स्तर में जो घोषणाएं की थीं, उन्हें ''आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज'' तो कतई नहीं माना जा सकता। यह महज़ लोन गारंटी योजनाएं हैं। इनमें सरकार की तरफ से कुछ भी खर्च नहीं किया जाना है।
12 मई को रात 8 बजे देश को दिए भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने ''विशेष आर्थिक पैकेज'' की घोषणा की थी, ताकि कोरोना महामारी के दौर में जब लोग और अर्थव्यवस्था बुरी तरह टूट रहे हैं, तब उन्हें आत्म-निर्भर बनाया जा सके।
उन्होंने कहा था: ''मौजूदा पैकेज और सरकार द्वारा पहले जारी किए पैकेज के साथ, RBI के हालिया फ़ैसलों को मिलाकर कुल कीमत 20 लाख करोड़ रुपये है। यह भारत की कुल जीडीपी का दस फ़ीसदी हिस्सा है।''
''नेशनल स्टेटिस्टिकल ऑफिस (NSO)'' के प्राथमिक अनुमान के मुताबिक़, भारत में 2019-20 में मौजूदा कीमतों पर जीडीपी का आंकड़ा 204.42 लाख करोड़ रुपये रहने वाला है। 2018-19 में यह आंकड़ा 190.10 लाख करोड़ था।
अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री ने कई बार बीस लाख करोड़ की बात को दोहराया। मोदी ने कहा कि 13 मई के बाद अगले कुछ दिन तक वित्तमंत्री इस पैकेज से जुड़ी बातें सार्वजनिक करेंगी। इसमें ज़मीन, मज़दूर, तरलता (Liquidity) और कानून पर ध्यान केंद्रित होगा। मोदी ने कहा कि इस पैकेज में सूक्ष्म, लघु और मध्यम (MSMEs) उद्योगों के लिए कर की रियायत भी शामिल हो सकती है।
RBI ने मॉनेट्री पॉलिसी कमेटी की बैठक के बाद फरवरी में कहा था कि अलग-अलग तरीकों से 27 मार्च तक करीब 2.8 लाख करोड़ रुपये कीमत की तरलता बाज़ार में डाली गई है। यह घोषणा ''मॉनेट्री पॉलिसी स्टेटमेंट 2019-20'' के तहत की गई थी। हर दो महीने में जारी होने वाला यह स्टेटमेंट आरबीआई द्वारा सातवीं बार लाया गया था। 2.8 लाख करोड़ रुपये जीडीपी का 1.4 फ़ीसदी हिस्सा है।
आरबीआई ने कहा था कि ''टार्गेटेड लांग टर्म रेपो ऑपरेशन्स (TLTRO)'', बैंकों के कैश रिज़र्व रेशियो (CRR) और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF) के तहत कुलमिलाकर 3.74 लाख करोड़ की तरलता देश के वित्तीय ढांचे में डाली जाएगी, जो कुल जीडीपी का 1.8 फ़ीसदी हिस्सा होगी।
(रेपो रेट वह दर होती है, जिस पर आरबीआई बैंको को कर्ज़ देता है, इसे महंगाई और आपूर्ति पर नियंत्रण का एक औज़ार माना जाता है। CRR किसी बैंक में ग्राहकों के जमा पैसे का एक तय हिस्सा होता है, जिसे बैंकों को आरबीआई के पास रखना होता है। MSF तरलता नियंत्रण का एक औज़ार है, जिसे आरबीआई ने 2011 में बनाया था। MSF दर, वह दर होती है जिस पर बैंक 15 दिन के लिए आरबीआई से ''विशेष सरकारी सुरक्षा'' के आधार पर कर्ज़ लेते हैं।)
आरबीआई ने आगे कहा कि पहले TLTRO के नतीज़ों के आधार पर दूसरी नीलामियां की जाएंगी। CRR और MSF जून के आखिरी हफ़्ते तक जारी रहेंगे।
कुलमिलाकर आरबीआई ने इन तरीकों से जीडीपी के 3.2 फ़ीसदी हिस्से या 6.54 लाख करोड़ रुपये की तरलता जारी करने की घोषणा की है।
17 अप्रैल को आरबीआई ने ''अखिल भारतीय वित्त संस्थानों (AIFIs)'' को वित्त की नई सुविधाएं देने की बात कही थी। इस योजना के तहत 'नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूल डिवेल्पमेंट (NABARD)' से लेकर ग्रामीण बैंको को 25,000 करोड़ रुपये, SIDBI को 15,000 करोड़ रुपये और 10,000 करोड़ रुपये 'नेशनल हाउसिंग बैंक(NHB)' को दिए जाने हैं, ताकि वित्त कंपनियों, कोऑपरेटिव बैंकों और माइक्रोफॉयनेंस संस्थाओं को मदद दी जा सके। यह पूरा पैसा करीब 50,000 करोड़ रुपये है।
दस दिन बाद 27 अप्रैल को आरबीआई ने म्यूचुअल फंड के लिए 50,000 करोड़ रुपये की विशेष तरलता सुविधा (SLF-MF) की घोषणा की। AIFIs और SLF-MF का पुनर्पूंजींकरण ही जीडीपी का 0.5 फ़ीसदी हिस्सा है।
इससे पहले 27 मार्च को केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस राहत पैकेज की घोषणा की थी। इसकी कीमत 1.7 लाख करोड़ बताई गई थी, जो जीडीपी का करीब 0.85 फ़ीसदी था।
दूसरे शब्दों में कहें तो 12 मई को प्रधानमंत्री की घोषणा करने से पहले ही 9.24 लाख करोड़ रुपये की योजनाओं की घोषणा की जा चुकी थी। इस पूंजी में से 7.54 लाख करोड़ रुपये की घोषणाएं RBI ने कीं, यह केंद्र सरकार के बजट के तहत नहीं आतीं।
13 मई को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर के साथ 90 मिनट की ब्रीफिंग की। इसमें ''आत्म निर्भर भारत अभियान'' के तहत दिए गए विशेष आर्थिक पैकेज की ''पहली किस्त'' के बारे में बताया गया।
यह 15 घोषणाएं कुछ इस तरह थीं:
1. सूक्ष्म, लघु और मध्यम समेत तमाम उद्यमों को काम चलाने के लिए तीन लाख करोड़ रुपये की आपात निधि।
2. कर्ज तले फंसे सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के लिए 20,000 करोड़ रुपये की कर्ज़ सुविधा।
3. ''MSME फंड ऑफ फंड्स- FoF'' के ज़रिए 50,000 करोड़ रुपये का इक्विटी निवेश
4. MSMEs की परिभाषा में बदलाव
5. सरकार द्वारा जारी 200 करोड़ रुपये तक के ठेकों के लिए विदेशी निविदाएं (टेंडर) नहीं बुलाई जाएँगी।
6. संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के EPF में जमा होने वाले पैसे के लिए तीन महीने (जून, जुलाई और अगस्त,2020) तक सरकारी मदद दी जाएगी।
7. नियोक्ता और कर्मचारियों को EPF में जमा करने वाले पैसे में कमी। अब तीन महीनों तक वेतन का 12 फ़ीसदी के बजाए 10 फ़ीसदी हिस्सा जमा करना होगा।
8. गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC), गृह वित्त कंपनियां (HFCs) के लिए एक विशेष तरलता योजना, जिसके तहत 30,000 करोड़ रुपये का प्रावधान है।
9. NBFC कंपनियों और MFI कंपनियों के लिए 45,000 करोड़ की ''आंशिक ऋण गारंटी योजना''।
10. बिजली वितरण कंपनियों या डिस्कॉम के लिए 90,000 करोड़ रुपये की तरलता
11. ठेकेदारों को राहत पहुंचाने के लिए एक योजना, इसके तहत समझौते में काम पूरा करने की सीमा में 6 महीने की बढ़ोत्तरी की गई। इसमें EPC (इनजीनियरिंग, खरीद और निर्माण) और छूट के समझौते शामिल हैं।
12. पंजीकरण और काम पूरा करने की तारीख़ों को 6 महीने के लिए बढ़ा दिया गया है, इससे रियल एस्टेट कंपनियों को राहत मिलेगी।
13. दानार्थ काम कर रहे ट्रस्ट, नॉन-कॉरपोरेट बिज़नेस और पेशेवरों को कर बकाया की तुरंत वापसी
14, 31 मार्च 2021 को खत्म हो रहे वित्तवर्ष के बकाया समय में टीडीएस और टीसीएस की दरों में 25 फ़ीसदी की कमी।
15. कर से संबंधी आखिरी तारीखों में बढ़ोत्तरी।
ऋण योजनाएं, राहत पैकेज नहीं
जैसा मेनस्ट्रीम मीडिया ने प्रचारित किया, यह 15 योजनाएं ''आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज'' के तहत नहीं आतीं। किसी देश की अर्थव्यवस्था को तभी प्रोत्साहन मिल सकता है, जब सरकार अपना खर्च बढ़ाए, कर घटाए और ब्याज़ को कम करने समेत दूसरे कदम उठाए। ताकि ग्राहकों की खपत बढ़ाई जा सके, इससे माल और सेवा की मांग बढ़ेगी और नौकरियां पैदा होंगी। 13 मई की घोषणाओं में इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। सरकार के खर्च में कोई बढोत्तरी नहीं हो रही है। यह देखना बाकी है कि क्या नीतिगत बदलावों से रुकी हुई आर्थिक गतिविधियां तेजी होंगी या नहीं।
व्यापार के लिए तीन लाख करोड़ की आपात पूंजी सुविधा में सरकार कम ब्याज़ पर बैंक और ''गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों'' को बिना किसी चीज को गिरवी रखे हुए 12 महीने के लिए कर्ज देगी। ऐसा उन कंपनियों के लिए किया जाएगा, जिनका सालाना राजस्व 100 करोड़ रुपये से कम है और उनकी ''आउटस्टैंडिंग क्रेडिट लिमिट'' 25 करोड़ से नीचे है।
संबंधित खाता ऐसा नहीं होना चाहिए, जहां कर्ज चुकाने में कोई हेर-फेर हो या NPA बनने वाला हो। इस कर्ज की अधिकतम सीमा चार साल तक की है। इसके तहत सरकार नए कर्ज के लिए बैंकों और NBFCs को 100 फ़ीसदी गारंटी देगी। इस गारंटी का इस्तेमाल कर्ज़ देने वाले संस्थान अपने पैसे के भुगतान न होने की दिशा में कर सकेंगे।
पहली नज़र में यह बहुत अच्छी योजना दिखाई पड़ती है। लेकिन इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि क्या उद्यमी किसी बैंक से आज के हालातों में ऋण लेंगे। जहां तक सरकार की बात है, वह फौरी तौर पर कोई पैसा खर्च नहीं कर रही है, जिससे भविष्य के लिए कोई आपात देन-दारी पैदा हो जाए। बुरे से बुरे हालातों में (अगर मान लिया जाए कि 20 फ़ीसदी लोन भी डिफॉल्ट हो जाते हैं) भी सरकार की जेब से इस तीन लाख करोड़ का बहुत छोटा हिस्सा ही जाएगा।
तनाव में चल रहे सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को उबारने के लिए जो कर्ज दिया जा रहा है, वह ऐसे उद्योगों के लिए है, जो चालू हैं और जिनकी संपत्तियां फंसी हुई हैं, या उनका NPA बन गया है। सरकार बैंको/NBFCs से उद्यमी को कुल ''इक्विटी कैपिटल'' का 15 फ़ीसदी हिस्सा दिलवा रही है। इसकी सीमा 75 लाख रुपये तक है। इस योजना के तहत सरकार ''क्रेडिट गारंटी ट्रस्ट फॉर माइक्रो एंड स्माल एंटरप्राइजेस- CGTMSE'' की चार हजार करोड़ तक की मदद कर रही है। सरकार जितना चाह रही है, यह बैंकों द्वारा किए जाने वाले कुल वितरण का बीस फ़ीसदी हिस्सा है।
इस मामले में भी सरकार कुछ खर्च नहीं कर रही है, बल्कि बैंकों और वित्तीय संस्थानों को बिना ब्याज़ के पैसा देने को कह रही है। जैसा पिछली योजना में हुआ, सरकार अपने लिए बहुत कम देनदारी बना रही है। यह कुल पूंजी वितरण का पांचवा हिस्सा है।
क्या बैंक और वित्तीय संस्थान नए कर्ज देने से बच रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर उनका कर्ज लेकर चुका दिया गया, तो उन्हें उद्योगों को ज़्यादा बड़े कर्ज देने होंगे। खासकर MSMEs को? अभी तक इस सवाल का जवाब साफ नहीं है।
जहां तक MSME फंड ऑफ फंड्स से 50,000 करोड़ रुपये की इक्विटी डालने की बात है, तो इसके लिए सरकार एक ''फंड ऑफ फंड्स (FoF)'' बना रही है, जिसमें 10,000 करोड़ रुपये होंगे। इससे MSMEs की मदद के लिए इक्विटी फंडिग की जाएगी। यह FoF एक मातृनिधि से संचालित होगा, इसके नीचे कई दूसरे फंड भी काम करेंगे। कुलमिलाकर इनसे 50,000 रुपये की इक्टविटी को गतिशील करने की कोशिश है।
इस योजना के बुरे नतीज़े हो सकते हैं। जैसे- 2016 में सरकार ने SIDBI में एक FoF बनाया था। उसमें भी दूसरी निवेश फंड में डालने के लिए इस FoF में 10,000 करोड़ रुपये डाले गए थे। इसके तहत स्टॉर्ट-अप इंडिया वाले स्टॉर्टअप्स को मदद दी जानी थी।
शुरूआत में 14वीं वित्त योजना के तहत इस फंड में 10,000 करोड़ रुपये रखे गए। अगली वित्त योजना के लिए पैसे की उपलब्धता और योजना के विकास पर निर्भर रहने की बात कही गई। SIDBI की वेबसाइट से पता चलता है कि चार सालों में इस साल 31 मार्च तक इस FoF से दूसरी फंड में 3,798 करोड़ रुपये डाले गए। इस फंड में से 3,582 करोड़ रुपये के ज़रिए 338 स्टॉर्टअप को मदद मिली।
EPF में कमी
नियोक्ता और कर्मचारियों को नई योजना के तहत तीन महीने तक 10 फ़ीसदी वेतन ही EPF में डालना होगा। पहले यह दर 12 फ़ीसदी थी। अब इसे केंद्र सरकार द्वारा दिया जाएगा। वित्तमंत्रालय के मुताबिक़, इससे 2,250 करोड़ रुपये प्रतिमाह के हिसाब से तीन महीने में 6,750 करोड़ रुपये की तरलता बढ़ेगी।
EPF में कमी से किसी नियोक्ता को फायदा हो सकता है, क्योंकि उसके पास अब ज़्यादा पैसा होगा। लेकिन कर्मचारी को इससे बचत करने में घाटा होगा। ऊपर से प्राइवेट सेक्टर में सरकार की तरफ से EPF में जमा पूंजी पर ब्याज़ के अलावा कोई योगदान नहीं दिया जाता है।
12 फ़ीसदी से कम दर करने पर सरकार का ब्याज़ का पैसा बच जाएगा। वहीं नियोक्ता के पास जो ईपीएफ का पैसा बचेगा, उस पर अप्रत्यक्ष कर का लाभ भी सरकार को मिलेगा। चूंकि किसी भी सैलरी स्लैब का जिक्र नहीं किया गया है, इसलिए कम हुई दर के चलते कई लोगों को कर अदायगी पर बचत का फायदा भी नहीं मिलेगा, क्योंकि EPF में जमा पैसे को कर बचत का औज़ार माना जाता है।
टाटा, अडानी और रिलायंस ADAG को मिला फायदा
अब हम ऊर्जा वितरण कंपनियों या डिस्कॉम में 90,000 करोड़ रुपये की तरलता पर आते हैं। इस पूंजी को दो सार्वजनिक कंपनियों, पॉवर फॉयनेंस कॉरपोरेशन और रूरल इलेक्ट्रीफिकेशन कॉरपोरेशन द्वारा दो हिस्सों में दिया जाएगा। इस पैसे से डिस्कॉम, ऊर्जा उत्पादक और ऊर्जा हस्तांतरण कंपनियों को अपना बकाया अदा करेंगी। संबंधित राज्य सरकारों को इन ऋणों की अदायगी डिस्कॉम को तय करना है। रिपोर्टों के मुताबिक, डिस्कॉम्स पर ऊर्जा उत्पादक कंपनियों और ऊर्जा हस्तांतरण कंपनियों का 94,000 करोड़ रुपये बकाया है।
इससे अडानी पॉवर, रिलायंस पॉवर और टाटा पॉवर जैसी बहुत सारी ऊर्जा उत्पादक कंपनियों को राहत मिलेगी। लेकिन यहां दो सार्वजनिक कंपनियों से ऋण दिलवाया जा रहा है, जिसे वापस चुकाना होगा। एक बार फिर, यहां भी सरकार की जेब से कुछ नहीं जा रहा है।
नई पूंजी का निवेश नहीं
NBFCs/HFCs/MFIs के लिए 30,000 करोड़ रुपये की जो विशेष तरलता योजना है, उसके लिए पूंजी आरबीआई दे रहा है। इस निवेश के लिए इन कंपनियों के 'इंवेस्टेमेंट ग्रे़ड डेब्ट पेपर्स' में दो लेनदेन होंगे। इसमें भारत सरकार 100 फ़ीसदी गारंटी देगी। यहां भी सरकार की तरफ से किसी नई पूंजी का निवेश नहीं है।
अगर NBFCs/MFIs की देनदारियों के लिए आंशिक ऋण गारंटी की ''योजना 2.0'' की बात करें, तो सरकार यहां कम रेटिंग वाली NBFCs, HFCs और MFIs के कुल नुकसान का बीस फ़ीसदी हिस्सा सार्वजनिक बैंको को चुकाएगी।
TDS, TCS दरों में कटौती जटिल
अब TDS और TCS दरों में मौजूदा वित्तवर्ष के बचे समय में एक चौथाई कटौती पर नज़र डालिए। इसके तहत गैर-वैतनिक देनदारियों (मतलब ब्याज़ भुगतान, पेशेवर शुल्क, डिविडेंड, कांट्रेक्ट, किराया, दलाली, कमीशन आदि इस योजना में शामिल होंगे) में कटने वाले टीडीएस में 25 फ़ीसदी की कटौती की जाएगी। यहां किसी करदाता के लिए जटिल स्थिति बन गई है।
TDS एक अग्रिम कर होता है, जिससे सरकार को कुल करदाताओं की संख्या की पहले ही जानकारी हो जाती है। जब साल के अंत में इनकम टैक्स रिटर्न भरा जाता है, तो हमें अपनी आय के स्लैब के हिसाब से कर देना होता है। उदाहरण के लिए, पहले 50,000 की आय पर 5000 का टीडीएस कटता था। अब इस पर केवल 3,750 रुपये कटेंगे। लेकिन इन 1250 रुपयों की बचत साल के अंत में तभी पता चलेगी, जब कोई व्यक्ति अपना इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करेगा। क्योंकि तभी किसी व्यक्ति को अपनी आय के टैक्स स्लैब या ब्रैकेट का पता चलेगा। तो अगर कोई व्यक्ति 10 फ़ीसदी टैक्स स्लैब के तहत आता है, तो उसे अपनी कुल आय का दस फ़ीसदी हिस्सा कर के रूप में चुकाना होगा, तब टीडीएस की घटी हुई दर से जो बचत हुई होगी, वो वापस चुकानी पड़ जाएगी।
क्या यह देश की 135 करोड़ की आबादी के 2.5 फ़ीसदी करदाताओं के लिए कोई बड़ी बचत है? क्या TDS और TCS दरों में हुए बदलावों को पैकेज या आर्थिक प्रोत्साहन में जोड़ा जा सकता है? कई लोग इससे असहमत होंगे।
सीतारमण ने घोषणा में यह भी कहा कि दानार्थ ट्रस्ट और नॉन कॉरपोरेट बिज़नेस और पेशेवरों को उनका कर बकाया तुरंत चुकाया जाएगा। जैसा कहा जा रहा है, यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। आखिर यह तो वही पैसा है, जो सरकार को ही देना है।
13 मई को सीतारमण ने 6 लाख करोड़ की जिन 15 योजनाओं की घोषणा की और आरबीआई द्वारा 17 अप्रैल को जिन योजनाओं की घोषणा हुई, अगर उनमें 27 मार्च को सरकार द्वारा की गई घोषणाओं की कुल रकम जोड़ दें, तो यह आंकड़ा 9.24 लाख करोड़ पहुँचता है, जो जीडीपी के पांच फ़ीसदी हिस्से से भी कम है।
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