लॉकडाउन : जो लोग कभी दूसरों की हिम्मत थे, आज खुद सहारा तलाश रहे हैं!
‘हमारे यहां सिर्फ राशन कार्ड वालों को ही राशन मिला है, बाकि सभी लोग बहुत परेशान हैं। लॉकडाउन में अब न मेरी टैक्सी चल रही है और नाही सरकार से मुझे कोई मदद ही मिल पा रही है।’
ये दुख दिल्ली के पटपड़गंज में रहने वाली 32 वर्षीय रेखा का है। रेखा एक टैक्सी ड्राइवर हैं और अपने दो बच्चों के साथ एक किराये के मकान में रहती हैं। रेखा के पति ने उन्हें उनके हाल पर बच्चों के साथ अकेला छोड़ दिया है। फिलहाल लॉकडाउन के चलते उनकी टैक्सी बंद है, जिसके चलते उनकी आमदनी भी बंद है। रेखा के पास कमाई का कोई दूसरा जरिया नहीं है और नाही गुजर-बसर के लिए कोई परिवार को सहारा देने वाला ही है। ऐसे में रेखा को दिल्ली सरकार से मदद की उम्मीद थी, लेकिन अब उनकी ये आस भी धीरे-धीरे टूटती जा रही है।
न्यूज़क्लिक से बातचीत में रेखा ने बताया, “मैंने सुना था कि सरकार जिनके पास राशन कार्ड नहीं है उन्हें भी राशन दे रही है, लेकिन हमारे यहां ऐसा नहीं हुआ है। लॉकडाउन को एक महीना होने को है, लेकिन हमें अभी तक कोई मदद नहीं मिली।”
रेखा पूर्वी दिल्ली के मधुविहार इलाके की झुग्गीयों में रहती हैं और इस बंदी के समय में आर्थिक तंगी से गुजर रही हैं। वो एक कमरे का किराया लगभग 3 हजार रुपये देती हैं, इसके साथ ही उन पर टैक्सी का लोन भी है जिसकी 15 हजार रुपये किस्त जाती है। इसके अलावा परिवार के राशन-पानी का खर्चा अलग से उन्ही पर है, जिसके चलते रेखा इन दिनों बहुत परेशान हैं और इस हालात में खुद को असहाय महसूस कर रही हैं। हालात ये हैं कि टैक्सी तो नहीं चल रही लेकिन बाकी सारे खर्चे पहले की तरह ही चालू हैं।
रेखा कहती हैं, “मुझे तो सरकार के वो पांच हजार रुपये भी नहीं मिल रहे, जो दिल्ली में ऑटो-टैक्सी ड्राइवरों को दिए जा रहे हैं क्योंकि मेरे पास लाइसेंस तो है लेकिन बैज नंबर नहीं है। मैं अपना फॉर्म जमा करने सूरजमल अथॉरिटी गई थी, लेकिन वहां मुझे पहले दो दिन तो इस काउंटर से उस काउंटर लंबी-लंबी लाइनों में भगाते रहे और फिर बाद में मना ही कर दिया।”
रेखा उबर कैब सर्विसेज़ के लिए गाड़ी चलाती हैं। उबर कंपनी ने लॉकडाउन पीरियड में अपने ड्राइवरों के लिए सहायता राशि का ऐलान भी किया था, लेकिन रेखा के अनुसार उन्हें अभी तक ऐसा कोई पैसा नहीं मिला और नाही कंपनी ने उनसे कोई संपर्क ही किया है।
दरअसल रेखा ने अपने रिश्तेदारों से कर्जा लेकर अपने पति के लिए गाड़ी खरीदी थी, ताकि वो ड्राइवर की नौकरी कर सके लेकिन रेखा का पति गाड़ी और घर दोनों छोड़कर चला गया। पति के चले जाने के बाद रेखा ने लोगों के पैसे चुकाने और घर खर्च के लिए एक संस्थान की मदद से खुद गाड़ी चलाना सीखा। जिसके चलते उन्हें पहले लाइसेंस बनवाने में भी कई दिक्कतें हुईं और फिर बाद में घर की कई समस्याओं के चलते बैज नबंर नहीं हासिल कर पाईं। अब इस महामारी काल में रेखा अपने हालात से जूझते हुए खुद राशन-पानी के लिए संघर्ष कर रही हैं।
रेखा का संघर्ष
रूढ़ीवादी सोच को चुनौती देने वाली रेखा पिछले दो सालों से दिल्ली में टैक्सी चला रही हैं और अपने बच्चों की जिम्मेदारी भी संभाल रही हैं। उनके दोनों बेटे सरकारी स्कूल में जाते हैं। बड़ा आठवीं में पढ़ता है और छोटा पांचवी में। रेखा न सिर्फ अपने बच्चों को पाल रही हैं बल्कि उनके लिए एक बेहतर कल की उम्मीद भी करती हैं।
रेखा कहती हैं, “पहले दूसरों के घरों में खाने और साफ-सफाई का काम करती थी, उसमें कोई इज्जत नहीं देता था, लेकिन इस काम को लोग बहुत अच्छा कहते हैं। वो कहते है कि आपको देखकर हिम्मत और हौसला मिलता है। हालांकि कुछ लोग अभी भी कहते हैं कि औरत है तो औरत की तरह रहे, समाज में मर्दों की बराबरी न करे। लेकिन मैं अब किसी से नहीं डरती। मैं सबको बताना चाहती हूं कि हम औरतें कमज़ोर नहीं है, वक्त आने पर हम टफ़ जॉब भी कर सकती हैं।”
फ्री ऑटो ऐम्बुलेंस सेवा
रेखा की तरह ही दिल्ली में ‘फ्री ऑटो ऐम्बुलेंस’ सेवा देने वाले हरजिंदर सिंह भी इन दिनों खाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हरजिंदर उत्तर-पूर्वी दिल्ली के भजनपुरा इलाके में एक किराये के मकान में अपने बेटे और उसके परिवार के साथ रहते हैं। लॉकडाउन में उनके साथ ही उनके बेटे का ऑटो भी बंद है, जिससे घर में खर्चे-पानी को लेकर खाफी दिक्कतें आ रही हैं।
न्यूज़क्लिक से बातचीत में हरजिंदर सिंह कहते हैं, “हमारा काम बंद है, इसलिए इस समय हमें कई समस्याएं हो रही हैं। ऑटो के अलावा हमारे पास कोई और पैसे कमाने का साधन नहीं है। हमें राशन दुकान से सामान उधार लेना पड़ रहा है, ऊपर से मकान का 6,500 रुपये किराया भी देना है। फिलहाल कमाई बिल्कुल नहीं हो रही, जिसके चलते अब उधार देने वाला दुकानदार भी अपना पैसा मांग रहा है। राशन कार्ड होने के बावजूद हमें सरकार की ओर से कोई फ्री राशन नहीं मिल पा रहा है।”
नहीं मिल रहा मुफ़्त राशन
हरजिंदर के मुताबिक उनके इलाके में सभी राशन की सरकारी दुकाने बंद हैं और सरकार की ओर से उन लोगों को अभी तक कोई मुफ्त राशन नहीं मिल सका है। हालांकि हरजिंदर को दिल्ली सरकार की ओर से ऑटो ड्राइवरों को मिलने वाली 5,000 की मदद तो मिल गई है, लेकिन उनके बेटे को ऐसा कोई पैसा नहीं मिला। वो ऑनलाइन रेजिस्ट्रेशन में दिक्कतों को बताते हुए कहते हैं, “वेबसाइट पर बहुत लोड है, कई बार कोशिश के बावजूद भी रेजिस्ट्रेशन नहीं हो पा रहा है।”
कभी दूसरों के दुखहर्ता रहे 76 साल के हरजिंदर सिंह लॉकडाउन से पहले रोजाना 8 बजे अपने ऑटो के साथ काम पर निकल जाते थे और सड़क पर जिसे भी मदद की जरूरत होती थी, उसकी तरफ अपना हाथ बढ़ा देते थे। वो अपने ऑटो में तरह-तरह की दवाइयां भी लेकर चलते हैं। इसमें ज्यादातर वे होती हैं जो सामन्य तौर पर काम आएं।
हरजिंदर बताते हैं कि फ्री सेवा और दवाइयों के लिए वह कुछ घंटे ज्यादा काम भी करते थे। इसके साथ ही उन्होंने ऑटो में डोनेशन बॉक्स भी रखा है, जिसमें लोग अपनी इच्छा से दान दे जाते थे, हरजिंदर उसी पैसों से दवाइयां खरीद लेते थे।
बता दें कि हरजिंदर सिंह पहले ट्रैफिक वॉर्डन थे, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ कर ऑटो चलाना शुरू किया। उनके अनुसार उनका ऑटो शायद शहर में इकलौता ऐसा ऑटो ऐम्बुलेंस है, जो मुफ्त में सड़क हादसों में घायल लोगों को हॉस्पिटल तक पहुंचाता है।
रेखा और हरजिंदर सिंह की कहानियां कई अखबारों, न्यूज़चैनलों और वेबसाइट्स पर प्रेरणा के स्रोत के रूप में दिखाई और छीपी गई हैं, लेकिन आज लॉकडाउन के कभी दूसरों की हिमम्त बने ये लोग खुद अपने लिए सहारा तलाश रहे हैं।
बीजेपी हेल्पलाइन पर नहीं उठाता कोई फोन
मालूम हो कि दिल्ली बीजेपी द्वारा भी #Feedtheneedy कार्यक्रम के तहत एक हैल्पलाइन नंबर 9625799844 जारी किया गया है। लेकिन कई बार कॉल करने के बाद भी लोगों की शिकायत है कि इस नंबर पर कोई फोन नहीं उठाता।
गौरतलब है कि दिल्ली सरकार मे सभी गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए फ्री राशन बांटने की ‘फूड सिक्योरिटी’ योजना बनाई है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने खुद कहा था कि जब तक लोग अपनी रोजी-रोटी फिर से कमाना शुरू नहीं कर देते, तब तक उनका ख्याल रखना दिल्ली सरकार की जिम्मेदारी है। हम दिल्ली की एक करोड़ जनता यानी आधी आबादी को मुफ्त राशन दे रहे हैं। लेकिन सरकार के वादों और दावों के बीच रेखा और हरजिंदर जैसे लोग भी हैं, जिनका इस संकट की घड़ी में गुजर-बसर करना मुश्किल हो रहा है, उन तक कोई मदद ही नहीं पहुंच पा रही है और वो अभी भी सरकार की ओर मदद की आस लगाए उम्मीद भरी नज़रों टकटकी लगाए हुए हैं।
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