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एमएसआरटीसी हड़ताल 27वें दिन भी जारी, कर्मचारियों की मांग निगम का राज्य सरकार में हो विलय!

एमएसआरटीसी कर्मचारियों के एक समूह ने बिना शर्ट पहने मुंबई मराठी पत्रकार संघ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया और ठाकरे सरकार से प्रत्येक डिपो के एक कर्मचारी प्रतिनिधि से सीधे बात करने को कहा।
MSRTC
फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया

महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (एमएसआरटीसी) के कर्मचारियों की हड़ताल को आज, मंगलवार को 27 दिन हो गए और वे घाटे में चल रहे निगम के राज्य सरकार में विलय की अपनी मांग को लेकर अभी भी संघर्षरत हैं। सोमवार को यानी 26वें दिन कुल 92,266 कर्मचारियों में से केवल 6,943 ने ही काम काज किया। इन सभी कर्मचारियों की मांग कंपनी का राज्य सरकार में विलय करने की है । 

अधिकारियों ने बताया कि ये हड़ताल 28 अक्टूबर को शुरू हुई लेकिन नौ नवंबर को यह और तेज हो गयी जब सभी 250 डिपो में कामकाज ठप पड़ गया।

एक अधिकारी ने बताया कि 6,943 कर्मचारियों में से 4,775 प्रशासनिक कर्मचारी, वर्कशॉप के 1,725 कर्मचारी और 163 कंडक्टर शामिल हैं।

सरकार ने कर्मचारियों पर की सख्त कार्रवाई फिर भी पीछे नहीं हटे हड़ताली कमर्चारी 

महाराष्ट्र सरकार ने एमएसआरटीसी प्रबंधन द्वारा 2,632 दैनिक कर्मचारियों को नोटिस जारी करने, 526 कर्मचारियों की सेवा समाप्त करने और 2,937 अन्य कर्मचारियों को निलंबित करने के बावजूद यह हड़ताल जारी है।

बस कर्मियों की हड़ताल से महाराष्ट्र की हजारों सरकारी बसें बंद हैं। महाराष्ट्र के परिवहन मंत्री अनिल परब ने कहा है कि सरकार विलय को छोड़कर कर्मचारियों की सभी मांगों पर बातचीत को तैयार है। राज्य सरकार एमएसआरटीसी के 90 हजार कर्मचारियों में से अब तक सैकड़ों को बर्खास्त कर चुकी है। इन कर्मचारियों को बार-बार अपील के बाद भी सेवा में हाजिर नहीं होने पर हटाया गया है।

एमएसआरटीसी देश में सबसे बड़े सार्वजनिक परिवहन निगमों में से एक है जिसके पास 16,000 से अधिक बसों का बेड़ा है और करीब 93,000 कर्मचारी इसमें काम करते हैं। इन कर्मचारियों में चालक और परिचालक शामिल हैं। कोविड महामारी शुरू होने से पहले एमएसआरटीसी की बसों में रोजाना करीब 65 लाख मुसाफिर यात्रा करते थे।

कर्मचारियों की क्या है मांग 

आर्थिक बदहाली से जूझ रहे परिवहन निगम के कर्मचारियों की मुख्य मांग निगम का राज्य सरकार में विलय करने की है। मंत्री परब ने शनिवार को पत्रकारों से कहा कि राज्य सरकार कर्मचारियों की विलय को छोड़कर सभी मांगों पर विचार को तैयार है। उन्होंने कहा कि सरकार बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा मांगों पर विचार के लिए गठित समिति की रिपोर्ट पर गंभीरता से विचार करेगी।

आगे उन्होंने हड़ताली कर्मचारियों को धमकाते हुए कहा कि कर्मचारी नेताओं की नहीं सुन रहे हैं, वे सिर्फ राजनीति कर रहे हैं। हड़ताल के कारण उनका जीवन खतरे में पड़ सकता है।

दूसरी तरफ कर्मचारी यूनियन ने राज्य सरकार के साथ एमएसआरटीसी के विलय की मांग को छोड़ने से इनकार कर दिया है। जब उनसे ये पूछा गया की वो विलय ही क्यों चाहते है इसपर यूनियन नेता ने कहा कि विलय से उन्हें बेहतर वेतन के साथ ही सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिलेगा। इन्ही मांगों को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट भी सुनवाई कर रहा है।

उच्च न्यायालय ने समिति को 20 दिसंबर को अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए

बंबई उच्च न्यायालय ने नकदी संकट से जूझ रहे महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (एमएसआरटीसी) के कर्मचारियों का राज्य सरकार में विलय करने के मुद्दे पर महाराष्ट्र सरकार द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति को सोमवार को निर्देश दिया कि वह 20 दिसंबर को अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट सौंपे।

न्यायमूर्ति पी.बी. वराले और न्यायमूर्ति एस. एम. मोदक की खंडपीठ ने एमएसआरटीसी के हड़ताली कर्मचारियों से अपने रुख पर पुनर्विचार करने और ड्यूटी पर वापस लौटने का भी अनुरोध किया क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में आम लोगों समेत बच्चों को सुविधाजनक और सस्ते परिवहन की कमी के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

पीठ ने कहा, ''जिन कर्मचारियों, चालकों व कंडक्टर ने निगम को सहयोग देने की इच्छा जतायी है, उन्हें शहरी या ग्रामीण क्षेत्रों में बस चलाने की अनुमति दी जाएगी ताकि स्कूली छात्रों सहित आम जनता को परेशानी नहीं हो।''

उन्होंने कहा कि अब स्कूल खुल चुके हैं, ऐसे में बच्चों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। पीठ ने कहा कि वह हड़ताली कर्मचारियों के सामने आने वाली समस्याओं से अवगत है, लेकिन मुद्दों और प्राथमिकताओं के बीच संतुलन बनाए रखना होगा।

अदालत एमएसआरटीसी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें अदालत के आदेश के बावजूद काम पर नहीं लौटने पर हड़ताली कर्मचारियों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई शुरू करने का अनुरोध किया गया था।

एमएसआरटीसी के वकीलों एस.यू. कामदार और जी.एस. हेगड़े ने सोमवार को अदालत को बताया कि कई बस डिपो के बाहर पथराव और हिंसा की घटनाएं हुईं, जहां कार्यकर्ता धरने पर बैठे थे। वकील ने कहा कि बड़ी संख्या में कर्मचारी डिपो के ठीक बाहर बैठते हैं और ड्यूटी पर लौटने के इच्छुक कर्मचारियों को रोकते हैं।

मज़दूर यूनियन के वकील गुणरतन सदावर्ते ने एमएसटीआरसी की दलील का विरोध किया और कहा कि कर्मचारी शांतिपूर्ण तरीके से धरने पर बैठे हैं। उन्होंने दावा किया कि राजनीतिक दलों के लोग कार्यकर्ताओं के नाम पर ऐसी हरकतें कर रहे हैं।

इस बीच राज्य के परिवहन मंत्री अनिल परब ने सोमवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार से मुलाकात की और हड़ताल पर उनके साथ विस्तृत चर्चा की। परब ने संवाददाताओं को बताया कि पवार हड़ताल से बने हालात के बारे में समझना चाहते थे।

उन्होंने कहा, ‘‘विलय का मुद्दा उच्च न्यायालय की समिति के सामने है। इस बारे में भी चर्चा हुई कि सरकार को इस समिति के समक्ष क्या रुख अपनाना चाहिए।’’

सोमवार शाम को, एमएसआरटीसी कर्मचारियों के एक समूह ने बिना शर्ट पहने मुंबई मराठी पत्रकार संघ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया और ठाकरे सरकार से प्रत्येक डिपो के एक कर्मचारी प्रतिनिधि से सीधे बात करने को कहा। एमएसआरटीसी के एक प्रवक्ता ने कहा कि 626 दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं और 2,968 अन्य नियमित कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया है।

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ )

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