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लॉकडाउन संकट : जन-संगठनों ने प्रधानमंत्री मोदी को भेजा माँगपत्र

पत्र में दिहाड़ी मज़दूरों, किसानों, महिलाओं और रोज़ कमाकर गुजर-बसर करने वाले लोगों पर इसके प्रतिकूल प्रभाव के संदर्भ में आवश्यक कदम उठाने की मांग की गई है।
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देश में लॉकडाउन की अवधि को 3 मई तक बढ़ा दिया गया है। ऐसे में समाज के कई वर्गों के सामने अनेक चुनौतियां भी खड़ी हो गई हैं। इन तमाम समस्याओं के मद्देनज़र देश के मजदूर-युवा-महिला संगठनों के साथ ट्रेड यूनियन्स ने गुरुवार, 16 अप्रैल को लॉकडाउन के संबंध में अपनी महत्वपूर्ण मांगों को सूचीबद्ध करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक माँगपत्र भेजा है।

क्या है इस मांगपत्र में?

प्रधानमंत्री को ईमेल के जरिये भेजे इस पत्र में जन संगठनों ने कोरोना महामारी से निपटने के लिए सरकार द्वारा जारी रिलीफ़ पैकेज को बहुत कम बताया है। साथ ही इसे पहले से चल रही योजनाओं का ही री-पैकेजिंग करार दिया है। संगठनों ने केंद्र और राज्य सरकारों के तमाम दावों और वादों के बावजूद, अब तक कामगार मज़दूरों और गरीबों को पर्याप्त भोजन और अन्य सुविधाएं न मिलने पर भी अपनी चिंता ज़ाहिर की है।

देश में कोरोना के चलते लॉकडाउन लागू है। ऐसे में दिहाड़ी मज़दूरों, किसानों, रोज़ कमाकर गुजर-बसर करने वाले लोगों और महिलाओं पर इसका प्रतिकूल असर देखने को मिल रहा है। जन संगठनों का कहना है कि मीडिया रिपोर्टों से यह पता चलता है कि न केवल कामगारों, बल्कि गरीब किसानों, दलितों, आदिवासियों, खानाबदोश लोगों और सामान्य कामकाजी जनता पर भी लॉकडाउन का बुरा प्रभाव पड़ा है और विशेष रूप से बहुत लोगों को भुख-मरी जैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा ऐसी भी कई रिपोर्ट हैं जो बताती हैं कि स्वास्थ्यकर्मियों के लिए बहुत ही सीमित संख्या में सुरक्षा किट उपलब्ध है, जिसके कारण कई स्वास्थ्य-कर्मी रोगियों के इलाज के दौरान बीमारियों से संक्रमित हो रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान किसानों, खेतिहर मजदूरों को काम बंद होने की वजह से परेशानी हो रही है।

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जन संगठनों ने पीएम मोदी से मांग की है कि अमीरों और अभिजात वर्गों पर टैक्स लगाया जाए, ताकि लॉकडाउन के दौरान आम लोगों की दुर्दशा को कम किया जा सके। क्योंकि इस कठिन परिस्थिति में जब आम जनता लॉकडाउन के बोझ में दबी है, वहीं देश का अभिजात वर्ग जरूरी सामानों को जमा कर आराम की जिंदगी जी रहा है।

इस मांगपत्र को यूनाइटेड नर्सेज़ ऑफ इंडिया, क्रांतिकारी युवा संगठन, मजदूर एकता केंद्र, सफाई कामगार यूनियन, संघर्षशील महिला केंद्र, ब्लाइंड वर्कर्स यूनियन, घरेलू कामगार यूनियन, नॉर्थ-ईस्ट फोरम फॉर इंटरनेशनल सोलीडेरिटी, आनंद पर्वत डेली हॉकर्स एसोसिएशन, दिल्ली मेट्रो कमिशनर्स एसोसिएशन, घर बचाओ मोर्चा के सदस्यों द्वारा संयुक्त रुप से लिखा गया है।

क्या हैं जन संगठनों की मुख्य मांगें?

  • सरकार नये राहत पैकेज की घोषणा करे।
  • स्वास्थ्यकर्मियों, मजदूरों, सफाई कामगारों, किसानों के लिए ज़रूरी कदम उठाए जाएं।
  • सभी गिरफ्तार कामगारों को तुरंत रिहा कर, उन पर लगे सभी आरोप हटाए जाएं।
  • खेत एवं मनरेगा मजदूरों सहित देश के सभी मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी दी जाए।
  • सफाईकर्मियों को नियमित किया जाए साथ ही उन्हें महामारी भत्ता भी मिले।
  • निशक्तों और वृद्ध जनों को राहत सामग्री मुहैया कराने पर विशेष ध्यान दिया जाए।
  • उद्योगपतियों और अमीर भारतीयों पर महामारी टैक्स लागू हो।
  • मीडिया द्वारा वैश्विक महामारी को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश पर रोक लगे।

इस संबंध में क्रांतिकारी युवा संगठन के हरीश गौतम ने न्यूज़क्लिक से कहा, “सरकार अगर विदेशों से आये लगभग 15 लाख लोगों की हवाई अड्डों पर पहले ही ठीक से जाँच करती और उन्हें आइसोलेशन में डालकर निगरानी पर रखती तो इन कुछ लोगों की गलतियों का परिणाम देश की 138 करोड़ जनता को नहीं भुगतना पड़ता। लॉकडाउन के बाद से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर बेरोजगार और बेघर हो गए हैं, भूखे रहने को मजबूर हैं।”

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उन्होंने आगे बताया, “हम मांग करते हैं कि काम बंद होने व काम से निकाल दिए गये सभी मजदूरों को (संगठित, असंगठित क्षेत्र) भारत सरकार या प्रदेश सरकार द्वारा न्यूनतम आय की दर या उनके प्रतिदिन के वेतन की दर के आधार पर मासिक भत्ता दिया जाए। इसके लिए सरकार अध्यादेश जारी करे और साथ ही यह भी सुनिश्चित करे की सभी मजदूरों तक यह राशि पहुँचे।

बकौल हरीश मौजूद हालात में ज़रुरतमंदों की मूलभूत जरूरतों जैसे रोटी, कपड़ा, इलाज, निवास को पूरा किया जाना बेहद आवश्यक है। इसलिए हम माँग करते हैं कि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की कम से कम 5% राशि राहत पैकेज के तौर पर दी जाए।  

मालूम हो कि देशभर में एक के बाद एक कई डॉक्टरों और नर्सों ने सोशल मीडिया पर लचर स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी है। हाल ही में स्वास्थ्यकर्मियों के सुविधाओं की अनदेखी को लेकर हाल ही में यूनाइटेड नर्सेस एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर कहा था कि भारत सरकार डब्ल्यूएचओ के मानकों का पालन नहीं कर रही है। देश में अभी तक राष्ट्रीय प्रोटोकॉल तक तैयार नहीं किया जा सका है। उसके बाद निजी सुरक्षा उपकरण की मांग को लेकर दिल्ली नर्स यूनियन ने काम रोकने की चेतावनी दे दी।

यूनियन का कहना था कि पीपीई किट और मास्क की कमी जल्द दूर की जाए, एक ही हॉल में बेड लगाकर सभी नर्सों को रुकने का इंतज़ाम करने की बजाय उन्हें अलग कमरे दिए जाएं नहीं तो नर्से काम बंद कर देंगी।

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बता दें कि इससे पहले लॉकडाउन में बढ़ती घरेलू हिंसा और महिलाओं की समस्या पर सरकार की अनदेखी को लेकर अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा था। पत्र के माध्यम से ऐपवा ने लॉकडाउन के बीच देशभर में महिलाओं पर बढ़ती यौन हिंसा पर रोक लगाने की मांग की।

गौरतलब है कि कोरोना महामारी के साथ ही भारत की अन्य समस्याओं से भी जूझ रहा है। कामबंदी के चलते अर्थव्यवस्था, उद्योग, गरीब किसान-मजदूर समेत पूरी समाजिक प्रक्रिया चरमरा सी गई है। सरकार लगातार गरिबों और जरूरतमंदों की मदद का आश्वासन दे रही है लेकिन वास्तव में अभी भी समाज के वंचित तबकों के कई लोग इस वादे और दावे की पहुंच से कोसो दूर हैं।

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