Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

मध्यप्रदेशः महंगे भूसे और हरे चारे की कमी के चलते सड़क पर मवेशी छोड़ने को मजबूर किसान

एक गाय पालने में प्रतिमाह 1500 रुपये ख़र्च बैठता है। हरा चारा नहीं मिलता जिसके चलते किसानों को 40 रुपये प्रति किलो भूसा ख़रीदना पड़ता है। ऐसे में शिवराज सरकार की तरफ से गाय पालने के लिए 900 रुपये की प्रोत्साहन राशि बेहद कम है।
bhusa

मध्य प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए देशी गाय पालने वाले किसानों को शिवराज सरकार 900 रुपए प्रतिमाह देने की घोषणा की है। बावजूद इसके किसान बिना दूध वाली गाय-भैंस रखने को तैयार नहीं है। सरकार द्वारा तैयार किए गए अध्यादेश में कहा गया है कि अगर कोई जानबूझकर सार्वजनिक स्थान पर पशु छोड़ता है और इससे किसी व्यक्ति, संपत्ति को नुकसान व ट्रैफिक में बाधा पहुंचती है तो 5 हजार रुपये तक जुर्माना वसूला जाएगा। इसके बावजूद ज्यादातर सड़कों पर गाय का कब्जा है। मौजूदा समय में सड़कों पर गाय का झुंड बड़ी समस्या बन चुकी है।

आखिर गायों को घर से निकालने के लिए क्यों मजबूर हो रहे हैं किसान! इसकी पड़ताल के लिए मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 55 किलोमीटर दूर बैरसिया तहसील के अंतर्गत ललरिया गांव मैं पहुंची। इस गांव को भूसा हब के नाम से भी जाना जाता है। यहां से पूरे देश में भूसे की आपूर्ति की जाती है। दिलचस्प बात यह है कि किसान अपने पशुओं के लिए भूसे का इंतजाम न करते हुए पूरे देश में इसे ऊंचे दामों में बेच रहे हैं। पड़ताल के दौरान किसानों ने बताया कि भूसा की बिक्री मुनाफे का धंधा है। ललरिया के आस-पास के करीब 30 गांव के किसान यही सोचते हैं और सभी इसी धंधे में लगे हैं। यहां 1400 रुपए कुंतल तक भूसा बिक जाता हैं और यहां से ट्रकों पर लदकर भूसा देश के अलग-अलग हिस्सों में मांग के अनुसार बे रोक-टोक भेजा जाता है।

मवेशी पालने का ख़र्च पहुंच से बाहर

इसी गांव के प्रकाश ठाकुर के पास 6 भैंस थीं, जिसे उन्होंने पिछले एक साल में एक-एक करके बेच दी। सिर्फ एक भैस अपने परिवार के दूध, घी के लिए बचाकर रखा है। इसी तरह रामबाई के पास 4 गायें थी, जिसे उन्होंने सड़क पर छोड़ दी। रामबाई बताती हैं कि गाय दूध देना बंद कर दे तो उसे कोई नहीं खरीदता। गाय के पोषण के लिए चारा और भूसा चाहिए। जो अब बहुत महंगा हो चुका है और हमारे पहुंच से बाहर है। ललरिया के ही मुस्ताक भाई के पास 5 गायें थीं। अब केवल एक है, बाकी उन्होंने भी सड़क पर छोड़ दी। विनोद ठाकुर के पास 5 भैंस थी, अब केवल 2 है, बाकी उन्होंने अपनी खरीदी हुई रकम से 75 फीसदी कम कीमत में बेच दी। इन सभी पशुपालकों ने चारा और भूसे की महंगाई को इसका कारण बताया। एक गाय को पालने के लिए प्रतिमाह 1500 रुपए खर्च बैठता है। चरनोई की जमीन है नहीं। सरकार ने अधिकतर जमीन पूंजीपतियों को या फिर पट्टे में दे दी। रही सही लोगों ने कब्जा कर लिया। इसलिए हरा चारा तो मिलता नहीं। 40 रुपए प्रति किलो भूसा खरीदना पड़ता है। एक गाय के खुराक के लिए प्रतिदिन 5 किलो भूसा और 25 रुपए की अन्य चीजें लगती हैं। अब महीने भर का हिसाब लगा लीजिए। ऐसे में शिवराज सरकार का 900 रुपए कहां ठहरता है और वह भी केवल देसी गाय के लिए।

इसी गांव के सबसे बड़े भूसा व्यापारी एक्का सेठ बताते हैं कि दरअसल यहां भूसे के कारोबार में ग्रामीणों को मजदूरी भरपूर मिल जाती है। उन्होंने कहा कि 1970 के दशक में उनके पिता ने बहुत छोटे स्तर पर भूसे का कारोबार शुरू किया था। उस वक्त यहां से सिर्फ इंदौर तक ही भूसा भेजा जाता था जो गत्ता बनाने के व्यवसाय में उपयोग किया जाता था। धीरे-धीरे इसका व्यावसायिक उपयोग बढ़ता गया। महाराष्ट्र में मशरूम उगाने के लिए भूसे का उपयोग होने लगा। इसके अलावा पशुओं के लिए भी किसान भूसे की मांग करते हैं। साथ ही गत्ता बनाने में ईंधन के लिए भी भूसे की मांग बढ़ी है। मांग बढ़ी तो दाम भी बढ़ गए। इस तरह आस-पास के सभी गांव के किसान भूसे का व्यवसाय करने लगे। इसका एक चेन बना है। जहां आढ़ती भूसे का आर्डर देते हैं। वहां से भूसे की आपूर्ति का ऑर्डर मिलता है। फिर किसानों के दरवाजे से भूसे की तौलाई कर गोदाम में लाया जाता है। इसके बाद ट्रक पर लादकर उसे भेजा जाता है।

उन्होंने कहा एक ट्रक में 150 कुंतल भूसा भरा जाता है, इसके लिए काफी मजदूरों की जरूरत पड़ती है, यहां से एक सीजन में प्रतिदिन 200 ट्रक निकलती है, जिसके लिए मजदूरों की जरूरत पड़ती है, उन्हें प्रतिदिन 500 रुपए मजदूरी मिलती है। इसलिए यहां पलायन भी नहीं है। सभी को काम मिल जाता है। यहां आस-पास के 30 गांव के किसान अपना भूसा 400 रुपए प्रति एकड़ बेचने आते हैं, इसी तरह मजदूर भी यहां काम मांगने आते हैं और कोई खाली हाथ नहीं जाता। यहां तक कि दिव्यांग को भी यहां काम मिल जाता है। उन्होंने कहा पहले पशुधन और जमीन से लोगों की प्रतिष्ठा आंकी जाती थी, अब नजरिया बदला है और दरवाजे पर खड़ी लग्जरी गाड़ी देखकर लोग प्रतिष्ठा का अनुमान लगाते हैं। लिहाजा यहां घरों के दरवाजे पर गाय नहीं, बल्कि लग्जरी गाड़ियां दिख जाएंगी  और वह भी भूसे की कमाई से ही है।

रबी और खरीफ के अलावा जायद फसल में भी भूसे का धंधा खूब चलता है। बरसात में बड़े करीने से उसे तिरपाल से ढक कर रखा जाता है। एक्का सेठ ने यह भी बताया कि मशीनीकरण ने भी  जानवरों को नुकसान पहुंचाया है। जिसके चलते 70 फीसदी लोगों ने जानवरों को सड़कों पर छोड़ दिया है, जिनकी जान प्रायः सड़क दुर्घटना में चली जाती है।

ललरिया के सरपंच बल्लू बताते हैं कि सबसे ज्यादा भूसा गेहूं की कटाई के बाद निकलता है।  इसके बाद सरसों, मसूर धान जैसे फसलों से भी भूसा मिल जाता है। सरसों का भूसा मवेशी नहीं खाते इसलिए इसका तो व्यावसायिक उपयोग किया जा सकता है।

जानवरों के लिए क्यों आया भूसे का संकट

उत्तर प्रदेश के झांसी स्थित भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान के क्रॉप प्रोडक्शन डिवीजन के प्रमुख सुनील तिवारी बताते हैं कि मशीनीकरण का उपयोग, खेती का विविधीकरण और हीट स्ट्रेस (फसलों की वहन क्षमता से अधिक गर्मी) मौजूदा चारे के कमी के मुख्य कारण है। इसके अलावा कंबाइन हार्वेस्टर से कटाई से भूसा कम निकल रहा है। जिसके कारण जानवरों के लिए चारा कम पड़ रहा है।

भूसे का परिवहन रोकना समस्या का हल नहीं

केवल भूसे का परिवहन इसकी समस्या नहीं है, क्योंकि बहुत सारे राज्यों में पशुओं के लिए चारा मांग के अनुपात में बहुत कम है। वहां तो भूसे की आपूर्ति होनी है लेकिन इसके व्यावसायिक उपयोग को रोका जाना चाहिए।

एक बुजुर्ग व्यक्ति मौलाना मसूद खान बताते हैं कि 1975 तक 4-7 गाड़ी भूसा ही यहां से निकलता था लेकिन अब प्रतिदिन 200 ट्रक निकलता है। आज भी 80 फीसदी चारा पशुओं के लिए ही जाता है। शेष 20 फीसदी व्यावसायिक उपयोग के लिए।

वाराणसी स्थित उदय प्रताप महाविद्यालय के सस्यविज्ञान (एग्रोनोमी) विभाग के सहायक प्राध्यापक देव नारायण सिंह बताते हैं कि सरकारी नीतियों के कारण पिछले एक साल में गेहूं के भूसे और धान की पुआल की कीमतों में दो से तीन गुना वृद्धि हुई है। तात्कालिक कारणों को देखें तो जलवायु परिवर्तन के कारण गेहूं का रकबा घटा है। इसके अलावा भूमिगत जल स्तर से महंगी होती सिंचाई, बढ़ती लागत के कारण किसानों का कम लागत व कम पानी वाली फसलों जैसे चना व सरसों की तरफ आकर्षित होना है। इनमें भूसे की मात्रा बहुत कम होती हैं। ऐसी स्थिति में लोग जानवर पाले तो कैसे। वैसे भी सरकार सिर्फ देसी गाय के लिए 900 रुपए प्रति माह देने की बात कर रही है बाकी जानवरों की चिंता भी सरकार को करनी चाहिए।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest